Monday, 6 November 2023

4 नवंबर जयंती म सुरता// हमर राजगीत के रचनाकार डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा

 4 नवंबर जयंती म सुरता//

हमर राजगीत के रचनाकार डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा

अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार, 

इंद्रावती ह पखारय तोर पइंया.

महूं पांव परंव तोर भुइंया,

जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइया..

  छत्तीसगढ़ राज के ये राजगीत ह आज जन-जन के कंठ म बिराजे वतके मान-सम्मान अउ मया पाथे, जतका ए देश के राष्ट्रगान ह पूरा देश म पाथे. आज राजगीत ल हमन जेन धुन अउ ताल म सुनथन ए ह दू-तीन पइत के मंजाय म आज के रूप म हमर आगू म आय हे.

   ए गीत के सिरजनकार डाॅ. नरेंद्रदेव वर्मा जी जब एला लिखिन, त उन खुदे गावंय घलो. उंकर संग म संगत करे साहित्यकार मन बताथें, डाॅक्टर साहब अब्बड़ सुग्घर एला गावंय. वो मन हारमोनियम बजाए ले जानत रिहिन हें, तेकर सेती हारमोनियम बजा के घलो गावंय. बाद म जब "सोनहा बिहान" सांस्कृतिक संस्था संग जुड़िन त उहाँ वो बखत केदार यादव गायक कलाकार रहिन. उनला उन गा के बताइन के मैं एला अइसे गाथंव कहिके. एक कवि के कंठ ले एक सीखे-पढ़े गायक के कंठ म जाथे, त कोनो भी गीत ह वोकर गायकी शैली म सुनाए लगथे. केदार यादव एला अपन शैली म सोनहा बिहान के मंच गाये लागिस. केदार संग जयंती यादव घलो गावंय, बाद म फेर ए गीत ह शास्त्रीय संगीत के जानकार गोपाल दास वैष्णव जी के कंठ म गइस त एमा अउ परिमार्जन होइस. ए रूप ह सोनहा बिहान के सर्जक दाऊ महासिंग चंद्राकर जी ल गजबेच पसंद आइस, त फेर वोमन ए गीत ला केदार यादव अउ जयंती यादव के बदला ममता चंद्राकर जगा सोनहा बिहान के मंच म गवाए लागिन, फेर बाद म ममता के ही आवाज म रिकार्डिंग घलो होइस, जेन ह आज हम सब के कंठ म राजगीत के रूप म बिराजे हे.

    ए राजगीत के रचना ह इहाँ के सांस्कृतिक जागरण के प्रथम मंच कहे जाने वाला "चंदैनी गोंदा" के प्रथम मंचन के बाद म होइस. एकर संबंध म चंदैनी गोंदा के प्रथम उद्घोषक रहे प्रो. सुरेश देशमुख जी बताथें, अरे पहिली ए महत्वपूर्ण गीत ल लिखे गे रहितीस त दाऊ रामचंद्र देशमुख जी थोरहे एला छोड़तीस. फेर ए ह तो महासिंग दाऊ के भाग म रिहिसे, तेकर सेती बाद म लिखाइस. 

   डाॅ. नरेंद्रदेव वर्मा जी के गायकी के संबंध म दाऊ महासिंग चंद्राकर जी घलो बतावंय. जब मैं छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका "मयारु माटी" के प्रकाशन संपादन करत रेहेंव त बघेरा दुरुग जवई घलो होवय. बघेरा म दाऊ रामचंद्र देशमुख जी संग मिल-भेंट के आवंव त लहुटती म दुरुग म दाऊ महासिंग चंद्राकर जी जगा घलो एकाद घंटा बइठे करंव. जब भी उंकर संग बइठंव त डाॅ. नरेंद्रदेव वर्मा जी के चर्चा जरूर होवय. वोमन बतावंव वर्मा जी खुदे हारमोनियम बजा के ए गीत ल गावंय. वोमन वर्मा जी ल "नरेंद्र गुरुजी" काहंय. जब उंकर चर्चा करंय तहांले उंकर दूनों आॅंखी ले गंगा- जमुना बोहाए लागय. उन कहंय-" नरेंद्र तो मोर गुरु, मोर सलाहकार, मोर बोली भाखा अउ सब कुछ रिहिसे. वो जब ले गेहे तब ले मैं कोंदा- लेड़गा बरोबर होगे हंव. न बने ढंग के कुछू बोले सकंव न बता सकंव.

    डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा जी के जनम माता भाग्यवती देवी अउ पिता धनीराम वर्मा जी के इहाँ 4 नवंबर 1939 म होए रिहिसे. वो बखत धनीराम जी उच्च शिक्षा के प्रशिक्षण खातिर वर्धा म रिहिन हें. डॉ. नरेंद्रदेव वर्मा के चिन्हारी एक कवि, नाटककार, उपन्यासकार, समीक्षक अउ भाषाविद के रूप म तो हावय च, उन मंच के जबर उद्घोषक घलोक रिहिन हें. वोमन सागर विश्वविद्यालय ले सन् 1962 म एम.ए. के परीक्षा पास करे रिहिन हें, अउ उहेंच ले 1966 म "प्रयोगवादी काव्य और साहित्य चिंतन" विषय म पीएचडी के उपाधि पाए रिहिन हें. बछर 1973 म उन भाषा विज्ञान म फेर एम.ए. करीन, अउ फेर 1973 म ही "छत्तीसगढ़ी भाषा का उदविकास " शोधप्रबंध म फेर पीएचडी पाइन. 

   पांच भाई अउ एक बहिनी ले भरे-पूरे परिवार म नरेन्द्रदेव जी तीसरा नंबर के भाई रिहिन. उंकर सबले बड़े भाई तुलेन्द्र ल हम सब स्वामी आत्मानंद जी के नांव ले जानथन, उंकर दूसरा नंबर के भाई देवेन्द्र जी ल हम स्वामी निखिलात्मानंद जी के नॉव ले जानथन, जेन नारायणपुर आश्रम के सचिव के रूप म घनघोर आदिवासी इलाका म ज्ञान अउ सेवा के जोत जलाइन. चौथा नंबर के भाई जेला राजेन्द्र/राजा भैया के नॉव ले जानथन उहू म सन्यास के जीवन ल आत्मसात कर ले रिहिन, सबले छोटे भाई डाॅ. ओमप्रकाश वर्मा जी इहाँ के रविशंकर विश्वविद्यालय म मनोविज्ञान के प्रोफेसर रहे के संगे-संग विवेकानंद विद्यापीठ के सचिव घलो हें. इन पांचों भाई के दुलौरिन बहिनी लक्ष्मी दीदी जी हें.

    इन पांचों भाई म के चार भाई मन संग तो मोर भेंट अउ गोठबात होए हे, फेर जेन हमर भाखा- साहित्य के रद्दा ल चुने रिहिन वो डाॅ. नरेन्द्रदेव जी के मोला कभू दर्शन नइ हो पाइस. जब मैं साहित्य जगत म आएंव, तब तक उन ए दुनिया ले बिदागरी ले डारे रिहिन हें. मैं उनला सिरिफ उंकर साहित्य के माध्यम ले ही मिल पाएंव. जब मैं कालेज म गेंव त उहाँ हिन्दी विषय के अंतर्गत उंकर उपन्यास "सुबह की तलाश" पढ़ेंव. इही उंकर साहित्य संग मोर पहिली भेंट रिहिसे. बाद म उंकर मंझला सुपुत्र अन्नदेव वर्मा संग चिन्हारी होए के बाद अउ साहित्य मन संग भेंट होइस. उंकर एक नाटक "मोला गुरु बनइले" आकाशवाणी म बड़ लोकप्रिय होए रिहिसे, वोला कई पइत सुने ले मिलिस.

   डॉ. नरेंद्र देव वर्मा जी के मन म छत्तीसगढ़ के पीरा अउ शोषण के गुबार तो भरे रिहिसे जेन ह उंकर उपन्यास 'सुबह की तलाश' म घलो दिखय. वोमन जब 'सोनहा बिहान' के संचालन करंय तभो उंकर बोली ले ये सब बात ह दमदारी के साथ सुनावय. भले उंकर भौतिक जीवन ह कमेच बछर के रिहिसे, फेर वो ह छत्तीसगढ़ खातिर एक "जागरण पुरुष" के जीवन रिहिसे. उंकर अग्रज स्वामी आत्मानंद जी अपन संस्मरण म उंकर बारे म लिखे हें- "नरेन्द्र देव वर्मा रचित 'सोनहा बिहान' की मैंने बहुत प्रशंसा सुनी थी. एक दिन मैंने नरेंद्र से कहा, अरे जरा एक बार अपना वह 'सोनहा बिहान' सुनवाओ. 1978 के अंत में एक दिन उसने सूचना दी कि महासमुंद में 'सोनहा बिहान' का प्रदर्शन है और मैं चाहूँ तो वहाँ जाकर देख सकता हूँ. हम कुछ लोग रायपुर से गए. महासमुंद पहुंचने में कुछ देर हो गई. सर्वसाधारण के साथ ही उसने मेरी भी बैठने की व्यवस्था की. किसी ने उससे कहा कि अरे स्वामी जी को यहाँ बिठा रहे हो? सबके साथ? वहाँ अलग से एक कुर्सी क्यों नहीं दे देते? नरेंद्र का उत्तर तो मैं नहीं सुन पाया, पर मुझे सबके साथ ही जमीन पर बैठना पड़ा. बाद में पता चला कि नरेंद्र नहीं चाहता था कि मेरे कारण दूसरों को किसी प्रकार की असुविधा हो अथवा कार्यक्रम में किसी प्रकार से कोई विघ्न उत्पन्न हो. उसकी भावना ने मुझे भावविभोर कर दिया और मेरी आत्मा पुकार उठी- 'नरेंद्र, सचमुच तुम मेरे अनुज हो."

    मैंने 'सोनहा बिहान' देखा और सुना. नरेंद्र कार्यक्रम का संचालन कर रहा था. सब कुछ अपूर्व था. उसकी तेजस्विता और स्वाभिमान के उस दिन मुझे दर्शन हुए. वह दबंग था, अन्याय के समक्ष वह झुकना नहीं जानता था, पर वह अविनयी नहीं था. अपनी जनमभूमि छत्तीसगढ़ के प्रति उसका आहत अभिमान उसके संचालन में मानो फूट-फूट पड़ रहा था, पर मुझे लगा कि जनसभा में एक शासकीय कर्मचारी को इतना स्पष्ट होकर अपने विचार को अभिव्यक्ति देना ठीक नहीं है. 'सोनहा बिहान' में छत्तीसगढ़ के शोषण का वर्णन है. शोषण के विरुद्ध माटी की तड़प नरेंद्र के स्वर में अभिव्यंजित हुई थी."

   छत्तीसगढ़ महतारी के ये सच्चा सपूत बहुते कम दिन ए माटी के जागरण अउ सेवा म रह पाइन अउ 8 सितम्बर 1979 के परमधाम के रद्दा धर लेइन. उंकर सुरता ल डंडासरन पैलगी करत उंकरेच ए अठवारी बजार के चार डांड़-

दुनिया हर रेती के महाल रे, ओदर जाही

दुनिया अठवारी बजार रे, उसल जाही..


आनी बानी के हावय खेलवना, खेलव जम्मो खेल

रकम रकम के बिंदिया फुंदरा, नून बिसा लव तेल

दुनिया हर धुंगिया के पहार रे, उझर जाही

दुनिया अठवारी बजार रे, उसल जाही..

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

No comments:

Post a Comment