छत्तीसगढ़ी लोक कथा
वीरेन्द्र सरल
जे पाय आंच ते खाय पांच
एक गांव म डोकरी अउ डोकरा रहय। डोकरी- डोकरा मन निचट गरीब रिहिन। बनी -भूति, रोजी- मंजूरी करके
उंखर गुजर-बसर होवत रहय। गरीबी के सेती उंखर जिनगी एक लांघन , एक फरहर बीतत रहय।
एक दिन डोकरी-डोकरा मन सुंता होइन कि हमर मन के जिनगी तो सदा दिन चुनी-भूंसी के रोटी अउ भाजी- कोदई के साग खावत बीततेच हवय। फेर कोन्हों दिन बने गुड़हा चीला रोटी खाय के साध लागथे। दु-चार दिन उपरहा मिहनत - मंजूरी करबो तब गुड़ अउ गेंहू पिसान बिसाय के लइक पैसा कमा लबों का?
डोकरी किहिस- " बात तो तैहा सिरतोन कहत हस डोकरा! चल आज ले थोड़किन जादा मजदूरी करबो।"
बिहान दिन ले दुनो झन मालिक घर जादा समय तक काम करना शुरू करिन। महीना दिन म मंजूरी के पैसा ह पहिली ले जादा सकलाइस।
अब डोकरा किहिस- " ले डोकरी! अब तोर साध पूरा करे के पुरतिन जादा पैसा सकलागे हावे। आज मैहा दुकान ले गुड़ अउ गेंहूँ पिसान बिसाके लानत हंव। तहन बने रांधबे अउ दुनों झन आघात ले चीला ल झड़कबो।" अतका कहिके डोकरा ह दुकान डहर चलदिस अउ डोकरी ह चूल्हा म आगी बारे के शुरू करिस। संझा के बेरा रहय, एकेच कनि होइस अउ डोकरा ह दुकान ले समान बिसा के घला ले लानिस।
डोकरी बने एक मन के आगर चीला रोटी रांधे के शुरू करिस। दुनों झन बने चूल्हा तीर म बइठ के चीला बने के अगोरा करे लगिन। बिसाय समान म लटपट नव ठन चीला बनिस। खाय बर बइठिन तब चीला के बंटवारा ह बरोबर नइ होवत रहय। अब दुनो झन म झगड़ा मातगे। डोकरा कहय कि मैहा दुकान ले समान लाने हंव। मैंहा पांच चीला खाहुँ अउ डोकरी कहय कि मैहा आगी के आंच सहे हंव तब मैहा पांच चीला खाहुँ। चार चीला खा के अपन मन बढ़ाय बर कोन्हों तैयार नइ होइन। अइसने- अइसने झगड़ा होवत अधरतिहा होगे फेर दुनों के झगड़ा माढ़बे नइ करिस।
आखिर म थक हार के डोकरी किहिस- "अइसन म नइ बने डोकरा! चल दुनो झन जीत - हार खेलबो। बाजी लगाबो। हमन दुनो झन चुप्पे मिटका के सुते रहिथन। जउन ह पहली गोठियाही ओहा हार जाही। ओला चार चीला खाना पड़ही अउ जउन पाछु गोठियाय ओहा जीत जाही ओला एक चीला इनाम के उपरहा मिलही अउ ओहा पांच चीला खाही। अब तो ठीक रही न?"
डोकरा तैयार होंगे।
अब पांच चीला खाय के लालच म डोकरी - डोकरा मन गोठियाबे नई करय। धीरे - धीरे रतिहा पोहागे। फेर दुनो झन अपन- अपन जिद म अड़े अपन जठना म चुप्पे मिटका के सुते रहय। बेरा उके चढ़गे। बारह बजगे। मंझनिया होगे।
जब पारा - पड़ोस के मन डोकरी - डोकरा के घर के कपाट ल मंझनिया तक बंद देखिन तब सोचे लगिन, डोकरी -डोकरा मन मरगे तइसे लागथे तभे अतेक बेर ले उठे नइ हे अउ उंखर घर के कपाट खुले नइ हे। अतेक बेर ले तो दुनो झन बने उठ के नहा- धो के अपन काम - बुता म लग जावत रिहिन।
डोकरी - डोकरा मरगे कहिके गांव भर हल्ला होगे। गाँव के सियान मन सब मिल-जुल के डोकरी -डोकरा के घर के कपाट ल तोड़ के भीतरी म खुसर के देखिन। तब डोकरा - डोकरी मन अपन -अपन जठना म मुर्दा असन पड़े रिहिन।
गांव वाला मन सोचिन ये दुनिया म इखर, हमर छोड़ कोन्हों अउ दूसर नइ हे। अब इखर क्रियाकरम हमी मन ल करे बेर पड़ही। ओमन डोकरी-डोकरा बर कफ़न-काठी तैयार करे लगिन। डोकरी-डोकरा मन चुप मिटका के सब ल सुते-सुते देखत रहय फेर पांच ठन चीला खाय के लालच म कहीं गोठियाबे नइ करय।
गांव वाले मन सब तैयारी करके डोकरी-डोकरा मन ल माटी दे बर श्मशान घाट लेगगे। लकड़ी सकेल के चिता तैयार कर डारिन। अउ डोकरी-डोकरा मन ल ओमें सुता के आगी लगाय के तैयारी करे लगिन।
डोकरी - डोकरा मन सब ल देखके डर्रावत रहय फेर रोटी के लालच म पड़े अपन-अपन जिद म अड़े रहय। जब गांव वाला मन चिता म आगी लगाय बर धरिन तब डोकरा डर के मारे उठ के बैठगे अउ चिचिया के किहिस-"ले डोकरी! मैहा हारगेंव। तैहा जितगेस अब पांच ल तैहा खा ले अउ चार ल मैहा खाहुँ।"
डोकरी- डोकरा ल माटी दे बर गे रिहिस तउन कठियारा मन घला नवेच झन रहय। ओमन डोकरा ल चिता ले उठके बइठत देखिन अउ चार ल खा लेथव कहत सुनिस तब डोकरा- डोकरा ल भूत बन गे हे समझ के डर्रा गिन। ओमन डर के मारे श्मशान घाट ले गिरत-हपटत घर डहर भागगे । डोकरी-डोकरा मन घला चिता ले उठके घर लहुटे लगिन। कठियारा मन जब देखे कि डोकरी-डोकरा मन घला पाछु - पाछु आवत हे तब डर के मारे थर थर कांपत अपन-अपन घर म खुसर के कपाट-बेड़ी ल लगा दिन।
डोकरी - डोकरा मन गांव चौक म आके गांव वाले मन ला अपन घर के रतिहा के किस्सा ल बतादिन। किस्सा ल सुनके गांव वाले मन के पेट ह हाँसी के मारे फुलगे। ओमन कठ्ठल -कठ्ठल के हांसे लगिन। तब ले हाना बने हे कि जे खाय आंच तै खाय पांच। मोर कहानी पुरगे, दारभात चुरगे।
वीरेन्द्र सरल
No comments:
Post a Comment