नानकुन कहानी -
एक म एक फिरी
हाट बजार म बिकट भीड़ बिकट आवाज चारो कोती l
आलू- प्याज़ वाले अलग चिल्लावत हे -पचास रुपिया किलो चले आओ l
मुरई -पताल वाले अलग - सौ रुपिया म ढाई किलो l चड्डी बनियाईन वाले अलग l जूता चप्पल वाले एक जोड़ी म एक फिरी l वो रेंगत हे धकियावत
कोनो ककरो गोड़ ला खुंदत l
वो गारी देवत हे -देखना रे अंधरा l देखत नई हस अतेक भीड़ हे l देख के रेंग l
बजार म घलो शिक्षा शास्त्री मन के खैर नहीं l
सबके मुँह ले एक ही बोल देख के रेंग l
रेंगे के क़ानून पुलिस मन घलो कतेक ला दिही अउ कइसे दिही? डेरी हाथ कोती चलो
सोझ चलो देख के चलो l
दे हाथा पाही एक दूसर ऊपर
अरे अरे कहत एक झन चिल्लाईस - झगरना लड़ना हे बजार ले बाहिर म जाओ l
एक म एक फिरी कहिके एक जोड़ी चप्पल भर ला दीस l
मानस व्याख्याकार मन घलो फेल?का समझाही? बजार म का- का,कइसे - कइसे बेचे के टिरिक अपनावत हे l
एक गारी देवत हे एक फिरी l
एक हाथ जमावत हे एक हाथ फिरी l एक हुद्दा मारत हे एक हुद्दा फिरी l बजार के नवा संस्कृति बने पनपत हे l
मर्यादा ला कोन लिही? का नियम बनही?बने मैनखे घलो खोजत हे-
एक म एक फिरी l
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
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