गुनान
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कार्ल मार्क्स हर धर्म ल अफीम के नशा कहे रहिस । 22 जनवरी के जानेवं देश दुनिया , लइका सियान , गरीब अमीर सबो राम मय होगिन त कहि सकत हन राम नाम के नशा मं झूमे लगिन ।
हमर देश के जन मन मं राम अउ कृष्ण दूनों जुग जुग ले आसन जमाए बइठे हें । दूनों झन अवतारी पुरुष आयं ..दूनों झन श्याम सरोरुह गात माने सांवर रहिन । राम त्रेता युग मं रावण ल मार के अन्याय के शमन करीन त राम राज्य के स्थापना के संगे संग समाज ल , परिवार ल आदर्श के रस्ता देखाईन तभे तो मर्यादा पुरुषोत्तम कहाइन । द्वापर मं जनमिन कृष्ण , कंस के अत्याचार ले लोगन ल बचाये बर कंस वध करीन , महाभारत युद्ध के सर्वेसर्वा तो उही रहिन ।
मन गुने लगिस त दूनों मं अंतर का रहिस ? उत्तर मिलिस राम भाव आयं त कृष्ण कर्म आयं कइसे ? राम समाज बर आदर्श बेटा , भाई , सखा , पति , राजा रहिन उंकर आचरण , व्यवहार आज भी अनुकरणीय हे । कृष्ण कर्म करे के प्रेरणा दिन ...समय , सुयोग , परिस्थिति के अनुसार आचरण , व्यवहार करे बर कहीन ।
भारतीय जीवन मं राम अउ कृष्ण दूनों के महत्व के बढ़िया उदाहरण देखे बर मिलथे तब जब मरणोन्मुख मनसे ल गीता सुनाथें ...काबर ? जनम मरण या कहिन कर्म बंधन से मुक्ति बर ..। सुरता करे लाइक बात एहर आय के उही मरणोन्मुख मनसे के मुंह मं तुलसी पाना / मंजरी डार के गंगाजल पियाथें अउ राम राम कहिथें अतके नहीं ...अंतिम यात्रा मं राम नाम सत्य है कहिथें ।
त राम अउ कृष्ण दूनों एके होइन न ? ठीक समझेव मनसे के जीवन मं भाव अउ कर्म दूनों के समायोजन जरुरी हे काबर के भावहीन कर्म अउ कर्महीन भाव दूनों अकारथ हो जाथें । हिन्दू संस्कृति , धर्म , समाज , परिवार , देश राज इही समन्वयवादी परम्परा ल जानत , मानत आवत हे । हमर देश के सभ्यता , संस्कृति के मजबूत आधार आयं राम अउ कृष्ण ।
नील सरोरुह नीलमणि , नील नीरधर श्याम
बसहु सदा सबके हिय , पूरण हो सब काम ।
सरला शर्मा
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