Saturday, 7 October 2023

जयंती-6 अक्टूबर छत्तीसगढ़ म विवेकानन्द भावधारा के प्रवर्तक स्वामी आत्मानन्द


 

जयंती-6 अक्टूबर

छत्तीसगढ़ म  विवेकानन्द भावधारा के प्रवर्तक  स्वामी आत्मानन्द

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भारत के बीचोंबीच बसे छत्तीसगढ़ प्रदेश कभु मध्यप्रदेश म समाय रहिस हे। नवम्बर

सन 2000 म अलग राज्य बनिस। ओखर बहुत साल पहिली स्वामी आत्मानन्दजी ह रायपुर म विवेकानन्द आश्रम के स्थापना करके,विवेकानन्द भावधारा के प्रवर्तन करिस अउ सांस्कृतिक,आध्यात्मिक पुनरुत्थान करिस!आवव, जानन,कोन  हे स्वामी आत्मानन्द,जउन ह समाज म चलत ये हाना ल झूठ सिद्ध कर दिस-------

",,घर के जोगी जोगड़ा,आन गांव के सिद्ध!"

आत्मानन्दजी ह  अपनेच मातृभूमि म झंडा गाड़ दिस।उंखर यश अउ कीर्ति सबो जगा बगरगे।रायपुर म स्वामी विवेकानन्द बालपन के दू साल बिताए रहिस--तेखर सुरता म ,इहां विवेकानन्द आश्रम खोले के सपना देखिस, अउ सपना ल पूरा करिस।

कर्मयोगी,ज्ञानी अउ भक्त आत्मानन्दजी के जन्म ले मोक्ष तक के बारे म  थोरकिन बातचीत करन !

आत्मानन्दजी के जन्म, 6 अक्टूबर 1929 म,रायपुर तीर के गांव  "बरबन्दा " म होईस।पिता धनीराम वर्मा,शाला म शिक्षक रहिंन।महतारी भाग्यवती देवी शिवजी के भक्त रहिंन।माता पिता दुनों भक्तिभाव म भरे सादा जीवन बितावत रहिंन। देश म आजादी के लड़ाई चलत रहिस। 1934 म राष्ट्रीय बुनियादी

प्रशिक्षण बार चयनित होके धनीराम जी  वर्धा सेवाग्राम चल दिस।उहां गाँधीजी के सम्पर्क म दू साल रहिंन। आत्मानन्दजी के ये बालपन के दू साल गाँधीजी के सम्पर्क म बीतिस।उहां नवभारत विद्यालय म छठवीं कक्षा में भर्ती होईस। साँझकुंनगांधीजी के छड़ी पकड़ के घुमय घलो।

     1940 म प्रशिक्षण खत्म करके धनीरामजी रायपुर आगे,अउ आत्मानन्दजी,जिखर नांव तुलेंद्र रहिस----

सेंटपॉल्स स्कूल म सातवीं कक्षा म भर्ती होगे।

1942 म भारत छोड़ो आंदोलन चलिस।धनिरंजी सत्याग्रही मन संग जेल चल दिस।1943 म जेल ले छुटिन त सरकारी नउकरी खत्म होगी रहिस। रोजी-रोटी के सनकित आगे, त,स्त्तिबाजार मे एक पुस्तक दुकान खोलिस, जउन आज तक चलत है।

1945 म  मैट्रिक पास होके, आत्मानन्दजी ह,उच्च शिक्षा बार नागपुर जिस। उहां 6 साल रहिंन।सन 51 ले 58 तक रामकृष्ण मिशन के हॉस्टल म रहिंन।बस,इहि समय म

विवेकानन्द भावधारा के सम्पर्क म आके,रामकृष्ण आश्रम के सत्संग म तन्मय होंगे।

1951  म गणित विषय म एम,एस, सी, पास करिन--सबले ज्यादा आयंक मिलिस विज्ञान संकाय म। फेर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छत्रवृत्ति घलो मिलिस,प्रशासनिक सेवा म घलो सफल होगे, फेर ओ डाहर नई गईं। अपन व्यक्तिगत लाभ ल त्याग के रामकृष्ण मिशन ल जीवन के लक्ष्य बनाए लीन।

विवेकानन्दजी के ये कथन आत्मानन्दजी के जीवन के मूल मंत्र बनगे---"पुराण धर्म कहता है, वह नास्तिक है जो धर्म में विश्वास नहीं करता, पर नया धर्म कहता है कि नास्तिक वह है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता।"-----ये कथन ह आत्मानन्दजीके जीवन ल बदल दिस।

आत्मानन्दजी अपन पिता ल पत्र लिखिन---"मानव जीबन के लक्ष्य,भगवत प्राप्ति   हे"! 

नागपुर ले1959 के अंत म,आत्मानन्दजी ह रायपुर आईन अउ आश्रम स्थापित करना हे, सोच के,बूढ़ापारा मकितया के मकान लेके अपन लक्ष्य पूरा करेबर भक्तिमार्ग म चल पड़िस। अपन पिता के घर म नई रिहिस।

1960 म अमरकंटक म खुद संन्यास ग्रहण कर लिन।अब तक उन ल"ब्रह्मचारी तेज चैतन्य"के नाम से जानत रहिंन।संन्यास ले के बाद स्वामी आत्मानन्द के नांव स जाने गिन।

सन 1962 म "विवेकानन्द आश्रम" जी,ई, रोड  म बनके तैयार होगे।

बाउंड्री वाल,प्रार्थना कक्ष, भोजनालय, गौशाला, वाचनालय, चिकित्सालय--आदि के निर्माण होगे। यही समय जनवरी1963 म,में पहिली बेर स्वामी आत्मानन्दजी संग भेंट करेंव।आश्रम के नियमित सदस्य बन गेंव। तब मैं बी,ए, फाइनल म पढ़त रेहेंव।रोज सांझा बेरा वाचनालय मपत्र पत्रिका अउ विवेकानन्द साहित्य पढ़ना,भजन कीर्तन सुनना मोर दिनचर्या बनगे।स्वामीजी के प्रेरणा से,बड़े बड़े ग्रन्थ के अध्ययन करेंव।

17 जनवरी 1963 म दुनिया भर म,"स्वामी विवेकानन्द जन्म शताब्दी वर्ष" मनाय गिस।

उही साल ले---हर साल जनवरी मास म विवेकानन्द जयंती समारोह के आयोजन शुरु होईस,जून अब तक चलत आवत हे।

उही दिन"विवेक ज्योति" त्रैमासिक पत्रिका के विमोचन घलो होईस,जउन बाद म मासिक पत्रिका बन गए।

आत्मानन्दजी के छोटे भाई डॉ, नरेन्द्रदेव वर्मा ह पत्रिका के नामकरण करके,सम्पादन म सहयोग करिस।

1966 के जनवरी महोत्सव म--"रामायण के सब नारिऔ पुरुष पत्र के ऊपर ऐतिहासिक परिसंवाद" आयोजित होईस। ये परिसंवाद म मोला "कैकेयी" के ऊपर बोले के विषय दिस स्वमीजी ह। रायपुर के संग-संग पूरा छत्तीसगढ़ विवेकानन्द भावधारा म डुबकी लगाय लगिस।अइसन वातावरण हो गे, जइसे कुम्भ म गंगा स्नान करथन, अइसन लागय।

1967 म आत्मानन्दजी  रींवा  म 4   व्याख्यान दींन।हमर निवास म रहिंन।पूरा रींवा शहर उमड़ गे।कमिश्नर पिशरोडी दण्डवत होगें।अउ बुंदेलखंड म विवेकानन्द  भावधारा के सरिता प्रवाहित होय लगिस।नागरिक अभिनन्दन होईस।फेर आत्मानन्दजी निर्विकार रहिस , मानो कुछ 

 नई  होईस।उंखर व्यक्तित्व के खासियत ये कि सदा समभाव म रहय।प्रशंसा म कभु फुले नई समाय।समभाव म ही सब जन संग व्यवहार करय। निंदा अउ प्रशंसा ले  दुरिहा रहंय।। इहि उत्तम संन्यासी के गुण आय।

यही गुन के कारण आत्मानन्दजी ह अब्बड़ लोकप्रिय होवत गिस।।

1968 म रामनवमी के शुभ मुहुर्त म--रायपुर के "विवेकानन्द आश्रम" के विलय बेलूड़ मठ म होगे। विधिवत तब एखर नांव --"रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम"- होगे।

1968  म ही मां शारदा के  जन्मतिथि के दिन बेलूड़ मठ के परमाध्यक्ष स्वामी वीरेश्वरानन्दजी ह आत्मानन्दजी ल विधिवत संन्यास  देवईस।

उही साल आत्मानन्दजी के परम स्नेही जन मन घलो संन्यास व्रत म दीक्षित होके कृतार्थ होगें।

स्वामी आत्मानन्दजी के छोटे भाई  देवेंद्र 

 अउ  राजेन्द्र  मन घलो बारी-बारी ले संन्यास ले लीन।। सबले छोटे भाई डॉ, ओमप्रकाश वर्मा घलो ब्रह्मचर्यव्रत के पालन करता "विवेकानन्द विद्यापीठ के संचालन करथें। 5 भाई म केवल एक भाई  डॉ, नरेन्द्रदेव वर्मा ह गृहस्थ बनिस। एक बहिनी लक्ष्मी ह गृहस्थ बनिस।  तीन भाई संन्यास लेके रामकृष्ण मिशन के भावधारा के अनुगमन करिन।डॉ, नरेन्द्रदेव वर्मा ह लेखक ,कवि,भाषावैज्ञानिक अउ प्राध्यापक रहिस।उंखर लिखे गीत--"अरपा पैरी के धार महानदी है अपार"- ह छत्तीसगढ़ प्रदेश के राजगीत बनगे हे। डॉ, नरेंद्र देव वर्मा ल स्वामी आत्मानन्दजी ह 1977 म राजनीति म आय बार मना करिस, ये कहिके----"राजनीति चार दिन के चांदनी आय।झन जा।साहित्य सृजन कर।इही म यश मिलही।" ये बात सच होगे।

 पारखी दृष्टि के आत्मानन्दजी ह,लोगन ल परख परख के आगू बढ़े के रद्दा बतावय।

1974 म भीषण अकाल परिस। आत्मानन्दजी पूरा जनसेवा म लगे रहंय। दिनभर जनसेवा के बाद रातेच म अन्न जल ग्रहण करंय।


1976 म आश्रम म मन्दिर के प्राणप्रतिष्ठा होईस।

इही साल अगस्त म " दीदी"  यानी महतारी भाग्यवती देवी के निधन होगे। अमरनाथयात्रा म पुत्र आत्मानन्द के कोरा म मुड़ रख के प्राण छोडिस।

1979 म भाई डॉ, नरेन्द्रदेव के आकस्मिक निधन होगे। स्वामीजी ह ये गहिर पीरा ल  घलो   सहिन ।"विवेक ज्योति"के आधारस्तम्भ डगमगाए लगिस,तभो ले,आत्मानन्दजी अपन मन अउ "विवेक ज्योति "ल सम्हाल लिन। संन्यासी के इही लक्षण होथे। अपार दुख म घलो  निर्विकार रहिंन।

आत्मानन्दजी के व्यक्तित्व के ये खूबी रहिस कि   साधारण जन जइसे व्यवहार करंय। कभु अपन आप ल विशिष्ट नइ मानिस।

अहंकार तो रहिबे नइ करिस उंखर मन मा।

बहुत सरल,सहज,अपनापन जइसे व्यवहार करंय।

अपन आश्रम म ज्ञानी,विद्वान संन्यासी अउ गृहस्थ , दुनों किसम के मन ल प्रवचन देय बर  बलावय।  खुद जनता अउ श्रोता मन के बीच म बईठ के प्रवचन सुनय।कभु मंच म,कथावाचक संग नई  बइठिस। उंखर विनम्रता देखके विद्वान मन चकित हो जाय।

पंडित रामकिंकर महाराज नियमित हर साल प्रवचन देय बर   आवय, फेर आत्मानन्दजी, मंच के आगू म दर्शक अउ श्रोता मन के बीच बईठ के प्रवचन सुनय।

आत्मानन्दजी के एक सपना रहिस--"आदिवासी क्षेत्र म लइकामन ल शिक्षा देयबर अउ आदिवासी मन ल जागृत करे बर घना जंगल के बीच आश्रम बनाना हे।" ये "अबूझमाड़ प्रकल्प"-नांव से जाने गिस।

इही "अबूझमाड़ प्रकल्प"--बर दूसर पंचवर्षीय योजना म अनुदान लेना रहिस।

3 अगस्त 1985 के दिन नारायणपुर म विराट"वनवासी सेवाकेंद्र" शुरू करिस। स्त्रीशिक्षा बर  "विश्वास " नामक संस्था शुरू करिस। इहि काम बर अनुदान  खातिर, आत्मानन्दजी अपन मित्र  सुविमल चटर्जी संग भोपाल  गेय  रहिंन। वापसी म नागपुर तक ट्रेन म आईन। तहांले अचानक जीप म आय लगिन। होनी बहुत बलवान होथे।आवत -आवत राजनांदगांव ले  13 किलोमीटर  पहिली "कोहका"  गांव म जीप पलट गे। स्वामीजी अउ बलराम खाई म गिरगे ।जीप दू तीन बेर पलट गे।स्वामीजी के छाती ले टकराके जीप रुकगे। स्वामीजी चिरनिद्रा म लीन होगे। भोपाल जाय के पहिली अपन सब काम पूरा कर डारे रहिस।

ओ मन अक्सर  कहंय--" मंय  साठ  साल पूरा नई करंव।"  अउ उंखर बात सच होगे।"होनी"  बड़ बलवान होथे।जन्म ,मरण--सब ऊपर वाले के हाथ में होथे, खाली कर्म के ऊपर हमर अधिकार होथे। आत्मानन्दजी अपन जीवन के श्रेष्ठ कर्म करिन।

27 अगस्त 1989 के सड़क मार्ग म उंखर जीवन के अवसान होगे । वो ब्रह्मलीन होगे। उंखर अंतिम संस्कार रायपुर के खारुन नदी तीर  महादेव घाट म करे गिस। पूरा रायपुर शहर शोक म डूब गेय रहिस।

खारुन तीर महादेवघाट म उंखर सुग्घर समाधि बने हावय।

छत्तीसगढ़ म आध्यात्मिक आंदोलन के प्रवर्तक, नैतिक उत्थान के पथप्रदर्शक, 

सांस्कृतिक वातावरण के जनक, विवेकानन्द भावधारा के अग्रदूत-- स्वामी आत्मानन्दजी ब्रह्मलीन होके भी , हमर संग हावय।

पूरा मध्यप्रदेश अउ छत्तीसगढ़ के शीशमुकुट

बनगे हें आत्मानन्दजी ह।

मध्यप्रदेश अउ छत्तीसगढ़ के उच्चशिक्षाप्राप्त,अकादमिक कैरियर वाले युवा वर्ग मन भारी संख्या म-- आत्मानन्दजी के आवाहन पाके रामकृष्ण मिशन अउ मां

शारदा के भावधारा म सम्मिलित होगें।

   आत्मानन्दजी के व्यक्तित्व के कई आयाम  हावय।

अगर  उन मा  चरम वैराग्य रहिस, त कुशल प्रशासक घलो रहिस। जउन भी योजना  बनइस ओखर से दूरगामी  लाभ अउ प्रयोजन ला  ध्यान म रखिस।

"अबूझमाड़ प्रकल्प" -- एखर सबले बड़े उदाहरण हे। आत्मानन्दजी के कुशल निर्देशन म मध्यप्रदेश,उड़ीसा,महाराष्ट्र अउ राजस्थान म "श्री रामकृष्ण  विवेकानन्द " नांव के बहुत अकन आश्रम चलथे। ये पांच राज्य म आश्रम खोलके "विवेकानन्द भावधारा" के गंगा बहाए के अनूठा  अउ  महान काम करे हे स्वामी आत्मानन्दजी ह!


स्वामी आत्मानन्दजी ह सन्त, साधक, अउ उच्च शिक्षित विद्वान वक्ता रहिंन। विज्ञान के विद्यार्थी रहिंन-----तेकरे सेती ,उंखर मानसिकता ह वैज्ञानिक रहिस। कोनो भी प्रकार के चमत्कार या अलौकिक घटना या अंधविश्वास  ऊपर विश्वास नई करत रहिस।

     स्वामी आत्मानन्दजी ह अपन आप के परिचय खुद होके कभु नई देत रहिस। साधारण जइसे व्यवहार करंय  , इहि आत्मानन्दजी के खूबी रहिस।

अभिमान शून्य आत्मानन्दजी  सदा दूसर म गुन खोजय। अपन गुन कभु नई बतावय। वो इहि बात म विश्वास करय कि---" मनुष्य ह ईश्वर के रूप आय। मनुष्य के सेवा ह साक्षात ईश्वर के सेवा आय। हम जउन भी सेवा  अउ  काम मनुष्य बर करथन--वो सब ईश्वर करा  जाथे।"   इहि बात म विश्वास करके आत्मानन्दजी ह अपन पूरा जीवन ल पीड़ित मानव के सेवा म लगा दींन।

  संकल्प के धनी आत्मानन्दजी आज के युवा पीढ़ी के आदर्श हावंय--जउन सांसारिक माया, मोह,लोभ,अहंकार के भाव ल जीत के अपन लक्ष्य ल पाईन। जहां लक्ष्य के संकल्प सामने होथे--पूरा होय बर, जन-धन  अपन आप जुटत जाथे। रायपुर अउ  छत्तीसगढ़ के जन-जन के मन म --आत्मानन्दजी बर ," हितू अउ तारणहार 

बेटा"  जइसे भाव जागिस। तभे सब सहयोग करेबर  आगू आईंन।

 स्वामी आत्मानन्दजी के घनिष्ठ सहयोगी म स्वामीसतस्वरुपानन्दजी,निखिलात्मनन्दजी,त्यागात्मानन्दजी, श्रीकरानन्दजी, अउ डॉ, नरेन्द्रदेव वर्मा,डॉ, ओमप्रकाश वर्मा के नांव प्रमुख हे।

अभी के समय म स्वामी सतस्वरुपानन्दजी

अउ डॉ, ओमप्रकाश वर्मा हमर बीच म हांवय।एक विवेकानन्द आश्रम के ,अउ दूसर ह विवेकानन्द विद्यापीठ के  संचालन करत हांवय।

आज आत्मानन्दजी ल अवतरे इंक्यांनबे (91)  साल होगे। धन्य हे बरबन्दा के धरती-जिहां ओ अवतरिस।धन्य हे हमर छत्तीसगढ़ के पावन धरती--जिहां उंखर कर्मयोग के प्रमाण हे।

कहे गेय है न-------

"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।"

तभे तो अपन मातृभूमि ल जगाय बर, सेवा करेबर, छत्तीसगढ़ म अपन कर्म अउ यश के झंडा गाड़ीस । अउ ये हाना ल गलत सिद्ध करिस---"घर के जोगी जोगड़ा आन गांव के सिद्ध!"

भगवतगीता के 4 था अध्याय के41 वां श्लोक ह स्वामी आत्मानन्दजी  के कर्म अउ आचरण मं  चरितार्थ दिखथे---------

"योसन्तस्त कर्माणम ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम।

आत्मवन्तं न कर्माणि निबन्धन्ति धनञ्जय!!

अर्थात--"जउन मनुष्य ह समत्वबुद्धि रूप योग द्वारा,अपन सब कर्म ला,अर्पण कर दिस हे, अउ जेखर संशय ज्ञान द्वारा नष्ट हो गे हे, अइसन परमात्मा पुरुष ला, कोनो कर्म नई बाँधय।"

स्वामी आत्मानन्दजी घलो कर्म के बंधन म नई बंधिस।सब कर्म ल ईश्वर ला अर्पण कर दिस!

हमर गांव घर म जन्मे स्वामी  आत्मानन्द जी ह चारों ओर प्रसिद्धि तो पाईन, फेर अपने घर गांव म घलो प्रसिद्धि पाके पूजनीय होगे।

 अपवाद बन गेय स्वामी आत्मानन्दजी के इंकयानबे  जयंती म उन ला शत -शत नमन!

-------डॉ, सत्यभामा आडिल

       06--10--2020

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