बाबा बिल्होरन दास
वीरेन्द्र सरल
पहिली हमर देश ह कृषि प्रधान रिहिस अब बाबा प्रधान होगे हावे। कहे के मतलब हे कि बाबा मन काबा-काबा होगे हावे । अधर्मानन्द ले लेके निशर्मानन्द तक किसम- किसम के बाबा हमर चारो कोती अइसे चक्कर लगावत जइसे गुड़ के चारो कोती चांटा या चांटी । खांसे-खखारे के पहिली घला बने चेत लगा के आजू- बाजू ल देखना पड़थे, डर लागथे कहूँ थूकत बेरा भोरहा म कोन्हों बाबा उप्पर झन पड़ जाय, नहीं ते बाबा ह गुसिया के श्राप दे दिही। खने-कोड़े के बेर घला ध्यान रखना पड़थे कि कोन्हों बाबा ह भुइयां भीतरी समाधि लगा के बइठे तो नई होही?
मुख्य रूप ले बाबा मन के दु ठन बुता होथे। पहिली बुता प्रवचन झाड़ना अउ दूसर बुता दक्षिणा के हिसाब ले आशीर्वाद देना। एक दिन एक झन संगवारी ह बतावत रिहिस कि बाबा बिल्होरन दास ह दक्षिणा तो जमा के लिस फेर मोला सस्ता वाला आशीर्वाद थमा दिस तइसे लागथे। वोहा आशीर्वाद देवत कहे रिहिस कि जा तोर घर अन्न -धन्न, गौ - लक्ष्मी के भंडार भरही। फेर आज ले मोर घर अन्न - धन तो नई आइस बल्कि धरे रहेव तहू धन ह ओला दक्षिणा देवई म सिरागे। बने दक्षिणा नई देबे तब अइसने एन्टी आशीर्वाद देथे तइसे लागथे।
बाबा बिल्होरन दास के नावेच ह बड़ा गजब के हे। संगवारी के गोठ सुनके उंखर संग भेंट करे के मोरो मन होय लगिस।
मैं अपन संगवारी ल कहेंव - " संगी! अभी तक किसम - किसम के बाबा मन के नाव सुनत रहेव फेर बाबा बिल्होरन दास के नाव पहली बेर सुनत हंव, नवा- नवा उद्गरे हे का ? "
संगवारी बताइस - " नहीं, ओ तो बहुत सीनियर बाबा आय। बाबागिरी के मैदान जुन्ना खिलाड़ी । अपन गोठ बात म अपन भक्त मन ल अइसे बिल्होर देथे कि भक्त ह कंगला हो जथे अउ ओला पता घला नई चलय। जब तक भक्त ल पता चलते तब तक बाबा अंतर्ध्यान हो जथे अउ ओखर असिस्टेंट बाबा मरखण्डा नन्द के तो बातेच मत पूछ। जउन ल एक बेर उंखर आशीर्वाद मिल जथे ओहा एकेच बेर म सोझे ये भवसागर ले पार हो जथे। भक्त के भूत अउ वर्तमान के बात ल अइसे सऊँहत बता देथे कि भक्त खुदे भूत बन जथे। ओहा भविष्य भर के बात ल अपन मन रखथे जउन उंखर अंतर्ध्यान होय के बाद पता चलथे।
बाबा मरखण्डा नन्द ह जउन बात ल बताथे ओला कले चुप सुने के आय। जादा आंय-तांय पुछबे तब खींच के लटारा चमकाथे।
संगवारी के गोठ ल सुनके , मैं मन में गुनेंव। येहा बैहागे हे तइसे लागथे? तभे आंय- बांय गोठियात हे। येहा बाबा मन के गोठ गोठियावत हे धुन चिटफंड कंपनी वाले मन के?
एक तो येहा बाबा मन के नावेच ल ऊटपुटाँग बताथे अउ दूसर लटारा - छटारा के बात घला करथे ?
अब तो बाबा मरखण्डा नन्द के दर्शन करके उंखर आशीर्वाद पाय के शउंख महुँ ल चर्रागे।
एक दिन के बात आय। मैं अपन फटफटी म गांव जावत रहेंव। एक ठन बड़का गांव के चउंके म पहुँचेव तब देखथंव के मनमाने भीड़ सकलाय रहय। भीड़ ह गोल खड़े रहय अउ भीतरी ले नदियां बइला बुगबुग बुगबुग कहिके आवाज आवत रहय। महुँ फटफटी ले उतर के भीड़ के तीर म पहुँचेव अउ एड़ी ऊँचाके देखे लगेंव। नंदियाँ बईला के गोसाइया ह चिन्हें जाने असन लगिस। रब ले सुरता आगे, ये तो हमर पड़ोसी गांव के बईला कोचिया बुधारू आय।
कोचियाई म पहिली पैसा तो बहुत कमाय रिहिस फेर सब ल मंद - मउंहा, जुआ - ताश म फूंक घला डारे रिहिस। ओखर मेंरन एक ठन फुटहा ढोल, जुन्ना चिमटा अउ एक ठन बुड़गा बईला भर बांचे रिहिस, येहा कब बाबागिरी विभाग म पोस्टिंग पा गए हावे भाई ? कब बाबा गिरी के कोर्स कर डारिस, ट्रेनिंग कर डारिस अउ इंखर नियुक्ति घला होगे। हम आज ले बेरोजगारेच घुमत हावन। ये विभाग म तो मनमाने पैसा झोरत हे बुधारू कका ह।
मैहा जोर से चिचिया पारेंव - " बुधारू कका! "
ओहा मोर कोती ल देखिस, तीर म आइस अउ मोल समझावत किहिस - " तोला भोरहा होवत हे बच्चा! मैहा बुधारू कका नो हंव। मैहा बाबा बिल्होरन दास अउ येहा मोर चेला बाबा मरखण्डा नन्द आय , सऊँहत नन्दी के अवतार , समझे ? तैहा नई पतियावस तब देख, मैहा ह कहीं पूछहूँ तेखर जवाब ये मोर चेला ह दिही।
बाबा ह पूछिस - " बोल चेला! ये सब भक्त मन के गरीबी ह दूर होही या नहीं? मंहगाई कम होही या नहीं?
बेरोजगार भगत मन ल रोजगार मिलहि की नहीं? "
बाबा के सवाल सुनके चेला ह हंव कहिके अपन मुड़ीं ल डोलावय। ताहन भीड़ ह मनमाने थपड़ी पिटय अउ पैसा चढ़ावय। जउन ज्यादा पैसा चढ़ावय ओला बाबा मरखण्डा नन्द ह जादा आशीर्वाद देवय।
आशीर्वाद के लालच म दस रुपया के नोट निकाल के मैहा बाबा मरखंडा नन्द के आघू म खड़े हो पारेंव। दस के नोट ल देख के वोहा मोर बर बगियागे अउ हुमेले बर दौड़गे। बाबा मरखण्डा नन्द ह चिल्ला के किहिस- "अरे! तैहा पाछू डहर ले आशीर्वाद ले जी, सौ, दो सौ, पांच सौ अउ हजार दक्षिणा वाला भक्त मन आघू डहर ले आशीर्वाद ले सकथे, समझे?
मैहा डर के मारे ओखर पाछू कोती जा के पूछ पारेंव - " देश के गरीबी अउ महंगाई कब दूर होही बाबा? मोर अतका पूछना रिहिस कि बाबा मरखण्डा नन्द ह अपन पाछू के दुनों गोड़ ल उठाके मोला जमा के लटारा जमा दिस। मोर थोथना ह फुटगे। मैहा अपन मुड़ी ल धरके सोचत रहिगेंव, बाबा ल सही बात पुछबे तब लटारा जमा के आशीर्वाद देथे तइसे लागथे ददा। मोर किस्मत बने रिहिस तब ये भवसागर ले पार होय बर बांच गेंव । नहीं ते इंहचे निपट जाय रहितेंव। अब ये बाबा ल मरखण्डा नन्द कँहव कि लटारा नन्द? जय हो बाबा जी , तोर महिमा अपरंपार हे , क्षमा करबे ददा।
मैं अपने थोथना ओथारे , अपन घर लहुट गेंव।
वीरेन्द्र सरल
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