Saturday, 3 June 2023

भाव पल्लवन-- बरसा पानी बहे न पावे, तब खेती ह मजा देखावे ----------------------------



भाव पल्लवन--


बरसा पानी बहे न पावे, तब खेती ह मजा देखावे

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हमर देश ह कृषि प्रधान देश आय। इहाँ के लगभग 70℅लोगन खेती किसानी करथें अउ अधिकांश खेती मानसूनी वर्षा ऊपर निर्भर हे।हमर छत्तीसगढ़ मा मानसूनी वर्षा मा होवइया फसल धान जादा बोये जाथे। चौमासा मा बने-बने वर्षा होगे त ठीक नहीं ते अकाले परथे। अइसे भी पर्यावरण के बिगड़े ले,अंधाधुंध पेड़ कटाये अउ जंगल के उजरे ले समझ ले बाहिर आँय-बाय पानी गिरथे। हमर इहाँ पर्याप्त सिंचाई सुविधा तको नइये। खेती के आनंद तो बरसा के पानी के खेत म माढ़े ले आथे।

 वर्षा पानी के एकेक बूंद ह किसान बर अमृत के समान होथे।पानी गिरिच अउ कहूँ खेत के मेड़,नाखा-मूँही ह कहूँ खखल-बखल हे त पानी खेत मा रुकय नहीं अउ बोहा के अबिरथा हो जथे।रोपा-बियासी ले लेके धान के माथ ओरमावत ले भरपूर पानी के जरूरत होथे।धान के फसल ह पानी म बाढ़थे।

 कभू-कभू मनमाड़े पानी गिरथे अउ मेड़-पार बोहा ।वोला रोंका-छेंका नइ करे ले तको खेत म पानी नइ ठाहरै तभो बहुत नुकसान होथे। अइसे तको देखे म आथे के जेन समय खेती ल जादा पानी के जरूरत नइये तेन बखत बहुते बरसा हो जथे अउ जेन समे पानी चाही वो समे बादर ह आँखी नटेर देथे अउ किसान बिपत म पर जथे।

 अइसन बिपत ले बाँचे बर वर्षा जल ला एती-ओती बोहावन नइ देके तरिया, डबरी, कुआँ म भरके रखना चाही।नरवा -नदिया म बाँध बनाके सिंचाई के काम ल लाना चाही।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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