पत्र लिखे के मोर पहिली पत्र
*पत्र*
मोर,
जिगरी संगवारी
भल्लालदेव,
🐯कौशल राज सरकार।🐯
जोहार!
लिखना समाचार हे के मैं इँहा सुखी-सुखी हँव, अउ घर-परवार घलो सुखी हे। मैं भगवान ले अही आस करत हँव के तैं अउ तोर घर-परवार सन तोर राज-पाट घलो सुखी होही।
मोर संगवारी भल्लालदेव! पीछू हप्ता हमर पुरखा के गाँव गे रहेंव। तोर अड़बड़ सुरता करेंव। तोला सुरता तो होहिच्चे? हमर बचपना, हमर गाँव के। स्कूल ले आके हमन खेले ल कहाँ-कहाँ जावँन तेन। वो दइहान के बड़े-बड़े अमली रुखवा, वो माता देवाला के लीम अउ गस्ती, जिंहा छाँव मा भौरा-बाँटी खेलन। हमर गाँव के वो सबले बड़का बर पेंड़, जेकर थाँघ ले कूद-कूद के डंडा-पचरंगा खेलन अउ ओरमे-ओरमे डार म झुलना झूलत बड़ मजा पावँन।
वो दिन के सुरता हे तोला? कइसे तैं,मैं, तिहारी, तुलसी, कलेश, जलेश, भगवान दास, मनहरण, दुकलहा, हबीब, इसरा अउ संतोस। हम सबो संगवारी मन डारा म झूल-झूल के खेलत रेहेंन अउ डारा ल छोंड़ेन त तँयहा थाँघा संग उपर डहर फेंका के थोथना के भार मेंचका बरोबर चथ ले भुँइया म गिरे, त तोर दाँत टूट गिस अउ तँय भोभला होगे रेहे। तोर मुँहू ह सूझ के हनुमान कस हो गे रहय। हमन हाँसन त तैं बिकट कुड़कस।
.मोर तो आँखी-आँखी म झुलथे, वो 'केसो कुटी' वाले बगइचा, कोंधरी बगइचा, केंवटिन बगइचा, पटेल बगइचा, जिहाँ जाके दिन ल पहावँन। अउ खेलत-खेलत म घाम-पानी सतावय त बाँचे बर अपन महतारी के कोरा बरोबर रुखवा मन के तीर मा लपट जावँन।
वो नरियरा आमा, कच्चा सेवादी, केरी आमा, लसुनही आमा, सेंदरी आमा, सुपाड़ी आमा, चेपटी आमा, तेलहा आमा अउ पोंकर्री आमा के रुख, वो पथरहा घाट के जामुन अउ वो बिही बारी के बेल। जिंखर फर खाके, जिंकर छँइहा म दुख बिसरावत हमर मन के गीत-ददरिया, चिरई- चिरगुन के चींव-चाँव, गरुआ मन के टेपरा- घाँटी के टनन- टनन अउ राउत मन के बसरी के धुन खूब मन ल मोहय। जेखर ले हमर गाँव ह सरग बरोबर लगय। अउ वो तरिया पार के पीपर पेंड़, जेमा हमर झुकई बबा अकती बर करसी मा पानी चढ़ावय अउ पुछन त कहय .. मैं मरहू त इँहे रहूँ बे! ....... अब इन कुच्छु नइहे यार! चिक्कन बगइचा मन उजर गेहे अउ रुख-राई मन कटागे हे। सब के ठूँठ भर बाँचे हे। अब वो हमर गाँव, गाँव नइ लगय , बिरान लगथे। घर कुरिया मन ठकठक ले मरघट चौरा बरोबर अउ बस्ती ह मरघटिया जइसे। जिहाँ सुरुज ह भूँत बरोबर आँखी देखाके खखुवाथे।
कालिच गाँव ले आय हँव। जावत-आवत देखेंव, ये समसिया ह एके ठन गाँव म नइहे पूरा राज म हे। गाँव के, सड़क के, डोंगर के रुख मन सब अँखमुँदा कटावत हे। एकर ले पर्यावरण मइलाए हे। तेखर भोगना ल जम्मो जीव नामा मन भोगत हे।
तूमन सरकार म बइठे हव। अपन बचपना के जिनगी ल सुरता करव अउ बिचार करव। जनजीवन ल खुशहाल बनाना हे त पर्यावरण ल बचाय के उपाय करेच ल परही। मैं ह अपन डहर ले एक ठन सुझाव रखत हँव तोर बर। हर साल के हरेली तिहार मा हर जवान मनखें मन बर कम से कम एक पेंड के बिरवा लगाय अउ बचाय के अनिवार्य कानहून बनाव। जे मा पेड़ काटे के सजा कठोर रहय। तभे हमर भुँइया ह जल्दी हरियाही जुड़ाही।
अब जादा का लिखँव आप मन तो खुदे चतुरा हव। सोचें रहेंव तोर ले भेट होही, फेर तँय ह अंते ब्यस्त रहे ते पाय के भेंट नइ हो सकिस । एकर बर माफी चाहिथँव। राजपाट ले कभू फुरसत मिलही त तहूँ मोर ले भेट करे बर बज्जुर आबे। त फेर हक्कन के गोठियाबो।
जय जोहार!!
१६/०६/२०२३
तोर लँगोटिया यार!
जल्लालदेव
🦁सिंघनगढ़ राज।🦁
देवचरण 'धुरी'
कबीरधाम छ.ग.
16/06/2023
No comments:
Post a Comment