किसान, मजदूर के पीरा लिखइया - मुंशी प्रेमचंद जी
पुण्यतिथि 8 अक्टूबर💐💐💐
भारतीय साहित्य मा सबले संवेदनशील लेखक, कुशल वक्ता, जनमानस के पीड़ा जनैया कोनो लेखक होईस हे, त वोहा मुंशी प्रेमचंद जी आय। मुंशी जी हा गाँव के जनजीवन, सुख-दुख, रहन-सहन, खान-पान, पहनावा अउ ठेठ बोली भाखा ला अपन साहित्य मा स्थान देहे। तभे तो वोला लोगन मन कलम के सिपाही, कलम के मजदूर, रूस के गोर्की, चीन के लुशुन अउ सबले ज्यादा मुंशी जी के नाव ले जानथे। मुंशी जी के साहित्य हर वर्ग के लोग मन ला गहराई ले प्रभावित करिस, अउ समाज में आदर्शोन्मुख यथार्थवादी परंपरा के नेव डारिस। मुंशी जी के साहित्य बिना हिंदी साहित्य बिल्कुल अधूरा हवय।
आपके के जन्म 31 जुलाई 1880 के उत्तरप्रदेश के वाराणसी के तीर लमही गाँव मा होइस। बचपन ले पढ़े-लिखे के शौक के कारण साहित्य ले जुड़ाव रिहिस। 1901 ले अपन लिखे के शुरुआत करिस। 1910 मा सोजे वतन उपन्यास बर हमीरपुर के कलेक्टर अब्बड़ डराइस-धमकाइस कि आघू ले जनता ला भड़काये बर अउ कुछू लिखे के कोशिश करे ते जेल मा डाल देहूं। फेर लेखन के कला ला अंग्रेज सरकार दबा नइ सकिस। अउ पाछू कतको उपन्यास, कहानी अउ पत्रिका मन मा लगातार लिखना जारी रखिस।
मुंशी जी के साहित्य कोठी हा कुबेर के भंडार कस भराय हे। जेमा कतको रत्न असन कृति मन समाय हे। 300 ले जादा कहानी, डेढ़ दर्जन उपन्यास, नाटक, निबंध, अनुवाद, बाल साहित्य अउ संपादन काम शामिल हे। मुंशी जी के हर कृति ला पढ़े के अलगे मजा हे।
सबले जादा नामी गोदान उपन्यास होइस। जेहा कालजयी उपन्यास के रूप मा दुनिया भर मा स्थापित हवे। एमे भारतीय किसान जीवन के दुख अउ ऋण के समस्या के चित्रण होय हे। जेहा आज तक चलत आवत हे। आज के गरीब, दबे-कुचले लोगन के शोषण करइया पूंजीपति मन ला एक बार गोदान जरूर पढ़ लेना चाही। जेकर ले जानकारी होही कि लोगन के जरूरत अउ समस्या का हे। तब कोनो ला होरी असन दयनीय दशा जिये बर नइ पड़ही। गोदान के पात्र होरी, धनिया, गोबर, झुनिया, राय साहब, मेहता, खन्ना, मातादीन, दातादीन ला कोई नइ भुला सकन। ओकर कहानी के पात्र हरकु, माधव, घीसू, जालपा, रमानाथ, अलगू चौधरी, जुम्मन शेख, समझू साहू, हामिद हीरा-मोती, बूढ़ी काकी मानस ले नइ मिटे।
मुंशी जी के साहित्य ला पढ़ के अइसे लगथे कि येहा तो मोरे कहानी आय। एकरे सेती ओकर साहित्य जनमानस के हिरदे के जादा तीर हे। अपन भोगे सच्चाई ला कथा मा उकेर के मुंशी जी साहित्य जगत के दैदीप्यमान नक्षत्र सही चमकत हे।
मुंशी जी कहय- साहित्यकार मन देशभक्ति और राजनीति के पीछू चलैया सच्चाई नोहे, ओहा उँकर आघू मशाल दिखावत सच्चाई आय। साहित्य ला ताकत ले दबाय के कुप्रभाव समाज ला सहे ला लगथे। ये बात ओकर साहित्य मा उजागर होय हे।
अभी छत्तीसगढ़ के साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर जी उँकर प्रसिद्ध उपन्यास निर्मला के छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद करे के सराहनीय काम करे हे। अउ गोदान उपन्यास ला छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद करे के बुता जारी हे।
प्रेमचंद जी उर्दू के संस्कार धरके हिंदी मा आईस अउ इहाँ के बड़का लेखक बनिस। गरीब, दबे-कुचले आम आदमी ला अपन कथा के नायक बनाके उँकर समस्या ऊपर जोरहा कलम चलाईस। अइसन कलम के सजग सिपाही, उपन्यास सम्राट, साहित्य जगत के सूरज 8 अक्टूबर 1936 के डूबगे। उँकर कृति युग तक ले गरीब, दीन-हीन, शोषित अउ सामाजिक समस्या के बिरोध मा ललकारत शोषक मन संग लड़े बर जगाये के बुता करही। उँकर साहित्य सभ्य समाज ला आघु बढ़ाय बर मशाल असन काम आ सकत हे।
हेमलाल सहारे
मोहगाँव(छुरिया) राजनांदगाँव
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