Saturday, 21 October 2023

एक कहानी हाना के .... अक्कल बड़े ते भँइस

 एक कहानी हाना के .... 



अक्कल बड़े ते भँइस


गाँव के कोलकी सोंसी गली म रेंगे के मजा घला बहुत रिहिस । एती ले जवइया ला , ओती ले अवइया के देंहे छुवाये बिगन , पार नहाकना सम्भव नइ रहय । घर ले गरूवा बछरू जब ढिलावय तब अतेक सटक जाय के .. उहाँ ले निकलके बड़े खोर के आवत ले , रऊत हा पछीना पछीना हो जाय । काकरो चौंरा फूटय त काकरो घर के कोंटा ओदरय । फेर पारा म अतेक एका अऊ आपसी समझ प्यार दुलार रहय के ओकर नाव ले कभू झगरा नइ मातय । उही सोंसी ले जब कन्हो नाँगर धरके निकलय , तब दूसर घर के पनिहारिन ला तीसर घर म खुसरे ला परय । उदुपले बड़े संग आमना सामना होय म .. ये दई कहत .. ढँकाये मुड़ी ला .. अऊ ढाँके उपर ढाँके अऊ पिछू डहर मुहूँ करके, चौंरा म तब तक खड़े रहय जब तक , ओकर आरो मिलना बंद नइ होवय । 

ओ पारा म रहवइया मनला, एके संघरा अवइ जवइ म बहुतेच मुश्किल होवय फेर घर ले निकले के पाछू इहीच मारग म रेंगना मजबूरी रहय .. अऊ तो अऊ उही कोलकी गली हा गाँव के सप्ताहिक बजार जाये के बहुत छोटे रसता घला रहय तेकर सेती .. बजार के दिन तो उही गली ले रेंगे के मजा कुछ अऊ रहय । कुछ मनचलहा देवर मन , भउजी ला छेंड़त .. एक कनि तिर पाये बर .. बजार के दिन उही रसता ले जरूर आवय जावय । मटमटही भउजी मन घला जानबूझके उही गली ले रेंगय । 

एक बेर के बात आय .. सप्ताहिक बजार के दिन चार बज्जी मुड़ी कान कोर गाँथ के , एक झन भऊजी हा टुकना धरके बजार गिस । जाये के बेर अपन संगवारी ला घला संघेरना रिहिस तेकर सेती सोंसी गली ले नइ गिस । बजार म साग भाजी बिसावत मइके के सगा मिलगे ... का करबे गा , मइके के करिया कुकुर तको नोहर होथे .. ओकर संग गोठियावत बतावत बेरा ढरकगे । सुरूज ललियाये बर धरिस ... तब अपन घरवाला के ललियाये के सुरता अइस । बिसाये टुकना भर साग भाजी धरके , लकर धकर वापिस होना रहय .. उही सोंसी गली म , संझाती बेर एक दू बेर फँसे रहय .. तभो ले .. घर म गारी खाये ले बाँचे बर .. लकर धकर उही कोलकी म खुसरगे । सोंसी घला नानुक नइ रहय बनेच लम्भा रहय । कोलकी म खुसरके लम्बा लम्बा डग भरे लगिस ... थोकिन धूरिहा गे रिहिस तइसना म , ओकर कान म , भदभद भदभद के अवाज अइस , पिछू कोति मुहूँ करके देख पारिस .. एक ठिन बड़े जिनीस बड़ारी गोल्लर ओकर पिछू पिछू आवत रहय । गोल्लर ला गाँव वाले मन पोस के राखे रिहिस .. अबड़ खबड़ा हरहा अऊ मरखंडा घला .... । भउजी के होश उड़ागे । रेंगे के जगा दऊँड़े लगिस । ओला देख गोल्लर घला दऊँड़ना शुरू कर दिस । भदभद भदभद के आवाज .. एकदमेच लकठियागे । 

थोकिन आगू कोलकी के सिराती म .. एक ठिन अड़जंग खटिया बिछउ पीठ वाले भँइसा हा गली ला छेंक के भउजी तनि मुहुँ करके सटक के खड़े रहय । भउजी के आगू तनी जाये के रसता खतम .. पिछू म बइला के सेती वापिस लहुँट सकना सम्भव निहि .. । भँइसा ला है है .. घुच रे घुच कहत .. एक हाँथ ले मुड़ी के टुकना सम्हारत , दूसर हाँथ ले , भँइसा के थोथना ला हुदरत रहय .. भँइसा टस ले मस नइ होइस .. तब तक गोल्लर पिछू तनि ले एकदमेच तिर म अमरगे ... अब भगवान के नाव लेके अलावा कोई विकल्प नइ बाँचिस .. । सोंसी के थोकिन आगू डहर म एक ठिन घर के खुल्ला कपाट देख .. जोर जोर से कन्हो हाबो का .. मौसी ये या मौसी .. कहत .. गोहारे लगिस .. तब तक गोल्लर पिछू कोती ले एकदमेच तिर म पहुँचगे .. अब तब हुमेले के अँदेशा म भउजी अपन आँखी मुंद लिस । आगू डहर ले पारा के दू झन देवर बाबू मन माखुर रमजत , ददरिया गावत गमछा धरके , बजार म मंजन बिसाये के जुगत जमावत .. बाहिर बट्टा निपटे खातिर , तरिया जाये बर आवत रहय । भउजी के अवाज सुन लकर धकर दऊँड़िन । 

भउजी ला बिपदा म परे देख .. लकर धकर भँइसा के पीठ म चइघ .. ओकर मुड़ी के टुकना ला एक झिन अपन खाँध म बोहि के दूसर ला दिस अऊ भँइसा के मुड़ी डहर ले ये पार कूदके  .. भउजी ला अल्लग उचाके भँइसा के पीठ म बइठार के ये पार नहका दिस । गोल्लर हा तब तक टुकना के मुरई ला अमर डरे रहय अऊ अराम से खावत रहय .. । भँइसा ला पार करके ये पार नाहाक के आये के पाछू ... भउजी के आँखी खुलिस .. तब ओला हाय लगिस । अई हाय कहत .. अपन कनिहा म लागत गुजगुज ला छू पारिस ... गुड़ाखू लगगे रहय । माजरा अऊ मामला समझके लजागे भउजी हा ... । 

मार गारी ले बाँचे बर .. घर म देरी के कुछ ठोस कारण बताना रहय , भँइसा अऊ गोल्लर के बीच फँसे अपन राम कहानी ला बतावत कहत रहय ... अतेक बड़ भँइस रिहिस .. घुचबेच नइ करिस .. ओती गोल्लर अड़जंग ठड़े रहय .. त कइसे करतेंव .. ? ओकर गोसइंया भड़कगे – अतेक बेर ले उहि तिर फँसे रेहे त .. ओतका बेर म कन्हो अइन गिन निहि का तेमा , अकेल्ला उहीच तिर म ठड़े रेहे .. ? अतेक बेर म गोल्लर तोला नइ हुमेलिस का .. ? भँइसा उपर टुकना ला मढ़हाके चइघके नहाक जतेस ... । अपन अकल नई लगा सकत रेहे हस .. ? अतेक बड़ भँइस , अतेक बड़ भँइस कहत हस .. । तोर अक्क्ल ले बड़े रिहिस का भँइस हा तेमा .. ? भउजी कलेचुप सुनत सकपकावत रहय ..। ओकर सास हा अपन बहू के सरोटा इँचत रहय – तोर संग होतिस त जानतेस रे .. केहे म का लागत हे .. । अतेक बड़ ठड़े भँइस के मुड़ी डहर ले चइघके .. कइसे नहाक डरतिस तेमा ... । चघत बेर भँइस हुमेल देतिस त ..  आफत हो जतिस ... । अलहन ले बाँचगे .. बपरी हा .. । साग निमारत सास पूछ पारिस – मुरई हा एके ठिन दिखथे या बहुरिया ... ? बहू किथे – हव दई .. मुरई हा मोर प्रान बचइस दई । उही मुरई ला हेर के गोल्लर तनि फटिक देंव .. गोल्लर हा मुरई खावत उही तिर ठड़ा होगे .. अऊ हुमेलिस घला निहि .. । सास किथे – अई सही म बनेच अक्कल करेस या .. हमर संग होतिस त उही तिर पट ले मर जतेन .. बने अक्कल लगाये बहुरिया .. । सास ला पूरी तरह ले अपन कोत देख बहुरिया कहत रहय .. जब मुरई खाये म गोल्लर हा एकदमेच मगन होके उही म भुलागे तहन , धीरे ले भँइस के उपर चघके ये पार आये हँव दई .. । 

सास कहत रहय – अई बने अक्कल करे या बहुरिया .. । कहाँगे हे चंडाल हा .. अबड़ भड़कत रिहिस .. अक्कल ले भँइस बड़े रिहिस का .. अइसे कहत  .. बपरी ला गारी देवत रिहिस ... । नाती ला इशारा म कहत रहय - बला तोर ददा ला , अऊ बता कति बड़े आय तेला ... ? भऊजी के बात बनाये के अक्कल काम कर गिस । कनिहा म लगे मंजन ला कलेचुप बखरी डहर धो डरिस .. अऊ मने मन बुदबुदाये लगिस ... अक्कल बड़े ते भँइस ... ?  जिनगी के हरेक रसता ला , बिपदा हा छेंक के आजो बइठे हे .. अक्कल वाले मन नहाक जथे .. फँसइया मन जरूर सुनथे .. अक्कल बड़े ते भँइस .. ।   


 हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा

No comments:

Post a Comment