कहानी
*कन्या पूजा*
आज नवरात के नवमीं आय।कुवांर के नवरात के अबड़े महत्तम हावे।भक्त मन दुर्गा दाई के सेवा पूजा मा कोनो कमी नइ राखय ।कोनो नौ दिन के उपास हावे ता जेखर सख नइहे तेहा परिवा,तीज ,पंचमी, साते ,आठे के उपास हावय।मंदिर मा होत बिहनिया ले घंटी बाजत हावय।बड़े बड़े पंडाल मा जगतजननी बिराजे हावयँ।मूर्तिकार मन के महिनों के मिहनत के फल आय जेन पंडाल मा जाबे उहिच मा लागत हावय सक्षात दाई हा इही मेर बइठे हावय।हूम धूप हा चारो कोती ममहावत हावय।देवी मंदिर मा अखंड जोत जगर मगर बरत हावँय ।माँदर के संग झाँझ,अउ मँजीरा बाजत हावयँ ।
जसगीत मा केतकी हा अपन मन के पीरा ला घोर देहे हे-
देवी ओ दुर्गा जय होवय तोर
टप टप आँखी ले आँसू हर झरे लागिस।इहू बछर नव दिन के उपास हावे केतकी हा। जबले ओखर सुरता हावे तब ले दुनो नवरात मा नव दिन के उपास रहिथे केतकी हा। आँखी ले सावन भादों कस बरसत हावय ।लागत हे ये बरखा ले अइसे पूरा आही जेमा दुनिया च हा बोहा जाही।देवी दाई नव बरस हो गिस मोरो बिनती ला सुन लेतेव।मोरो कोख ला हरियर कर देतेव।महूँ ला कोनो महतारी कहितिस।दाई बने के सुख महूँ पा जातेंव।माँदर के धुन बाढ़े लागिस।केतकी के छाती मा हूक कस उठत हावय।तोर सिवाय काखर करा जाके गोहराववँ दाई मोर बिनती सुन ले महतारी।मने मन मा केतकी हा दाई करा बिनती बिनोवत हावय।
ये कन्या पूजा का होथे दाई , छै सात साल के रमती हा अपन दाई करा पूछत हावे। बता ना दाई का होथे कन्या पूजा।काली मैं हा पन्नी बिने बर गय रहेंव ता कालोनी के मोर जहूरिया नोनी मन गोठियात रहिन काली नवमीं के कन्या पूजा होही कहिके अबड़े मजा आही कहत रहिन ,बढ़िया खाये बर पाबोन अउ अबड़े कन जिनिस मिलही कहत रिहिन बता ना दाई का होथे कन्या पूजा।टूटहा खटिया मा सूते केंवरा के देंह ला हलावत कहिस।
केंवरा आँखी खोल के रमती ला देखिस अब रमती
ओखर मुड़सरिया मा आके बइठ गइस।ख-ख-ख केंवरा खाँसे लागिस।रमती ला देख के केंवरा के मन मा ममता के समुन्दर हिलोरे लागिस।रमती हा एक साल के रहिस तभे ओखर ददा जंगू हा दुनिया ला छोड़ के एक दिन रेंग दिहिस साल भर ले उप्पर हो गय रहय खाँसत वोला।सरकारी अस्पताल के डाग्दर हा टी.बी. हो गय हे बताइस ।निसा छोड़े बर किहिस फेर निसा ला छोड़बेच नी करिस बैरी हा।दारू,बीड़ी,गुटका कोनो निसा नी बाँचे राहय।ये टूटहा टटिया के खोली अउ टूटहा खटिया दुये चीज छोड़ के गिस।अउ छोड़िस पन्नी बिने के अपन धंधा ला ।एक साल के रमती ला धरके केंवरा पन्नी बिने बर जावय। पन्नी ,खीला काँच ला बिनय,अलग करय अउ ओला बेचय ।कभू कभू बने दू चार पइसा मिलय ता पेटभर खायें बर मिलय नही ता कभू आधा पेट ता कभू लाँघन सूते बर पड़य।धीरे धीरे बेरा हा पाँखी लगाय उड़िया गिस ।अब केंवरा जल्दी थक जाथे ,कुछु बुता काम करे ले साँस फूले लगथे ।डाग्दर हा खून के कमती बताइस ।कइयों दिन ले केंवरा पन्नी बीने नइ जाय सकय ।घर के हालत ला देख के गरीब घर के लइका जल्दी सियान हो जाथे अउ कमाय बर धर लेथे। रमती घलो पन्नी बिने बर जाय लगिस।एक ठन फटहा चुंगड़ी ला काँधा मा लटकाय रहय।अउ ए कालोनी ले वो कालोनी घूमर घूमर के पन्नी बिनय।बजबजात नाली मा घलौ उतर जावय ।कइ पइत गोड़ मा मूर्चा लगे खीला गड़ जावय,ता कभू हाथ हा काँच मा कटा जावय।गोड़ हाथ हा जघा जघा कोरफाय रहय।
दाई कन्या पूजा काय होथे ।रमती हा अपन बात ला दोहराइस।सुनके केंवरा कहे लागिस नेवरात मा नव दिन दुर्गा दाई के पूजा पाठ करे के पाछू नान नान कन्या मन ला दुर्गा दाई के नव ठन रूप मानके उँखर पूजा, मान, गौन करे तिहा बढ़िया जिनिस खवाय के अबड़े कन जिनिस भेंट करथें।अइसनहे सुने हवँ बेटी।
महूँ कन्या पूजा मा जाहवँ अउ बढ़िया बढ़िया जिनिस पेट भर खाहवँ दाई दू दिन के लाँघन रमती हा कहिस।हमर जइसे पन्नी बिनइया ला कोन कन्या पूजा मा बलाही बेटी।केंवरा के मन के पीरा ओखर आँखी मा दिखत हावय।
काबर नइ बलाही दाई का मैहा कन्या नोहवँ।का दुर्गा दाई हा हम गरीब मन के दाई नोहय ।मोला तो भूख घलौ लागत हे दाई ,मोर जहूरिया मन तो गोठियावत रहिन भूख नइ लगे तभो खवाथे कहिके ।
महूँ कन्या पूजा मा जाहवँ दाई कहत रमती पन्नी बिने के चुंगड़ी खाँध मा लटकाय निकल गिस। रमती ला जावत देख केंवरा गोहार पार के रो डारिस।
पन्नी बिनत बिनत रमती दुर्गा दाई के मंदिर तीर पहुँच गे ।रमती दूरिहा ले देखत हावय,अबड़े झिन ओखर जहूरिया नोनी मन तियार होके आय हावयँ ।लोगन उँखर गोड़ धोके माहूर लगा आरती उतारत हावयँ।ए नोनी येले परसाद खाले।एक झिन मनखे हा एक ठिन दोना मा सेब केला पकडा़त कहिस।रमती नोनी मन ला एकटक देखत हे।माँदर झाँझ मंजिरा संग जसगीत चलत हे।रमती भूख के मारे चक्कर खाके गिरतिस तेकर पहिली दू ठन हाथ हा पकड़ के पोटार लिहिस बेहोसी मा रमती दाई दाई कहे लागिस।केतकी के मन उछाह होगिस।आज पहिली बार ओला कोनो दाई कहिस हे।उमड़ घूमड़ के ममता के बादर वोखर हिरदे मा बरसे लगिस।नोनी के मुँह मा पानी के छिंटा मारिस ता वो हा होस मा आइस।अचकचागे रमती हा।केतकी हा देखथे बड़े बड़े कजरारी आँखी, कमल पंखड़ी कस होंठ, ।सक्षात दाई दुर्गा कन्या रूप मा ओखर गोदी मा सूते हे। मोर दाई मोर करा आइस हे ।केतकी खुशी के मारे गोठियाय नइ सकत हे। तुरते नहवा धोवा के नवा फ्रॉक पहिरा, चुनरी पहिरा कन्या पूजा म बैठारिस । अउ दुनों हाथ जोड़ दाई दुर्गा ला कथे अबड़े तोर किरपा ये दाई ।पेट भर खाये के बाद रमती हा केतकी ला अपन बारे मा बताथे।आज ले तै हा पन्नी नइ बिनस बेटी आज ले तै मोरो बेटी अस केतकी कहिस ता ओखर पति रामदीन हा ओखर हा मा हा मिलाथे ।तै हा पढ़े बार स्कूल जाबे।रमती के बताय ले केतकी अउ ओखर पति रमती के दाई केंवरा करा मिलथे अउ रमती ला अपन बेटी मान लेहे के बात बताथे।अब तैहा अपन बिचार ला बता बहिनी केतकी हा केंवरा ला कहिथें ।मै तोला बहिनी मान के तोर इलाज पानी घलौ करवाहवँ। मोर बेटी ला दाई ददा घर परिवार मिल गिस दीदी मै हा अउ कुछु नइ चाहव।अब मै हा निस्फिकिर होके मर सकत हवँ।कहिके दुनों हाथ जोड़ लेथे केंवरा हा अउ ओखर आँखी मुँदा जाथे।
चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़
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