*लघु कथा*
दसरु बरवट के खटिया म पड़े कल्हरत हे । दसरु के चार झन बेटा हावय । रमउ,भुवन,लच्छू अउ सोनउ।
" का करत हस गो दसरु कका" डेरवठी बाहिर के भाखा ओरख के दसरु चिचियाथे।" आ....आ....सुजानिक......आ...बइठ" दसरु कांखत सुजानिक ल बुलाके खटिया के तीर म माढ़े टेबूल उपर बइठे के इशारा करथे।
सुजानिक बइठत पुछथे " अउ का हाल चाल से कका ,लोग लइका मन नइ दिखत हे "।
" काला बताबे सुजानिक" दसरु कांखत एक लम्बा सांस ले के कइथे "तोर काकी परबुधनिन काल के बात मान के स्वर्ग सिधारगे । बड़े बेटा रमउ खाय कमाय ल परदेश गेहे,वो हां उहें भूला गेहे । भुवन अपन लोग लइका समेत अलग ठउर म रइथे । लच्छू जुआ चित्ती नशा म भक्क पड़े रइथे अउ सोनउ हा शरीर अउ दिमाग ले दिव्यांग हावय ।
"मंय समय के मार के दंश झेलत परमात्मा के आस म पड़े हंव सुजानिक.....।"
अतका काहत दसरु एक गहरा सांस लेवत दसरु अउ सुजानिक उपर कोती ल देखत मने मन सोचें ल लग जाथे " का इही कलयुग ये भगवान"।
अशोक कुमार जायसवाल
भाटापारा
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