भाव पल्लवन-
आज के बासी काल के साग अपन घर में काके लाज!”
-----------
मनखे के उन्नति मा दू चीज अबड़े बाधक होथे।पहिली बात---लोगन का सोचहीं अउ का कइहीं ,दूसरइया बात--आन के नकल करके नकली-चकली देखौटीपन।
दूसर लोगन मन ला छप्पन भोग उड़ावत अउ अमीरी के शान शौकत बघारत देख के कोनो भी मनखे ला अपन घर के रूखा-सूखा रोटी अउ बासी-चटनी ला देख के मन मा खुद ला हिनहर नइ मानना चाही।अपन घर मा बोरे बासी ला बाँचे साग या फेर नून-चटनी मा खाये मा लाज नइ करके संतोष करना चाही।ये बात के गरब तको होना चाही के अन्न हा फेंकाये ले बाँचगे।एहू बात के फिकर नइ करना चाही के लोगन का कइहीं? लोगन का कइहीं तेकर फिकर मा दुबराये के का काम? कहइया मन --चारी करइया मन लान के गरमे-गरम साग-भात नइ दे देवयँ। कतेक झन के तो आदते रइथे के दूसर के निंदा करे बिना ऊँकर पेट के पानी नइ पचय। वो मन अच्छा करबे तभो बुराई करहीं।हँड़िया के मुँह ला परई मा तोपे जा सकथे फेर आदमी के मुँह ला नइ तोपे जा सकय।
अइसनहे दुनिया के चकाचौंध ला देखके अपन हैसियत ला बढ़ा-चढ़ा के देखाये के कोशिश मा कतेक झन बर्बाद हो जथें। समाज मा हाँसी के पात्र बन जथें।एकरो पिछू लोगन के विचार मा अच्छा बने के दिखावा होथे। शादी-बिहाव,छट्ठी-छेवारी मा,सभा-समाज मा अपन ला अमीर देखाये बर धनवान सहीं मनमाड़े उल्टा-सीधा खर्चा करके कतकोन झन कर्जा मा बूड़ के दुख पाथें। अइसन दिखावा करे मा दूसर मन के नजरिया नइ बदलय ---हैसियत ऊँचा नइ होजय भलुक अउ नीचे गिर जथे।राँगा के ऊपर चढ़े सोन के पालिश उखड़त देर नइ लागय।
लोगन बनावटी-सजावटी ले दूर सादगी वाले मनखे ला बहुतेच पसंद करथें।जे मनखे अपन आप मा गर्व करथे अउ स्वाभिमान ला बरकरार रखथे, अपन जीवन स्तर ला ऊँचा उठाये बर ईमानदारी ले मिहनत करथे वोला आत्मिक शांति के अनुभव होथे ।अइसन मनखें सम्मान पाथें।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment