Thursday, 25 January 2024

लघु कथा*

 *लघु कथा*

दसरु बरवट के खटिया म पड़े कल्हरत हे । दसरु के चार झन बेटा हावय । रमउ,भुवन,लच्छू अउ सोनउ।

        " का करत हस गो दसरु कका" डेरवठी बाहिर के भाखा ओरख के दसरु चिचियाथे।" आ....आ....सुजानिक......आ...बइठ" दसरु कांखत सुजानिक ल बुलाके खटिया के तीर म माढ़े टेबूल उपर बइठे के इशारा करथे।

सुजानिक बइठत पुछथे " अउ का हाल चाल से कका ,लोग लइका मन नइ दिखत हे "। 

   " काला बताबे सुजानिक" दसरु कांखत एक लम्बा सांस ले के कइथे "तोर काकी परबुधनिन काल के बात मान के स्वर्ग सिधारगे । बड़े बेटा रमउ खाय कमाय ल परदेश गेहे,वो हां उहें भूला  गेहे । भुवन अपन लोग लइका समेत अलग ठउर म रइथे । लच्छू जुआ चित्ती नशा म भक्क पड़े रइथे अउ सोनउ हा शरीर अउ दिमाग ले दिव्यांग हावय ।

        "मंय समय के मार के दंश झेलत परमात्मा के आस म पड़े हंव सुजानिक.....।" 

अतका काहत दसरु एक गहरा सांस लेवत दसरु अउ सुजानिक उपर कोती ल देखत मने मन सोचें ल लग जाथे " का इही कलयुग ये भगवान"।


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

No comments:

Post a Comment