Thursday, 25 January 2024

दान-पुन के तिहार- छेरछेरा


 

दान-पुन के तिहार- छेरछेरा 


हमर छत्तीसगढ़ म हर तिहार बार के पीछू बड़ निक संदेश छिपे रथे। जेला हर छत्तीसगढ़वासी मन बड़ा जोर शोर, उत्साह मंगल ले मनाये जाथे। चाहे कोई बड़का कारज हो कोई उत्साह के समे हो। सबो माई पीला मिलजुल के कारज ल पूरा करथे अउ तिहार सरी मनाथे। इहि हमर छत्तीसगढ़ के रहवइया मन के संस्कार,संस्कृति आय। जेकर ले आपसी सहयोग, तालमेल, मिलजुल के काम करे के भावना घलो बने रहिथे। अइसन भाव जम्मो  छ्त्तीसगढिया मन के हिरदे म छलकत ले भरे हवय।


अइसने एक ठन प्रमुख तिहार हवे जेला छत्तीसगढ़ म दान पुन के परब--छेरछेरा तिहार के नाव ले जानथन। येला अंजोरी पाख म पूस पुन्नी के दिन मनाथन। ये तिहार दू-तीन दिन ले आघु-पीछू अपन-अपन गाँव के हिसाब से मनाए जाथे। दाई-माई मन बिहिनिया ले खोर-दुआर-अंगना ल लीप पोत के सुभीता हो जाथे। फेर नहा धो के छेरछेरा मँगइया मन बर धान-कोदो ल मँझोत म निकाल के तैयार रेहे रथे।


ये परब दान के परब आये। किसान के अन्न-धन सबो घर के कोठी-डोली म भराय रथे। किसान अपन संग जम्मो जीव बर घलो संसो करत कमाए रथे। ओकर मेहनत के कमाई म चांटी, मिरगा, मुसवा, चिरई-चिरगुन, कीरा-मकोरा के भाग घलो लगे रथे। सबो के भाग मिले के बाद आखिरी में किसान के घर म अन्न ह पहुँचथे। छेरछेरा के दिन किसान मन के घर ले जम्मो झन बर दान के रूप म अन्न ह ठोमा-खोंची जरूर निकलथे। येला पुन के तिहार मानत सबो झन देथे।


छेरछेरा मांगे बर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, महिला-पुरूष, लईका-सियान सबो मन जाथे। ऐमे दल बना के जाथे।अउ घर-घर के दुवारी म जाके अन्न के दान माँगथे। जेमे गीत घलो गाथे--छेरी के छेरा छेर मरकनीन छेर छेरा, माई कोठी के धान ल हेर हेरा।

अरन बरन कोदो दरन,जभे देबे तभे टरन।

तारा रे तारा अंग्रेजी तारा,जल्दी-जल्दी देवव जाबो दूसर पारा।

अइसे गीत गावत घर के मन ल रिझात अन्न के दान ल मांगते। अउ घर के मन घलो खुशी-खुशी दान देथे।


छेरछेरा तिहार मनाये के कई ठन किवदंती हवे। भगवान शिव जी के माता पारबती जी ल बिहाव के पहिली परीक्षा लेके के सेती घलो कारण बताथे। जेमे शिव जी रूप बदल के पारबती जी के परीक्षा लेवत दान मांगथे। दूसर किवदंती धरती माता के बड़हर किसान मन के परीक्षा लेवई घलो हरे। जेमे एक पहित अकाल पड़थे तब किसान-मजदूर मन बड़हर मन के कोठी-डोली म तो अन्न ल भर देते। लेवई-देवई, करजा-बोड़ी म सबो अनाज सिरा जाथे। पर उँकर मन बर कही नई बचे। जम्मो झन मन मिलके धरती दाई के पूजा पाठ करिन। उँकर पूजा ले खुश होके धरती दाई परगट होईस। किसान-मजदूर मन जय-जयकार करत अब्बड़ खुश होइन। धरती दाई बड़हर किसान मन ल चेतात किहिस कि अपन कोठी के अनाज ल छोटे किसान-मजदूर मन ल दान देके इंकर सहयोग करत रहव। तभे तुंहर अकाल ल सिराही। बड़हर मन धरती दाई के बात मानिस, अउ दान देय के तिहार शुरू होइस। परगट दाई ल शाकम्भरी देवी के रूप मानत आज घलो ओकर जयंती समारोह मनावत धरती दाई के कृतज्ञ करथे।


पहली छेरछेरा म बाजा,मोहरी, पेटी,तबला, बेंजो के धुन म बिधुन डंडा नाचत गावत छेरछेरा तिहार मनाये। एक झन कांवर ल अनाज धरे बर बोहे रहय। दाई-माई मन सुवा गीत गावत अपन दल बनाके छेरछेरा मांगे बर जाए। स्कूल म गुरुजी मन लईका मन संग जाए अउ मिले अनाज ल बेच के स्कूल के लईका मन बर जरूरी समान ल लेवय। अब सबो सुविधा होय के बाद घलो इंकर रंग म कमी होवत हे। अब येकर परती ज्यादा ध्यान नई दिखे। फेर गाँव म आज घलो हमर ये संस्कृति जीयत हवय।


येकर सकलाये जम्मो अनाज ल एक दिन सुभीता होके या बाजार-हाट के दिन सांझ के बेरा पारा भर के मन रान्ध के खाये के घलो रिवाज हवय। जेला रावण भात घलो कथे। ऐमे जतिक झन के दल रथे उतिक घर के मन शामिल होके बढ़िया भात-साग खाथे। अईसन ढंग ले हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति ह एक-दूसर के सहयोग, परेम, सद्भाव ले भरे सुनता के डोर ले बंधाये हवय।


        हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगांव

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