Monday, 6 November 2023

छत्तीसगढ़

 छत्तीसगढ़ 

                    एक गाँव म स्वस्थ शिशु प्रतियोगिता कराये के घोषणा होइस । येमा शर्त ये रिहिस के जे लइका हा बिगन खाये पिये स्वस्थ रइहि .. सिर्फ उही येमा भाग ले सकत हे । इनाम अऊ सनमान के लालच म कतको मनखे अपन अपन लइका धरके पहुँचगे । 

                    पहिली लइका स्टेज म अइस । ओला देखके कन्हो ला विश्वास नइ होइस के ... बिगन खाये पिये ... कन्हो अतेक स्वस्थ हो सकत हे । मंच तरी खड़े मनखे मन सवाल उठा दिन । तब ओकर ददा बतइस – मोर लइका हा सहींच म कुछ नइ खावय फेर को जनी कइसे सनसनऊँवा बाढ़त हे । तुरते तहकीकात करे गिस । ओमा पता लगिस के लइका के बाप सेठ आय । जेहा दिन भर सिर्फ जमाखोरी करथे । जबले प्रतियोगिता के घोषणा होय हे तबले .. सेठ हा अपन लइका के नाव ला महँगाई राख देहे .. तबले लइका एकदमेच स्वस्थ रहत सनसनऊँवा बाढ़त हे । 

                    दूसर लइका अइस । चभलावत रहय । येहा तो खावत हे कहिके .. तरी म ठाढ़हे मनखे मन हल्ला करिन । फेर लइका जब मुहुँ ला फारिस त .. कंन्हो ओकर मुहुँ म कहींच नइ पइन । स्टेज म ओकर ददा चइघगे अऊ बताये लगिस – हमन न खुद खावन  न कन्हो ला खावन देवन । काबर फोकटे फोकट आरोप लगाथव जी ? तहकीकात मे पाये गिस – लइका के बाप बड़े जिनीस साहेब आय । येमन खाथे तो बहुत लेकिन कन्हो सबूत नइ छोंड़य । ये साहेब हा अपन लइका के नाव ला जबले भ्रस्टाचार धरे हे तबले लइका हा .. चभलावत तो दिखथे फेर ओकर मुहुँ के भीतर खाये के समान नइ दिखय । भ्रस्टाचार नाव धरे ले लइका म को जनी काये हमागे ..... ओहा दिन दूना रात चौगुना बढ़हे लागिस ।   

                    तीसर लइका स्टेज म चइघिस । हाथ म खाये के धरे रहय ... मुहुँ म घला गोंजाये रहय । जनता देखत रहय जरूर फेर .. काकरो मुहुँ ले बक्का नइ फुटिस । येकर पहिली जनता हा .. साहेब के लइका उपर खाये के इलजाम लगाके देख डरे रहय ... जेमा आरोप लगइया जनता के थुवा थुवा होय रहय । ये दारी कन्हो के मुहुँ ले बिरोध के कंठ नइ फूटिस । लइका एकदमेच स्वस्थ रहय । तहकीकात मे पता लगिस ये लइका देश के भविष्य आय । ये नेता के बेटा आय जेमन कतको खाथे ... तेला जानथे अउ देखथे सब्बो झिन ... फेर आघू म .. कन्हो डर भय के मारे .. त कन्हो सुवारथ के मारे .. कहि नइ सकय । केहे के लइक मनखे मन के मुहुँ अऊ आँखी ... पद अऊ पदवी के लालच म तोपाये रहिथे । ये लइका के नाव जबले मुफतखोर धरे रहय .. तबले येहा नेता के पइसा कस .. बिगन ज्ञात स्रोत के बाढ़त रहय । 

                  बिजेता के नाव पुकारे बर निर्णायक ले आज्ञा पाके ... मंच के संचालक जइसे माइक ला धरिस .. तइसने म तरी ले अवाज अइस - थोकिन रूकव .. मोरो लइका आवत हे । घोषणा रूकगे । ओ मनखे हा अपन लइका धरके चइघिस । लइका दिखत नइ रहय । मोटरी म गँठियाके लाने रहय ... लइका ला । संचालक पूछिस –  लइका ला मोटरी म काबर बांध के राखे हस ? ओ किथे – बाहिर म राखे म डरराथँव के .. कन्हो कुछु खवा झिन दे साहेब । मोर लइका ला टुंहुँ देखइया मनखेमन .... प्रतियोगिता के घोषणा के पाछू .. एला जबरन नानमुन चँटाये बर लुहुर टुपुर करत तिरे तिर म ओधत हे । दूसर मन खाथे ते भले नइ दिखय ... फेर मोर लइका हा खाये के समान कोती कननेखी घला देख दिही न ... त तोर प्रतियोगिता म शामिल होये के पात्रता खो दिही । ओ मनखे हा मोटरी ले लइका ला बाहिर निकालिस । निच्चटेच दुब्बर पातर .. हाड़ा हाड़ा दिखत देहें .. एकदमेच गरहन तिरे कस दिखत रहय । चिखला माटी म सनाये हाथ गोड़ म .. अतेक घाव गोंदर ... तेकर ठिकाना निही ... घाव ले रहि रहि के ... पिप बोहावत रहय । हाथ ले लहू के धार फूटत रहय । चुंदी मुड़ी छरियाय ... देंहे ले पछीना के बास म नाक दे नइ जावत रहय ।  

                    संचालक किथे – तोर लइका तो एकदमेच चुँहके कस .. बिमरहा हे .. तैं काबर स्टेज म चइघगे होबे ? ओ मनखे किथे – मोर लइका हा अमीर के लइका थोरेन आये साहेब ... जेहा बिगन खाये स्वस्थ रहि ? येकर साँस चलत हे ... इही कन्हो कमती बात आय का ? बिगन खाये कन्हो गरीब के लइका येकर से अच्छा जी सकत हे का .. तिहीं बता भलुक ? संचालक पूछत रहय – तैं कहत हस के तोर लइका खाये निये कहिके फेर एकर हथेरी ला सूँघ के देख .. रोटी के महक आवथे । ओ मनखे किथे – हमर घर म रोटी के कारखाना हे साहेब .. फेर हमन सिर्फ बनाथन ... खा नइ सकन । बनथे तहन .. हमर हाथ ले नंगा के लेग जथे । हमन गरीब किसान मजदूर बनिहार भुतिहार आवन साहेब ... जेकर हाथ म आखिरी म सिर्फ जुच्छा कटोरा बाँच जथे । हमन न खा सकन ... न अपन लइका ला खवा सकन । अन्न उपजइया हमी मन आवन फेर जिनगी भर दाना दाना बर लुलवावत फिरत रहिथन । जेला बेंच के खा सकन .. तइसन .. हमर तिर बेंचें के लइक ... न जमीर .. न ईमान .. न देश ... न धरम .. ।

                    तैं काबर स्टेज म आके हमर टेम खराब करत हस जी – संचालक फेर पचारिस ? ओ किथे - मेहा सुने रेहेंव के .. नाव धरे ले .. भारी बिकास होथे । महूँ अपन लइका के नाव धरके ... जीत के लालच म चघ पारेंव । मोर पहिली जतेक अइन तेकर लइका मन केवल नाव धराये के पाछू सनसनऊँवा बाढ़िन । संचालक किथे – स्टेज म चघे के पहिली .. अपन लइका के हालत ला नइ देखतेस गा ? निचट शोषित पीड़ित कुपोषित अधमरहा दिखत हे ? अइसन हालत म काबर लानेस तेमा ? ओ किथे – मेहा सोंचत रेहेंव के बिगन खाये एकर ले जादा स्वस्थ कन्हो नइ होही कहिके । फेर इँहे आके देखेंव अऊ जानेव के बिगन खाये घला ... कन्हो अतेक स्वस्थ रहि सकत हे । तोला का बतावँव साहेब .. मोर लइका पहिली अइसन नइ रिहिस हे । पहिली हमर तिर खाये बर कनकी .. पिये बर पसिया .. ओढ़हे बर गोदरी अऊ रेहे बर छितका कुरिया रिहिस हे .. फेर ओ समे मोर लइका बड़ स्वस्थ रिहिस । फेर जबले येकर नाव धरे हँव तबले .. येकर गोड़ म नक्सलवाद के कोढ़ उपजगे .. हाथ म नांगर के जगा बंदूक आगे । अपन पछीना के कमाये चीज ला ... नंगाके खावत देखथे तब .. लुटेरा मन के भोरहा म अपने मनखे के लहू मा .... अपन हांथ ला बुक डारथे । जब नइ सकय तब .. लार चुचवावत बइठे रहिथे । बपरा हा आगू बता नइ सकिस .. रो डरिस । संचालक पूछथे – तोर लइका के काये नाव धर डारे , जेकर सेती ओकर अतेक दुर्गति होगे । ओ किथे – छत्तीसगढ़ नाव धरे हँव साहेब । दरअसल जगा जगा इही गोठ सुने रेहेंव के ... जबले हमर राज के नाव छत्तीसगढ़ धराये हे तबले .. ओहा खूब फलत फूलत हे ... बिकास करत हे । मे बड़ जिनीस गलती कर पारेंव साहेब ... में का जानव ये लबारी आय कहिके । मोरो लइका नाव धराये के पाछू छत्तीसगढ़ कस बिकास कर डरिस साहेब । में बहुत पछतावत हँव .. ओकर नाव .. छत्तीसगढ़ धरके । रोवत रोवत ददा हा किथे – मोर बेटा के पहिली ... जतका सुंड मुसुंड पिला अइन तेमन ... वास्तव म मोर लइका के नाव छत्तीसगढ़ धरे के पाछू भोगइन हे साहेब ।                    

                    संचालक अऊ निर्णायक मन ... लइका के नाव छत्तीसगढ़ सुन के थथमरागे । सबो झन के बुध पतरागे । ओमन सोंचे लगिन के छत्तीसगढ़ नाव के लइका ला नइ जिताबो त ... जम्मो झिन सोंचही के ... छत्तीसगढ़ के विकास के बात लबारी आय । जितइया के घोषणा करत हाथ अऊ मुहुँ काँपे लगिस .. अपन कका ददा ला खुश करे बर .. लोगन ला भरमावत .. उही बीमार पोटपोट करत छत्तीसगढ़ नाव के लइका ला ... बिजेता घोषित कर दिन । बीमार लइका ला .. नाव के सेती .. विजेता होय के नाव मिलगे । इनाम अऊ सनमान न तो छत्तीसगढ़ पइस न ओकर बाप ... बलकि ओला बाकी तीनों लइका के बाप मन झोंकिस । ठेंगवा चाँटत .. छत्तीसगढ़ .. सिर्फ ओतके म खुश हे अऊ मलई ला आज घलो दूसर मन चाँटत हे ।     

  हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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