कहानी
जेठासी
वीरेन्द्र सरल
गांव वाले मन ल ये देख के घोर अचरज होय कि आज जब घर- घर म महाभारत माते हे , अइसन समे म इंखर घर रामायण के सुनता कइसे माढ़े हे। इंखर घर के झगड़ा- लड़ाई ल देखे बर आँखी तरस गे हे अउ बातिक बाता ल सुने बर कान तरस गे हे। अइसनो कोई भाई होथे कि कोन्हों बात बर झगड़ा च नई होय। भाई - भाई ल छोड़ दे फेर पर घर ले आये देरानी - जेठानी मन घला राम नई भजे। सगे बहिनी के ओप्पार नहक गे हावे बैरी मन। अरे भई ! कभु - कभु कोन्हों - कोन्हों ला झगड़ा -लड़ाई होवत देखबे तभो मनोरंजन होथे। फेर येमन कइसन मइनखे आय कि कभु झगड़बे नई करय। अइसना करके कुल के नाव ल बोरत हे कुलबोरुक मन। पास - पड़ोस अउ पारा- मोहल्ला के मन अइसने विचार करके अपन अपन ढंग ले रामनाथ के परिवार म महाभारत मचाय के उदिम घला करय फेर सफल होबे नई करय ।
सिरतोन बात आय , रामनाथ अउ लखनलाल दुनों भाई के जोड़ी ह राम- लखन के जोड़ीच तो रिहिस। उंखर दाई - ददा मन उन्हला अइसे संस्कार दे रिहिन कि दुनों भाई झगड़ा काला कहिथे जानबे नई करय। दुनों भाई के मया के प्रभाव अइसे रिहिस कि जेठानी फुलमत अउ देरानी कलिया ह घला एके महतारी के कोख ले जनमे सगे बहिनी असन एक- दूसर ल मया करय। दुनों झन के लइका मन अतेक मया पाय कि कोन महतारी आय अउ कोन काकी आय, कभु जानबे नई करय।
फुलमत ह देरानी के लइका मन ल बिहिनिया ले पीठाइंहा चढ़ाय - चढ़ाय घर ल बहरे लिपय अउ गोबर कचरा करे अउ कलिया ह जेठानी के लइका मन ल नहलाय - धुलाय , पढ़ाय - लिखाय अउ उंखर मन बर रोटी - पीठा रान्ध गढ़ के खवा -पिया के स्कूल भेजय।
फुलमत ह घर के काम बुता ल करके खेत - खार जावय तब कलिया ह सबो माई - पिला बर तीनो बेरा के जेवन - पानी बनावय।
भाई मन के काम घला अलग - अलग रहय। रामनाथ ह खेती - बाड़ी सम्हालय अउ लखनलाल ह सरकारी स्कूल म मास्टर रहय। लखन लाल के नॉकरी लगे के पहिली रामनाथ ह बनी - भूति घला करय, थोड़ बहुत रेगहा - अधिया घला बोंय फेर नॉकरी लगे के बाद लखन ह ओला बनी - भूति अउ रेगहा - अधिया बर मना कर दिस। जांगर के चलत ले कमाय के मन तो रामनाथ के होवय फेर भाई के मया पा के वोहा अब बस घर के डेढ़ एकड़ खेत भर ल बोंवय। ओखरे देख - रेख करय । घर के सबो खर्चा ह लखन के कमाई म चलय फेर लखन ल ये बात के थोड़को गरब नई रिहिस।
बिहनिया बेरा के खाय - पिये के समय तो अलग रहय फेर संझा के जेवन सबो मई - पिला एकेच संघरा करय। इही बेरा म सब झन अपन - अपन काम बुता के गोठ गोठियावय। अपन - अपन आमदनी अउ खर्चा के हिसाब - किताब देवय । घर के बढ़ोत्तरी बर उपाय सोचे अउ लोग- लइका के भविष्य के समिलहा संशो - फिकर करय। एदे ह किसानी के कमाई आय अउ एदे नॉकरी के कमाई आय अइसे कहे बर न कभु रामनाथ जानिस अउ न कभु लखन लाल ह।
दुनों देरानी - जेठानी बर एकेच किसम अउ एकेच कीमत के गहना - गुरिया , कपड़ा - लत्ता अउ लइका मन के फैंसी कपड़ा - लत्ता , खेलौना ले के बुता ल जेठानी फुलमत करय। अच्छा पहिनव, अच्छा खावव, अच्छा करम करव अउ मया के बंधना म बंधा के जिनगी पहावव, इही उंखर परिवार के सिद्धांत रहय।
रामनाथ के त्याग अउ लखन लाल के समर्पण इही उंखर जिनगी के गाड़ी के धुरी रिहिस। लखन लाल ह सोंचय कि ददा - दाई मन तो हमर नान्हेंच पन म ढाई एकड़ जमीन छोड़के सरग सिधार गे रिहिस। बड़े भाई थोड़किन सवचेत होगे रिहिस, उंखर बर बिहाव ह होगे रिहिस, भौजी फुलमत घला लइकुशही अउ नेवन्निन रिहिस तभो ले मोला महतारी बरोबर मया - दुलार दे के मोर जतन करिस। बड़े भाई रामनाथ ह बनी - भूति करके मोला पढ़ा - लिखा के अतेक योग्य बनाइस अउ नॉकरी लगे के बेरा म बिना अपन अउ अपन लोग - लइका के भविष्य के चिंता करे एकड़ भर खेत बेच के पइसा के वेवस्था करिस। तब मोरो तो कर्तव्य होथे कि मैं उंखर लोग - लइका मन के जिनगी के वेवस्था करवं।
येती रामनाथ सोंचय कि दाई - ददा मन मोर भरोसा मोर छोटे भाई लखन के जउन जिम्मेदारी ल छोड़ के सरग सिधार गे हे ओला कइसनों करके पूरा कर डारेंव। पहली भले गरीबी - भुखमरी ल झेलेंव ते झेलेंव अब लखन असन भाई पा के धन्य होगे हंव।
जींअइय्या बर दिन बादर पोहाये म कतेक समय लागथे ? सुख म जिनगी कइसे पोहाथे, कोन्हों कहाँ गम पाथे ? पखेरू के पंख सरीख बेरा ह उड़ीहाये लगिस। रामनाथ के नोनी - बाबू मन पढ़ - लिख के बर- बिहाव करे के लाइक होगे। बने - बने , सगा - सोदर देख के उंखर बिहाव कर दिन। रामनाथ के बाबू ह गांव म किराना के दुकानदारी करे लगिस अउ ओखर नोनी ह बने सुघ्घर ढंग ले ससुरार म कमाए - खाये लगिस। मजा म जिनगी चलत रिहिस। लखन लाल के नोनी - बाबू मन तो अभी गांव के प्राथमिक स्कूल म पढ़त रिहिस।
सब तो बने - बने चलत रिहिस फेर कोनजनी रामनाथ ल का बात के घुना खावत रिहिस ? वोहा आजकाल थोड़किन गुमसुमहा रहे लगिस। लखन ह मौका देख के घेरी - बेरी पूछे फेर रामनाथ ह ओखर बात ल हाँस के टाल देवय। लखन ह अंदाज लगावै कि दुकानदारी के चक्कर अउ संगति म पड़के भैया के लड़का ह मंद- मौहा पिये बर शुरू कर दे हावे, भैया ल एखरे चिंता - फिकर तो नई होवत होही ? लखन ह रामनाथ ल समझावय कि भैया अभी गुड्डू ह नासमझ हे, उमर बाढ़ही अउ जिम्मेदारी ल समझही, तहन खुदे सुधर जाही, ये में अतेक संशो करे के बात हे ? फेर रामनाथ ह चिंता म दुबरावत रहय।
एक दिन रतिहा जेवन के बाद जब बहु - बेटा अउ नान - नान लइका मन सुतगे तब रामनाथ ह अपन सुवारी फुलमत, भाई बहु कलिया अउ भाई लखन ल तीर म बइठार के किहिस - " लखन ! मोर मन म एक विचार हे, गजब दिन ले तुमन ल बताहूँ कहिथंव फेर डर लागथे कि तुमन कहूँ मुही ल गलत झन समझ जाव ? "
लखन किहिस - " काय बात आय भैया ? अभी तक तुंहर कोन्हों बात ल हमन कभु गलत समझे हन का ? कोन्हों बात ल मन में राख के दुख पाय ले तो कही के सुखी हो जाना जादा अच्छा होथे। तुंहर मन म जउन बात हे वोला कहिके हल्का हो जावव, हमन बिल्कुल बुरा नई मानन। " फुलमत अउ कलिया ह घला हव - हव कहिके हामी भरिन तभे रामनाथ ह अपन मन के बात कहना शुरू करिस।
रामनाथ किहिस - " भाई लखन। मोला लागथे, अब हमन ल बंटवारा हो जाना चाही। "
येला सुनके सब झन कउआगे। फुलमत ह अपन पति ल देखत गुराईस - " हां ! अब बंटवारा के बात कइसे नई करबे ? तोर लोग - लइका ह बाढ़गे। उंखर बर बिहाव होगे। ओमन अपन - अपन पांव म खड़े होगे तब तोला बंटवारा के सुरता कइसे नई आही ? "
लखन ह छेकत किहिस - " नहीं भौजी ! वइसन बात नइ होही । लगथे आज भैया के तबियत ठीक नइ हे, तिही पाय के अइसन कहत हे। जा भैया ! आराम करबे। बिहनिया बने लागही तब गोठियाबो। "
रामनाथ किहिस - " नहीं लखन ! मोर तबियत घला बने हे अउ मैं बहुत सोच - समझ के गोठियावत हंव। देख भाई, मैं चाहथंव कि मरत ले हमर दुनों भाई के प्रेम अउ देरानी - जेठानी के मया ह अइसनेच बने रहय। मैहा मोर विचार अउ तोर भौजी के विचार के गारंटी तो दे सकत हंव फेर बेटा - बहु के गारंटी कइसे दे पाहुँ ? ओमन नवा जमाना के लइका आय। आज के लइका मन सियान मन के बात कहां मानथे ? काली कहीं बात म कका - भतीजा के बीच कोन्हों झगड़ा - झंझट हो जही तब मोर हिरदे कतका वियापही तेला मिही जानहुँ ? अउ बंटवारा ह कोन्हों नवा बात थोड़े आय ? ये तो सदा दिन के चलत आवत हे। काखरो मन ह मईलहा होय ओखर पहली नहाय के वेवस्था बना लेना बुद्धिमानी आय। झगड़ा - झंझट हो के बंटवारा होय ले जादा अच्छा हे, प्रेम से बंटवारा हो जावन। प्रेम से बंटवारा होबो तब कम से कम एक - दूसर के सुख - दुख म खड़े होके आसरा तो बनबो। तेखर सेती कहत हंव, समय के पहली हमन ल अपन मया बर रस्ता ल चतवार लेना चाही। ताकि अवइया बेरा म हमर मया के पांव म झगड़ा के कोन्हों कांटा झन गड़य ? "
बात समझ म आइस तहन लखन के आंसू डबडबागे। फुलमत ह सुसके लगिस अउ कलिया के मन म जेठ बर सम्मान के भाव अउ बाढ़गे।
लखन किहिस - " भैया ! मोर मन तो नई होवत हे फेर अभी तक आपके कोन्हों फैसला के कभु उजर मैहा नइ करे हंव । आप जइसे बंटवारा देहु, मोला स्वीकार हे। मोला पूरा भरोसा हे कि आप अभी तक न काखरो अहित करे हव न करव। गांव के कोन्हों अउ सियान बलाय के कोन्हों जरूरते नई हे। हमी मन सुन्ता - सुलाह करके पुरख़ौती खेती - बाड़ी ल बांट लेथन फेर अभी बहुत रात होवत हे। काली इतवार घला हे अउ गांव के सब काम - बुता घला बंद हे। काली बिहनिया सबो परिवार के संग बइठ के बंटवारा हो जबो। "
बिहान दिन बिहनिया सब झन बने नहा - धोके अउ भोजन - पानी करके मंझनिया एक जगह सकलाइन अउ सुन्ता - सुलाह करके बंटवारा के गोठ बात शुरू करिन।
रामनाथ किहिस - " हम सबो परिवार जानत हवन कि डेढ़ अकड़ के खेती - बाड़ी ले अतेक बड़े परिवार के पालन - पोषण नई हो सकत रिहिस। लइका मन जब छोटे रिहिन तब के बात अलग रिहिस। घर ल सिरजाय अउ चलाय म लखन के कमाई ह आय के प्रमुख स्रोत रिहिस। लखन के तो कहीं खर्चा च नई रिहिस, दुनों प्राणी अपन मन अउ ओखर लइका मन घला अभी छोटेच हावे। मोर लोग लइका के पढ़ाई - लिखाई अउ बर - बिहाव के सबोच खर्चा ल लखन ह अपन कमाई ले पूरा करे हावे। वोहा अभी तक अपन कमाई ल बचा के कभु अपन लोग - लइका के भविष्य बर कहीं नई बचाय हे। तेखर सेती मैं चाहथंव कि डेढ़ एकड़ पुरख़ौती जमीन म एक एकड़ लखन ल दे जाय अउ दस काठा जमीन हमर रही। नवा घर ल लखन ह अपन कमाई म बनवाय हे, ते पाय के नवा घर लखन के अउ जुन्ना घर ह हमर रही । घर के बाकी उपयोगी बर्तन - भाड़ा अउ आने जिनिस ल ये जेठानी - देरानी दुनों झन आपस म अपन मर्जी ले बांट लेवय। गहना - गुरिया जउन जइसे पहिने हावे वोहा वोखर आय। येहा मोर विचार आय। अब सब झन अपन- अपन विचार ल बतावव ? "
लखन किहिस - " कइसे बात करथव भैया ? मोर विचार म तो नवा घर अउ एक एकड़ जमीन ल आप रखव। जुन्ना घर अउ दस काठा के जमीन म मोर गुजारा हो जही, वइसे भी अभी मोर लइका मन छोटे हे तब मोर ख़र्चा घला कम हे। मैं नॉकरी म हंव तब लइका मन के बाढ़त ले तो मैं अपन वेवस्था कर सकत हंव। अब आप बहु - बेटा वाला होगे हव, कम आमदनी म आपके खर्चा कइसे पूरा हो पाही ? अउ वइसे भी हमर छत्तीसगढ़ म बड़े भाई ल जेठासी के रूप कुछ जादा जमीन दे के परम्परा सदा दिन के चले आवत हे, आप थोड़किन विचार करके देखव। "
रामनाथ ह अपन बहु बेटा कोती देखत किहिस - " तुंहर काय विचार हे जी ? तहु मन बतावव, बाद म अइसन झन कहु कि बाबू ह मया म अंधरा होके सब चीज ल अपन छोटे भाई ल दे दिस। "
रामनाथ के बेटा ह लखन कोती ल देखत किहिस - " बाबू सहिच बात ल तो कहत हे कका। अब तो महुँ कमाय के लइक होगे हंव। आप जउन दुकान धराय हव। ओखर परसादे अपन परिवार के पालन - पोषण करे के लइक तो कमातेच हंव। अब तो हमर दुनों भाई - बहिनी के बर - बिहाव घला होगे हे। हमर तो अब कुछु खर्चा नई रहिगे हे, बस कमाना हे अउ खाना हे। बाबू संग मिलके आप मन हमर मन के जिम्मेदारी ल पूरा कर डारे हव। रहिगे बात जेठासी दे के परम्परा के , अब समय के हिसाब से जब सबो परम्परा ह बदलत हे तब जेठासीच के परम्परा कब तक चलत रही ? यहु ल बदले के जरूरत हे। अब तो अइसे बड़े भाई ल जेखर जिम्मेदारी पूरा होगे हे वोला उदार होके अपन अइसे छोटे भाई जेखर लोग लइका के जिम्मेदारी पूरा नई होय हे वोला जेठासी दे के परम्परा शुरू होना चाही। जउन घर सबो भाई के जिम्मेदारी पूरा होगे हे, ओमन ल पुरख़ौती जमीन जयदाद ल आपस म बरोबर - बरोबर बांटना चाही। न कोन्हों ल कम न कोन्हों ल जादा। आज ले छोटे भाई ल जेठासी दे के परम्परा मोर ददा शुरू करत हे, मैं ऐखर हिरदे ले स्वागत करत हंव। आज ले एक एकड़ जमीन आपके अउ आधा एकड़ जमीन हमर। जमीन - जयदाद ह भाई - भाई के मया ले बढ़ के नई हो सके। बंटवारा म भले अंगना खड़ा जाय फेर हिरदे ह नई खड़ाना चाही। जमीन - जयदाद बर झगड़ा झांसी हो के अनबोलहा रहे ले जादा अच्छा हे कि हम सब आपस में सदा दिन मया के मजबूत डोरी म बंधा के एक - दूसर के सुख - दुख म खड़े रहन। "
अपन बेटा के गोठ सुनके अउ विचार जान के रामनाथ के छाती गरब म फुलगे। आज जब भाई - भाई इंच - इंच जमीन के टुकड़ा बर लड़त - मरत हे। एक - दूसर के लहू बोहावत हे। भाई ह भाई के, भतीजा ह कका के घेंच ल मुरकेटे बर तैयार हे, वइसन बेरा म एक नव जवनहा के अइसन विचार ? धन्य हे मोर भाग । जो अइसन बेटा पाय हंव। गदगद होके वोहा किहिस - " दुनों भाई के असली कमाई इही आय लखन। सम्पत्ति तो आवत जावत रही। जेला अपन बाजू म भरोसा हे वोहा अउ कमा लिही सम्पत्ति ल। फेर प्रेम ल लेके नहीं दे के कमाय जा सकथे।
वीरेन्द्र सरल
बोडरा मगरलोड
जिला धमतरी छत्तीसगढ़
पिन 493662
मो 7828243377
समीक्षा--पोखनलाल जायसवाल:
छत्तीसगढ़ देश का दुनिया के अनूठा भुइँया आय, जे अपन कतको परम्परा ले दुनिया म अलग पहिचान राखथे। इहाँ मितानी जँवारा, महाप्रसाद, भोजली अइसन नता हें जे कभू-कभू लहू के नता ले ऊपर जनाथे।
मया परेम न लहू के नता ल तिरियाय बर जानय अउ न मितानी ले जुरे नता। बस हिरदे म मया होना चाही। जहाँ मन म स्वारथ अउ लालच के भाव आइस तहाँ सबो नता ह दुरिहा जथे। मया तो बस मया चिन्हथे। मया ले नता ल नवा जिनगी मिलथे। मया म जब तक लालच लोभ अउ स्वारथ के घुना नइ सँचरै तभे तक मया साबुत बाँच पाथे। नइ तो कोनो पुछारी नइ राहय।
जब तक हिरदे म मया परेम के बासा रहिथे, घर बड़े जनाथे। सरग सहीं लागथे। कभू साँकुर नइ लागय। कोनो कतको नजर गड़ावय नजर नइ लागे। बैरी मन तपत-तपत खप जथे। फेर उँकर मनौती पूरा नइ होवय।
रामनाथ अउ लखन के मया परेम के आगू इही च बात होथे। एक-दूसर बर उँकर समर्पण, त्याग अउ सम्मान समाज बर प्रेरणा आय।
जेठासी हमर छत्तीसगढ़ के अइसन परम्परा ए जेमा जेठ भाई बर सम्मान हे, समर्पण हे। छत्तीसगढ़ के भुइँया ले जुरे ए ममहासी भाई-भाई म परेम ल जोड़े राखथे। इही जेठासी के परछो देवत वीरेंद्र सरल के कहानी जेठासी नवा पीढ़ी ल नता के प्रति समर्पण भाव अउ परिवार के संस्कार ल आगू बढ़ाय के संग धन के लोभ ले बाँचे अउ कृतज्ञता माने के सीख देथे। एकर प्रमाण रामनाथ के लइका के अपन कका संग गोठ बात म मिलथे। उँकर कहना हे- बाबू सही च तो काहत हे कका। अब तो महूँ कमाय के लइक होगे हँव।...बाबू संग मिलके आप मन हमर मन बर अपन जिम्मेदारी ल पूरा कर डारे हव।
कहानी आज समाज ल नवा दिशा दिही ए आशा करे जा सकथे। संवाद अउ भाषा शैली प्रभावी हे। कहानी के छेवर डाँड़ जिनगी के सार कहि देथे- प्रेम ल लेके नहीं दे के कमाय जा सकथे। सच ताय धन दोगानी तो हाथ के मइल आय। कब ए हाथ ले ओ हाथ होही गम नइ मिले।
घर परिवार म सुमत के छाँव बने राहय इही कामना करत सुघर कहानी बर आद. वीरेंद्र सरल ल हार्दिक बधाई💐💐🌹
पोखन लाल जायसवाल
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