आलेख-सरला शर्मा
कुंवार के नवरात्रि ल शारदीय नवरात्रि घलाय कहिथें ..आज दूसर दिन आय जेमा देवी के ब्रम्हचारिणी रूप के पूजा करे जाथे । पूजा के विधि विधान आप सबो झन जानबे करथव फेर लोकाक्षर मं तो सबो लिखइया , पढ़इया मन जुरे हें त देवी के पूजा , आराधना करत समय ये श्लोक के सुरता आगिस .....
" महाविद्या , महावाणी , भारती , वाक् , सरस्वती ,
आर्या , ब्राम्ही , कामधेनु: वेदगर्भा च धीश्वरी ..। "
देवी दाई ! जतका विद्या हे संसार मं तेन सबले बड़े विद्या , जतका वाणी ( भाषा ) हे तेकर सिरमौर भारती , वाक माने बोले के गुण ,सरस्वती , ब्रम्ह के शक्ति , कामधेनु ( मनोकामना पुरवइया ) वेद के जननी अउ बोध बुद्धि के मालकिन तो तहीं अस त मोर कलम ल बल दे , मोर भाषा ल असरदार बना न तभे तो मैं जन जन के दुख पीरा , हांसी खुशी सब ल लिखे सकिहंव ।
तैं तो बुद्धि के स्वरूप अस मोला बरदान दे न के मैं अन्याय , अनीति ल लिखे सकंव मोर लिखाई हर भूले भटके मन ल रस्ता देखाये सकय । जेमन चिटिक पिछुवा गए हें तेमन मोर संग चलयं ।
देश , काल , समाज मं बगरे कुरीति मन घुंचयं , ज्ञान के प्रकाश के अंजोर जग जग ले बगराये मं मोर लिखे हर सफल होवय । वाणी के बरदान ये नवरात्रि मं सबो लिखइया मन ल मिलय ।
इही सब गुनत रहेवं ...पाठ करके क्षमापन स्तोत्र पढ़त रहें जेला आदि शंकराचार्य लिखे हें ...भारी कलकुत करे हें के देवी तैं तो चर , अचर , जड़ चेतन सबके महतारी अस न? त लइका मन तो धुर्रा माटी मं खेलबे करथें उही सांसारिक धुर्रा लोभ , मोह , क्रोध , अभिमान , अहंकार के चिखला माटी मं तन मन सना जाथे ...फेर महतारी हर तो लइका के धुर्रा माटी ल पोंछथे अउ मया करके कोरा मं बइठार लेथे , चिटिकन धमका लेथे त कभू धीरे कुन एको चटकन मार घलाय देथे त का होइस ?तुरते दुलारथे घलाय तो ..तभे तो महतारी कहाथे न ?
त मोर अपराध मन ल क्षमा कर न , माफ़ी दे न ।
" मत् समः पातकी नास्ति , पापघ्नी: त्वत् समा नहि ,
एवम् ज्ञात्वा महादेवी , यथा योग्यम् तथा कुरु ...। "
वाह ! शंकराचार्य ...बने च रिसा के गोहनाये हव जी ...मैं पातकी आंव त का होइस तै तो पापनाशनी अस न ? तोर असन पाप ताप घुंचइया त आउ कोनो नइये । तहूं तो ए बात ल जानत हस , मैं तो तोर लइका च अवं माफ़ी दे दे न । मोर गोहार ल अतको मं नइ सुनबे त ले भाई ..तोर मन ..मैं जौन लाइक हंव तइसने कर ..( मया कर चाहे दुत्कार दे ) ।
लइका रिसा के , मुंह फुलो के बइठ गे माने इही हर तो शरणागत होना होइस न ? अब तो महतारी ल आए च बर परही , लइका ल मनाए , पथाये बर परही तभे तो महतारी कहाही .ओहू सकल संसार के माता जेला जगज्जननी कहिथन ।
मोर जानत मं अइसन शरणागत भाव , अइसन क्षमा मंगाई कोनो मेर नइ पढ़े हंव ... आँखी मं झूले लगिस छोटकन शंकराचार्य जे नदिया के बीच धार मं खड़े अपन महतारी ल कहत हे " मोला सन्यास लेहे दे नहीं त ये मंगर मोला लील देही । " बने जानत रहिस के महतारी के मया लइका के जीव बंचाये बर साधु सन्यासी बने देहे बर तियार होबे च करही । तभे तो उन 32 साल के उम्मर मं भारत के चारों मुड़ा मं चारों धाम के स्थापना करे सकिन ।
जगज्जननी के पूजा अर्चना के नौ दिन आये हे, बिनती करत हंव " मां वाणी! सबो लिखइया मन के कलम ल शक्ति दे " ।
सरला शर्मा
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