Saturday, 3 June 2023

भाव पल्लवन-- डार के चूके बेंदरा,अषाड़ के चूके किसान

 भाव पल्लवन--



डार के चूके बेंदरा,अषाड़ के चूके किसान

------------------------

बेंदरा मन ये छानही ले वो छानही,ये छत ले वो छत,ये पेड़ ले वो पेड़,ये डारा ले वो डारा मा कूदत-फाँदत रहिथें।वो मन थोरको आगू न पाछू बिलकुल सटीक समय मा, पर्याप्त ताकत लगाकें,दूरी के सटीक अंदाजा लगाके कूदथें फेर जेन बेंदरा हा पेंड़ के ये डारा ल छोड़के वो डारा ला पकड़े बर छलांग लगाये के बेरा आलस मा परके या अपन चेत ला भटका के पल भर के भी देरी कर देथे वो हा डारा ला पकड़े मा चूक जथे अउ भुइयाँ मा भकरस ले गिरके घायल हो जथे।आन बेंदरा मन के बीच मा हँसी के पात्र तको बन जथे।अइसन चूक करे के पाछू वोकर हाथ पछतावा के अलावा कुछु नइ लगय।

   ओइसनहे वो किसान हा तको जेन हा अषाड़ महीना मा अपन खेती-किसानी के काम काँटा-खूँटी बिनना,काँद-दूबी छोलना,खातू बगराना ,खाना-मुँही के साज-संभार करना अउ बतर आये मा बिजहा बोंना के काम ला सहीं समय मा नइ कर पावय ते हा पछतावत रहिथे।  खेती के काम पिछुवाथे अउ सहीं समय मा  नइ होवय तहाँ ले उत्पादन मा फरक पर जथे। लागत जादा अउ फसल कमती होये ले नुकसान सहिथे।वो हा ये सोच-सोच के पछतावत रहिथे के  सहीं समे मा आलस ला तियाग के बने डँट के किसानी ला करे रहितिच ता ये दिन देखे बर नइ परतिच। वो हा सबले कीमती समय  ला तो खो डरे रहिथे।झरे पत्ता हा जइसे दुबारा पेड़ मा  नइ जुरै वइसने  गुजरे समय हा लहुट के नइ आवय। पानी के धारी कस समय हा आगू बढ़ जाथे तहाँ ले नइ लहुटय।एक पइत गुजरे दिन-बादर फेर कहाँ बहुरथे?कहे जाथे के जे मन समय ला बर्बाद करथे उन ला समय बर्बाद कर देथे।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment