कहानी -तारनहार
प्रेमीन गली म पीछुवाएच हे, धनेस दऊड़त आके अँगना म हँफरत खड़ा होगे। लइका के मिले लइका, सियान के मिले सियान..। ओतके बेरा परछी उतरत नरेस हँ धनेस ल देख खुसी के मारे फूले नई समइस।
चिल्लावत घर कोति भागिस -‘दाई ! बुवा मन आगे। बुवा मन आगे।’
भगवन्तीन कुरिया ले निकलके देखथे डेढ़सास प्रेमीन अउ भाँचा धनेस अँगना म ठाढ़े़ हे।
भगवन्तीन लोटा भर पानी देके प्रेमीन संग जोहार भेंट करे लगिस। वोमन जोहारथे रिहिस हे धनेस टुप-टुप भगवन्तीन के पाँव परे लगिस। भगवन्तीन धकर -लकर पीछू घुचत कहिथे - ‘अई हाय ! परलोखिया भाँचा हँ मोला पाप बोहा दिस दाई’- अउ धनेस के पाँव छूवत चऊज करत हाँसे लगिस - ‘अलवइन भाँचा हँ फेर आगे दई।’
भगवन्तीन के गोठ ल सुनके जम्मो झन मुचमुचाए बिगर नई रहे सकीन। पाँव छूते साथ भगवन्तीन तीर म खडे़ अपन देरानी ल सुर धरके बताए लगिस -‘इही भाँचा हँ.... पऊर साल आए राहय’ - मुँह ल अचरज म फारत दूनो हथेरी ल जोरके इसारा करत बताइस- ‘यहा बडे़ पुक म मोर मंघार ल मार दिस बाई ! मैं मुड़ ल धरके बइठ गेवँ, तँवारा मारे कस होगे।’
भगवन्तीन के गोठ ल सुनके देरानी देवकी अउ प्रेमीन एक दूसर के मुँह ल देखके मिलखियावत हाँसे लगिन। प्रेमीन मुस्की ढारत पूछथे - ‘काय पुक बहुरिया ?’
‘काय किरकेट कहिथे तइसना खेलत रहिस हे, महूँ अँड़ही ल नाम ले बर तको नई आवय’ - अउ हाथ ल हलावत भगवन्तीन धनेस ल बोकबाय देखे लगिस।
धनेस लजावत मुच-मुच करत एक कोन्टा म खड़ा होगे। गाय -गरूवा मन खाए जेवन ल पचोए बर पगुराथे तइसे भगवन्तीन एक ठन गोठ लएमेर -ओमेर कई घँव पचार के पचोथे। तेकरे सेति देरानी जेठानी अउ गाँव भर सब भगवन्तीन ल पचारन कहिथे।
भगवन्तीन के मन झरना के झरत पानी के एकदम फरी हे। घिना -तिरस्कार बर थोरको ठऊर नई हे। कुछु बात रहय बिगर लाग -लपेट के कहे-बोले के आदत हे भगवन्तीन के। भूले बिसरे काँसी गोत कस नवा -जुन्नी सबो गोठ-बात भगवन्तीन के मुँहजबानी खाता म रहिथे।
लइका मन अबोध होथे। पुरईन पान हँ पानी म जनम के तको पानीच ल अपन ऊपर नई लोटन देवय तइसे लइका मन कोनो बात ल मन म घर नइ करन देवय। बडे -बडे मन पाँव-परलगी, गोठ -बात, हाल -चाल पूछई म भुलागे त नरेस अउ धनेस दुनियादारी रीत -रिवाज सब ल भुलाके अपन खेल -खेलौना, बाँटी- भौंरा, गिल्ली -डंडा म रमगे।
नफा -नुकसान, सुख -दुख, मान -सम्मान, ऊँच -नीच बडे मन देखथे। लइका मन ल का चाही पेट भर जेवन, ससन भर खेल। खेल -खेलौना, ऊछल -कूद, संग -संगवारी अतके इन्कर संसार ये। लइका मन सिध महात्मा मन कस जग के सुख -दुख ले निस्फिकर होथे, तेखरे सेति लइका मन ल भगवान माने गे हे।
मझनिया भगेला खेत ले घर लहुटिस । अपन बहिनी-भाँचा ल देखके गदगद होगे। धनेस ल देखके ओकर आनन्द उफनागे। भूख, पियास अउ जाँगर के सरी थकान ल कोन्टा के खूँटी म अरो -टाँगके चिहुकत चिचियाए लगिस-‘भगवन्तीन ! हमार तारनहार आगे। लान थारी -लोटा, पीढा -पानी ल, देवता के चरन पखारबोन।’
धनेस तको इही बेरा के अगोरा म रिहिस हे। मने मन ममा के बाट जोहत रिहिस हे। हर पइत अइसने होथे । ममा --भाँचा दूनो एला नई बिसरय। ममा, भाँचा ल तारनहार समझथे, त भाँचा हँ ममा ल ‘चुकिया’। ‘चुकिया’ जेमा सिक्का डारे के जरूरत नई परय भलकुन जब जब तीर म गए रूपिया झरे लगथे। काबर के ममा - मामी भाँचा के चरन पखार - पांछके चरनामरित लेथे। तेकर पीछू भाँचा ल दान -पुन करथे।
भगेला मनखे के पूजा ल भगवान पूजा मानथे। भाँचे भर के बात नइ हे, कोन्हो लइका होवय भगेला बर भगवाने सरूप होथे। भगवान, जेला जात -पात ऊँच- नीच के चिन्हारी नई रहय। ओइसनेहेच लइका मन होथे- सऊँहत भोला भंडारी। धुर्रा -माटी, छोटे -बडे़, जात -कुजात नई जानय। माने ये असार जगत के सार ल सरल -सहज भगेला भगत सोला आना समझ गे हावय।
बालापन निर्मल मन के घर, न जोरे के चिन्ता, न छोरे के डर। पइसा मिलिस धनेस अउ नरेस दऊँड़ प्रतियोगिता होगे। हरही गाय कछारे जाय। दूनो दूकान ले बिस्कुट ले लानिन अउ हाँसत-खेलत-गोठियावत खाए लगिन।
होवत बिहिनिया नरेस बोम्म फारके रोए लगिस। धनेस हँ खेलते खेलत नरेस के बाँटा रोटी ल झटक के खा लिस।
भगेला नरेस ल भुलवारे -पुचकारे लगिस - ‘ले अउ बना लेबोन बेटा ! खावन दे, भाई हरे।’- अउ अपन करेजा नरेस ल अपन छाती म सपटा - थपटके ओकर जीव ल जुड़ो दिस।
बेरा हँ घंटा भर रेंगे रिहिस होही। भगवन्तीन अचरज म मुँहफारके बोमियाइस - ‘अई हाय ! देखत हस, भाँचा ल ! खँवडी़ के चूरत दूध ल ढारके पी डरिस।’
‘लइका के जात कइसे करबे ? पीयन दे’ - भगेला खिसियाइस।
भगवन्तीन हाथ ल हलावत साँस ल बीता भर लमाइस- ‘जम्मो ल पी डरे हे, कसेली हँ ठाढ़ सुक्खा पर गे हे।’
‘वा ... दूध ल पी दिस त का गाय हँ दूधे नइ देही’ - भगेला हँ भगवन्तीन के मुँह ल तोप -ढाँक दिस।
भगवन्तीन सरी बात बर टिंगटिंगही, त भगेला शांति बर ओकर ले डंकाभर आगु। तैं डारा डारा, त मैं पाना पाना। भगेला ल तीनो पीढी़ म कोन्हो गुसियावत न देखे हे, न सुने हे। जनम के गरूवा, भगेला के तरूवा।
चार -छै दिन रहीके धनेस मन महतारी बेटा गाँव लहुट गय। भगेला भगवन्तीन ससन भर भाव भजन ले बिदा करिन बहिनी-भाँचा के।
रतिहा भगवन्तीन पूछ बइठिस-‘कस जी ! भाँचा मन एकर पहिली कई पइत आइस -गइस, आज पहिली पइत तुँहर आँखी ले आँसू ढरकत देखे हवँ। का बात हे ? अइसन तो तुमन बेटी के बिदई म तको नइ रोए हव।’
भगेला छाती के आखरी कोर के जावत ले साँस ल तीरके कहिथे - ‘तैं नई जानस जकली, भाँचा हँ मोर बर सहींच म तारनहार हरे।’
भगवन्तीन चेंधे बिना न कभू रहे सकिस न अभी रहिस - ‘कइसे ?’
बेरा तको रतिहा के करिया कथरी ओढ़े एक कोन्टा म सपट के बइठ गे। भगेला के गोठ ल सुने बर सन्नाटा तको कुरिया भर पसर गे। भगवन्तीन के संगे-संग कुरिया भर के कान टेंड़ागे।
चिटिक रूकके भगेला कहिथे- ‘एक दिन के बात ये। अकेल्ला कुरिया म बइठे राहवँ। भाँचा कति ले आइस अउ पूछथे- ‘कइसे गुमसुम -गुमसुम बइठे रहिथस ममा ? अबड़े चिन्ता -फिकर करथस तइसे लगथे।’
भगेला कहिस -‘का करबे भाँचा ! एक तो आधा उमर म बेटा पाएवँ। हिम्मत करके पढाए -लिखाए के उदीम करथवँ त नरेस के पढ़ई -लिखई म चिटिकन चेत नइहे। अब तैं नवमी चढ़ जबे अउ ओला देख।’
धनेस कहिथे -‘नरेस काली सँझा बतावत रिहिस हे कि तोर फिसिर -फिसिर ल देखके चिन्ता म वोहँ नइ पढ़ सकत हे अउ ओकर फिकर म तैं चुरत -अऊँटत हस। नरियर हँ निछाए नइहे खुरहेरी के फिकर करत हव दूनो।’
भगेला हँ धनेस के गोठ ल धियान लगागे सुने लगिस- ‘चिन्ता हँ चिता कुति तीरथे। तैं अपन इलाज पानी ल बने ढंगलगहा करवा, भविस्य के चिन्ता ल छोड।’
‘पूत सपूत त का धन जोरय पूत कपूत का धन जोरय।’ एला सुनके भगेला गुनान म परगे। भगेला ल गुनत देखके धनेस बात ल फरियावत कहिथे - ‘अपन तन ल घुरो -चुरो के धन बचई लेबे ओला लइका बिगाड़ दिस त का काम के तोर धन जोरई हँ। अउ कहूँ कुछू नई बनाए हस, लइका हँ अपन समझदारी से भविस्य म कुछु बना डरिस त तोर ए चिन्ता फिकर काएच काम के।’
धनेस चिटिक रूकके कहिस- ‘भूत ल खूँट म बाँधके रख, भविस्य ल उड़ावन दे पाँखी लगाके हरहिंसा अउ तैं वर्तमान सजा-सँवार। जब के आमा तब के लबेदा ल देखे जाही।’
भगेला ल मानो घर बइठे संसार के ग्यान मिलगे। जिनगी के आखरी पाहरो म भगवान, भगेला के आगू म साक्षात खड़ा होके गीता सुना दिस। धनेस बीच दुवारी म खड़े गोठियावत रहय। भगेला अपन भाँचा के दूनो पाँव ल ‘टप्प ले’ धर लिस - ‘आज तैं मोला जीयत तार दिए ददा, तँही मोर तारनहार अस।’
अउ भगेला के दूनो आँखी ले तरतर -तरतर गंगा -जमुना के धार फूटके गाल म ढरक गे।
धर्मेन्द्र निर्मल
कुरूद भिलाईनगर जि. दुर्ग
9406096346
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