*मरजाद*
*करत अगोरा नौकरी, जिनगी हर करियाय।*
*बेटा बेटी बाढ़गे,उम्मर बिछलत जाय।।*
मयारू पाठक हो!!!मोर येदे दोहा ऊपर जरूर गौर करहू,मोला लागथे नौकरी अउ कैरियर के चक्कर में कहूँ हम अपन लइका के जिनगी संग खिलवाड़ तो नइ करत हन,चौरासी लाख योनि ला भुगते के पाछू ये मानव योनि हर मिलथे,मनखे योनि पाय बर भगवान घलो हर तरसत रहिथे,बड़े-बड़े ऋषि मुनि मन मनखे योनि पाय बर भारी तपस्या करे हें,अइसे हमर वेद शास्त्र मन कहिथें।
आज बाढ़त जनसंख्या अउ भौतिक सुख सुविधा के लालसा में हम अपन नोनी बाबू ला सुखी देखे के चाहत में खूब पढ़ावत लिखावत हन,पढ़ाना लिखाना कोनो गिनहा बात नोहै,ज्ञान मनुष्य के गहना आय,ज्ञान बिना मनुष्य ला बिना सींग पूँछी के जानवर केहे जाथे,मतलब ज्ञान बिना आदमी पशु बरोबर हे।फेर हमर पुरखा मन ज्ञानार्जन बर एक समय सीमा तय करे रिहिन,मानव योनि ला 100 बछर के मानके 25 बछर ला ब्रम्हचर्य आश्रम मा ज्ञानार्जन बर आरक्षित करे हे,तेखर बाद गृहस्थ आश्रम बर बताये गेहे।फेर हमन पुरखा मन के द्वारा स्थापित परंपरा ले दुरिहावत अपन हित अउ मरजाद ला घलो दाँव में लगा देहन।
आधुनिक जीवनशैली,खानपान,प्रदूषित वातावरण में हम पूरा 100 बछर के स्वस्थ जिंदगी जी सकन एमा संदेह लागथे,अच्छा जिनगी जीये बर शिक्षित होना बहुते जरूरी हे,पर हम सरकारी नौकरी या निजी संस्था में रौबदार अधिकारी कर्मचारी बने बर ये प्रतियोगिता भरे युग मा अपन जीवन दाँव में लगा देथन अउ उम्मर ला बढ़ा डरथन,का सबो सुख ला धन दौलत में ही खरीदे जा सकत हे का ?
मोर केहे के मतलब अतकेच हे,बड़का नौकरी, जादा वेतन अउ उत्तम सुख सुविधा बर ये अनमोल मनुष्य जीवन ला तो कुर्बान नइ करे जा सकै ना ? ये जीवन दुबारा मिलही धन नइ मिलही तेखर गारंटी नइहे,पर सही उमर में बिहाव करके घलो तो हम सारी सुख सुविधा ला हासिल कर सकत हन,हमर उमर हा लहुट के नइ आवै लेकिन पद अउ पइसा ला तो हम अपन बाँचे जिनगी में कमा सकत हन।
प्रकृति के हर चीज एक सीमा रेखा मा बँधाये हे,ये हमर सुंदर काया के घलो कुछ सीमा हे,सीमा रेखा ला पार करे के बाद,प्रकृति के वरदान घलो श्राप में बदल जथे,एक निश्चित उमर के बाद बेटा बेटी के सौंदर्य अउ उत्साह में घलो परिवर्तन देखे जाथे,बारह महिना में बसंत घलो एके बार आथे,प्रकृति के ये संदेश ला समझे के जरूरत हे।लइका मनके उमर बाढ़े ले,अनमेल जोड़ी के संभावना बाढ़ जथे अउ दाम्पत्य जीवन मा एक दूसर बर समर्पण घलो बने नइ हो पावै,एक तरह से समझौता करे बर परथे,यौवनावस्था के आकर्षण में दाई ददा के सहमति बिना लइका मन गलत कदम उठा लेथे,अइसे अधिकांश देखे मा आवत हे।जादा उमर में बिहाव होय ले संतान आय में घलो बहुत परेशानी होथे,लइका च के पालन पोषण करत हमर बुढ़ापा आरो दे बर धर लेथें,मोर खियाल में इही समस्या मन ला देखके हमर सियान पुरखा मन ब्रम्हचर्य आश्रम के बाद तुरते गृहस्थ आश्रम के व्यवस्था ला बनाये होहीं तइसे लागथे अउ हम अपन पुरखा मन के बताये रस्ता ला छोड़के रेंगबो तब जरूर तकलीफ मा रहिबो,अइसे मोर विश्वास हे।ता ये बात में आपो मन गुनान करौ अउ अपन संतान के भविष्य ला उज्जर करौ,हमर पुरखा मनके बनाये परंपरा ला अपनाबो तभे हमर देश समाज अउ कुल के मरजाद हा बाँचही।
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