Sunday, 1 October 2023

आखरी मनखे के खोज

 आखरी मनखे के खोज

               योजना हा बड़े जिनीस आफिस म उँघावत धुर्रा म सनावत रहय । एक कोति ओला जनता तक अमराय के फिकर म सरकार दुबरावत रहय । दूसर कोति .. नावा मैच खेले के समय लकठियागे रहय । योजना ला एन केन प्रकारेण जनता के फायदा बर जनता तक अमराय के योजना बनिस । ओला लकर धकर बाहिर निकालके .. नहवा धोवा के ... नावा पैजामा कुरता पहिराके बाहिर निकालिन ।  

               योजना हा सोंचत रहय के कति जनता ला फायदा अमराय बर मोला बाहिर निकालत हे .. मेहा कायेच फायदा अमरा सकत हँव तेमा ... समझ नइ आवत रहय । सरकारी मुड़ी बतइस .. तोला देश के आखिरी मनखे ला फायदा अमराय बर पठोवत हाबन .. जतका जल्दी होय उहाँ तक पहुँचना हे । योजना हा बात समझ गिस । योजना के कुरता पैजामा सलूखा सबो ला धन दोगानी ले पाट दिन अऊ ओकर एक हाथ के मुठा म कुछ चीज ला धरा   दिन । निकलत समय योजना के पैजामा के नाड़ा ला धीरे से तिर दिन । पैजामा बोचके लगिस । योजना हा बिगन नाड़ा के पैजामा ला एक हाथ म सम्हारत ... आखरी मनखे ला खोजत सड़क म उतर गिस । 

               मंजिल तक पहुँचे के रसता देखाय बताय के जुम्मेवारी पाये मनखे मन ... ओला अपन संग लेगे । रसता बतावत .. ओकर खींसा ला टमड़े लगिन । योजना सोंचिस .. येमन तो पहिली मिले हे मोला .. येमन आखरी मनखे नइ हो सकय .. । हाथ म धरे चीज ला झन नंगावय सोंच  .. मुठा ला किड़किड़ ले बांध लिस । दूसर हाथ हा पैजामा सम्हारे म लगे रहय । पैजामा के खींसा जुच्छा होके जब चिरागे .. तब योजना ला आगू बढ़े के रसता दिखिस । रसता रेंगत दूसर पड़ाव तक पहुँचिस । उहाँ तो पहिली ले जादा हरहर कटकट ... कुरता के एको खींसा साबुत नइ बाँचिस .. तब आगू के रसता खुलिस । थोकिन अऊ बढ़िस ... जे मिलिन तेमन कुरता चिरइया ... कुरता कुटी कुटी नोचागे । पैजामा उतरगे ... सरी खलास होगे तहन आगू जाय के कपाट भंगभंग ले उघरगे ।   

               योजना हा सोंचत रहय ... अतेक खक्खू होके कोन ला काय फायदा दे सकहूँ .. तेकर ले लहुँट जाँव का ... । जतका रिहिस सरी लुटागे । भेजइया के बदनामी हो जहि ... तेकर ले धीरे धीरे आगू खसकथँव ...  अपन हाथ के मुठा ला अऊ जादा किड़किड़ ले जमा डरिस । थोकिन आगू रेंगिस तहन ... कुछ भले मानुष मन बतइन के .. जेला खोजत हस ... उही आन हमन ... चल हमर संग .. अऊ हमर भाग ला निकाल ... । भले मानुष मन .. मुठा खोले के प्रयास म लग गिन .. मुठा नइ खुलिस । तहन घुस्सा म योजना के सलूखा ला चिर दिन ... बपरा दंगदंग ले उघरा होगे ... अब इँकर हाथ योजना के देंहे तक अमरगे । इज्जत बँचाय बर ... उहाँ ले निकल भागिस ... ओकर देंहें म बाँचे कपड़ा खसले बर धरिस ... । योजना कस के दँऊड़े लगिस । योजना के पिछु कतको लगगे । योजना बहुत तेजी से चलत हे ... चारों मुड़ा खबर बगरगे । 

               कुछ समे पाछू ......  खल्लु हो चुके योजना के आगू पिछु रेंगइया कोन्हो नइ बाँचिन । अब ओहा जेती जावय तिही कोति .. चार ठोसरा खावय । ओकर हाथ गोड़ टुटगे । एती वोती घिरले लगिस । कनिहा कूबर कोकरगे । मुठा बंधायेच रहय ... आखरी मनखे मिलबेच नइ करे रहय । भागत भागत नानुक गाँव म पहुँचिस । बहुत मुश्किल से एक जगा खुसरे के हिम्मत करिस ... भितरि तक नइ खुसर सकिस । झोफड़ी के परछी म दम टोर दिस । ओकर हाथ म बंधाय मुठा हा अपने अपन खुलगे । कुदारी झऊँहा धरके निकलत आखरी मनखे ला योजना के दर्शन होगे । योजना के मुठा म बंधाय झुनझुना गरीब के भाग म रहय । झुनझुना पाके बपरा के अच्छे दिन लहुँटगे । सरी झन जान डरिन के गरीब घर योजना पहुँच चुके हे । सब ओकर तिर पहुँचे लगिन । बपरा गरीब हा उही झुनझुना ला बेंच के ... योजना के क्रियाकर्म के जुगाड़ करत ... गाँव से शहर तक के पहुँचे जम्मो छोटे बड़े मुड़ ला .. खवा डरिस । दूसर दिन अखबार म बड़े बड़े अक्षर म छपे रिहिस के ... योजना देश के आखरी मनखे तक पहुँच गिस ।                

हरिशंकर गजानंद देवांगन ... छुरा .

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