एक कहानी हाना के ...
जे खाही आँच ते खाही पाँच
तइहा तइहा के बात आय । एक ठिन गाँव म एक झिन कोचिया रिहिस । ओकर पाँच झिन बेटी रिहिस । कोचिया हा कभू धान के कोचियई करय । मौका म गाय बइला के ....... । त थिरथार समे म जगा भुँइया के घला कोचियई अऊ दलाली म लगे रहय । ओकर काम अतेक चोखा अऊ बिस्वसनीय रहय के न केवल गाँव के आम मनखे , बल्कि गौटिंया .. पंच सरपंच .. अऊ तो अऊ तिर तखार के गाँव गँवतरी के छोटे ले बड़का मनखे मन घला ओकर तिर सलाह लेहे बर आवय अऊ कहीं बड़का चीज बेंचे या बिसाये बर कोचिया ला अऊ कुछु बर निही ते कम से कम गवाही धरे के नाम से लेगय । तिर के शहर तको म कोचिया के संबंध बड़े बड़े बैपारी मन संग बनेच रिहिस हे । शहर म कहीं चीज बस बिसाये बर गये , गाँव के कन्हो मनखे के खंगे बढ़े म घला कोचिया के नाव काम आ जाय । कोचिया हा अतेक इमानदार रिहिस अऊ बचन के पक्का रिहिस के जेला बचन दे रहय तेला खत्ता म पूरा करय । फेर बपरा ला काम झरे के पाछू कतको झन चहा तक बर नइ पूछय , तभो ले ओकर मेहनत के सेती .. आर्थिक स्थिति हा डाँवांडोल नइ रहय ।
एक बेर के बात आय । कोचिया ला गाँव के एक झिन बड़का किसान हा बइला बिसाये बर दूरिहा के एक ठिन गाँव संग म चले बर केहे किहिस । कोचिया के कामेच काये ...... जेमा दू पइसा मिल जाये । चार पाँच दिन के लइक कपड़ा लत्ता अऊ दसना ओढ़ना धरके किसान संग छकड़ा गाड़ी म मसक दिस । पाँच दिन बाद घर म अगोरा होय लगिस । सांझ ले नइ अइस । रात तक आये के उम्मीद रिहिस ।
कोचिया ला चीला बहुतेच पसंद रिहिस । दू चार दिन म कहाँचों ले किंदर के आय तब ओकर बर आतेच साठ चीला खत्ता म बनय । लइका मन घला कोचिया कस , चीला बर प्राण ला दे देवय । लइका मन ला ये उमीद रहय के ददा आही तहन , दई ओकर बर चीला बनाही । ददा के अगोरा करत करत अधरतिया होगे । लइका मन के नींद परगे । कोचिया हा , घर म मुँधरहा अमरिस । कोचनिन रात भर कोचिया के अगोरा म जागत रहय । आतेच साठ लालचहा पिया दिस कोचिया ला । कोचनिन हा कोचिया ला किथे – दतवन मुखारी कर लव । बाहिर बट्टा ले निपटके नहा लव । तब तक तुँहर बर चीला बना देथँव । अभू लइकामन सुते हे .. पेटभरहा खाये बर मिलही । जागत रहिथे ते ओकरे मन ले नइ बाँचय । कोचिया हा बिहिनिया ले चीला खाये बर मना करिस । त कोचनिन किथे - तूमन ला चीला अबड़ पसंद हे कहिके कालीचे नावा धान बिसाये हँव । तुँहर नित्य करम के करत ले चीला तैयार हो जही । खाहू पिहू तहन दिन भर सुत जहू । बने कहत हस कहत कोचिया हा नित्य करम म लगगे । कोचनिन हा चीला बनाये के उदिम म भिड़गे ।
बोरा ले धान हेर के जइसे चलनी तिर गिस त कोचनिन देखथे के .. सबले छोटे बेटी हा चलनी तिर सुते रहय । कोचनिन जइसे धान चाले बर सुरू करिस छोटे बेटी के नींद खुलगे । छोटे बेटी पूछथे – ददा आगे का दई ? ओकर बर चीला बनाबे का या ? महूँ ला एक ठिन देबे अईं ...... । कोचनिन हा किथे – अभीच्चे अइस हे बेटी । चीला बनही तहन उचाहूँ या ..... । अभी भिनसरहा हे सुत जा ......... । छोटे बेटी ला सुता दिस ।
धान चलागे । कूटे बर ढेंकी तिर गिस । ढेंकी तिर चौंथा नंबर के बेटी हा सुते रहय । धान ला जइसे कूटना सुरू करिस यहू उठगे । यहू पूछिस – ददा आगे का दई ...... ? चीला बनाबे का या ...... ? महूँ ला एक ठिन देबे अईं ...... । कोचनिन हा यहू ला अभी भिंनसरहा हे कहत चीला दे के आश्वासन देवत सुता दिस ।
धान कुटागे । फुने अऊ निकियाये बर सूपा तिर गिस । त सूपा तिर सुते तीसर नंबर के बेटी हा उचगे । यहू पूछिस – चीला बनाबे या ...... ददा आगे हे का दई ...... ? महूँ ला देबे ..... । कोचनिन किथे - देहूँ रे रोगही ........ अभी बिहिनिया नइ होहे ...... कलेचुप सुत ....... उहू ला सुता दिस ।
चऊँर फुनागे । गोंटी निकियागे । पिसान पिसे के बेरा म जाँता तिर सुते दूसर नंबर के बेटी हा उचगे । ओहा किथे – चीला बनाबे त महू ला देबे अईं या दई ...... । ददा आ गे ना ..... ? कोचनिन किथे – तूमन ला नींद नइ आय दुखाही हो ....... रात ले जागत रेहेव ....... अऊ बिहिनिया होय निये उच गेव ......... सुत रोगही ...... बनही तहन उचा दुहुँ ...... । यहू ला सुता दिस ।
पिसान घोरत .. कोचनिन हा चुलहा बारे बर अइस त चुलहा तिर सुते बड़े बेटी उचगे । ओहा पूछिस – ददा कतेक बेर अइस या ....... । उचाते निही रोगही ...... कहीं करन लागतेन ...... । बड़े बेटी हा तुरते आगी ला सिपचा डरिस । तब तक ददा हा नहा धोके पूजा पाठ निपटाके पटका पहिर रंधनी खोली म अमरगे । दई हा सिल लोढ़हा म चिरपोटी पताल के चटनी घँसर डरिस । बड़े बेटी हा गरम गरम चीला बनाके ददा ला पोरसे लगिस । ददा हा चीला खाके अघागे । पाँच ठिन चीला बाँचगे । आधा रात ले जागे के सेती , अऊ लइका मन अतेक नींद म रहय के , हुद कराये म नइ उचिन । बाँचे खोंचे पाँचों चीला हा बड़े बेटी के हिस्सा म अइस ।
बेरा चइघिस तहन सुते सबो बेटी मन उचगे अऊ दई ला चीला नइ बचायेस कहिके शिकायत करे लगिस । कोचिया जागत रहय । ओहा अपन बेटी मनला किथे – तूमन घोड़ा बेंचके सूतत रेहेव बेटी । तुँहर दई के कन्हो गलती निये । तूमन ला अबड़ उचइस । कन्हो नइ उचेव । तुँहर नाव ले बने चीला ला बड़े बहिनी हा पा गिस । हमर हिस्सा के चीला ला हमर बर बँचाके नइ राखतेव कहिके छोटे बहिनी मन फटफटाये लगिन । तेकर ले छोटे टूरी हा तो अऊ अबड़ तपय अऊ चुन चुन के लुबुर लुबुर गोठियायव .......... वोहा अपन बड़े बहिनी कोती अंगरी देखावत अपन दई ला कहत रहय – भँइसी हा पाँच ठिन चीला ला अकेल्ला बोज डरिस या ......... वोला एको कनिक शरम नइ लागिस होही ......। लइका मन के फटफटई ला देखके ददा किथे – वोमे काके शरम बेटी ........ तूमन न काम करेव न धाम । जे मेहनत करिस ....... जे आगी म तपिस ते पइस .......... जे खइस आँच ते खइस पाँच ........ । मेहनत करइया हाथ ला मिलत खाये बर अन्न के दाना हा कोचिया के इही बात ला अभू भी सार्थक करत हे अऊ आगू भी करत रइहि ...... ।
हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .
No comments:
Post a Comment