*मड़ई*
मड़ाई के नाव सुनत ही मन प्रफुल्लित अउ अंग अंग म रोमांच भर जाथे । बचपन के सुरता ह पिक्चर कस आंंखी म झूले लगथे फेर अब एक्का दुक्का गांव म मड़ाई होथे। मड़ई के बात ले मोर बड़ा के सुरता आ जाथे । जब मैं नानकुन आठ दस साल के रहेंव तब बाबा मड़ई देखाय बर लेजावय। वइसे भाटापारा के गौशाला के मड़ई बड़ प्रसिद्ध हे । मड़ई के आयोजन ह धान लुवाई मिजाई के बाद किसान मन फुरसदहा बेरा म करथे। मड़ई म बेटी माई के संगे संग आस पास के हित मीत सगा सोदर मन आथे । पूरा गांव खुशी उमंग ले झूम जाथे। गली खोर उचास लागथे।
दइहान म मड़ई ल गड़िया के राउत भाई मन गोल घूम घूमके नाचथे। दइहान म मड़ई के चारों मुड़ा खई खजाना के अबड़ अकन दुकान लगथे। तरह तरह के जिनिस बेचाय बर आय रथे। मुर्रा लाड़ू,करी लाड़ू,रायजीरा लाड़ू,फल्ली लाड़ू बेचावत रथे, फेर भक्का लाड़ू अब देखे ल नइ मिलय।
लइका मन खेलवना,टुरी टानकी मन टीकली फुंदरी,मोटीयारी मन साग पान बिसाय म लगे रथे । बाबु पिला मन पान खाके टेस मारत रइथे।
मड़ई के दिन रथियाकुन नाचा के आयोजन होथे। मोला तो जोक्कड़ के जनउला पुछई हां बड़ निक लागथे। मड़ई के बहाना ही संगी साथी हित मीत बेटी माई ले मिलना जुलना तन अउ मन म एक नवा उर्जा के संचार कर देथे। अउ आगु साल के अगोरा म ये साल के मड़ई है सुरता बन जाथे।
अशोक कुमार जायसवाल
भाटापारा
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