Wednesday, 17 January 2024

नानकुन कहानी - एक म एक फिरी

 नानकुन कहानी -


   एक म एक फिरी

हाट बजार म बिकट भीड़ बिकट आवाज चारो कोती l

आलू- प्याज़ वाले अलग चिल्लावत हे -पचास रुपिया किलो चले आओ l 

मुरई -पताल वाले अलग  - सौ रुपिया म ढाई किलो l चड्डी बनियाईन वाले अलग l जूता चप्पल वाले एक जोड़ी म एक फिरी l वो रेंगत हे धकियावत

कोनो ककरो गोड़ ला खुंदत l

वो गारी देवत हे -देखना रे अंधरा l देखत नई हस अतेक भीड़ हे l देख के रेंग l

 बजार म घलो शिक्षा शास्त्री मन के खैर नहीं l

सबके मुँह ले एक ही बोल देख के रेंग l

रेंगे के क़ानून पुलिस मन घलो कतेक ला दिही अउ कइसे दिही? डेरी हाथ कोती चलो

सोझ चलो देख के चलो l

दे हाथा पाही एक दूसर ऊपर

अरे अरे  कहत एक झन चिल्लाईस - झगरना लड़ना हे बजार ले बाहिर म जाओ l

एक म एक फिरी कहिके एक जोड़ी चप्पल भर ला दीस l

मानस व्याख्याकार मन घलो फेल?का समझाही? बजार म का- का,कइसे - कइसे बेचे के टिरिक अपनावत हे l

एक गारी देवत हे एक फिरी l

एक हाथ जमावत हे एक हाथ फिरी l एक हुद्दा मारत हे एक हुद्दा फिरी l बजार के नवा संस्कृति  बने पनपत हे l 

मर्यादा ला कोन लिही? का नियम बनही?बने मैनखे घलो खोजत हे-

एक म एक फिरी l


मुरारी लाल साव

कुम्हारी

No comments:

Post a Comment