*धरती सिंगार हे संवारना*
(छत्तीसगढ़ी नाटक)
पात्र -
बैसाखू
मंगलू
चैतू
बैसाखिन
लीना
राधिका
लीला
मोहनी
सुहागा
रामकली
चमेली
मंगलिन
पहली, दृश्य - (बिहनिया बेरा, पेड़ मन ल काटे बर ठेकादर के संग म बनिहार आरा, टंगिया धरके जंगल पहूंचना। ठेकादार अउ कटिहार ल अपन कोती आवत देख के पेड़ समुह के संवाद होथे)
पेड़ १ - आगू कोती देखव तो संगी हो, आरा, टांगिया धरके मनखे मन हमर कोती आवत हे।
पेड़ २ - हां - हां सहीं बोलत हस भाई, फेर काबर आवत होही जी?
पेड़ ३ - लागत हे भाई? इंकर नीयत ह बनें नइये।
पेड़ ४ - हमन ल नई बचावय भाई तइसे लागथे? ए मन हमने ल काट - भोंग के ही रइही।
पेड़ १ - सिरतोन काहत हस भाई, मनखे जात हम बिरछा मन ल कहूं के नई छोडि़न।
ठेकेदार - ( आके तीर आके खडा़ होवत कटिहार तरफ देख के) देखो जी सभी पेड़ों को काटना है। यहां पर बड़ा कारखाना कालोनी और हाॅटल बनेगा।
मंगलू - हव मालिक।
बसाखू - काटके कहां रखना हे मालिक?
ठेकेदार - इसके लिए मैं व्यवस्था कर चूका हूं, बस पेड़ कटाई कर दो।
मंगलू - ठीक हे मालिक सब पेड़ ल काट देबो।
ठेकेदार - अच्छा जी अब घर जा रहा हूं पेड़ कट जाने पर खबर करना।
मंगलू - जी मालिक।
(ठेकेदार चल देथे अउ कटिहार मन पेड़ काटथे)
चैतू - अब्बड़ घाम हे जी मंगलू।
मंगलू - हां चैतू , देखना आगी बरसत हे।
बैसाखू - पसीना म नहा डरेन जी, कोनों जगा छइंहा तक नई दिखत ए।
मंगलू - सुनव न जी, कटे पेड़ के छइंहा म चलव थीरा लेथन ।
चैतू - बने बोलत जी। (कटे पेड़ के छांव म सब बइठ जथे)
पेड़ १ - देखत हव संगी हमन ल काट, भोंग के हमरे छइंहा म ए मनखे मन बइठे हे।
पेड़ २ - हां भाई! मनखे जात बिकट स्वार्थी होथैं, हमन ए मन ल हवा पानी देथन अउ हमन के दुःख ल थोरको नई समझय।
पेड़ ३ - हमरे ले फल, फूल मिलथे, बरसा होथे, हमन के विनाश ले मनखे के बिगाड़ होही संगी हो, अभी गुमान में हे।
पेड़ ४ - सही ताय जी! जीवन रक्षक दवा - दारू हमरे ले पाथे, हमरे जरी, पाना, छाल, फूल, फर ले दवई, बनाके खाथैं।
पेड़ २ - हमन बेजूबान हन संगी, कइसे अपन पीरा बता सकत हन?
पेड़ १ - मनखे जात ल समझना चाही, आह! आह!
बैसाखू - चैतू भाई कोनो गोठियाय कस मोर कान आरो मिलत हे।
चैतू - हां भाई महूं ह इही बात ल पूछइया रहेंव।
मंगलू - (उठके चारों मुड़ा देखत) ए जगा कोनो दिखत नइये भाई हो, लागथे हमर मन के भरम ए।
चैतू - हां सिरतो बोलत हस जी, ले चलव घर चलबो।
(सब अपन - अपन घर बर लहूट थयं)
दूसरा दृश्य - (चैतू, मंगलू, बैसाखू गांव ले कमाये खाय बर रायपुर शहर जाथैं। शहर के बड़े बड़े भवन, सड़क, कारखाना ल देख के आपस में संवाद करथैं)
बैसाखू - भैया चैतू शहर म काम अउ पइसा के कमी नइये जी, बस आदमी मेहनती ईमानदार होवय।
चैतू - सिरतो बोलत हस बैसाखू भैया, इंहा कोनो भूख नई मरय ग..
मंगलू - शहर के काम म तिहाड़ी बनिहार ल लेके बड़े बड़े कारखाना म हुनरमंद आदमी काम करथैं जी।
चैतू - हां बने काहत हस जी, जइसे काम, तइसे दाम।
बैसाखू - देखत हव भाई, अगास छूवत घर बनें बनें हे, बड़े बड़े बंगला अटारी हे, लम्बा चौड़ा सड़क, कारखाना, अस्पताल, स्कूल शहरिया मन के मजे मजा हे जी।
चैतू - सुख के संग अब्बड़ दुःख भी हवय भाई।
मंगलू - कइसे जी?
चैतू - देखत हस मोटर गाड़ी के रेम लगे हे, बड़े बड़े कारखाना सो अलग। हावा पानी म महुरा घुरत हे, ध्वनि प्रदूषण म लोगन मन भैरा होत जात हे।
मंगलू - हमर ठेका दार ऊंचहा ल सुनय, देखे हस न। येदे सड़क के तीर ल देख, नाली ह कइसे बजबजावत हे।
चैतू - तभे सोचत रहेंव भाई, काय सरइन सरइन बस्सावत हे कहिके!
मंगलू - मोला सुरता हे जी! बीस, पच्चीस बछर पहली लइकुसहा म हमर बबा संग रायपुर आए रहेंव तब ओ बखत रायपुर ह छोटे रहिस खेत खार म धान बोंवाए राहय, मेढ़ - पार म पेड़ ओरी ओर लगे राहय।
चैतू - तैहा के बात ल बइहा लेगे भाई मंगलू।
बैसाखू - अउ जानथव भाई हो, चउंर, दार, गहूं चना, साग बाजी सब गांव ले शहर आथे।
चैतू - हां भैया शहर मं लाल भाजी तक नई होवय।
बैसाखू - कहां उपजही जी, चारों मुड़ा कांक्रीटीकरण, कालोनी, कारखाना बनगे हे। अउ मार आदमी उसना जही तइसे धमका घलो हे।श
मंगलू - ले छोडव ए सब बात ल, हमन चार महीना कमाये बर आए हन। ले चलव भकला कका मन रहिथैं, उंकरे घर रात रहिबो। काली ले काम धरे बर हे।
चैतू - गोठियाते रहिबो त गोठ नई सिरावय, ले चलव जी चलबो। (भकला के घर सब आ जथे)
तीसरा दृश्य - (बिहनिया बेरा बैसाखिन ह झउंहा म कचरा बोहे लीला के मुहाटी तीर फेंकथे, लीला ह देख डरथे तहां मात जथे झगरा। सरपंच दीदी मन आके समझाथे)
लीला - (बैसाखिन ल हुंत करावत) ए बैसाखिन ए बैसाखिन आतो ओ।
बैसाखिन - अई का होगे दई, काबर बलावत हस मोला?
लीला - कइसे य...मोर घर के मुहाटी ह तोला घुरवा दिखत हे?
बैसाखिन - अई तोर घर मुहाटी म कहां फेंके हवं दई? फोक्कट तयं बद्दी देथच।
लीला - लबारी काबर मारत हस ओ। पानी भरे बर निकलत रहेंव, ओतके बेर कचरा फेंकत देख डरेंव। अउ तैंहा आंखी देखे ल नटत हस।
बैसाखिन - झगरा करे के मन हे का य?
लीला - झगरा कइसे नई करहूं ?
बैसाखिन - ले मैंहा राधिका जगा पूछवावत हंव, संउहाते रहिस हे। फेंके के पहिली ले कचरा रहिसे हे।
(राधिका ल बलाके लाथे) ले बता राधिका, मोर कचरा फेंके के पहली कचरा रहिस की नहीं?
राधिका - पहली से डिस्पोजल, पन्नी - झिल्ली फेंकाए रहिसे य..
लीला - फेंकाए रहिस त का होगे।
राधिका - कचरा ऊपर कचरा फेंके हे का गलती करे हे बता?
लीला - तहूं ओकरे असन गोठियावत हस, गवाही बर पइसा देहे का?
राधिका - तोला कछु लाज लागथे? पइसा के नाव लेथच।
बैसाखिन - बने फेंकेंन, बने फेकेंन..जा का करबे?
लीला - त मोरे मुंड़ म नई फेंक देते कचरा। लल्लमुंही अच्छा फेंके हन कहिथस।
बैसाखिन - तै नोहच रे मोटी भइंसी कहां के।
लीला - चुप रे.. सुकड़ी चिंगरी।
बैसाखिन- तैं चुप रे रोन मुंही।
राधिका - कचरा फेंकाए रहिसे तेन म फेंक दीस का हो गे?
लीला - तैं काबर कुदत हस रे चिंगरी, टींग - टींग।
राधिका - मोला काबर बोलत हस रे मुंहफफट्टी?
बैसाखिन - राम! राम! के बेरा मुंह चीरत हे खपट्टी ह।
लीला - बात बरत हे त झार पहूंचत हे खपट्टी ल।
( लीला अउ बैसाखिन के झगरा गहिरा जथे, चूंदी चूंदा होत रथे झगरा ल सुन के परोसी मन सकला जथे। सरपंच घलो पहूंच जथे)
सरपंच दीदी - (लीला अउ बैसाखिन ल अलग करत) अरे भई तुमन काबर लड़त हव।
लीला - सरपंच दीदी, कचरा ल मोर घर के मुहाटी म फेंकही त नई झगरा करहव।
बैसाखिन - सुन सरपंच दीदी, पहिली ले डिस्पोजल, झिल्ली, कचरा गंजाए रहिसे त उही करा कचरा ल महूं फेंके हवं, तहीं बता का गलत करे हवं?
पंच दीदी - अइसना लड़त रइहा त नई बनय, गांव के विकास कइसे म होही।
सरपंच - सुनव, छोटे - छोटे बात ल लेके लड़त रहिबो त नई बनय, हमर सब के जिम्मेदारी ए गांव के खोर गली ल साफ रखना, सरकार के तक मंशा हे कि स्वच्छ भारत बनय। आज कल सब कचरा बेचावत हे डिस्पोजल, पन्नी, झिल्ली ल कारखाना वाले मन बिसा लेथे नही त कबाड़ी वाले मन बिसा लेसाथैं। बेचाही त चार पइसा बन जाही। गौंउदन कचरा ल घुरवा म फेंकव, खातू बनही, बारी, बखरी खेत म काम आही।
बैसाखिन - बने बात ए सरपंच दीदी। आज ले हमू मन गांव, गली, खोर साफ रखबो।
लीला - हां सरपंच दीदी, झगरा, लड़ई नई होवन,वचन देवत हन, गांव ल स्वच्छ रखें के जिम्मेदारी ल निभाबो।
सरपंच - ले चलव अब अपन अपन घर।
चौथा दृश्य - (बैसाखू, चैतू, मंगलू के शहर ले वापस आना, आषाढ़ के महिना बरसा के नई होय ले बैसाखू ह खेत के पेड़ ल काटे के उदीम करत।)
बैसाखू - शहर के काम ल छोड़ के आगे हन बैसाखीन खेती खार ल देखे बर लागही कहिके फेर बरसा के आरो नई मिलत ए।
बैसाखिन - हां, लीना के बाबू, देखना सावन लगइया हे, आंसो बादर ह ढपोर दे हे।
बैसाखू - चार महीना कमा धमाके खेती बर सकेले रहेन। खर्चा म धीरे - धीरे उठगे।
बैसाखिन - सही तो बोलत हस, गुने ल हो जही तइसे लागथे जी।
बैसाखू - बैसाखिन, बरसा के दिन म घलो भारी धमका हे। शहर में धमका ज्यादा हे कहत रहेन।
बैसाखिन - ए सब बात ल छोड़, घर के खरचा बर का करबे तेला बता?
बैसाखू - महूं ल संसो हे बैसाखिन! बनतिस त खेत के मेढ़ म दू चार ठन पेड़ हे, काट के बेच देतेंन काहत हवं, अभी महीना पंद्रह दिन के खरचा निकल जतीस।
बैसाखिन - बने तो बोलत हस।
( बैसाखू घर मंगलू हुंत करावत पहुंचथे)
मंगलू - भैया बैसाखू हवच ग... ए बैसाखू भैया घर म हवच ग..।
बैसाखिन - लीना के बाबू, देखतो कोन हुंत करावत हे?
बैसाखू - हव देखत हवं, ( परछी तरफ ल झांकत) अरे आ मंगलू भाई, बइठ (बइठे बर दरी देथे)
मंगलू - का बूता होवत हे भैया।
बैसाखू - बुता नइये भाई, भइगे ठलहा हववं।
बैसाखिन - चहा बनावत हवं देवर बाबू?
मंगलू - रहन दे भौजी घर म चहा पानी पीके अभीच्चे निकले हवं।
बैसाखू - ले बता भाई तोर का बुता होत हे?
मंगलू - छोटकन काम ले के आये हववं भैया।
बैसाखू - गोठ बात तो होते रइही, का बुता ए तेला बता?
मंगलू - काली खेत के मेढ़ म पेड़ रहिसे तेला काटे हवं।
किराया के ट्रेक्टर करें हवं, जोरन लागे रहिते काहत रहेंव।
बैसाखिन - येदे हमू मन तोर भैया दूनों लकड़ी काटे के गोठ गोठियावत रहेन।
बैसाखू - अइसे करना भाई, आज भर रहन दे, हमू मन खेत म पेड़ हे तेला काट के आ जतेन।
मंगलू - का होही एके ट्रेक्टर म जोर के ले आबो।
बैसाखू - ले टांगिया ल धरत हवं।
बैसाखिन - ले चल पानी - कांजी धर डरे हवं चलव।
मंगलू - ले भैया संग म महूं जाहौं, जल्दी हो जही।
लीना - महूं जाहौं दाई, कहां जाथव तूमन?
बैसाखिन - हमन खेत जाथन बेटी, तैंहा घर म लइका मन संग खेल।
लीना - नहीं दाई महूं जाहूं ओ।
बैसाखिन - (गुस्सा करत) ले चल ओ, अब्बड़ जिद्दी होगे हस।
(खेत पहूंच के पेड़ काटे लगथे)
लीना - दाई, दाई पेड़ ल काबर काटत हे बाबू ह।
बैसाखिन - घर के खर्च पानी बर पेड़ ल काटत हे बेटी।
लीना - पेड़ ल मत काटे ल कहिना ओ बाबू ल, पेड़ ल झन काटना बाबू।
बैसाखिन - चुप ओ एक तीर म बइठ।
लीना - दाई, हमर गुरुजी मन पढ़ाथे, पेड़ रहे ल ही बरसा होथे।
बैसाखिन - नहीं ओ बादर आय ले बरसा होथे।
लीना - झन काटना बाबू पेड़ ल..( रोके बर दउड़ के हाथ ल पकड़थे)
बैसाखिन - पेड़ ह गिर जही बेटी तोर ऊपर चल।
(पकड़ के दुरिहा म लाथे। ओतके बेर पेड़ ह गिर जथे, धरती माता प्रगट होके व्याकूल मन से घुमत रहिथे)
बैसाखिन - (धरती माता ल देख के) अई! लीना के बाबू ओहर कोन ए चलव पूछबो तो।
मंगलू - ए जगा कोनो नई रहिसे, ले चलव पूछथन।
(पास में जाके) दाई! ए दाई! तैं कोन हस दाई अउ कइसे व्याकूल दिखत हस।
धरती माता - तैं मोला नई चिन्हत अस बेटा, मोला पूछथच कोन अस?
बैसाखिन - नई चिन्हतन दाई!
धरती माता - मैं धरती माता अंव बेटी।
(सब अचरित होके)
समुह म - धरती माता! धरती माता!
धरती माता - हां बेटा मैं धरती माता अंव। मोर पीरा ल नई समझेव बेटा, कब जानहू मोर दरद ल? मोर सिंगार ह उजरत, मोर छाती ल चीरत हवयं। मोर पुकार के सुनइया नइये। जानत हव? नदियां, नरवा परबत, पठार, रूख - राई, सब मोर सिंगार ए,
मंगलू - हां दाई!
कब चेत हव रे मुरख? भुला गेयव ओ सुनामी लहर, भूकंप, अकाल - दुकाल, बाढ़ ल। अपन सुख बर नवा नवा उदीम करथव का सुखी हवव? अपन महतारी के एके झन लइका हव बेटा, मोर कोरा म अनलेख संतान हे। जीव जन्तु सब मोरे अंचरा के छइंहा म हे सबके पालन हार हवं।
बैसाखू - हमन तोर बेटा अन दाई! येकर सेती संसार ह किसान ल धरती पुत्र कहिके मान देथे।
(गीत म नृत्य के भाव)
गीत - "जतन करव भूइंया के, तुम जतन करव रे
जतन करव, धरती के तुम जतन करव रे...
जतन करव रे...मैं माटी महतारी अंव..
सुख दुःख म संग देवइया, संगवारी अंव, संगवारी अंव।
जतन करव माटी के तुम जतन करव रे..
जतन करव भुइंया के संगी जतन करव रे"
बैसाखू - हमन ल क्षमा करदे दाई! हम अज्ञानी हन। हमर से गलती होगे।
मंगलू - तोर सिंगार ल नई उजारन दाई! संवारबो, सजाबो एकर रक्षा करबो ओरी ओरी पेड़ पौधा लगाबो।
धरती माता - मोला वचन देवव पुत्र।।
समुह म - हमन वचन देवत हन दाई। तोर रक्षा करबो, पेड़ पौधा लगाके तोर सिंगार ल सजाबो हमन ल क्षमा करदे माता!
धरती माता की जय!
अनिल 'गौंतरिहा'
ग्राम - कुकुरदी, (बलौदा बाजार)
छत्तीसगढ़।
No comments:
Post a Comment