*// ओ पारस पथरा //*
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(छत्तीसगढ़ी नाटक)
*पात्र परिचय :-*
जेठू-पति
बरखा- पत्नी
(तीन बेटे)
बड़कू,छोटकू अउ मंझिला
*बड़कू-* ददा,ए ददा, कस गा .......
*जेठू*- का ए रे ? का कहना चाहत हस ?
*बड़कू*- शिक्षाकर्मी भर्ती के विज्ञापन निकले हे,
*जेठू*- तव का ?
*बड़कू*- पांच सौ रूपीया दे,फारम भरहूं अउ किताब बिसाहूं
*जेठू*- तोर रात-दिन परीक्षा फारम भराई अउ दूरिहा -दूरिहा शहर जा के परीक्षा देवाई म मैं हलाकान हो गयेंव! सफलता मिलबेच नइ करै,आखिर वोही "ढाक के तीन पात" |
*बड़कू*- कुछू विज्ञापन निकलथे तव फारम भरहूं अउ परीक्षा देवाहूं,तभे तो नौकरी मिलही ददा |
*जेठू*- सैकड़ों बार तो परीक्षा देवा डारे बेटा,अईसने करत -करत तोर उमर पहागे ! ३५ बच्छर के हो गए हस! कुछू हूनर से चार पैसा कमाते,तव तोर बिहाव कर देतेंव | कुच्छू काम नइ करस,तेकरे सेती सुग्घर संस्कारित बहुरिया नइ मिलै !
*बड़कू*- एही आखरी परीक्षा आय ददा,ए पईत नौकरी नइ मिलही, तव रोजी-मजदूरी तो करबेच करहूं !
*जेठू*- बेटा हमन ए धरती दाई के सेवा करथन,तव मेवा अवश्य मिलथे | तुहूं मन "एही धरती दाई के सेवा करौ,नौकरी-चाकरी के चक्कर ल छोड़ौ | पहिली के सियान मन ठीक कहत रहिन :-
*उत्तम खेती, मध्यम व्यापार*
*नीच चाकरी, भीख निदान*
*बड़कू*- (गुस्सा के) रहे दे तोर उपदेश ल गा | अत्तेक पढ़ लिख के, का खेती किसानी करबो ?
*जेठू*- का होही बेटा, धरती दाई के सेवा करे ले, मेवा जरुर मिलथे गा |
*बड़कू*- 500 रुपया दे, मैं कुछु नइ सुनौं |
*जेठू*- मोर पास अभी फूटी कौड़ी नइ हवय, मैं कहां ले कैसे देंव ?
*बड़कू*- तैं कईसनो कर के दे, नहीं तव मैं जाथौं उधर लेहूं |
*जेठू* ( गुस्सा के) उधारी लेबे,तेला तोर कोन बाप ह छूटही रे ?
*बड़कू*- तैं छूटबे अउ कोन छूटही ?
*ओतके बेर बरखा ( जेठू के गोसाईन) आथे |*
*बरखा*- अयी,बिहान-बिहान ले बाप-बेटा के झगरा काबर माते हे ?
*जेठू*- देख न ओ, तोर टूरा ला समझा, थोरकुन का पढ़-लिख डारे हे,मोर संग मुंहजोरी करथे !
*बरखा*- का होगे बेटा ? काबर अत्तेक गुसियाय हस गा ?
*बड़कू*- शिक्षाकर्मी भर्ती के विज्ञापन निकले हवय, ददा तिर 500 रुपया मांगत हौं, तव नइ देवथे ददा ह !
*बरखा*- कस बेटा, तैं ह घर के हालत ल जानतेच हस,तभो ले कइसे अक्किल नइ करस गा,"अपन फजीहत ह आने बर हांसी होथे !
*जेठू*- बड़कू बेटा ह पढ़े हवय,कढ़े नइ हे ! फकत हाय परान पैसा -पैसा-पैसा ......... ! चाहे बाप ह मरै के बांचै!
*बड़कू ( रोवत-रोवत कहिथे) कस दाई,पढ़-लिख के नांगर थोरे चलाहूं ? फेर ए दारी आखरी बार 5०० रूपीया मांगत हौं, ददा ह सफ्फा इंकार करत हे,मोर तिर एक्को रूपीया नइ हे कहत हे !
*जेठू*- सुन बेटा तोला पढ़ाई छोड़े १० बच्छर होगे ! नौकरी के चक्कर में अपन जिंदगी के कीमती समय ल झन गंवा ! कतको रुपया पैसा बर्बाद कर डारे ,कुछू हासिल नहीं होईस !
*बरखा*- तोर ददा ह ठीक कहत हे बेटा |सब्बो पढ़ैयन ल नौकरी कैसे मिलही ? हर साल लाखों विद्यार्थी पढ़- लिख के बेरोजगार होवथें, सरकार ह कत्तेक झन ल नौकरी देही ?
*बड़कू*- रोवत -रोवत कहिथे- एही आखरी प्रयास आय दाई, एकर बाद भी नौकरी नइ मिलही,तव रोजी-मजदूरी करबेच करहूं ! तोर पांव पड़त हौं दाई, मोला 5०० रूपीया दे,नइ तो मैं जहर खा लेहूं, ऊं हूं हूं .........
*बरखा*- हाय मोर लाल,अईसन शब्द कभ्भू झन बोलबे, तुंहरे पालन-पोषन अउ अच्छा भविष्य बनाए बर तो हम जीयत हन बेटा,नइ तो गरीबी के दुःख म कब के मर जातेन ( बरखा के आंखी ले आंसू के धार बोहाय लगीस) |
फेर भीतर जा के गुल्लक ला फोड़ के 5०० रूपीया लानथे अउ कहिथे- ए ले बेटा,जा शिक्षाकर्मी भर्ती के फारम भर ले अउ किताब बिसा लेबे |
*बड़कू ह शिक्षाकर्मी भर्ती के फारम भरथे,किताब बिसा के लानथे अउ खूब तन-मन से परीक्षा के तैयारी करके परीक्षा देवाथे*
*कुछ दिन बाद शिक्षाकर्मी भर्ती के रिजल्ट आथे | बड़कू ह खूब उत्साह से परीक्षा परिणाम देखथे, फेर एहू पईत बड़कू ह फेल हो जाथे !*
*वो दिन बड़कू ह बड़े बिहान ले घर ले बाहिर निकल जाथे*
*जेठू,बरखा अउ छोटकू,मंझिला सब मिल के बड़कू ल खोजे बर निकलथें | गांव-बस्ती,रिश्ता-नाता सब जघा खोजथें,जघा-जघा फोन लगाथें फेर कोनो जघा बड़कू के पता नइ चलय! ओ दिन ऊंकर घर चुल्हा म आगी नइ बरै ! ओ हो ! दिन भर रोवाई,आंसू के धार बोहाई म जेठू अउ बरखा असख्त हो गईन !*
*थाना म रिपोर्ट लिखा देहिन - मोर बड़कू बेटा ह आज बिहन्ने ले बिना कुछ बताय कहां लापता हो गए हे !*
*बिहन्हे ले संझा तक पारा-परोसिन मन आ-आ के ढाढस बंधावत रहिन,चुप हो जाव,धीरज धरौ,बड़कू ह खच्चित आही, समझदार लईका हवय,कुछू अलहन नइ करै !*
*एक झन परोसिन ह ओमन ल जबरन अपन घर ले के खाना-पानी देहिस अउ ऊंकर मन ल बोधे के कोशिश करीस,तेमा इंकर घर अउ कुछू अलहन मत हो जाय !*
*भैंसा मुंधियार हो गे,तव घर म दीया बार हूं कहिके बरखा ह अपन जीवन जोड़ी अउ करेज्जा के टुकड़ा मंझिला अउ छोटकू संग अपन घर आईन, ततके बेर अपार दुखी मन स व्याकुल बड़कू ह अपन घर म आईस, तब का पूछबे जम्मो झन एक-दूसर ल पोटार के खूब रोईन ! मुंह से कोनो के शब्द नइ निकलत रहिस,फेर जेठू ह सब ले पहिली चुप हो के सब ल चुप कराईस*
*बरखा*- *कहां चल देहे रहे मोर लाल,आज तैं हा कुछू अलहन कर डारते, तव हम सब जहर पी के या फांसी करके मर जातेन !!!*
*बरखा के ए बात ल सुन के सब झन फेर बोमपार के रोए लागिन, खूब देर तक ऊंकर आंखी ले गंगा-जमुना के धार बोहावत रहिस!!! फेर बरखा ह अपन आप ल सम्हाल के सबो झन ल चुप कराईस अउ कहिस- " मोर लाल के जान बांचिस,लाखों पायेन "!*
*अब अईसन नादानी कभू झन करबे बेटा,नौकरी नइ मिलय,तव झन मिलय | भगवान हमला दू हाथ-दू पांव देहे हवय,तन म खूब ताकत देहे हवय,मन-मस्तिक म खूब ज्ञान देहे हवय | मेहनत करके ए दुनिया म दू बखत के रोटी जुगाड़ कर लेबो !*
*( रात के रूखा-सुखा जऊन रूचिस, जेवन करके सुत गईन)*
*बिहान दिन बरखा ह बड़े भिनसार ले उठ के चाय बना डारिस अउ अपन गोसईया ल कहिस- लेवा उठा चाय पी लेवौ |
*जेठू*- एही ल बेड टी कहिथें का जी ?
*बरखा*- हव,आज बेड टी पी लेवौ |
*जेठू*- नहीं जी, मोला अच्छा नइ लागै, मैं आंखी-मुंह धो के पीहूं |
*बरखा*- *लेवा तुमन आंखी-मुंह धो लेव, तब तक लईकन ल जगा के चाय पीया देंव | तीनों लईकन चाय पीयत रहिन,ततके बेर बरखा ह कहिस- बेटा,आज रात के मैं ह एक सपना देखे हौं* |
*तीनों बेटा एक स्वर म पूछिन- "का सपना देखे हस दाई ?*
*बरखा- आज रात के महादेव-पार्वती मोर सपना म आए रहिन अउ बरदान मांग कहिन |*
*(तीनों एक स्वर में) अच्छा !!!!*
*तव का वरदान मांगे हस दाई?*
*बरखा*- *मैं कहेंव- भगवान मोर गरीबी ल दू . ...........र कर दे भगवान ! काबर के ए दुनिया म गरीबी ले बड़े दुख कुछ नइ होय ! सब ले बड़े दुख गरीबी होथे !!!! गरीबी के कारन ही मैं तुंहर पूजा-पाठ,ध्यान-आराधना,तीर्थ यात्रा नइ करे सकौं भगवान!!!*
*उत्सुकता से तीनों एक साथ बोलीन- तब भगवान का कहिस दाई ?*
*बरखा*- *भगवान कहिस- तुंहर भर्री-टिकरा म "पारस पथरा" हावय बेटी,ओही ल खन के निकाल लेव, तुंहर गरीबी दूर हो जाही*
*( तीनों एक साथ) अईसे ? तव चला आजे ले खने बर सुरू करबो अउ ओ "पारस पथरा" ल निकाल के हमर गरीबी दूर करबो*
* *सब झन गैंती,रांपा,झउहा धर के भर्री टिकरा खेत गईन, खूब जोश,उत्साह अउ विश्वास के साथ अपन भर्ती टिकरा खेत ल खन डारिन*
*एसों खूब फसल होईस, घर के कोठी,पटांव,परछी सब डहर धान के भंडार भर गे*
*खेत के मेड़-पार म तिल,अरहर खूब लहलहाय लगीस*
* *खेत के मेड़-पार म गांव भर ले जादा,तिल राहेर उपजे रहे*
*एक दिन अपन भर्री-टिकरा ल तीनों भाई खनत रहिन,बरखा ह ओमन ल काम जोंगत रहिस, जेठू ह घाम के बेरा म एक पेड़ तरी छईंहावत रहिस,ततके बेर तीनों बेटा मन पूछिन - कतेक दिन म "ओ पारस-पथरा" मिलही दाई ?*
*बरखा*- *ए टिकरा ल पूरा खनिहा,तभे "ओ पारस पथरा" मिलही बेटा*
*पेड़ के छांव म बईठे-बईठे जेठू ह अपन तीनों बेटा के प्रश्न अउ बरखा के जवाब ल सुन के कहिस - "वाह बरखा वाह! तैं सिरतोन म लक्ष्मी, सरस्वती अउ दुर्गा के स्वरूप अस, धन्य हे तोर धीरता,वीरता,संयम,ज्ञान अउ समझदारी ल "*
*तोरे सहीं समझदारी सब नारी ल हो जाही,तव सबके लईकन ल "ओ पारस पथरा" खच्चित मिल जाही "*
*(दिनांक - 12.06.2023)*
आपके अपनेच संगवारी
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा "
मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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