किरिया
(महेंद्र बघेल)
देवारी के लक्ठाती म तीन अकड़ के नाॅंगरजोत्ता किसान अघनू हर हरहुना धान ला मिंज-कूट के बेंचे बर सुसायटी मा कई दिन ले खटे रहय। तब खार खाके तउल बाबा मन ला चहा पानी के चढ़ोतरी चढ़ाइस तेकर पाछू ले देके धान हा तउलाइस। अउ एती सुसायटी बाबू हर मरदनिया के मेछा कटई कस करजा के पइसा ला चुक ले तुरते उड़ा दिस। जीव करलागे फेर उधारी ल तो पटायेच ल परही..।
साॅंझ के पाॅंच बजगे रहय ,घर जाय बर अघनू हर सायकल मा चढ़िस अउ पायडिल ला ओंटत ओंटत मनेमन मा गुंताड़ा करे लगिस- "हाथ मा एक टिकली नइहे।अब तिहार बार ला मनाॅंय ते मनाॅंय कइसे जाय, ऊपर ले दवई बूटी वाले मन के तगादा।" कई ठन बात मगज म आवत गीस जावत गीस। इही सोचत सोचत घर अमरत ले मुॅंधियार होगे रहय। रातकुन अघनू हर खा-पी के सुतगे, फेर नींद परे तब ,कतरो अलथी-कलथी मारिस।मगज मा घेरी बेरी उही बात आय उही बात जाय, चिंता फिकर मा ऑंखी कब लटकिस गम नी मिलिस।
"चिंता फिकर म आदमी जब समाधान खोजे म असहाय हो जथे तब विवेक ह घलव ओधियाये बर धरथे, उही समे कहूॅं टपले हिम्मत के पूछी धरागे तब तो बात बन जथे, नइते अनहोनी हा मेर्री मारके तो बइठेच रहिथे धीरज ला डसे बर।"
अघनू के नींद ह उचटिस , वतीक बेर शुकवा हर नइ उवे रहय, दसना मा फेर ढलंग गय अउ सुते-सुते पहुॅंचगे सोच के दुनिया मा। बीते बाॅंवत-बियासी, रोपई-निंदई के सुरता करत मने मन मा गुने लगिस - "खार मा तीन अकड़ खेत हावय तो जरूर फेर कोठी मा एको दाना बीजा नइहे।प्राभेट कंपनी के बीज-भात के जरवत ले जादा माहॅंगी होय के सेती यहू साल सुसायटी ले सरोना अउ एक हजार दस के बीजहा धान बिसाना पड़िस। का करबे कते साहेब के छाॅंव परे रिहिस ते सरोना हा एको बीजा जागबे नइ करिस, एक हजार दस हर आधा जागबे करिस त साॅंवा, बदॅंउर, करगा अउ राहड़ा के मारे खेत बिल्लागे। खेत निंदवावत- निंदवावत कनिहा ढिल्ला परगे। सरकारी बीजा के चक्कर मा चार सौ बीसी के शिकार तो होइ गेंव।"
अघनू ह बीजा ह बने नइ जामे हे कहिके खेत ल मौका म देखे बर कृषि विकास विस्तार अधिकारी ल कई बेर शिकायत करिस, कलोली करिस। साहेब मन आज आहूॅं,काली आहूॅं कहि कहिके समय पहा दीन फेर आबे नइ करिन।अबीजहा धान के सेती बड़ उपाय करिस अघनू हर, खेत म फेर बोंवाई करवाय बर गांव मा घरोघर जा-जाके धान खोजिस। एक दाना बीजहा धान नइ मिलिस, कलप के रहिगें अघनू हर। ले देके पता चलिस कि परोसी गाॅंव धनगाॅंव मा दाऊ धन्ना सिंग के खेत म थरहा हवय। जेन नापडंगनी के हिसाब मा बेचावत हे, सुनके भरपूर ठंडा साॅंस लिस।
अघनू हर बड़े बिहनिया ले साइकिल म निकलगे धनगाॅंव अउ पहुॅंचगे दाऊ के दुवारी मा। परछी मा सीजर धूॅंकत आधा सुते अउ आधा बइठे बरोबर दिखत रहय धन्ना सिंग ह।हुरहा देखके अकचकागे अगनू ह ,येहा न तो खटिया हरे न कुरसी, सइत दूनो के बीच वाले कोई जिनिस होही टू इन वन कस। पुरखा सियान मन तो कभू बइठारे नइ रिहिन अरामी कुरसी मा। त काला जानही अघनू ह अरामी कुरसी के मजा ला ।
जै जोहार करत अघनू हा किहिस - "राम राम दाऊ जी, सुने हॅंव कि आप मन के खेत मा धान के थरहा बाचे हे। जेन ल बेचइया हव । ओकरे खबर मिलिस, तब पता लगाय बर आय हॅंव।"
अगनू के गोठबात ला सुनके दाऊ ला अतका समझ तो आगे रिहिस कि अघनू हा मजबूरी मा फॅंसे हवय तभे इहाॅं आय हे।
अरामी कुरसी मा जेदर्रा सांप कस कसमसात दाऊ हा कहिस - "हव, सही बात तो आय ,थरहा ला तो बेचनाच हवय। कतिक लगही तेला जल्दी बता डार, तुहरे सही कई झन थरहा पुछइया मन सॅंझा बिहने हर रोज अब्बड़ आवत हें।"
आफत मा फॅंसे मनखे के संग कइसे सुवारथ ला साधना हे कोई इकरे ले पूछे। काबर इही काम हर तो इकर पुरखौती धंधा पानी हरे।
ऑंय-बाॅंय,बजार ले दू गुना उप्पर बढ़ा चढ़ा के भाव ल बताइस, सुनके अघनू कट्ट खागे।आखिर करे ते करे का, पाछू हटे मा खेत परिया लहुट जही, किसान के काम तो बस माटी के सेवा बजाना हे, जुआ खेले बरोबर।बस इही सोचत-सोचत दाऊ कर ले दू अकड़ खेत के पुरतीन थरहा बिसा डरिस। आधा थोरहा पैसा ल तुरत जमा कर दिस अउ आधा पैसा ल धान लुवे के बाद म जमा करे बर खॅंधो डरिस।
बिहान दिन थरहा उखाने बर बनिहार लगाइस। गाड़ा-बइला मा डोहारे बर बनिहार, रोपा लगाय बर बनिहार लगाइस। तब चार पाॅंच दिन मा लटपट सबो खेत के रोपई बुता हर उरकिस। रोपा लगई के बुता हर एके झन के बस के बात तो नोहे।
सरकारी अबिजहा धान के सेती किसान ल कतिक चितखान अउ जेब ढिल्ला करना पड़थे,तेकर गम ला अगनू जइसे किसानेच मन ह जान सकथें।
जे जगा म किसान मन ल बेरा-बेरा म सहयोग-सुझाव के दरकार रहिथे। उहां के घलव अकथ कहानी हे।देख कतका गोरा नारा हे अधिकारी सुराज प्रसाद हर ,फकफक ले ओग्गर, चक सादा कार मा चढ़के आथे, कारे मा चढ़के जाथे। गोटारन कस लाल-लाल ऑंखी अउ बाटा हर भरनाहा भरनाहा कस अइसे दिखत रहिथे मानो लहरलोट होके आय हे का । चौबीस घंटा संग म रखे बाटल ल देख के लगथे कि बाटल म पानी कस दिखत पदारथ ह मिनरल वाटर आय के कुवाटर आय।
इही जिला कृषि विभाग के सबले बड़े अधिकारी,जेकर डमडम ले गुदुम कस तनाय पेट अउ लाल बंगाला कस ललमुॅंहा चेहरा ल देखके भुरभुस जनाय ल धरथे। कहुं येकर बउग म सरकारी योजना के नेवती रसा ह खमस मींझरा तो नइ होगे हे।
साहेब सुराज प्रसाद अउ धनगाॅंव के दाऊ धन्ना सिंग दूनो के बनेच मितानी हे, फेवीक्वीक के मजबत जोड़ कस।काबर दूनो झन ह कृषि यूनिवर्सिटी मा सॅंघरा पढ़े-लिखे हवॅंय।ये दूनो मितान मन दाऊ लाला घर के लल्ला ऑंय, तेकर सेती बड़ संस्कारी होय मा संदेह करना उचित नइहे।जानकार मन बताथें कि दूनो के पूर्वज मन के नेरवा ह इहाॅं नइ गड़े हे।आजादी के तुरते बाद म इनकर पुरखा मन इहाॅं पुलिस के नौकरी करे बर आइन। अउ इहाॅं के चातर भुइयाॅं म फसल अपन लहलहाइन। तभे तो उॅंकर विस्तार मन आज घलव फलत-फूलत हें अउ पेज-पसिया धरके चरपा के चरपा लुवतहें।
घर परिवार के मनखे मन के बड़े-बड़े पद मा रहे के लाभ तो बाकी रिश्तेदार मन ला परसाद मा आखिर मिलथेच न। आजादी के फसल ला टुटपूॅंजिया मन हर थोरे लुही, उॅंकर बर तो हर जगा इंटरव्यू के काटा गड़े हे। अउ बड़पूॅंजिया मन बर का इंटरव्यू ? जब उहाॅं उकर कका भैया मन पैनल मा मेर्री मार के बइठे हें। तब का आनलाइन अउ का पारदर्शिता।
जनता ल चश्मा लगाना नइ पड़े ओकर ऑंखी म तो सबो चीज ह झल-झल ले दिखी जथे। वो अलग बात हे उंकर मुहुं ले कभू बक्का नइ फूटे ते।बस इही भाईचारा ले कालेज के पढ़ई ले अधिकारी बनई तक के सफर ला तय कर लेना उनकर बर कोई अनहोनी घटना नोहे। उही पहुॅंच अउ पहचान वाले कुल परम्परा के मान-सम्मान ल राखत सुराज प्रसाद हर आज जिला के कृषि अधिकारी पद मा शोभायमान हे।
नैतिकता ,नियम कानून जइसन शब्द ला छेरी कस चरे के अइसन प्राणी मन ला अघोषित पारंपरिक छूट रहिथे।कानून जनइया उकील फुकील मन ह तो घलव इनकर खुदे ममा फुफू के लागमानी आय।त का मजाल हे कि कानून हर इखर कुछू उखाड़ सके।
अउ एती कहत लागे सौ एकड़ के जोतनदार, अपन ददा के एकलौता सपूत , धनगाॅंव वाले दाऊ धन्ना सिंग, का ककरो ले कम हे। कृषि विभाग म जनपद क्षेत्र (ब्लाक) के बड़े साहेब के नौकरी पाइस। फेर सबो काम-काज ह उल्टा च पुल्टा।किसानी बुता बर मिले खातू-बीजा अउ दवई ल किसान ल नइ बाॅंट (वितरण) के बेपारी मन कर बेचई-भॅंजई ह ओकर बर चुटकी के काम आय। मजाल हे आफिस के कोनो बाबू-साहेब मन के.. ओला कुछू बोल सके।
कन्हो मन बोल दॅंय त धमकी-चमकी लगाके मनमाने डरवाय के उदिम करे। मनमाफिक चढ़ोतरी के आगू पत्रकार मन घलव अपन कान म तेल डार के कुंभकरण कस सुत जाॅंय। एती-ओती चारो-कोती कोई हिम्मत नइ करें ओला कुछू कहे के। तेकर सेती सरकारी चीज बस ल सुलटाय बर ओकर हिम्मत ह बाढ़ते गिस। पैसा अउ पहुॅंच के बल म साल-पुट बइमानी अउ चार सौ बीसी ले बाचे के सुगम रस्ता के भरपूर उपयोग करे। धीर लगहा सरकारी ममा-फुफू मन के आशीर्वाद ले शहर म कई ठन पलाट अउ गाॅंव म खेती-खार के रकबा ल घलव बढ़ाते गिस।
उही दुवे-तीन साल होत रहिस होही तभे लंबा हाथ मारे के चक्कर म सब गड़बड़ झाला होगे। किसान मन ल बाॅंटे बर मिले स्प्रींकलर पाईप अउ स्प्रेयर ल आफिस म पहुंचे के पहिली बहिरे-बहिर बेपारी मन कर बेच दिस। ये पईंत सब दाॅंव उल्टा परगे। सरकारी समान के चोरी अउ लाखों के गबन मा अइसे धॅंधइस कि नौकरी ले चुक्ता हाथ धोना पड़गे। बाॅंचें के कतको उदीम करिस, ममा-फुफू मन नइ बचा सकिन। हाॅं बइमानी के अनुभो साटिपिकट जरूर मिलिस। फेर उकर बर जुर्माना संग खानगी ला भरके इज्जतदार के पावती ला झटक लेना कोनो मुश्किल काम ए का।नौकरी गीस ते गीस सौ-सौ एकड़ जोतनदार दाऊ के मान सम्मान मा भला का उद जलिस।
धनगाॅंव के दाऊ धन्नासिंग के लमचोचवा नाक हा नाक हरे ,कोन्हो भारतीय शेयर बाजार के सूचकांक थोड़े आय जेमा भदरस ले गिर जही।
यहू साल अघनू ह सुसायटी ले करजा निकालिस तभो ले निंदई, रोपई बर पैसा नी पुर पइस। आखिर म साहूकार ले उॅंचहा ब्याज म पैसा निकालना पड़िस। सही टेम म सुसायटी ले खातू नइ मिलिस , डेव्ढ़ा रेट म बाहिर ले खातू बिसाना परिस। जस-जस समय पहावत गिस, रोपाही खेत म साॅंवा, नरजा, बन-कचरा मन घलव उम्हियावत गिस। येला देख के अघनू के माथा म सॅंशो के लकीर तनागे अउ ओहा चुरमुरा के रहिगे। सरकारी बीज-भात ह अबीजहा तो होइचगे, किसानी थरहा म घलव गंज बन-कचरा के बासा होगे।
साॅंवा-बदउर जइसे बन-कचरा ले खेत ह परिया झन लहुट जाय। इही सोच-सोच के अघनू ह कनिहा के टेड़गावत ले अपन धरम निभाइस फेर हार नी मानिस।
भादो के निकलती अउ कुॅंवार के लगती म दूध भराय के टेम म सिरबिस ले आखरी पानी टोर दिस। अघनू ह घेरी-बेरी के निंदई, चलवई, रोपई अउ माहंगी खातू ले अइसने दंदरगे रहिस। उप्पर ले सुक्खा..!धन तो पड़ोसी भाई के नलकूप के सहारा मिलगे, नइते सुक्खा म धारे-धार बोहा जतिस। एती खेत म पानी के पलोती होइस ओती सुबे-शाम झम-झम बादर निकलना शुरू होगे। दिनमान गरमी अउ रातकुन बादर। गरमी के मारे धान-पान ल का कहिबे जीव-जंतु मन के जीना मुसकुल होगे रहिस। कुॅंवार के अनसम्हार बदराहा गरमी ले खेत म माहू झपागे।
रकम-रकम के उदिम करिस तब कहुं जाके घेरी-बेरी के दवा छिंचई ले हप्ता-पंदरा दिन म कीरा-काॅंटा ले छुटकारा मिलिस।
फसल के घेरी-बेरी सेवा-जतन करई ले पइसा ह भला कतिक दिन ले पुर पाही.., हाथ सिरबिस जुच्छा होगे। जुच्छा हाथ ल देख-देख के प्रमाणित बीज के मठराहा घाव ह अउ उपकगे। तेकरे सेती जाॅंच के हाल-चाल जाने बर अघनू ह बलाक आफिस डहर फेर धमक दिस। आफिस के कपाट कर बैठे चपरासी ह तॅंय अभी नइ जा सकस कहिके उही कर रोक दिस। अतिक म अघनू कहिस-" तॅंय मोला काबर रोकथस, मोला शिकायती जाॅंच के बारे म पूछना हे, मोला जावन दे"। तब चपरासी बोलिस-" भीतरी कोति पारटी-सारटी चलत हे, जिला के बड़े साहेब सुराज प्रसाद ह आय हे। अभी अंदर जाना मना हे। आधा घंटा के पाछू आ जबे।"
चपरासी के बरजई ल सुनके अघनू ह नजीक के लीम छांव म जाके बइठगे।
उही घंटा-डेड़ घंटा ले बइठे-बइठे असकटा गे रहिस अघनू हर, अउ उनिस न गुनिस सोज्झे खुसरगे आफिस म। तब तक बड़े बाबू ह अपन कुर्सी म बइठगे रहिस।ओकर ले शिकायती आवेदन के बारे म पूछिस।अतिक म बड़े बाबू ह बतइस कि तोर संग बहुत झन किसान मन के शिकायती कागज ल जिला आफिस म भेजवा डरे हन उही मन जाॅंच करही। उही मन धान ल भेजवाथें, उही मन अबीजहा के कारण ल बता सकथें।
अघनू ह स्टाफ रूम म बइठे साहेब सुराज प्रसाद के तीर घलव अपन समस्या ल रखिस। साहेब ह का जुवाब ल दीही भला। आजो बस रटे-रुटाय एके ठन जुवाब ल ओरिया दिस- "धीरज रखे रहव, जाॅंच खच्चित होही, सबला न्याय मिलही।" तहाॅं बात खतम..! कुल मिलाके यहू बखत अघनू ह आफिस के असवासन ल सुरता म गॅंठियाके लहुटगे।
घर लहुटती म अघनू ह दाऊ धन्ना सिंग के थरहा के देनदारी ल चुक्ता करे बर सायकिल के हेंडिल ल धनगांव डहर मोड़ दिस।त दाऊ घर के बाहिर म एक ठन चक सादा कार ह खड़े रहिस।कार ल देखके अइसे लगत रहिस मानो कोई सगा-पहुना आय होही।ऊंखर घर के बहिरी कोन्टा म भलवा बरोबर दिखत सखरी म बॅंधाय झुलपाहा कुकुर ह हुरहा हाॅंव-हाॅंव करिस।अघनू ह लटपट बाचिस नइते कुकुर ह हबक दे रहितिस। हाॅंव-हाॅंव ल सुनके भीतरी डहर ले थोरिक चमकावत टाॅंठ बानी म एक झन चिल्लाइस-ए टाईगर,क्या कर रहा है...? अवाज ल सुनके उनकर टाईगर ह तुरते कलेचुप होगे अउ पूछी ल हलावन लगिस।
कोन आय हे कहिके आरो लेवत मुनीम ह अइस अउ अघनू ल भीतरी डहर बलाइस। त उहाॅं सुराज प्रसाद अउ धन्ना सिंह दूनो झन गपशप मारत , धुॅंगिया उड़ावत बइठे रहॅंय। "अभी च तो साहेब ह आफिस म बइठे रहिस ,लघियाॅंत धनगाॅंव अमरगे।" -अघनू ह मने मन म इही बात ल सोचत उधारी के पैसा ल जमा करिस अउ अपन गाॅंव लहुटे लगिस।
साॅंझ कुन पाॅंच बजे रहिस होही धनगाॅंव के बजार चौक म अमरे च रहिस त चाय पीये के चुलुक होइस तहान एक ठन होटल के आगू म ठाढ़ होगे। उही होटल म पुराना चिन-पहिचान के एक झन सॅंगवारी शोभा राम ह मिलगे। दूनो म आपसी जोहार-भेंट होइस, तहा घर-परिवार, खेत-खार अउ सुख-दुख के बात गोठियाय लगिन। शोभा ह अघनू ल पूछिस - ए साल खेती-बाड़ी के का हाल-चाल हे मितान। कूत-कबार ह बाढ़िस हे.. कि काम-कमई ह पानी-बादर के भेंट चढ़गे..? अघनू ह कहिस- "काला बताबे मितान दुब्बर ल दू अषाढ़ कस हमर हाल हे। सोसायटी ले बीज बिसाएन.., अबीजहा होगे। दाऊ धन्नासिंग ले थरहा बिसाएन.., खेत ह साॅंवा, करगा , राहड़ा जइसे बन म बिल्लागे, फेर माहू झपागे। बाचे-खोंचे मोर हिस्सा म जतका आइस उही मोर कमई। दाऊ कर उही थरहा के बाचे पैसा ल जमा करे बर आय रहेंव।"
अतिक म शोभा ह कहिस- " अरे मितान तहूॅं ह कहाॅं प्रमाणित-व्रमाणित बीजा के चक्कर म फॅंसगे रहेस, सोसायटी ले जतका प्रमाणित बीज बिसाये रहे होबे न वो सब्बो बीज-भात ह दाऊ च के खेत के बीजा आय जी...।उकर खेत म कहाॅं निंदई अउ कोड़ई..! पूरा सौ एकड़ के खेत के उपज अउ ओकर ससुरारी फारम के जम्मों उपज ह प्रमाणित बीज लिखाय बोरी म सीधा भराथे अउ पहुंच जथे सोसायटी म वितरण खातिर। दाऊ धन्ना ह सोसायटी म भला नइहे मितान फेर सुराज प्रसाद नाम के ओकर पहुंच ह तो उहां माढ़े हावे रे भई..। ईंखर प्रमाणित बीजा ह इहाॅं के खेत-खार ल सिरिफ परिया बनाथे। येमन साॅंवा ,बदउर, नरजा ,चुहका अउ गाजर घास ले घलव खतरनाक बेलाटी बन-कचरा हरे मितान...।"
शोभा के गोठ ल सुनके अघनू के बुध चकरागे।तुरते ताही सायकिल ल धरिस अउ शुरू-खुरू घर जाय बर निकलगे। घर जावत-जावत रद्दा म अघनू ह सोच के भॅंवरी म अइसे अरझिस कि ओकर अंतस म बोंवई ले लेके मिंजई तक के जम्मों बात ह धारावाहिक कस ओरी-पारी आवन-जावन लगिस। अबीजहा धान के जाॅंच करवाय बर उप्पर डहर शिकायत के कागज पेश करई अउ कागज ला आघू डहर दउड़ाय बर कागज म वजन रखई के सबो उदीम ह कइसे फाऊ होइस। जाॅंच ल तो भुलई जा.., वो कागज ह आगू कोति काबर नइ सरकिस.. , वो गहिर राज ह आज पता चलिस।
उपर ले दाऊ घर के कुकुर के हाॅंव-हाॅंव करई के घटना ह घलव ओकर अंतस ल हलाके रख दिस।आज ऑंखी उघरिस तब गुस्सा के मारे तन-बदन म धधकत आगी ल खुदे गटागट पीगे।अउ सोच के काॅंटा ल उत्तर डहर घुमावत अपन आप ल बखानत एक ठन किरिया खईस - " बिना बिलमे अब ये बन-कचरा ल उखाने बर बनेच भिड़ना पड़ही, नइते हमरे सिधवई के ओधा म , स् ..साले जम्मों बेलाटी (विलायती) कुकुर मन इहाॅं आके टाईगर बनते रइहीं ..!"
महेंद्र बघेल डोंगरगांव
7987502903
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