[10/16, 6:48 AM] रामनाथ साहू: -
🌈 *छत्तीसगढ़ी कहानी माला* 🌈
(1)
*दूध-पूत*
(छत्तीसगढ़ी कहिनी)
-रामनाथ साहू
देशव्यापी बन्द के तेइसवां दिन रहिस ।अउ अइसन कतेक दिन ल रहही......!फुलकुँवर सुन्न सान ...अल्लर परे सड़क कोती ल देखे।काबर के ये सड़क जब रेंगथे तब वोमन के जिनगी हर रेंगथे ।
फुलकुँवर मन के, ये चौक जउन हे स्कूल तीर म,वोई करा बरा - भजिया वाला छोटकुन होटल हे।वोइच हर वोमन के जीविका के अधार ये।कोरी- खइरखा स्कूल के पढ़इया लइका, पांच दस मास्टर मन तो ये होटल के पक़्क़ी- पक्का ग्राहक रहिन।
बाकी अवइया- जवइया,गांव -गंवतरी वाले मन बर पाव ..आधा -किलो जलेबी, लड्डू करत गाड़ी हर बड़ सुभीता ले चलत रहीस ।
फेर ये लॉक डाउन हर ये जोम ल बिगाड़ दिस।कान्हा के बंसरी बजा दिस।दु -चार पइसा हाथ म हे ,तउन ल दांत म चाब के खरचा करे बर लागत हे। सरकारी राशन हर तो मिले हे।फेर अइसन हालत कतका दिन ल चलही तेला कनहुँ बताय नइ सकत यें।
"चल चाउर हर रहही तब नून म टिक के खा लेबो...।"सास पीली बाई हर फुलकुँवर ल सुनावत कहिस।
फुलकुँवर हर सास ल अब्बड़ डराथे।काबर के वोहर होटल म दिन भर घाना म बईठे रथे।आगी तीर म बइठत सात धार के पसीना वोकर तरुवा ले छूटत रइथे। वोकर खुद अपन हिस्सा म तो जूठा कप -प्लेट धोये के बुता रथे ।ये बुता ल वोकर गोसान दूज लाल घलव करथे।अउ एक दिन वोकर कोती ल देख हाँसत कहत घलव रहिस-"फुलकुँवर मोर ये बुता ल परछर अपन आँखी म देख के तोर ददा हर तोला हमर घर म हारे हे।"
"तव का होइस।जब तुँ धो सकत हव ये जूठा कप- पिलेट मन ल त मैं काबर नइ धोये सकहां।"फुलकुँवर कहे रहिस अउ अपन गोसान दूज लाल के हाथ ल धोवत प्लेट मन ल लूट लेय रहिस ।फेर दूज लाल बल भर के वोला खेदत जरूर रहिस ...रहन दे पाछु करबे कहिके।
"अपन घोड़ा म का के घसिया..तूं तो सुनेच होइहा ।ठीक वइसन येहर हमर धंधा पानी ये ।हमर जिनगानी ये। हमर लक्ष्मी ये।"फुलकुँवर एके सांस म अतका ल कह डारे रहिस ।दुज लाल बने निच्चट कर के वोकर मुहरन ल देखत रहिस।
"ये बुता ल करबे,फेर एक बात हे।"दूज लाल फेर कहिस।
"वो का...!"
"ये बुता ल आधा -सीसी करे ले नइ बने।करबे त पूरा मन लगा के करबे।अब तैं पुछबे काबर..?"
"....."फुलकुँवर हाँस के रह गय रहिस ।
"ये बुता बहुत बड़े बुता ये।"
"कोई भी बुता छोटे- बड़े नइ होय।"
"छोटे -बड़े तो बाद के बात,पहिली जउन जिनिस हे वोहर ये -विश्वास ।मोर हाथ ल धोवात ये प्लेट मन ल कोइ नइ देखत येँ। अउ जब येमा ग्राहक ल कुछु परोसबो तब वोहर ये नइ पूछे के ये प्लेट हर धोवाय हे के नहीं।वो तो बस सीधा शुरुच कर देथे।"
"हाँ ..।ये बात तो सोला आना सच आय।"
"हमर होटल म बनत जिनिस मन म का भराय हे न का।बिना येला पूछे जाने जउन भी बइठथे तेहर विश्वास म भर के ,के एमा कुछु आन तान नइ ये,खातेच लेथे।
" हाँ....।"
"तभे देखे हस ददा हर मसाला बनात आलू के नान कुन छिलका तक ल नइ रहन देय।अउ ..अउ..घाना म बइठे दई के माथा ल सात धार के पसीना छूटत रइथे फेर का मजाल के एको बूंदी सनाय बेसन म पर जाय।"
"......."फुलकुँवर बस हँसतेच रह गय रहिस वो दिन।वोकर मुँहू ल बस अतकेच भर निकले रहिस के यहु बुता हर एक ठन सेवा के बुता ये।अउ वोला ये बुता करे म कोई तकलीफ नई ये।
अतका ल सुने रहिस तभे गोसांन दूज लाल हर विस्वास म भर के वोला ये बुता ल छुवन देये रहिस।फेर सत्रह घव तिखारे रहिस के तीन पानी ले कम म काम नइ चले।चाहे कनहुँ देखे के झन देखे ।
ये जूठा कप- प्लेट धोये के जगहा म वोकर पक्का संगवारी रहिस 'कारी'कोटी ।ये कुतिया हर कोइ पोसे कुकुर नइ होइस । फेंकाय ...जूठा -काठा हर वोकर बांटा म रहिस।फुलकुँवर अउ कारी कोटी दुनों म एकठन अदृश्य सम्बन्ध होंगय रहिस।
जूठा काठा ल खावत देखे तव फुलकुँवर ल लगे ..चल येला काबर खेदहाँ ।अगर ये जूठा म एक झन प्राणी के पेट भरत हे तब मैं काबर मना करहां।अउ कारी कोटी घलव भी कभु लक्ष्मण रेखा ल नइ नाहकिस। फेंकाय जूठा ल ही खाथिस,कभु भी प्लेट मन ल मुँहू नइ लगाइस ।
ये पाय के बर्तन धोये के जघा म जब कारी नइ दिखे तब मन ही न वोला खोजथे जरूर।एक प्रकार ले अपने आप उदगरे सम्बन्ध रहिस येहर ।
आठ -पन्दरा दिन ल बुता के ठउर म वोला आय के मउका वोला नइ मिले रहिस।वोहर छेवारी होय रहिस।
उप्पर ...नीला छतरी वाला के दया ले वोकर कोरा म आज पूत खेलत हे अउ दूध..?जोरन्धा होये रथिन तब ले भी कम नइ परथिस ।अगला उछला हे वोकर पूत बर...।
सास महतारी पीली बाई हर आन कछु कह दिही,के आन कछु म कमी कर दिही फेर वोकर खाना- पानी बर बड़ सचेत हे।खाना- पानी ल पेट भर खवाथे ,कोंच- कोंच के।अउ पहिली के डोकरी -ढाकरी मन ल सुद्धा भर के पानी पी पी के सरापथे...पापिन हो ..पहिली के लइकोरही मन ल पंच.. पंच.. छै ..छै दिन ल अन्न पानी नइ देवव ।क्षीर के सोत हर भीतरे भीतर सुखा जाय।अउ पीछू बेचारी लइकोरही ल दोष देवव एकर करा पूत तो हे फेर दूध नइ ये कहत ।अउ पट पट ले चन्गोरा फोरत रहिस...जॉव रे मर गय हावा ते मन अउ मर जावा कहत।येला सुनके फुलकुँवर हाँस भरे रहिस,भले ही वोहर वोला कतको डराथे ।
ये समय म वोकर गोसांन करत रहिस ये बुता ल ।बरही नहाय के बाद वो फिर लग गय अपन के ये बुता म।फेर गोसांन हर तो मना करतेच रथे।अब कारी कोटी ले फेर भेंट होथे।
फेर ये पइत पांच ..छै ..दिन ल वोहर नइ दिखिस ।तब मन हर तो वोला खोजे।फेर मने मन कहिस..चल कत्थू आन जगहा चल दिस होही।एकदम पोसवा थोरहे ये ओमन के।फेर कुकुर जात के का...!चल दिस मानै चल दिस ।अउ अपन बुता म लग गय ।
फेर वो दिन जब कारी हर फिर के आइस।वोहू अकेला नहीं.. वोकर संग म चार ठन नान- नान आने कारी
माने वोकर पिला मन रहिन।
ये...बबा गा!फुलकुँवर के मुंहू ले निकल गय ।कारी वोकर तीर म आके कूँ.. कूँ.. करत रहय।एक प्रकार ले वोकर ले विनती... अनुनय- विनय करत रहे के येमन मोर यें ।अउ एहु मन ल मोरे कस बिना रोक टोक इहाँ आये जाये के अधिकार दे दे मालकिन कहत।
फुलकुँवर हाँस भरे रहिस। वो बहुत खुश हो गय रहिस ये नावा दंगल ल देख के।सास करा अपन खुशी ल बांटे के हिम्मत तो नइ होइस वोला त अपन पति दूजलाल ल इशारा म बला के वोमन ल बताइस ।दूजलाल घलव आंखी बटेर के ये नावा पहुना मन ल देखिस एक घरी ल । फेर मुचमुचावत इशारा म फुलकुँवर ल कहिस के राहन दे एहु मन ल ।
ये गोठ हर तो वे दिन के ये।अब आज ये लॉक डाउन चलत हे।आना जाना बंद त होटल बन्द।होटल बन्द तब बुता बन्द।न ददा समोसा म भरे बर मसाला बनाय।न दई घाना म बइठ समोसा बड़ा ल छाने।न दूजलाल ग्राहक मन ल प्लेट.. प्लेट येमन ल परोसे।न फुलकुँवर ल जूठा प्लेट धोय के मउका लगे।अउ जब जूठा प्लेट नइ धोवाय तब कारी कोटी के कुनबा मन ल...?
यती मनखे मन जइसन तइसन अपन मन ल समोंखे हें।ये लॉक डाउन लम्बा खींचा जाही त का होही..?कोई नइ जानत यें ।एकरे सेथी पीली बाई फुलकुँवर ल चीज बसूत मन ल पुर पुरोती बउरे बर बार बार कहथे।एक प्रकार ले वोकर उप्पर बनेच बारीक नजर राखे हे।आज ले दे के चल जात हे।काल के दिन कुछु बर ललाय बर झन परे कहके ।
अभी सास पीली बाई हर फुलकुँवर के मन ल तउले बर ये नून भात के बात निकाले हे।बइठे -बइठे का करिहीं तेकर ल कम से कम ये गोठ बात तो होवत रहय ये कहके।आज येहर छेवर होही कहत रहीन फेर कहाँ
आज घलव सब कोती हर बन्द हे।अउ यती सास नावा नावा प्रश्न पूछत हे।
वोकर सास के ये बरन हर फुलकुँवर के मन म एकठन आतंक बरोबर समा गय हे। ये पीली बाई महारानी !जाहिर हे दस के जघा म बइठत हे त दस रकम के गोठ सुनही अउ दस रकम के गोठ सुनही तव दस रकम के गोठियाबे करिही ।येकरे सेथी पीली बाई के गोठ बात हर घलव पोठ रइथे ।दुएच बच्छर तो होय हावे वोला इहा बिहा होके आय।अउ ये दे भगवान बढ़िया चिन्ह दिस हे त कोरा म महीना भर के पूत खेलत हे।फुलकुँवर।अतका सब ल गुन डारिस ।
"बहु....!"पीली बाई अपन गोठ के फुलकुँवर करा ल समर्थन नइ पाये रहीस तेकर सेथी थोरकुन खर लागत रहीस।वोला लागिस के वोकर गोठ बहु के मन नइ आइस ।
"हाँ....दई !"वो थोरकुन झकनकावत कहिस
"कइसे मोर गोठ तोर मन नइ आइस।"पीली बाई के अवाज़ फूल कांस के बटकी कस ठनकत रहय ।
"मन काबर नइ आही दई ।"फुलकुँवर डरे- बले कहिस।
"नही...नहीं...!तोर मन नइ आइस ये।"पीली बाई थोरकुन विचित्तर भाव ले कहिस ।अपन गोठ बर बहु के सहमति नइ मिलइ ल वोहर अपन प्रतिष्ठा के प्रश्न बना डारे रहिस।
"अरेअसतनीन,तोला नून म खवंहा के मतलब नुनेच म खवंहा ये का।"वो फिर कहिस।
येला सुनके फुलकुँवर तुरत- फ़ुरत कुछु कहे नइ सकिस। अब तो सास पीली बाई सिरतोन नराज हो गइस ।येहर तो सिरतोन पतिया जावत हे मोर गोठ ल....जानके। वो कहिस तो कुछु नही फेर अपन कुरिया म चल दिस।
येती बइठे -बइठे अस्कट लागत हे कहके ,फुलकुँवर लइका ल पाये -पाये अपन होटल खोली कोती आ गय ।सब कोती भांय... भांय..करत रहे।ग्राहक मन के बइठे के टेबल कुर्सी सबो म धुर्रा- फुतका के मोटहा परत जम गय हे। ये जगहा ल छोड़ के वोहर अपन बइठे के जगह कोती गइस।
अरे....! बपुरी कारी ..!! वोकर मुँहू ल निकल गय।कारी जउन जगहा मेर ल जुठा- काठा बीन के अपन पिला मन ल खवाय अउ खुद खाय ।वो जगहा म वो सब मन परे रहीन।हाँ एक दु पिला मन वोकर ममता- मन्दिर ल थोथमत घलव रहीन ।फेर वोमन कुछु पावत हें ....अइसन नइ लागत रहिस ।सदाकाल गिल्ला रहइया ये जगहा हर खन खन सुक्खा हो गय रहिस अब ।
फुलकुँवर के जी धक्क ल करीस ।वोकर नजर एक पइत वोकर बहां म सुतत अपन पूत कोती परय तव फेर जुच्छा ल चुहकत वो श्वान संतति मन कोती परय ।
कारी हर बड़ अशक्त दिखत रहिस।पिला मन भी ले दे के अपन प्राण ल राखे भर रहीन ।
फुलकुँवर के जी विधुन हो गय।काबर के कारी हर जइसन तइसन उठ के वोकर तीर म आय के कोशिश करिस।फ़ेर वोहर अब ले भी वो लक्ष्मण रेखा के बरोबर ध्यान रखे रहिस।
क्षीर के सोत हर सुखा जाथे... सास के गोठ वोकर कान म रह रह के गुंजत हे। अभी तो राम कह ले के, सरकार कहले ,के सास- ससुर कहले येमन के दया ले वोला खाना- पानी के राई -रत्ती अंतर नइ परे ये।बीस दिन बइठ के खावत हन तब ले भी अउ आने वाला अउ कतको दिन के फ़िकर नइये।वोकर दूध वोकर पूत ल कुछु के फरक नइ परे, फेर.......?
" अभी आगी- अंधना के बेर नइ होय ये ,बहु।कइसे आज जल्दी आगी सुलगा डारे..!"सास के ठनकत आवाज उँहा तउर उठिस ।
"अइसनहेच दई। पाछु जादा गरमथे ।"
"तोर मन...।" पीली बाई कहिस अउ अपन कुरिया म फेर खुसर गइस।
फुलकुँवर पानी पसिया उतार के वोला चोरी लुका ले जा के कारी के
कटोरा असन जिनिस म उलद के आ गे ।थोरकुन बेरा म जाके देखिस त वो कटोरा हर पोछे बराबर साफ हो गय रहय ।फुलकुँवर के मन म सन्तोष उतर अइस ।पूरा दुनिया ल मैं गरीब समोखे थोरहे सकहां ..? फेर मोर हिस्सा के जउन एक हे वोला जरूर सकहां ..।
अब तो ये कोती एइच बुता बांचे रहय ।लॉक डाउन माने रंधई अउ खवई । फुलकुँवर चाउर ओइरे के बेर दु ओंजरा जादा ना देवत हे अउ पसाय के बेरा पसिया के सङ्गे संग आधा थोरा सीथा घलव वोमे जान बूझ के छलका देवत हे। फेर सास के नजऱ बचावत लाने बर लागथे ।
कारी कोटी थोरकुन पानी... पानी दिखिस हे अब ।महतारी हरियर तब सन्तान हरियर।
"बहु चाउर हर जल्दी सिरागे ,तोला नाप के देय रहें तउन हर।"सास के अवाज हर गरजिस ।
एती फुलकुँवर सुख्खा..!का जवाब दों, उनला ।
"देखबे बने देख ताक के ओइर।का पता कतका दिन अउ अइसन चलना हे।"सास के अवाज अब ले भी खर रहिस ।चल.. देव ..बचाइस !
फेर अब कइसन होही आगु के व्यवस्था ह...?
संझाती बेरा जानबूझ के थोरकुन अंधियार होइस तब फुलकुँवर भात ल पसावत रहिस।फेर वोला पता नइ रहिस के सास हर पसिया गिरे के शब्द ले ही जान डारिस के पसिया के संग कछु अउ आन गिरत हे।
फुलकुँवर चोरी -लुका अपन अभियान म आइस।झटपट सीथा पसिया ल उलदिस अउ तुरते ताही वापिस जाये बर लागिस।
"बहु.....!"सास के पोठ अवाज अंधियार म गुंजिस।ये बबा गा..!वो तो वोकर चोरी ल पकड़ डारिन।
"तब तो मैं कहत रहें ,चाउर हर अतेक जल्दी कइसे खतम हो गइस कहके।"सास के अवाज फेर तउरिस हवा में।
"मोला माफी दे दो दई ।अब अइसन गलती नइ होय ।"फुलकुँवर थरथरात कहिस,"ये पीला मन सुख्खा छाती म जटके कें.. कें..करत रहिन।तब मोला तुंहर गोठ के सुरता आइस ।खाना- पानी कम होय ले क्षीर के सोत हर सूखा जाथे...।अउ ..अउ.मोर पूत बर तुंहर दया ले अभी सब कुछ हे।त एकरो पूत मन भर थोरकुन पानी चाही कहके ये गलती ल कर डॉरें ।"
"......."
"पूरा हफ्ता भर हो गय अइसन करत दुनो बखत एक एक पव्वा अगरिहा नाथों अउ पसाय के बेर वोला उलच के लान येमन ल दे देवत रहें ।"फुलकुँवर अपने आप अपन पाप ल उगलत रहिस।
"फेर मैं तो तोला ये नइ पूछे अंव।"सास पीली बाई हाँसत कहिस।
"दई...!"
"बने करे बेटी।दाना ल तो राम पूरोथे।चल अभी सरकार पुरोवत हे।तंय एक ठन महतारी अस ।तब महतारी के पीरा ल जान डारे।का मैं एक ठन महतारी नोहंव तोर गोसांन के।बिलकुल झन डरा।जइसन करत हस तउन ल पांच परगट कर लेबे काल ल ।"
"दई..!"फुलकुँवर अतकिच भर कहे सकिस।
"एक घर हर एक झन असहाय ल सहाय होये नइ सकही का ।"सास के अवाज ये पइत गहिल कि कुंवा ल निकलत जान परिस ।
फुलकुँवर अगास कोती ल देखिस,उहाँ ले बादर मन परा गय रहींन अउ उत्तर दिशा म ध्रुव तारा हर चमकत रहिस बिना मिटकी मारे...।
*रामनाथ साहू*
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समीक्षा---पोखनलाल जायसवाल: विश्वास अउ समर्पण भाव ले पगाय सुग्घर कहानी आदरणीय साहू जी💐💐
कहे बर तो पुरखा मन दू ठन गोठ कहे हें, एक भगवान जीव ल जनम दे हे के सँघरा पेट के जोखा घलव मढ़ाथें। दूसर, सबो जीव के जोड़ी बनाथें। पहलइया गोठ के श्री रामनाथ साहू के कहानी 'दूध-पूत' परछो देवत हे।
सरी दुनिया बर बिपत बने कोरोना काल के बिपत घरी के बेरा म मानवीय संवेदना ले भरे फुलकुँवर के सेवा भाव अउ लगाव ह समाज ल नवा संदेश देथे। कारी संग ओकर अंतस् के ए गोठ गुनान म जिनगी म असली सुख के सार हे।
'पूरा दुनिया ल मैं गरीब समोखे थोरहे सकहाँ..फेर मोर हिस्सा के जउन एक हे वोला जरूर सकहाँ।' इही सेवा भाव मनखे ल मनखे बनाथे। कहूँ हर मनखे के अंतस् म अइसन भाव लहरा उफनाय धर लिही त सिरतोन ए धरती सरग बन जही। कोनो ल कोनो दुख पीरा नइ जनाही।
कहानी म घर परिवार अउ समाज के मनोविज्ञान घलव हे। हर बहू के मन म सास के एक डर समाय रहिथे। एकर बढ़िया जीवंत चित्रण हे। दूसर कोती सास पीली बाई के कहना कि 'तँय एक महतारी अस। तब महतारी के पीरा ल जान डारे। का मैं एक ठन महतारी नोहँव...।' नारी मन के थाह ल गहिर ले नाप लिस।
कहानी के भाषा शैली पाठक ल मोह लेथे। संवाद पात्र के मुताबिक हे। सास-बहू दूनो के चरित्र बढ़िया गढ़े गे हे।
मार्मिक अउ उत्कृष्ट कहानी बर हार्दिक बधाई💐🌹
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह, पलारी
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