एक कहानी हाना के .....
आठ हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा
धरम करम पूजा पाठ अऊ जन कल्याण म , रात दिन अपन देहें ल होम देवइया नारायण के जिनगी म , सिर्फ एक कमी रहय । बिहाव के दस बछर पुरगे रहय , एको ठिन नोनी बाबू नइ नांदत रहय । जिनगी भर कठिन परिश्रम करके बनाये , बड़े जिनीस घर दुवार , मनमाने अकन खेत खार ला कोन संभालही , तिही फिकर म उनत गुनत रहय नारायण अऊ ओकर सुवारी सुपेलहिन हा । बपरी ला खाये अंग नइ लागय । पुरखा ले टिकला भाठाँ भुँइया के अलावा , कुछ नइ पाये रहय बपरा नारायण हा , फेर अपन बाहाँ के बल म , रगड़ा टूटत मेहनत करके खूबेच सँपत्ति बना डरे रहय । नारायण सोंचय मोर पाछू , मोर सँपत्ति के खवइया नइ रहि , तेकर ले , अपन जिये खाये के पुरती बँचाके , सरी संपत्ति ला दान धरम म लगाय जाय । मंदिर देवाला बनवाये बर , कुआँ तरिया खनवाये बर , धरमशाला बनवाये बर , दान दक्षिणा करे लागिस । परोपकार म जगा जगा नाम कमइया , नारायण के मन के भीतर संतान नइ होय के दुख , घुना कस हिरदे ला छेदत रहय । देरानी जेठानी के ताना म , सुपेलहिन के देंहें अधियागे रहय ।
भगवान के घर म देर जरूर हे फेर अंधेर निये । सुपेलहिन के कोख म , चौथापन म लइका नांदिस । लइका के जनम म बड़ खुशियाली मनइन । नाच पैखन , राम रमायन अऊ गाँव भर ला झारा झारा पक्की मांदी खवईस । हीरा बरोबर सुघ्घर लइका के नाव हीरानंद धरागे । दिखम म जतेक खबसूरत ततके गुन म घला अव्वल । देखते देखत पुन्नी कस चंदा बाढ़हे लगिस । पढ़हे लिखे बर आश्रम म भरती होये के लइक होगे । हीरानंद हा , आचार्य मन के सबले प्यारा चेला बन गिस । आश्रम म जम्मो चेला मनला , पढ़ई के अलावा काम काज के अऊ दूसर बूता घला सिखाय जाय । नांगर जोते से लेके धान लुवे तक के शिक्षा दीक्षा आश्रम म होवय । फेर हीरानंद के सुकुमार देंहे देख , हीरानंद ला नांगर जोते बर , माटी खने बर , कन्हो नइ कहय । हीरानंद के जुम्मा , आश्रम के बखरी के निंदई कोड़ई अऊ जतनई रहय ।
अपन अपन बूता ला जम्मो चेला मन बहुतेच जुम्मेवारी ले करय । तइहा तइहा के बात आय गा , जब तक लइका के शिक्षा पूरा नइ होय रहय तब तक , लइकामन आश्रम म रहय , कभू अपन घर दुवार म झाँके बर नइ जावय । आश्रम म पढ़त लिखत आठ दस बछर निकल जावय , तब तक ननपन ले आये , लइकामन के देंहे म , जवानी गेदरा जाय । शिक्षा पूरा हो जाये के पाछू , दीक्षांत समारोह म , लइका के ददा ला आश्रम म बलाके , लइका के गुण ला बताये जाये अऊ ओकर द्वारा आश्रम म करे काम काज के बखान करे जाय । काम काज के निपुणता , लोक बेवहार के दक्षता देख , लइका ला वापिस ओकर ददा के हाथ म सौंप दे जाय ।
आश्रम म आये के पाछू , जब हीरानंद ला बखरी के बूता मिले रहय तब , बखरी एकदमेच ठन ठन ले सुक्खा निचट भर्री भाठाँ कस रहय । अपन मेहनत म , हीरानंद हा , पूरा बखरी भर साग भाजी बों डरिस । हीरानंद के मेहनत ले , साग भाजी के अतेक उत्पादन होय लगिस के , आश्रम के रहवइया मन खा नइ सकय । तिर तखार के बाजार म कोचिया मन , आश्रम के साग भाजी ला बेंचे बर लेगय । ओकर मेहनत म , नानुक बखरी हा बड़े जिनीस खेत म बदलगे रहय । खेत के चारो मुड़ा म , माटी के भाँड़ी खड़ा होगे । खेत भितरी म दू ठिन गऊशाला बनगे रहय । आश्रम म दूध दही के पूरा बोहाये लगगे । हीरानंद के नाव हा न केवल आश्रम म बलकी तिर तखार म घला प्रसिद्ध होगे रहय । अपन ददा नारायण के नक्शा कदम म चलत हीरानंद के गुन म , आश्रम के आचार्य मन घला गरब करय ।
एक दिन वहू समे आगे , जब हीरानंद के शिक्षा पूरा होगे रहय । ददा नारायण ओला वापिस लेजे बर आय रहय । आश्रम के प्रधान आचार्य हा हीरानंद के गुन ला बतावत , नारायण ला आश्रम म , किंजारत रहय । सावन के महिना रहय । हीरानंद हा बखरी म , बलकरहा जवान कस माते रहय । तइसने म नारायण , प्रधान आचार्य संग बखरी म पहुंचगे । आधा बखरी म खीरा बोंवाये रहय अऊ अतेक फरे रहय के , ढेखरा मन .. फर के मारे , लदलदागे रहय । प्रधान आचार्य कहत रहय – हीरानंद के मेहनत अऊ ईमानदारी के परिणाम आय ये बखरी के सुघरता .......। जब ओ अइस ते समे , बखरी हा परिया परे रिहिस । सुकुमार लइका रापा नइ धर सकही , नांगर नइ जोत सकही , धीरे धीरे बखरी के बन बांदुर निंदत रहि सोचे रेहेन , फेर अपन मेहनत के बलबूता म नानुक बखरी ला बढ़ोवत बड़े जिनीस खेत बना डरिस । इही बखरी के कमई म आश्रम के बिकास के काम होये लगिस ।
बाते बात म गाँव के मुखिया घला आश्रम पहुंचगे । हीरानंद ला बलाये बर , आचार्य जी हा हाँक पारिस । घमघम ले फरे खीरा के ऊँच ऊँच ढेखरा के बीच ले आवत , गंइठाहा गंइठाहा हाथ गोड़ के , छै फुट के जवान देंहें हा , दिखत नइ रहय । तिर म अइस त , हीरानंद ला देखके नारायण ला विश्वास नइ होइस के , इही ओकर हीरानंद आय । दस बछर म बाप बेटा के भेंट होय रिहिस । मया पलपलागे । प्रेम हा आँखी ले धार बनके बोहाये लगिस । बाप बेटा के मिलन हा , पूरा आश्रम म प्रेम के राग भर दिस । हीरानंद के बिदई के बेर , आश्रम के चिरई चिरगुन गाय गरू तक रोय लगिस । प्रधान आचार्य के आँसू तक नइ थिरकत रहय । प्रधान आचार्य हा , बिदई म बड़ आशीर्वाद देवत आश्रम के नावा चेला मनला बतावत रहय के , हीरानंद हा कइसे सिर्फ खीरा ले शुरू करके , बखरी ला व्यवसाय बना दिस अऊ आश्रम ला चमका दिस । हीरानंद हा नावा चेला मनला अपन अनुभौ बतावत किहिस - जब वोहा पहिली बेर बखरी म निंगिस तब ओकर उमर सिर्फ दस बछर के रिहिस , बखरी म सिर्फ एक ठिन खीरा के नार .. जाम के रुख म चघे लामे रिहिस । बन बांदुर निंदत निंदत एक दिन एक ठिन खीरा फरे देख डरेंव । भुखागे रेहेंव , खीरा टोरे के कोशिस करेंव , खीरा हा पाक के पिंवरागे रहय फेर रुख म चघे नार अतका अरझे रहय के तिराबे नइ करिस । नार टुटगे । खीरा उहीच तिर के उहीच तिर लटके रहय । पेंड़ ला नवाये के कोशिस करेंव । जाम के रटहा रुख म चघे के हिम्मत नइ होइस । एक लबेदा कस के मारेंव , खीरा फूटगे , भुइँया म गिरके सनागे ओला खा नइ सकेंव । इही खीरा के बीजा हा बखरी भर बगरके , केऊ जगा नार बियार बनके अस फरिस के खीरा हा आश्रम ला आर्थिक फायदा देवावत ... व्यवसाय के प्रेरणा अऊ हिम्मत बनगे .. ।
बिदई के समे .... बिदई लेवइया जम्मो चेला मनला , उँकर दस बछर के कमई के अर्जित पइसा म , खरचा काटके बचत पइसा ला , आश्रम के प्रमुख हा गाँव के मुखिया के हाथ ले बँटवावत गिस । हीरानंद ला कहींच नइ मिलिस । नावा चेला के संगे संग गाँव के मुखिया तको अचरज म परगे । आश्रम के बित्त बिभाग बतइस के , हीरानंद के कमई के एको पइसा जमा निये । मुखिया के प्रश्नवाचक मुहुँ देखके , आश्रम के प्रधानाचार्य बतइस के – आश्रम जबले बने हे तबले सबले जादा कमई , हीरानंद के द्वारा होहे ...... । हीरानंद हा मोला कभू झिन बताबे केहे रिहिस फेर , अभू गरब से मोला बताये म कोई हिचक निये के , येकर कमई म , हमर आश्रम के ओ लइकामन के खरचा चलथे जेमन शरीर ले असहाय हे अऊ जेमन कमा के अपन खरचा के पूर्ति नइ कर सकय । अऊ तो अऊ तिर के गाँव के गरीब मनखे मनला घला हीरानंद के पइसा के मदद जावत रहिथे । अतेक उपकार सुनके , सावन के बूंद तभो अतरगे फेर , न सिर्फ नारायण के बल्कि उपस्थित जम्मो झिन के आँखी के आँसू नइ अतरिस । भावभीना माहोल म .. अपन बात राखत .. मुखिया भरभराये गला म केहे लगिस - जइसे ओकर ददा हा समाज सेवा करके नाव कमइस तइसे हीरानंद हा घला नाव कमाइस बल्कि , ओकर ले दू डेंटरा उपराहा ओकर नाव होगे । जइसे एक ठिन खीरा के बीजा हा बखरी भर बगरके , आश्रम ला धन धान्य ले पाट दिस तइसने , हीरानंद हा नारायण रूपी आठ हाथ जगा म फरे खीरा के वो बीजा आय , जेहा नौ हाथ बगरके , समाज के बहुतेच भला करत हे ।
हीरानंद हा ददा संग अपन घर वापिस आगे । गाँव के लइका मन के पढ़हे लिखे बर अपनों गाँव म आश्रम बनवा दिस , गाँव के चिखला माटी गोटी के रसदा ला श्रमदान करके सुधरवा दिस , अकाल दुकाल के मार ले बाँचे बर , गाँव तिर के नरुवा म बांधा बना दिस अऊ ओकर पानी ला खेत तक अमराये बर नाली बनवा दिस । समाजसेउक नारायण के बीजा हीरानंद हा , बाप ले जादा परोपकार करके , बड़ नाव कमइस । जइसे नारायण हा , हीरानंद ला पाके गरब अनुभौ करिस , तइसने हीरानंद कस बेटा सबो के होय । मोर कहिनी पुरगे फेर अपन संतान के , बने बने बूता ले , दई ददा के चौंड़ा होवत छाती ला देख , इही बीजा के सुरता करत , अभू घला कहूँ कहूँ तिर सुने बर मिल जथे – आठ हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा ....... ।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .
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