Saturday, 21 October 2023

छत्तीसगढ़ी कहानी:-* *आरो....*

*छत्तीसगढ़ी कहानी:-*


       *आरो....*


नान्हे नान्हे लइका लोग बर अड़बड़ मया, पारा गली म सबके सुख-दुख म आघु ले आघु खड़े हो जाय सब झन बर मयारू रहिन फेर अपने बर बिरान होगे रहिस ढेला ह।भला बनी-भूति करके पेट पालय फेर सबो के सुख-दुख के आरो ले ।हटरी के दिन खाई खजानी बर लइका मन कलर कलर करे।सबो बर अतीक मया फेर अभागिन ह बेटा बहु के सुख ल नई पाइस।नान्हें पन म बपुरी के बिहाव बर होगे रहिस ।काल के मालिक कोन होथे एकेच झन बाबू भर निभे रहिस उँकर जोड़ी ह उँकर संग ल छोड़ सरग सिधारगे।नान्हे लइका के मुहू म पेरा झन गोंजाय कहिके बपुरी ह अपन जिनगी अपन बाबू सुखीराम ल देख के बिता दिन।दिन भर बनी-भूति,गौटिया घर गोबर कचरा त ककरो कुटिया-पसिया।जेकर जइसन दया उले दु चार पईसा दे दे।अपन मुंह ल बांध जांगर तोड़ पसीना गारके अपन बाबू बर कोनो कमी नई होवन दिस।बाबू बड़े होइस त उँकर पढ़े लिखे के घला बेवस्था करिन।दिन बीते लगिस बाबू सुखीराम जवान होगे रहिस ।महतारी बेटा दुनो के मेहनत के परसादे अब घर म कोनो किसम के कमी नई रहिस।

    अपन जिनगी ल बाबू बर निछावर करके आज के सुघ्घर दिन के सपना मन म सिरजाये रहिस।बाबू के पसन्द ले नोनी देख के उँकर हाथ पिवरा दिन।ढेला ह बाबू के बिहाव म कोनो किसम के कमी नई करिन गांव वाले मन त देखते रहिगे।का बेंड बाजा, मोतीचूर के लाडू,नचनिया,अउ सगा सोदर, जात बिरादरी के मन गउन म कोनो किसम ले कमी नई आवन दे रहिस।जइसे ढेला ह इही दिन के सपना ल सिरजा के राखे रहिस।"सिरतोन म जेन अभागिन के सरी जिनगी ह हिरदे ल कठवा-पथरा करके अपन जिनगी के एकेच ठिन सपना देखय वहु पूरा हो जाय  त मन अघा जाथे।"

   उछाह मंगल ले बाबू के बिहा निपटगे अब जइसे ढेला के जिनगी म बड़ जन काम पूरा होगे।नाती -नतरा के सपना सिरजाये लगिस ।फेर कभू-कभू मनखे के खुशी म नजर लग जाथे ।बेटा बहु म खिटीर-पिटिर चालू होगे।बात बढ़े लगिस।उँकर खिट-पिट म रतिहा घर म ढेला सँसो के बादर म बूड़गे।

  सियान ह घर म कोनो ऊंच-नीच देख के सीखाए बर दु टपपा कहि परथे तेहा नवा बहु बेटी मन बर भारी हो जाथे।"सियान मन अपन जमाना के रीत ले सकेले अपन ढंग ले साव चेत होवतआगू डहर बढ़ना चाहथे त जवान मन अपन ढंग ले नवा जमाना के सङ्गे संग आगू बढेबर देखथे कभू-कभू पीढ़ी के इही भेद म सुनता-सुमत के बिना डाँड़ खींचा जाथे जेन आज के ऊपर बर भारी परथे।

   इही समय के डाँड़ ह आज ढेला के दुवारी म परगे बहु नवा जमाना के नोनी आय उँकर गांव समाज के लोक लिहाज,अउ कोनो अउ काम ल अपन ढंग ले करेबर ढेला के दु चार बात बहुरिया ल पुचर्री लागे अउ इही बात ल लेके सुखी राम संग खिट-पिट हो जाये।सुखीराम बहुत समझाय के कोशिस करिन फेर ढेला नई मानय ।कोन बइरी कोन हित।पारा परोस के एक दु झन चुगलहिं मन घला अब बहुरिया के कान ल भर दे रहिस।अब बात मुड़ के आगू बड़ गए रहिस दु चार झन हितु -पिरोतु मन के समझाय ले घला बात नई बनिस।बहु ह हांडी सथरा, पोरसे बांटे ल बंद कर दिन। बिहनिया सूत उठ के ढेला ह सुखी राम ल अपन तीर बलइस अउ कहिस:-बेटा तोर गोसईन सन तै बने खा कमा मोर दु चार दिन के जिनगी मैं तुंहर खुसी म आड़ नई बनव। बात आगू बढ़गे रहिस बेटा बर दाई अउ बाई म कोनो ल चुनना बड़का बात रहिस।जेन दाई जिनगी ल उँकर बढवारी म खपा दिस तिरिया के हठ म इही ल छोड़े ल परही विधाता एसनहा दिन कोनो ल झन दिखाये।

   बेटा वो तोर बरे बिहई ये,तोर छोड़ वोकर कोन हवय ।अभी मोर जांगर चलत हवय जेन दिन थक जाहु त विहिच तो मोर सरी ल करही अभी मन ल मढावन दे बइही ल ढेला ह सुखीराम ल समझावत कहिस।दु चार सियान मन बेटा बहु ल समझाइस फेर बात नईच बनिस त उँकर बंटवारा होगे सियान मन ढेला ल कहिस तोर जियत ले दु हरिया के खेती त अपन तीर राख विही म तोर जिनगी चलहि।इकर हाथ गोड़ मजबूत है खाय कमाय।फेर ढेला नई मानिस कहिस अब ये उमर म  खेती खार म दवा दारू मोर ले नई होवय अउ इंकर ले जोन बोरा खंड मिल जाहि विही म जिनगी चला लेहु।

   जेन लइका मन सियान बर थोरको मया नई करिस ओकरो बर कतका मया।सिरतो दाई दाई होथे जिनगी भर देथे अपन हिस्सा के सुख ,मया,पिरित अउ आशीष के छइहाँ देके हमर जिनगी ल भागमनी बना देथे।बदला म वो हमर हिस्सा के दुख ल हाँसत ले लेथे। 

   ढेला बनी भूति करके अपन दिन बिताये।बहु ह सुखीराम ल अपन आघु म सियानहीन ले गोठियाय ल घला नई दे।सुखी अउ ढेला के बीच परछी म कोठ खड़े होगे रहिस ।दिनभर के  खेती-मजूरी म बेटा बहु ह नवा जमाना के खर्चा ल नई पुर सकय।वोतकी म ढेला ह दू पइसा बचा डरे। बेटा बहु के ऊपर जब कोनो बिपत आतिस के कोठ तीर कान देके आरो लेवत कोनो किसम ले मदद करतिस।हाट बाजार म नाती -नतनीन बर चना फूतेना,लाई-मुर्रा,कांदा-कुसा,लेतिस लइका मन दाई तीर जुरियाबे रहे।झिम झाम देख के सुखी राम दाई तीर आये त उँकर हाथ कभू  कोनो जिनिस ल घला ढेला ह भितराउंधि दे दय।

         ढेला लोग लइका मन के अतकी च मया दुलार म खुश रहिस।रात दिन के हकर-हकर बूता काम म तन थक गे रहिस अउ संसो के घुना ह मन त खात रहिस एक दिन ढेला बीमार परगे डोकरी खेर-खेर खाँसे अब तो बीमार डोकरी तीर लोग लइका के अवई -जवई घला बंद होगे।बेटा जरूर डॉक्टर के बुला के सूजी-पानी करिन फेर जतन-रतन 

    खान -पान ढंग ले नई हो पाइस अउ एक दिन रतिहा कोठ के तीर म जठे खटिया म करलई बमलई करत सियानहीँ ह पराण ल तियाग दिन।जइसे वोहर कोठ म बेटा बहु के आरो लेवत समागे।फेर सियानहीँ के आरो कोई नई लीन।बिहाने सबो बिरादरी के म न सकलाइन बहु ह पढ़-पढ़ के रोवत रहय फेर अब ढेला माटी के काया  होगे रहिस कहा ल आरो पातिस? 

                   🙏

           द्रोणकुमार सार्वा

समीक्षा---पोखनलाल जायसवाल:

 जमाना कोनो राहय, दू पीढ़ी के फरक दिखबे करही। तइहा के जमाना गय कहि देथे। अब तो नवा जमाना आय। नवा जमाना ए त नवा सोच हे। आज नता गोता बर मया परेम  कोन जनी काबर ते कमती दिखथे। जिहाँ कखरो बर अंतस् ले मया रहिथे, उहाँ समर्पण अउ तियाग रहिथे। मँगनी म माँगे मया नइ मिलै...मँगनी म ...कोन जनी गीत ले निकले ए गोठ ह बेरा के संग कतेक सिरतोन साबित होही ते। आज सबो नता के पुछारी पइसा नइ ते धन दोगानी ले तोलत हे। सब ल हाय पइसा होय हे। हमर कमई ल काबर कोनो बर लुटाबो के भाव ह समागे हवय। भले जनम देवइया दाई-ददा च मन होय। नवा पीढ़ी भुला जथे कि काली वहू ह दाई ददा बनही। हम दू हमर दू के चलत दाई ददा ल दुत्कार देवत हे। अइसने नवा जमाना के गोठ ल उघारत सुग्घर कहानी हे- आरो। जेन म दाई के समर्पण अउ पीरा ल पिरोय अउ नवा पीढ़ी के सोच के आरो ल सँघारे के बढ़िया कोशिश हे।

       कहानी आरो के प्रवाह कुछ जादा रफ्तार जनावत हे। फेर कथानक संग लेखन शैली प्रभावी हे। कहानी अपन शीर्षक ल सार्थक करथे।

सुघर मार्मिक कहानी बर भाई द्रोण कुमार जी ल बधाई💐🌹🙏

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