Wednesday, 17 January 2024

एक कहानी हाना के ..... आठ हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा

 एक कहानी हाना के .....

         आठ हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा 

                    धरम करम पूजा पाठ अऊ जन कल्याण म , रात दिन अपन देहें ल होम देवइया नारायण के जिनगी म , सिर्फ एक कमी रहय । बिहाव के दस बछर पुरगे रहय , एको ठिन नोनी बाबू नइ नांदत रहय । जिनगी भर कठिन परिश्रम करके बनाये , बड़े जिनीस घर दुवार , मनमाने अकन खेत खार ला कोन संभालही , तिही फिकर म उनत गुनत रहय नारायण अऊ ओकर सुवारी सुपेलहिन हा । बपरी ला खाये अंग नइ लागय । पुरखा ले टिकला भाठाँ भुँइया के अलावा , कुछ नइ पाये रहय बपरा नारायण हा  , फेर अपन बाहाँ के बल म , रगड़ा टूटत मेहनत करके खूबेच सँपत्ति बना डरे रहय । नारायण सोंचय मोर पाछू , मोर सँपत्ति के खवइया नइ रहि , तेकर ले , अपन जिये खाये के पुरती बँचाके , सरी संपत्ति ला दान धरम म लगाय जाय । मंदिर देवाला बनवाये बर , कुआँ तरिया खनवाये बर , धरमशाला बनवाये बर , दान दक्षिणा करे लागिस । परोपकार म जगा जगा नाम कमइया , नारायण के मन के भीतर संतान नइ होय के दुख , घुना कस हिरदे ला छेदत रहय । देरानी जेठानी के ताना म , सुपेलहिन के देंहें अधियागे रहय ।  

                    भगवान के घर म देर जरूर हे फेर अंधेर निये । सुपेलहिन के कोख म , चौथापन म लइका नांदिस । लइका के जनम म बड़ खुशियाली मनइन । नाच पैखन , राम रमायन अऊ गाँव भर ला झारा झारा पक्की मांदी खवईस । हीरा बरोबर सुघ्घर लइका के नाव हीरानंद धरागे । दिखम म जतेक खबसूरत ततके गुन म घला अव्वल । देखते देखत पुन्नी कस चंदा बाढ़हे लगिस । पढ़हे लिखे बर आश्रम म भरती होये के लइक होगे । हीरानंद हा , आचार्य मन के सबले प्यारा चेला बन गिस । आश्रम म जम्मो चेला मनला , पढ़ई के अलावा काम काज के अऊ दूसर बूता घला सिखाय जाय । नांगर जोते से लेके धान लुवे तक के शिक्षा दीक्षा आश्रम म होवय । फेर हीरानंद के सुकुमार देंहे देख , हीरानंद ला नांगर जोते बर , माटी खने बर , कन्हो नइ कहय । हीरानंद के जुम्मा , आश्रम के बखरी के निंदई कोड़ई अऊ जतनई रहय । 

                    अपन अपन बूता ला जम्मो चेला मन बहुतेच जुम्मेवारी ले करय । तइहा तइहा के बात आय गा , जब तक लइका के शिक्षा पूरा नइ होय रहय तब तक , लइकामन आश्रम म रहय , कभू अपन घर दुवार म झाँके बर नइ जावय । आश्रम म पढ़त लिखत आठ दस बछर निकल जावय , तब तक ननपन ले आये , लइकामन के देंहे म , जवानी गेदरा जाय । शिक्षा पूरा हो जाये के पाछू , दीक्षांत समारोह म , लइका के ददा ला आश्रम म बलाके , लइका के गुण ला बताये जाये अऊ ओकर द्वारा आश्रम म करे काम काज के बखान करे जाय । काम काज के निपुणता , लोक बेवहार के दक्षता देख , लइका ला वापिस ओकर ददा के हाथ म सौंप दे जाय ।  

                    आश्रम म आये के पाछू , जब हीरानंद ला बखरी के बूता मिले रहय तब , बखरी एकदमेच ठन ठन ले सुक्खा निचट भर्री भाठाँ कस रहय । अपन मेहनत म , हीरानंद हा , पूरा बखरी भर साग भाजी बों डरिस । हीरानंद के मेहनत ले , साग भाजी के अतेक उत्पादन होय लगिस के , आश्रम के रहवइया मन खा नइ सकय । तिर तखार के बाजार म कोचिया मन , आश्रम के साग भाजी ला बेंचे बर लेगय । ओकर मेहनत म , नानुक बखरी हा बड़े जिनीस खेत म बदलगे रहय । खेत के चारो मुड़ा म , माटी के भाँड़ी खड़ा होगे । खेत भितरी म दू ठिन गऊशाला बनगे रहय । आश्रम म दूध दही के पूरा बोहाये लगगे । हीरानंद के नाव हा न केवल आश्रम म बलकी तिर तखार म घला प्रसिद्ध होगे रहय । अपन ददा नारायण के नक्शा कदम म चलत हीरानंद के गुन म , आश्रम के आचार्य मन घला गरब करय ।   

                     एक दिन वहू समे आगे , जब हीरानंद के शिक्षा पूरा होगे रहय । ददा नारायण ओला वापिस लेजे बर आय रहय । आश्रम के प्रधान आचार्य हा हीरानंद के गुन ला बतावत , नारायण ला आश्रम म , किंजारत रहय । सावन के महिना रहय । हीरानंद हा बखरी म , बलकरहा जवान कस माते रहय । तइसने म नारायण , प्रधान आचार्य संग बखरी म पहुंचगे । आधा बखरी म खीरा बोंवाये रहय अऊ अतेक फरे रहय के , ढेखरा मन .. फर के मारे , लदलदागे रहय । प्रधान आचार्य कहत रहय – हीरानंद के मेहनत अऊ ईमानदारी के परिणाम आय ये बखरी के सुघरता .......। जब ओ अइस ते समे , बखरी हा परिया परे रिहिस । सुकुमार लइका रापा नइ धर सकही , नांगर नइ जोत सकही , धीरे धीरे बखरी के बन बांदुर निंदत रहि सोचे रेहेन , फेर अपन मेहनत के बलबूता म नानुक बखरी ला बढ़ोवत बड़े जिनीस खेत बना डरिस । इही बखरी के कमई म आश्रम के बिकास के काम होये लगिस । 

                    बाते बात म गाँव के मुखिया घला आश्रम पहुंचगे । हीरानंद ला बलाये बर , आचार्य जी हा हाँक पारिस । घमघम ले फरे खीरा के ऊँच ऊँच ढेखरा के बीच ले आवत , गंइठाहा गंइठाहा हाथ गोड़ के , छै फुट के जवान देंहें हा , दिखत नइ रहय । तिर म अइस त , हीरानंद ला देखके नारायण ला विश्वास नइ होइस के , इही ओकर हीरानंद आय । दस बछर म बाप बेटा के भेंट होय रिहिस । मया पलपलागे । प्रेम हा आँखी ले धार बनके बोहाये लगिस । बाप बेटा के मिलन हा , पूरा आश्रम म प्रेम के राग भर दिस । हीरानंद के बिदई के बेर , आश्रम के चिरई चिरगुन गाय गरू तक रोय लगिस । प्रधान आचार्य के आँसू तक नइ थिरकत रहय । प्रधान आचार्य हा , बिदई म बड़ आशीर्वाद देवत आश्रम के नावा चेला मनला बतावत रहय के , हीरानंद हा कइसे सिर्फ खीरा ले शुरू करके , बखरी ला व्यवसाय बना दिस अऊ आश्रम ला चमका दिस । हीरानंद हा नावा चेला मनला अपन अनुभौ बतावत किहिस - जब वोहा पहिली बेर बखरी म निंगिस तब ओकर उमर सिर्फ दस बछर के रिहिस , बखरी म सिर्फ एक ठिन खीरा के नार .. जाम के रुख म चघे लामे रिहिस । बन बांदुर निंदत निंदत एक दिन एक ठिन खीरा फरे देख डरेंव । भुखागे रेहेंव , खीरा टोरे के कोशिस करेंव , खीरा हा पाक के पिंवरागे रहय फेर रुख म चघे नार अतका अरझे रहय के तिराबे नइ करिस । नार टुटगे । खीरा उहीच तिर के उहीच तिर लटके रहय । पेंड़ ला नवाये के कोशिस करेंव । जाम के रटहा रुख म चघे के हिम्मत नइ होइस । एक लबेदा कस के मारेंव , खीरा फूटगे , भुइँया म गिरके सनागे ओला खा नइ सकेंव । इही खीरा के बीजा हा बखरी भर बगरके , केऊ जगा नार बियार बनके अस फरिस के खीरा हा आश्रम ला आर्थिक फायदा देवावत ... व्यवसाय के प्रेरणा अऊ हिम्मत बनगे .. । 

               बिदई के समे .... बिदई लेवइया जम्मो चेला मनला , उँकर दस बछर के कमई के अर्जित पइसा म , खरचा काटके बचत पइसा ला , आश्रम के प्रमुख हा गाँव के मुखिया के हाथ ले बँटवावत गिस । हीरानंद ला कहींच नइ मिलिस । नावा चेला के संगे संग गाँव के मुखिया तको अचरज म परगे । आश्रम के बित्त बिभाग बतइस के , हीरानंद के कमई के एको पइसा जमा निये । मुखिया के प्रश्नवाचक मुहुँ देखके , आश्रम के प्रधानाचार्य बतइस के – आश्रम जबले बने हे तबले सबले जादा कमई , हीरानंद के द्वारा होहे ...... । हीरानंद हा मोला कभू झिन बताबे केहे रिहिस फेर , अभू गरब से मोला बताये म कोई हिचक निये के , येकर कमई म , हमर आश्रम के ओ लइकामन के खरचा चलथे जेमन शरीर ले असहाय हे अऊ जेमन कमा के अपन खरचा के पूर्ति नइ कर सकय । अऊ तो अऊ तिर के गाँव के गरीब मनखे मनला घला हीरानंद के पइसा के मदद जावत रहिथे । अतेक उपकार सुनके , सावन के बूंद तभो अतरगे फेर , न सिर्फ नारायण के बल्कि उपस्थित जम्मो झिन के आँखी के आँसू नइ अतरिस । भावभीना माहोल म .. अपन बात राखत .. मुखिया भरभराये गला म केहे लगिस - जइसे ओकर ददा हा समाज सेवा करके नाव कमइस तइसे हीरानंद हा घला नाव कमाइस बल्कि , ओकर ले दू डेंटरा उपराहा ओकर नाव होगे । जइसे एक ठिन खीरा के बीजा हा बखरी भर बगरके , आश्रम ला धन धान्य ले पाट दिस तइसने , हीरानंद हा नारायण रूपी आठ हाथ जगा म फरे खीरा के वो बीजा आय , जेहा नौ हाथ बगरके , समाज के बहुतेच भला करत हे । 

                    हीरानंद हा ददा संग अपन घर वापिस आगे । गाँव के लइका मन के पढ़हे लिखे बर अपनों गाँव म आश्रम बनवा दिस , गाँव के चिखला माटी गोटी के रसदा ला श्रमदान करके सुधरवा दिस , अकाल दुकाल के मार ले बाँचे बर , गाँव तिर के नरुवा म बांधा बना दिस अऊ ओकर पानी ला खेत तक अमराये बर नाली बनवा दिस । समाजसेउक नारायण के बीजा हीरानंद हा , बाप ले जादा परोपकार करके , बड़ नाव कमइस । जइसे नारायण हा , हीरानंद ला पाके गरब अनुभौ करिस , तइसने हीरानंद कस बेटा सबो के होय । मोर कहिनी पुरगे फेर अपन संतान के , बने बने बूता ले , दई ददा के चौंड़ा होवत छाती ला देख , इही बीजा के सुरता करत , अभू घला कहूँ कहूँ तिर सुने बर मिल जथे – आठ हाथ खीरा के नौ हाथ बीजा ....... । 

                                                             हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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