विमर्श के संग नवा उदिम आय: मोर अँगना के फूल
छत्तीसगढ़ म साहित्य अउ साहित्य म छत्तीसगढ़ दू आने-आने गोठ आय। छत्तीसगढ़ म साहित्य, छत्तीसगढ़ म साहित्य के दशा अउ दिशा का हे? एकर आरो देथे। जेन ह छत्तीसगढ़ के साहित्यिक पुरोधा अउ आज के समय म स्थापित अउ नवोदित रचनाकार मन तक के साहित्यिक यात्रा के लेखा-जोखा बताथे। इहाँ के साहित्य के दशा अउ दिशा दूनो तय करथे। ... तब ले अब तक साहित्यिक यात्रा म सहयात्री बने लिखइया मन के आरो लेना, उन ल सरेखना, इहाँ के साहित्य के बढ़वार बर जरूरी हे। जेन म इहाँ के बुधियार मन अपन गुनान ले साहित्य सेवा करिन अउ अपन आखर के अरघ के आहुति दिन। नेंव रखिन। जेकर ले छत्तीसगढ़ ल साहित्य म एक पहिचान मिलिस, तभे तो हम बड़ गरब ले अपन पुरोधा साहित्यकार मन के नाम ले पाथन। साहित्यिक पुरोधा मन के संग अभी के बेरा म लिखइया स्थापित अउ नवोदित रचनाकार मन के साहित्यिक योगदान ले छत्तीसगढ़ साहित्य म मान पावत हे।
अब गोठ करन, साहित्य म छत्तीसगढ़ के। साहित्य म छत्तीसगढ़ कहे के भाव हे- साहित्य के मूल म छत्तीसगढ़ दिखना। छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक, सामाजिक, प्राकृतिक, लोक-जीवन, आँचलिकता, माटी के महमहासी, प्रकृति के दर्शन जेन साहित्य म होही, उही तो साहित्य म छत्तीसगढ़ आय।
छत्तीसगढ़ म जब कभू साहित्य के बात होही, हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार के रूप म नाम अलगे-अलगे लिए जाही। दूनो साहित्य म अतेक लेखक-कवि हें कि सब के नाम ल लिख पाना संभव नइ हे। चाहे हम हिंदी साहित्य म उल्लेख करन, चाहे छत्तीसगढ़ी साहित्य म। ए विमर्श छत्तीसगढ़ी साहित्य ऊपर केंद्रित रही, एकर बावजूद ए विमर्श के पहलइया डाँड़ म लिखाय दूनो गोठ ले हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो के साहित्य साधक के नाम आना च हे।
छत्तीसगढ़ी साहित्य के गोठ करहूँ, अइसन म छत्तीसगढ़ी साहित्य के भंडार भरइया मन के नाम लिखे ले कुछ नाम छूट जाय के डर हे। सेवा सेवा होथे, बस जनमानस के तिर जेकर प्रभाव जादा परिस उही बड़का ए। काखरो योगदान ल कमती अँकई ह बने नोहय। काबर कि प्रसंग के मुताबिक कमती योगदान ह घलव बड़े हो जथे। तभे तो घर म सुजी अउ तलवार दूनो रखे जाथे, फेर बउरई के बात आथे त जरूरत के मुताबिक एक ल चुने ल परथे। एके काज बर दूनो के प्रयोग न होवय अउ न संभव हे।
पं. सुंदर लाल शर्मा, लोचन प्रसाद पांडे, कोदूराम दलित, हरि ठाकुर, नारायण लाल परमार, भगवती सेन, डॉ. नरेन्द्र देव वर्मा, पवन दीवान, लक्ष्मण मस्तुरिया, लाला जगदलपुरी, श्यामलाल चतुर्वेदी, जइसन कतको नाम हें, जे पहिली पंक्ति के नाम म शामिल हें। जेन मन आज घलव सरलग लिखत हें। इही नाम मन के संग आज निच्चट कलेचुप बिना ताम-झाम के लिखइया नवोदित नवांकुर मन घलव अपन मिहनत अउ समय के समिधा ले आहुति दे बर तियार हें। वर्तमान साहित्य अकास म स्थापित अउ नवोदित के नाम लिख के सूची ल लम्बा करना बने नइ जनावत हे। नाम के चक्कर म ए विमर्श कोनो अउ डहर म चल दिही।
छत्तीसगढ़ म साहित्य अउ साहित्य म छत्तीसगढ़ ए दूनो के परछो देवत एक ठन किताब मोर हाथ लगिस- 'मोर अँगना के फूल' जे ह वसन्ती वर्मा के ५१ कविता मन के संग्रह आय। जेन ल डॉ. विनोद कुमार वर्मा मन विमर्श के संग नवा रूप दिए के एक नवा उदिम करे हें।
अइसे तो हर गीत एक कविता होथे, भले हर कविता गीत नइ होय। गीत म काव्य के वो सब सौंदर्यं होथे जउन कविता म चाही। रस, छंद, अलंकार, प्रवाह, यति सबे तो मिलथे गीत म। गीत अतुकांत कविता ले सिरीफ गेयता के मामला म अलग होथे। भाव बिगन तो काव्य के सिरजन होबे नइ करय। या कहन कि जेमा भाव नइ हे ओ काव्य होय च नइ सकय।
५१ कविता मन के सकला (संग्रह) देख के पूर्व प्रधानमंत्री अइ कवि हृदय अटल बिहारी बाजपेई के 'मेरी इँक्यावन कविताएँ' के सुरता आइस, जेकर चर्चा खूब सुने हँव। ए अलग बात ए कि मैं वो किताब ल पढ़े नइ हँव। छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी साहित्य के गोठ बात अब पहिली ले कुछ जादा होय ल धर लेहे। अब साहित्यिक वातावरण बनत हे। २०१२ म प्रकाशित ए किताब के चर्चा कतेक हो पाय हे, मैं नइ जानँव। काबर कि तब निजी कारण ले मोर संगति साहित्य अउ साहित्यकार मन ले जादा नइ रेहे हे। अभी-अभी कोनो-कोनो साहित्यिक जुराव म जावत हँव।
५१ कविता मन के संग्रह के विमर्श म वसन्ती वर्मा के मूल कविता के संग छत्तीसगढ़ या छत्तीसगढ़ ले जुड़ाव रखइया ७२ अउ रचनाकार मन के कविता ल भाव साम्य विमर्श के संग पाठक के तिर परोसना अभिनव पहल आय। नवा उदिम ए। जे ए संग्रह ल विशिष्टता प्रदान करथे। ए किताब के भूमिका म डॉ. विनय कुमार पाठक किताब ल विमर्श के संग प्रकाशित होवइया छत्तीसगढ़ी के पहिली कृति बताय हें। ए संग्रह म सकेले गे गीत कविता मन के खास बात ए हे कि इँकर कुछ रचनाकार नवोदित हें त कुछ मन स्थापित पोठ रचनाकार हें अउ कुछ मन हमर धरखन आँय। धरोहर बन गे हें।
किताब के नाम 'मोर अँगना के फूल' पढ़के हमर छत्तीसगढ़ी लोकगीत के लोकगायिका कुलवंतिन बाई मिर्झा के गाय गीत मोला सुरता आय लगिस। ....मोर घर के मुँहाटी म दसमत के फूल, फूले हावय लाली अउ गुलाबी..... तैं पूछत आबे...ये गीत म अपन मयारुक अउ हितु-पिरीतु ल बड़ मन ले नेंवता दे गे हे। एक संवाद हे। वइसने किताब के शीर्षक नाम ले किताब के तीसर रचना म कवयित्री वसंती वर्मा आनी-बानी के फूल मन संग अपन अनुभूति ल साझा करे हे। छत्तीसगढ़ के लोकजीवन म हर घर के अँगना म फूल महमहाथे। बाँटा म साँकुर होवत अँगना म आज काल गमला संस्कृति घलव आगे, फेर फूल जरुर मिलथे। गीत के आखरी डाँड़... लाली फूल गुलाब के, हाँसत हे चारों ओर...कोनो ल हाँसत देख के हाँसी आथे तभे तो केहे हे का... फूलों से नित हँसना सीखो।
'मोर अँगना के फूल' के मुख पृष्ठ देख के पाठक इही अनुमान लगाहीं कि अँगना अउ फूल दूनो प्रतीक आय। कविता पढ़े ले अइसन नइ हे। फेर अँगना म लगे फूल बर वत्सलता तो रहिबे करथे। अइसन म कवयित्री के मनोभाव अउ संवाद बिरथा नइ हे। शीर्षक म अपनापन हे, आत्मीयता हे। जे हर छत्तीसगढ़िया के स्वभाव आय, त वसन्ती वर्मा एकर अपवाद कइसे बनही।
रितु बसन्ती म प्रकृति चित्रण के संग छत्तीसगढ़ म होवत प्रगति या विकास घलव दिखथे। कवयित्री पर्यावरण के प्रति सजग हे, प्रकृति असंतुलन बर चिंतित दिखथें।
उलुहा बेटी के गुहार कविता एक अजन्मे दुलौरिन के करुण बिनती आय। जेन म बेटी का कर सकथे एकर उदाहरण हे। इही कविता के विमर्श म मोर जइसे नवसिखिया के (२००१-०२ म लिखे) 'नई कविता' भ्रूण हत्या ल सरेखे हे। जेकर उल्लेख करे के मोह नइ छोड़ सकत हँव।
आने से पहले उसकी/चल रही है/ घर पर बात।
उपाय सबको/सूझ रहा है/ कराने उसका गर्भपात!
इस नव आगंतुक का/ दोष/ सिर्फ इतना है/कि वह लड़का नहीं/एक लड़की है।
पोखन लाल जायसवाल, (समन्वय वार्षिकांक २००२ पृ. ३१)
अभिमन्यु कस
तुमन के गोठ-बात ल
चुप्पे-चुप सुनत रहें।
कवयित्री वसन्ती वर्मा पौराणिक प्रसंग के बहाना समाज ल संदेश देना चाहथे कि कोख भीतर हे, वहू कुछ कहना चाहत हे, ओकरो कुछ सुनव अउ गुनव।
वसन्ती वर्मा खुदे एक नारी आँय। नारी के दरद का होथे? ओकर ले वो अनजान नइ हे। नारी के मन के बात उँकर रचना मन म देखे ल मिलथे। चाहे वो बात ददा घर ले बिदा के होय, तीजा तिहार के आरो म मइके के सुरता, भ्रूण हत्या म समाय महतारी के पीरा, महतारी के महिमा, बहुरिया बन नवा घर जा के दूनो कुल के ख्याल रखे के बात होय, त कभू काम बुता ले मयारुक ले दुरिहाय म विरह के गोठ सब वसन्ती वर्मा के गीत-कविता म दिखथें।
नवा बहुरिया के अपने आप ले संवाद अउ उँकर अंतर्द्वंद्व देखत बनथे-
पैरी के रुन-झुन ह, मया पिरीत बाँटे।
पीहर के भाग लिखे, मइके के लाज राखे।
का-का ल बाँधौं, मैं अँचरा म आज।
दुइधा म डारे हे, पैरी हर आज....
एक डहर मइके के संस्कार अउ दूसर कोति ससुरार के जिम्मेदारी के बीच विचारथे कि अँचरा तो एक हवय अउ मैं दूनो कुल के लाज ल गँठिया के कइसे राखँव। मोला मोर पाँव के पैरी बिकटे भरमात हे। गँवई-गाँव म लोगन के बीच पैरी के जादा बजना ल बने नइ समझे जाय। इही मानथें कि वो मटका के चलत हे। रेंगत हवय। पैरी हवय कि चारी करथे। इहीच भाव ले नवा बहुरिया डर्रावत कहिथे- का का ल बाँधौं
एक डहर संस्कृति, लोक-परम्परा अउ विरासत के सुग्घर समन्वय घलव वसन्ती वर्मा के सृजन म झलकथे। उहें समाज म व्याप्त विसंगति ऊपर उँकर कलम जम के आगी बरसथे। ताना मारथे।
बेंदरन बइठिन कुर्सी म, पगुरावत करय तकरीर।
बंदरोबिनास अउ बेंदरा बाट ह, बनगे हमर माथा के लकीर।
विमर्श म प्रस्तुत देवधर महंत के छांदिक रचना देखव
गोरस के होगे रे भइया, देख बिलइया साखी।
सिंहासन ला पहिरावत हे, आज कलम हर राखी।
उहें गरीबी ले पार पाय बर काम-बुता के तलाश म गँवई छोड़ शहर जवइया मन के मन के पीरा के चित्रण सुग्घर हे।
अकाली दुकाली के दिन म संगी,
मोरे जी ह घबराथे...
काम बुता नइ मिलै संगी, सबो हम ल ठुकराथें...
विमर्श म प्रस्तुत श्यामलाल चतुर्वेदी के रचना देखन-
दिन दुकाल ल कई बछर, भोगत भोगत थर्राय गयेन।
थारी बटकी गहना गुरिया, ले गयेन हाय! सुर्राय गयेन।
मया मयारुक के गोठ कवि मन के मन के विषय होथे। शृंगार के बिना उँकर लिखई अधूरा सहीं लगथे। कभू ए मया हाट-बजार म भेंट संग होथे, त कभू इही हाट बजार ले बिसाये जिनिस ले मयारुक के मन ल रिझाय के उदिम होथे। दूनो एके रचना म समाय हे
तहूँ देखे मोला महूँ देखेव मोला।
नैना ह लड़गे ओ सक्ती के हाट म।
बस्तर नामक कविता म बस्तर के सुघरई के चित्रण हे, उहें बस्तर के पीरा कवयित्री के अंतस् ल झकझोर देथे, तब तो लिखथे-
कइसे आही
फेर सोनहा बिहान।
जिहाँ सुनाही
छत्तीसगढ़ महतारी के गान।
एकर पहिली उन गागर म सागर समोवत बस्तर के पीरा ल लिखथें-
कोनो ल कइसे समझाओं आज
बस्तर के फेर लुकागे भाग।
सुरेन्द्र दुबे के लिखे मैं बस्तर बोल रहा हूँ, इहाँ प्रासंगिक हे..
मेरी बर्बादी का जिम्मेदार कौन है
मेरे सवाल पर सियासत मौन है
आप बहरे हैं, मैं गूँगा हूँ
लेकिन मुँह खोल रहा हूँ
मैं खामोश बस्तर हूँ
लेकिन आज बोल रहा हूँ।
किसान, किसानी अउ बादर के तपवना अतिवृष्टि अउ सूखा, पूस के जाड़, शरद पुन्नी के चंदा, फागुन, के अलावा कतकोन विषय ऊपर वसन्ती वर्मा के कलम चले हे। जम्मो रचना के भाव पक्ष बड़ सजोर हवय।
२७ रचना अनुक्रमणिका के मुताबिक गीत हे, इँकर शिल्प के बात करन त गीत म गेयता तो मिलथे। फेर गीत जेन कलेवर बर जाने जाथे, ओ कलेवर गीत मन ल थोरिक अउ लाय के जरुरत हवय। गीत म पद अउ पद म तुकांत जरूरी हे। एक गीत म कम से कम तीन पद जरूरी होथे अउ हर पद के आखिरी डाँड़ के तुकांत गीत के पहलइया डाँड़ संग मेल खाना चाही। जुड़ाव नइ होय ले गीत के मधुरता थोरिक कम हो जथे। लय मात्रा के बराबर होय ले सध जथे, उन्नीस बीस घलव हो सकथे। पर ए किताब म मोला ए नजर नइ आइस।
नई कविता म अइसन शिल्पगत कमी नइ हे। नई कविता मन अपन भाव के संग प्रवाह अउ सशक्त हे। जापानी विधा के छंद हाइकू म लाजवाब हे। सिरिफ सत्रह अक्षर म अपन बात ल रखना बहुतेच कठिन बुता आय। कम से कम शब्द म जादा गहिर बात/गोठ कठिन होथे। भारतीय सनातनी छंद जइसे इहू छंद म तुकांत एकर संप्रेषण क्षमता बर सोने म सुहागा होथे। तंज कसना, व्यवस्था ल कटघरा म खड़ा करना, विसंगति ऊपर प्रहार हाइकू ल प्रभावी बनाथे। ए संग्रह के हाइकू मन शिल्प अउ भाव दूनो म खरा उतरथें
कोला न बारी/ मिठलबरा नेता/ सब ले भारी।
चोट्टा सियान/ कब आही देश मा/ नावा बिहान।
बिन बोली के/ कौआ हे कि कोयल/ नि चिन्हाय जी।
छत्तीसगढ़ के तीज तिहार, तुलसी, पुन्नी महात्तम, कबीर वंदना अउ झन भुलाबे रचना मन म एक वैचारिकी हवय। सांस्कृतिक, दार्शनिक अउ अध्यात्मिक भावबोध हें।
ए किताब के मूल कविता वसन्ती वर्मा के हे, पर विमर्श म परखे अउ तौले के जतन अउ उदिम डॉ. विनोद कुमार वर्मा के हे। विमर्श के पीछू के मिहनत ले किताब विशिष्ट बनगे हे। विशिष्ट ए खातिर कि एकर बहाना पाठक ल ७२ अउ कवि मन ल पढ़े के अवसर देथे। संगेसंग रचना के मूल्यांकन समकालीन रचनाकार मन के साथ होना एक सार्थक पहल ए।
वसन्ती वर्मा के कविता के बहाना डॉ. विनोद कुमार वर्मा के विमर्श म शामिल ७२ रचनाकार के एक-एक रचना मन किताब के शीर्षक 'मोर अँगना के फूल' ल सार्थक करथे।
संग्रह का नाम : मोर अँगना के फूल
कवयित्री: श्रीमती वसन्ती वर्मा
विमर्श: डॉ. विनोद कुमार वर्मा
प्रकाशक : श्री प्रकाशन दुर्ग, छत्तीसगढ़
प्रकाशन वर्ष: 2012
स्वामित्व : राहुल वर्मा
मूल्य : 300/-
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पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह(पलारी)
जिला-बलौदाबाजार भाटापारा छग
मोबाइल - 6261822466
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