Friday, 17 November 2023

लोककथा मन के संरक्षण बर बड़का उदिम आय लोककथा संग्रह - ठग अउ जग*

 *लोककथा मन के संरक्षण बर बड़का उदिम आय लोककथा संग्रह - ठग अउ जग*

           शहरी जिनगी एक-दूसर ले सरोकार कमती रखथे, नइ ते रखबे नइ करय। इँकर जुड़ाव म सामाजिकता कमती रहिथे। हाथ जरूर मिलथे फेर दिल नइ मिले। फार्मेलिटी निभाय के जुड़ाव होथे।लोकजीवन के समाव खोजे ल परथे। फेर गँवइहा जिनगी म लोकजीवन के दर्शन पल-पल म होथे। जे जादा कर के श्रमजीवी होथे। बेरा उवे के आरो संग काम बुता म लग जथे। चिरई-चिरगुन के सँघाती अपन डेरा छोड़ के खेत-खार, धनहा-डोली, बारी-बखरी कमाय बर जाथे। गाय-गरु मन के लहुटे पाछू बेरा ढरकत अपन डेरा लहुटथे। इही बीच खेत-खार अउ डोंगरी-पहाड़ म कमइया मन कतको किसम के गीत गाथें। जउन अंतस् ले निकलथे। एकर कोनो सिरजनहार नइ होवय। 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' सहीं तुक ले तुक मिलावत लोक के अंतस् ले निकले एक-एक डाँड़ मिलथे अउ गीत बन जथे। जउन ह लोक के अंतस् ल जुड़ोवत लोक म समा लोक ल आनंदित करथे। जेमा सिरिफ अंतस् के पीरा नइ रहय, उछाह घलव रहिथे। लोक के इही गीत मन लोकगीत हरें। ए लोकगीत मन उँकर थके मन ल थिराय म बड़ साहमत देथें। मन म उछाह अउ उमंग भरथें। हारे मन म नवा जोश भरथे। ए गीत मन ले एक-दूसर संग मन के पीरा कहे जाथे, त कभू मया रस म पागे गीत मन ले मयारुक तिर मया के संदेशा भेजे जाथे। मन नइ मिले अउ नराजगी रेहे, त ठेसरा घलव गीते च माध्यम ले दे जाथे। पिरोहिल ल मना घलव लेथे। करमा, सुआ, ददरिया गीत मन म एकर परछो मिलथे। उहें बिहाव, सोहर, फाग, पंथी, जसगीत जइसन गीत मन ले मन म उछाह अउ उमंग के ठिकाना नइ रहय। 

         दूसर कोती घर म घर रखवार के बुता घलव बाढ़े रहिथे। रँधनी खोली अउ अँगना बुता ल सम्हालत लइका मन के हियाव करना पड़थे। नान्हे लइका मन तब आज सहीं स्कूल नइ जा पावत रहिन। एकर पीछू गिने बर कतको वजह हे। ...तब घर म डोकरा बबा अउ डोकरी दाई मन कतको कथा कंथली सुनावँय। खासकर रतिहा बेरा। बहुत पहिली गुरुकुल राहय। जिहाँ नैतिक अउ मानवीय मूल्य ल सहेजे शिक्षा दे जावय। आम आदमी अपन लइका ल गुरुकुल पठोय नइ सकँय त घरे म कथा-कंथली ले पारिवारिक अउ सामाजिक जीवन के ज्ञान दे के उदिम जरूर करँय। दाई-ददा मन के बुता म भुलाय रेहे ले रतिहाकुन डोकरा बबा नइ ते डोकरी दाई मन कथा-कंथली के शुरुआत करँय। ए कहानी मन के मूल उद्देश्य तो मन बहलाव रहिन, मनोरंजन रहिन। रंधई-गढ़ई म बेरा होय ले भुलवारे के उदिम म कथा-कंथली चलय। इही ल सुनत लइका मन जागँय ...तभे तो खाय बर आरो मिलते साठ जम्मो कहानी के आखिर म इही काहय- 'दार भात चुर गे, मोर कहानी पुर गे।' फेर गुनान करे म इही समझ आथे कि आज के कहानी इही कथा-कंथली के नवा सरूप आय। मैं ए संग्रह के मुख पृष्ठ म लिखाय लोककथा ऊपर विचार करत इही सोच पाय रेहेंव। भीतरी म हिरदे के गोठ म वीरेन्द्र सरल लिखे हवय कि....लोककथा मन ल हमर आधुनिक कहानी के महतारी कहि सकथन। मैं उँकर ए गोठ ले सहमत हँव। इँकरे ले प्रेरित होके लिखे के शुरुआत होय हे कहे जा सकत हे। दूनो म एके फरक हे कथा कंथली वाचिक परम्परा ले कई पीढ़ी ल मनोरंजन के संग नैतिकता अउ मानवता के सीख दे म सक्षम रहिस। जेन आज के कहानी म दुर्लभ हे। आज के कहानी कालजयी नइ हो पावत हे। ए संग्रह के भूमिका म हरिहर वैष्णव दू ठन बढ़िया बात लिखे हवँय - एक, कथा-कंथली याने लोककथा लोक संस्कृति के अनमोल थाती आय। दूसर, लोककथा मन लोक साहित्य के रीढ़ के हड्डी आय।

          जन मन म छिटके बगरे लोककथा मन ल सिला सहीं सिल्हो वीरेन्द्र सरल ह लोककथा मन ल लिखित रूप म सहेजे के बड़का उदिम करे हे। काबर कि जम्मो लोककथा मन वाचिक परम्परा ले एक ले दूसर पीढ़ी ल मिले हे। फेर आज लिखना के जुग आय। अइसन म आगू घलव मुअँखरा रेहे ले, इँकर नँदाय के खतरा मँडरावत रहिस हे। लोककथा के संसार अगाध हे, जरूरत हे ओला सहेजे के। कतको कथा तो सहेजे च नइ गेहे अउ कम्प्यूटर अउ मोबाइल के आय ले सुनइया-कहइया दूनो चेत नइ करत हें। अइसन म वीरेन्द्र सरल के प्रयास स्तुत्य हे, बंदनीय हे। वीरेंद्र सरल के ए बुता एकरो सेती अउ स्तुत्य हे कि उन देश के स्थापित व्यंग्यकार होय के बावजूद ए कोति अपन योगदान दे हवँय।

         लोककथा मन के कथानक अउ प्रस्तुति ले ए कहे जा सकत हे कि ए हर आज के बालकहानी ले अलग नइ रहे हे। अइसे भी जम्मो कथा मन लइका मन ल साध (निशाना) के गढ़े गे हवय। जंगल-झाड़ी, पशु-पक्षी, छोटे-बड़े सबो जीव-जंतु, तरिया-नदिया, राजा-रानी जउन लइका के शब्द कोष म (जानबा) रहिथे, उही ह कथानक ल आगू बढ़ाय म मददगार दिखथे।

        बेरा के संग स्कूली शिक्षा म 'हितोपदेश अउ पंचतंत्र की कहानियाँ' सिरीज ले नैतिक मूल्य अउ मानवीय मूल्य शामिल करे गे रहिस। जेकर आज के पाठ्यक्रम म कमी दिखथे अउ एकर प्रभाव मनखे के बेवहार म घलव झलकथे। जिनगी म तनाव अउ परिवार म बिखराव एकर बड़े उदाहरण आय। मनखे म सबर करे के क्षमता ए नइ रहिगे हे। ऐन-केन प्रकारेण सब हासिल करना चाहथे। चाहे ओकर बर कुछु दाँव लग जय। ओकर संसो नइ हे। औपचारिक शिक्षा के संग हम दू अउ हमर दू के रुँधना म अनौपचारिक शिक्षा घलव सिमट गे हे। सुवारथ म सनाय हे। नान-नान बात म झगरा-लड़ई होवत हे। अपनापन अउ भाईचारा ह कोन खूँटी म टँगा गे हे ऊपरे वाला जानय। अइसन म लोगन के चारित्रिक निर्माण बर आज लोककथा मन के प्रासंगिकता बाढ़ गे हवय। 

         ऊपर कहि डरे हँव कि लोककथा मन बाल कहानी ले अलग नइ हे। लइकामन ल केन्द्र म रख के कथा गढ़े जाय। कल्पना के उड़ान घलव रखे जाय। अचम्भा गोठ जानबूझ के डारे जाय ताकि लइका मन रिझे राहय। कल्पना शक्ति के विकास होवय। लोककथा मन म कल्पनाशीलता बड़ गजब के मिलथे। अतिश्योक्तिपूर्ण कथन अउ घटना ले कथा म रोचकता बने रहिथे। बाल मनोविज्ञान तो साग म डारे नून सहीं रचे बसे हे। भले बाल पात्र नइ रही फेर कथा के प्रवाह अउ संवाद ह बालमन ल बाँधे रहिथे।

         अब किताब म शामिल कुछ लोककथा मन के गोठ कर लेवन।

         छत्तीसगढ़ के गँवइहापन म कुछ मनखे के बेवहार अउ हाव-भाव अइसे रहिथे जेन ल लेड़गा कहि दे जाथे। जेकर चलना-फिरना अउ गोठियई के लोगन हाँसी उड़ाथें। काबर कि लेड़गा सूझ-बूझ ले बुता नइ कर पावय। कर भी लेही त उल्टा-पुल्टा कर डारथे। दूसर के बुध म झटकुन आ जथे। चतुरा मन ओकर फायदा उठा लेथें। जेन ल अभिन के बेरा म कमती बुद्धि के लइका म गिने जाथे। हमर कथा-कंथली म लेड़गा के पात्र के चरित्र ल बढ़िया गढ़े गे हावय। जम्मो कथा मन म कभू उँकर हँसी नइ उड़ाय हे। भलुक ओकर मनोविज्ञान ल समझे के उदिम मिलथे। उन मन अनजाने म सहीं अपन सूझ-बूझ के आरो देवत समाज बर चेतलग बुता घलव कर डारथें। अइसन कथा मन ले लइका मन बड़ मजा मिलथे। फेर बड़का सीख घलव पाथें। एक तो उँकर जइसन नइ करना हे।

        'करम के नाँगर ल भूत जोंतय' म लेड़गा अपन महतारी के दे सात ठन मुठिया रोटी बर पीपर तरी बइठे चिचिया कहिथे - 'एक ल खाँव कि सातो ल खाँव। एक ल खाँव कि सातो ल खाँव। इही ल दुहराय त पीपर म रहइया सत बहनिया मन अपने आप ल समझत डर जावय। दूसर कोति ओकर ललचाहा मितान के करनी के भेद ए कथा म हे।

         'भाँचा के चतुराई अउ ममा के करलाई' लेड़गा के सूझ बूझ ले दिन बहुरे के कथा ए।

          'परबुधिया' म लेड़गा के चरित्र बिल्कुल लोकजीवन म प्रचलित चरित्र के जइसे हावय। जेन ह अभिन के बेरा म अविश्वसनीय हे। अइसन कहानी ल जस के तस आगू बढ़ाय ले नवा पीढ़ी अउ समाज ऊपर गलत छाप परही। परबुधिया अउ लेड़गा के कड़ही दूनो कथा महज मनोरंजन के लइक हे। 

            भांटा ऊपर कांटा पहेली बूझत हास्य कथा आय। उहें जानपाड़े लोककथा ए बताय म सक्षम हावय कि जान मुसीबत म फँसथे त सबो के दिमाग के ताला खुल जाथे। सब ल उपाय सूझथे।

           छत्तीसगढ़ लोकपरब के भुइँया आय। जिहाँ नारी परानी कतको किसम के उपास-धास रखथें। कमरछठ उपास इही म के आय जउन तइहा ले चले आवत हे। एकर महत्तम अउ मरम ल सरेखत छै ठन बढ़िया लोक कथा ए संग्रह म सकेले गे हे। ए विषय के एक दू लोककथा ल सरेखे के पाछू अउ दूसर किसम/विषय के लोककथा मन ल जघा दे जाय म छूटे अउ लोककथा ल नवा जीवन मिल पातिस।  नवा संग्रह बर एमा ले बाँचत अउ कथा ल दूसर संग्रह म शामिल करे ले ओकरो विविधता बने रहितिस। अइसे मोर मानना हे। खैर, ए लेखक के एकाधिकार आय कि का शामिल करय अउ का नइ?

         'मंत्री मन के घमंड'  जन-हितवा राजा मंत्री मन के घमंड कइसे टोरथे एकर परछो देथे। 

         आज दिनोंदिन मनखे नैतिकता ले गिरत पताल लोक म जावत जात हे, अपने ले आँखी नइ मिला सकत हे। अइसन म 'चोर के ईमानदारी' लोककथा मनखे के चारित्रिक उत्थान बर मील के पत्थर साबित होही। जेन म परिस्थितिवश एक राजा अपन छोटे बेटा ल कहिथे-...तैं चोरी करके जिनगी जीबे खाबे...फेर मोर ए बात ल हमेशा सुरता रखबे कि कभू कोनो दास, कंजूस अउ मित्र घर चोरी झन करबे,.. अउ एकरे संग असीस देथे- भगवान तोर भला करही। ददा राजा के दिए ए मंतर ल अपनाय चोर बेटा कइसे आने राज के राजकुमार बनिस एकर बढ़िया कहानी आय, चोर के ईमानदारी।

            जे पाय आँच, ते खाय पाँच लोककथा जिद म अड़े रहे ले मनखे के संग का अनीत घट सकथे, एमा बढ़िया समझे जा सकत हे। 

          ठग अउ जग ए बताथे कि कभू भी अपन आप ल हरदम श्रेष्ठ अउ जेष्ठ माने के नोहय। हमरो ले कोनो श्रेष्ठ हो सकत हे।

           'कुकरी के लइका' प्रेम अउ समर्पण के मिशाल दे म समरथ हे।

           जम्मो लोककथा मन के बारे म कहूँ थोर थोर गोठ लिख दे जाही त आप किताब कइसे पढ़हू। ठग अउ जग, बनकैना रानी, कुकरी के लइका, दसोमती रानी, महराज के बेटा, मनखे के भाई साँप, सूरजभान, फूलबासन,  राजा वीर देव, हाथी अउ कोलिहा सहित कुल ३२ कथा-कंथली अइसे ढंग ले सकला करे गे। जे मनखे के ३२ दाँत कोति घलव इशारा करथे। आखिर लोककथा दंतकथा तो हरेच भई। 

          ठग अउ जग लोककथा संग्रह लोक ल हाँसे के मौका देवत नैतिक मूल्य अउ मानवीय मूल्य ल अपन अंतस् म उतार मनखे बने रहे के सीख देथे। लिखना रूप म सिरजावत वीरेंद्र सरल के लेखन शैली सराहे के लइक हे। जेन प्रवाह के संग सुने हँव उही प्रवाह ए लोककथा मन म मिलथे। वीरेंद्र सरल के मँजे कलम ले ए संग्रह के जम्मो लोककथा मन ल आज के भागमभाग ले भरे जिनगी म अपन ठउर बनाही। एमा कोनो दू मत के गोठ नइ हे।

           लोककथा मन ल वाचिक परम्परा ले लिखना म सँघारे के उदिम आगू घलव होवत रहना चाही। बस अइसन करत बेरा ए बात के ख्याल रखे बर परही कि विशुद्ध मनोरंजन बर कहे कथा-कंथली के संग छत्तीसगढ़ के अस्मिता अउ स्वाभिमान ल नवा उचास देवय, उँकर सकला होवय। वीरेंद्र सरल के ए उदिम नवा-जुन्ना(नवोदित अउ स्थापित) दूनो लिखइया मन ल ए दिशा म बुता करे के प्रेरणा दिही, इही भरोसिल मन ले वीरेंद्र सरल ल पुरखौती जिनिस ल सहेजे के ए कारज बर बधाई देवत हँव।


लोककथा संग्रह: ठग अउ जग

लेखक: वीरेंद्र सरल

प्रकाशक: कल्पना प्रकाशन दिल्ली

प्रकाशन वर्ष : 2023

कापीराइट: लेखक

पृष्ठ : 224

मूल्य : 450


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह(पलारी)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.

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