एक कहानी हाना के ....
अपन बोली अपन रूवाब , पाँव म राख के मुड़ी म खाप
अंग्रेजी राज ला देश ले भगाये बर , महात्मा गांधी के अगुवाई म , छत्तीसगढ़ के सुराजी बीर मन घला , भारी मुहिम चलावत रिहिन हे । पंडित सुंदरलाल शर्मा के संगवारी मन के बीच धमतरी जिला म भारी लहर रिहिस हे । धमतरी के एक झिन नवजवान , शोभाराम जी हा , बाहिर ले डाक्टरी पढ़के लहुँटे रहय । ओहा देश के अऊ जगा के अपेक्षा , अपन प्रदेश के मनखे मनला , जादा पिछड़े हुये अऊ दुख पीरा म देखे रिहिस .... तेकर सेती , दूसर जगा डाक्टरी नइ करके , इहींचे अपन डाक्टरी सेवा शुरू करिस । डाक्टर साहेब देखय के , अंग्रेज ले जादा , भारत के दूसर प्रांत ले आये मनखे मन , इहाँ लूट खसोट मचाये रहँय । ओला बड़ तकलीफ होवय । डाक्टर साहेब हा , गरीब मनखे के इलाज तो बिलकुल फोकट म करय फेर अमीर परदेसिया लुटइया मनखे ला , सोंटे बर छोंड़य घला निही ।
डाक्टर साहेब हा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रिहिस फेर संग्राम के बूता ला लुका लुका के करय । अंग्रेज मन के राज जाने बर , बड़का बड़का अंग्रेज साहेब सिपाही मन संग , डाक्टर साहेब दोस्ती कर डरिस । ओकर मन संग , जब गोठियावय तब अंग्रेजी म गिटिर पिटिर ........ , फेर गाँव के मनखे संग निमगा अपन बोली म गोठ बात करय ।
एक दिन एक झन अंग्रेज दोस्त हा बतइस के , सरकार हा इहाँ अंग्रेजी स्कूल खोलना चाहथे । डाक्टर साहेब पूछिस – काये करहू जी इहाँ अंग्रेजी स्कूल खोलके ? अंग्रेज दोस्त किथे – इहाँ के मनखे मन के बीच म , अपन भाखा के प्रचार प्रसार करना हे । डाक्टर के हिरदे धकधकागे । डाक्टर साहेब चाहय तो जरूर के , इहां के मन अंग्रेजी सीखय अऊ आगू बढ़य फेर , ये कभू नइ चाहिस के अपन भाखा ला छोंड़ के , दूसर भाखा संग उन्नति करय .. । अंग्रेज दोस्त ला बरगलावत डाक्टर किथे – इहाँ के अनपढ़ गवाँर मनखे मन , अंग्रेजी सीख जही त , तुँहर बरोबरी म खड़ा हो जही अऊ तूमन ला कहींच नइ समझही । अंग्रेज किथे – दोस्त , तैं निचट भोला भाला अस यार , स्कूल खोलके इहाँ के मन ला , अपन संस्कृति ले परिचय कराबो , मनखे के धरम परिवर्तन कराबो । वइसे भी एक बात ये आय दोस्त के , जदि हमन ला इहाँ लंबा समे तक राज करना हे त , इहाँ के धरम संस्कृति ला सीखे अऊ जाने बर परही , अऊ धरम संस्कृति ले परिचय के शुरूवात , बोली भाखा ले होथे । जब येला जान डरबो तब , ओकरे भाखा म उही मन के उप्पर राज करबो ।
डाक्टर साहेब पूछथे – अरे मोर भाई , तुँहर भाखा ला यदि येमन सीख जही त , तूमन ला राज करन थोरहे दिही तेमा , बता भलुक .......? अंग्रेज दोस्त किथे – हमर कतको भाखा संस्कृति सीख जावय छत्तीसगढ़िया मन , फेर हमर कस चतुरई नइ पा सके । तैं सोंचत होबे के , हमन छत्तीसगढ़िया के उत्थान बर स्कूल खोलत होबोन कहिके , में तोला भीतर के बात बतावँव दोस्त , ये स्कूल उँकर उत्थान बर निही बल्कि , पतन बर आय । येमन हमर बोली सीख , हमर कुछ नइ बिगार सकय । हमर स्कूल म , जब इँकर लइका आही त , हमर लइका येकर सरी चीज ला सीख जही अऊ बड़े होके , छत्तीसगढ़ी गोठियाके , इँकरे उप्पर राज करही । डाक्टर साहेब अंग्रेज के चलाकी समझगे अऊ ओला भरमावत केहे लगिस – छत्तीसगढ़ी भाखा थोरहे आय तेमा यार , येहा केवल बोली आय , येला सीख के कायेच करहू । येमा न ब्याकरण , साहित्य , न इहाँ के संस्कृति के झलक .. । ये सिर्फ गँवइँहा मनखे के बीच , आपस म लोक बेवहार के माध्यम के अलावा अऊ कहींच नोहे । दुनिया म येकर ले खराब बोली अऊ कहींच निये ।
छत्तीसगढ़ी सीख के , अंग्रेज मन इहाँ के जनता ला अऊ झिन लूट सकय सोंचके , अपन बोली ला सबले खराब केहे के पाछू , डाक्टर साहेब रात भर सुत नइ सकिस । फेर उही दिन कसम खा लिस के , इहाँ के बोली बात सीख के , इनला अऊ जादा लूटन नइ देना हे । अपन बोली ला कन्हो भुला झिन जाये सोंच के , ओहा भितरे भीतर अंग्रेजी स्कूल खोले के बिरोध के मुहिम म लगगे । डाक्टर साहेब हा संग्राम के हरेक बूता अऊ खबर ला , दवई बाँटत बाँटत , अपन बोली म गाँव गाँव के सुराजी बीर तिर पहुंचाये , फेर कभू आगू म बइठे ओकर अंग्रेज अफसर दोस्त , ओकर छत्तीसगढ़ही ला नइ समझ पावय । ओमन डाक्टर ला , अपन बोली सिखाये बर , जिद करय फेर , डाक्टर हा स्वतंत्रता आंदोलन बर चलत मुहिम के गोठ बात ला , बिया मन झिन समझ सकय कहिके , अपन बोली ला निचट बता के जानबूझ के , अपनेच बोली के घेरी बेरी अपमान कर देवय ।
एक दिन के बात आय ... सेनानी मन के बइसका रायपुर म सकलाये रहय । एक के बाद दूसर , दूसर के बाद तीसर ला अपन बात राखे के मौका मिलत रहय । डाक्टर साहेब के नँबर अइस त ओहा , बाते बात म , अंग्रेजी स्कूल खोले के बिरोध म बोलत , अपन भाखा अऊ बोली के तारीफ करिस । एक झिन संगवारी , जेहा डाक्टर साहेब ला , अंग्रेज के दोस्त समझय तेहा टोंके लगिस , तैं तो कम से कम छत्तीसगढ़ी के तारीफ झिन कर डाक्टर साहेब , तैं हा येला निकृष्ट भाखा समझथस । तैंहा अपन बोली ला अपन पाँव के तरी रऊँदथस अऊ बात अबड़ बड़का बड़का करथस । ओ संगवारी सेनानी हा , अंग्रेज अऊ डाक्टर के बीच के बातचीत म , अंग्रेजी के गिटिर पिटिर म , छत्तीसगढ़ी भाखा ला बखानत , सुने रहय । डाक्टर साहेब ला , अपन संगवारी के बात ले , कन्हो फरक नइ परिस अऊ अपन पूरा बात , अपन बोली म रखिस । अपन बोली के बड़ई करत , जब अंग्रेजी शिक्षा लाने के पाछू अंग्रेज के मंशा बतावत , अंग्रेजी शिक्षा के बिरोध करिस तब , जम्मो सभा म खलबली कस मातगे । ओहा किहिस - जब हमरेच देश के दूसर प्रांत के मन , छत्तीसगढ़ी सीख के , हमर गँवइँहा छत्तीसगढ़िया मनखे मन ला अतेक ठगथे , जदि अंग्रेज मन सीख जही त , हमन ला सुक्खा चिभोर दिही । डाक्टर साहेब बतइस के अपन बोली ला मेंहा पाँव तरी नइ राखँव भाई बलकी येला अपन मुड़ी के शोभा मानथँव । सिर्फ अंग्रेज मनके चालाकी जाने बर .... उँकर आगू म अपन बोली के बुरई कर देथँव तेला कन्हो गलत झिन समझव । अपन बोली ला तहूँ मन अपन मुड़ मा खाप के .... अंग्रेजी भाखा के बिरोध म लग जावव ।
अंग्रेज मन अभू तक डाक्टर ला अपन संगवारी समझय । डाक्टर के खुल्लम खुला बिरोध , अंग्रेज मनला इही दारी ले जनाबा होगे । अंग्रेज मन जान डरिन के , डाक्टर घला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आय । जे दिन मौका अऊ प्रमाण मिलिस , डाक्टर ला जेल म डार दिन । डाक्टर साहेब कस मनखे मन , अपन प्रदेश अऊ देश म , अपन बोली भाखा के राज चलाये बर ...... अपन बोली अपन रुवाब , पाँव म राख के मुड़ी म खाप ....... हाना ला जनम दे दिस ।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .
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