Sunday, 25 June 2023

ओ पारस पथरा //* =====०००===== (छत्तीसगढ़ी नाटक)

 *//  ओ पारस पथरा //*

=====०००=====


    (छत्तीसगढ़ी नाटक)



*पात्र परिचय :-*

जेठू-पति

बरखा- पत्नी

  (तीन बेटे)

बड़कू,छोटकू अउ मंझिला


*बड़कू-* ददा,ए ददा, कस गा .......

*जेठू*- का ए रे ? का कहना चाहत हस ? 

*बड़कू*- शिक्षाकर्मी भर्ती के विज्ञापन निकले हे,

*जेठू*- तव का ?

*बड़कू*- पांच सौ रूपीया दे,फारम भरहूं अउ किताब बिसाहूं 

*जेठू*- तोर रात-दिन परीक्षा फारम भराई अउ दूरिहा -दूरिहा शहर जा के परीक्षा देवाई म मैं हलाकान हो गयेंव! सफलता मिलबेच नइ करै,आखिर वोही "ढाक के तीन पात" |

*बड़कू*- कुछू विज्ञापन निकलथे तव फारम भरहूं अउ परीक्षा देवाहूं,तभे तो नौकरी मिलही ददा |

*जेठू*- सैकड़ों बार तो परीक्षा देवा डारे बेटा,अईसने करत -करत तोर उमर पहागे ! ३५ बच्छर के हो गए हस! कुछू हूनर से चार पैसा कमाते,तव तोर बिहाव कर देतेंव | कुच्छू काम नइ करस,तेकरे सेती सुग्घर संस्कारित बहुरिया नइ मिलै ! 

*बड़कू*- एही आखरी परीक्षा आय ददा,ए पईत नौकरी नइ मिलही, तव रोजी-मजदूरी तो करबेच करहूं ! 

*जेठू*- बेटा हमन ए धरती दाई के सेवा करथन,तव मेवा अवश्य मिलथे | तुहूं मन "एही धरती दाई के सेवा करौ,नौकरी-चाकरी के चक्कर ल छोड़ौ | पहिली के सियान मन ठीक कहत रहिन :-

*उत्तम खेती, मध्यम व्यापार*

*नीच चाकरी, भीख निदान*

*बड़कू*- (गुस्सा के) रहे दे तोर उपदेश ल गा | अत्तेक पढ़ लिख के, का खेती किसानी करबो ?

*जेठू*- का होही बेटा, धरती दाई के सेवा करे ले, मेवा जरुर मिलथे गा |

*बड़कू*- 500 रुपया दे, मैं कुछु नइ सुनौं |


*जेठू*- मोर पास अभी फूटी कौड़ी नइ हवय, मैं कहां ले कैसे देंव ?

*बड़कू*- तैं कईसनो कर के दे, नहीं तव मैं जाथौं उधर लेहूं |

*जेठू* ( गुस्सा के) उधारी लेबे,तेला तोर कोन बाप ह छूटही रे ? 

*बड़कू*- तैं छूटबे अउ कोन छूटही ? 

*ओतके बेर बरखा ( जेठू के गोसाईन) आथे |*

*बरखा*- अयी,बिहान-बिहान ले बाप-बेटा के झगरा काबर माते हे ? 

*जेठू*- देख न ओ, तोर टूरा ला समझा, थोरकुन का पढ़-लिख डारे हे,मोर संग मुंहजोरी करथे ! 

*बरखा*- का होगे बेटा ? काबर अत्तेक गुसियाय हस गा ? 

*बड़कू*- शिक्षाकर्मी भर्ती के विज्ञापन निकले हवय, ददा तिर 500 रुपया मांगत हौं, तव नइ देवथे ददा ह ! 

*बरखा*- कस बेटा, तैं ह घर के हालत ल जानतेच हस,तभो ले कइसे अक्किल नइ करस गा,"अपन फजीहत ह आने बर हांसी होथे ! 

*जेठू*- बड़कू बेटा ह पढ़े हवय,कढ़े नइ हे ! फकत हाय परान पैसा -पैसा-पैसा ......... ! चाहे बाप ह मरै के बांचै! 

*बड़कू ( रोवत-रोवत कहिथे) कस दाई,पढ़-लिख के नांगर थोरे चलाहूं ? फेर ए दारी आखरी बार 5०० रूपीया मांगत हौं, ददा ह सफ्फा इंकार करत हे,मोर तिर एक्को रूपीया नइ हे कहत हे ! 

*जेठू*- सुन बेटा तोला पढ़ाई छोड़े १०  बच्छर होगे ! नौकरी के चक्कर में अपन जिंदगी के कीमती समय ल झन गंवा ! कतको रुपया पैसा बर्बाद कर डारे ,कुछू हासिल नहीं होईस !

*बरखा*- तोर ददा ह ठीक कहत हे बेटा |सब्बो पढ़ैयन ल नौकरी कैसे मिलही ? हर साल लाखों विद्यार्थी पढ़- लिख के बेरोजगार होवथें, सरकार ह कत्तेक झन ल  नौकरी देही ?

*बड़कू*- रोवत -रोवत कहिथे- एही आखरी प्रयास आय दाई, एकर बाद भी नौकरी नइ मिलही,तव रोजी-मजदूरी करबेच करहूं ! तोर पांव पड़त हौं दाई, मोला 5०० रूपीया दे,नइ तो मैं जहर खा लेहूं, ऊं हूं हूं .........

*बरखा*- हाय मोर लाल,अईसन शब्द कभ्भू झन बोलबे, तुंहरे पालन-पोषन अउ अच्छा भविष्य बनाए बर तो हम जीयत हन बेटा,नइ तो गरीबी के दुःख म कब के मर जातेन ( बरखा के आंखी ले आंसू के धार बोहाय लगीस) |

     फेर भीतर जा के गुल्लक ला फोड़ के 5०० रूपीया लानथे अउ कहिथे- ए ले बेटा,जा शिक्षाकर्मी भर्ती के फारम भर ले अउ किताब बिसा लेबे |

    *बड़कू ह शिक्षाकर्मी भर्ती के फारम भरथे,किताब बिसा के लानथे अउ खूब तन-मन से परीक्षा के तैयारी करके परीक्षा देवाथे*

     *कुछ दिन बाद शिक्षाकर्मी भर्ती के रिजल्ट आथे | बड़कू ह खूब उत्साह से परीक्षा परिणाम देखथे, फेर एहू पईत बड़कू ह फेल हो जाथे !*

    *वो दिन बड़कू ह बड़े बिहान ले घर ले बाहिर निकल जाथे*

     

  *जेठू,बरखा अउ छोटकू,मंझिला सब मिल के बड़कू ल खोजे बर निकलथें | गांव-बस्ती,रिश्ता-नाता सब जघा खोजथें,जघा-जघा फोन लगाथें फेर कोनो जघा बड़कू के पता नइ चलय! ओ दिन ऊंकर घर चुल्हा म आगी नइ बरै ! ओ हो ! दिन भर रोवाई,आंसू के धार बोहाई म जेठू अउ बरखा असख्त हो गईन !*

     *थाना म रिपोर्ट लिखा देहिन - मोर बड़कू बेटा ह आज बिहन्ने ले बिना कुछ बताय कहां लापता हो गए हे !*


   *बिहन्हे ले संझा तक पारा-परोसिन मन आ-आ के ढाढस बंधावत रहिन,चुप हो जाव,धीरज धरौ,बड़कू ह खच्चित आही, समझदार लईका हवय,कुछू अलहन नइ करै !*

     *एक झन परोसिन ह ओमन ल जबरन अपन घर ले के खाना-पानी देहिस अउ ऊंकर मन ल बोधे के कोशिश करीस,तेमा इंकर घर अउ कुछू अलहन मत हो जाय !*


    *भैंसा मुंधियार हो गे,तव घर म दीया बार हूं कहिके बरखा ह अपन जीवन जोड़ी अउ करेज्जा के टुकड़ा मंझिला अउ छोटकू संग अपन घर आईन, ततके बेर अपार दुखी मन स व्याकुल बड़कू ह अपन घर म आईस, तब का पूछबे जम्मो झन एक-दूसर ल पोटार के खूब रोईन ! मुंह से कोनो के शब्द नइ निकलत रहिस,फेर जेठू ह सब ले पहिली चुप हो के सब ल चुप कराईस*


*बरखा*- *कहां चल देहे रहे मोर लाल,आज तैं हा कुछू अलहन कर डारते, तव हम सब जहर पी के या फांसी करके मर जातेन !!!*

    

   *बरखा के ए बात ल सुन के सब झन फेर बोमपार के रोए लागिन, खूब देर तक ऊंकर आंखी ले गंगा-जमुना के धार बोहावत रहिस!!! फेर बरखा ह अपन आप ल सम्हाल के सबो झन ल चुप कराईस अउ कहिस- " मोर लाल के जान बांचिस,लाखों पायेन "!*

    *अब अईसन नादानी कभू झन करबे बेटा,नौकरी नइ मिलय,तव झन मिलय | भगवान हमला दू हाथ-दू पांव देहे हवय,तन म खूब ताकत देहे हवय,मन-मस्तिक म खूब ज्ञान देहे हवय | मेहनत करके ए दुनिया म दू बखत के रोटी जुगाड़ कर लेबो !*


   *( रात के रूखा-सुखा जऊन रूचिस, जेवन करके सुत गईन)*


   *बिहान दिन बरखा ह बड़े भिनसार ले उठ के चाय बना डारिस अउ अपन गोसईया ल कहिस- लेवा उठा चाय पी लेवौ |

*जेठू*- एही ल बेड टी कहिथें का जी ? 

*बरखा*- हव,आज बेड टी पी लेवौ |

*जेठू*- नहीं जी, मोला अच्छा नइ लागै, मैं आंखी-मुंह धो के पीहूं |

*बरखा*- *लेवा तुमन आंखी-मुंह धो लेव, तब तक लईकन ल जगा के चाय पीया देंव | तीनों लईकन चाय पीयत रहिन,ततके बेर बरखा ह कहिस- बेटा,आज रात के मैं ह एक सपना देखे हौं* |

 *तीनों बेटा एक स्वर म पूछिन- "का सपना देखे हस दाई ?*


*बरखा- आज रात के महादेव-पार्वती मोर सपना म आए रहिन अउ बरदान मांग कहिन |*


*(तीनों एक स्वर में) अच्छा !!!!*

*तव का वरदान मांगे हस दाई?*


*बरखा*- *मैं कहेंव- भगवान मोर गरीबी ल दू . ...........र कर दे भगवान ! काबर के ए दुनिया म गरीबी ले बड़े दुख कुछ नइ होय ! सब ले बड़े दुख गरीबी होथे !!!! गरीबी के कारन ही मैं तुंहर पूजा-पाठ,ध्यान-आराधना,तीर्थ यात्रा नइ करे सकौं भगवान!!!*

*उत्सुकता से तीनों एक साथ बोलीन- तब भगवान का कहिस दाई ?*


*बरखा*- *भगवान कहिस- तुंहर भर्री-टिकरा म "पारस पथरा" हावय बेटी,ओही ल खन के निकाल लेव, तुंहर गरीबी दूर हो जाही*

*( तीनों एक साथ) अईसे ? तव चला आजे ले खने बर सुरू करबो अउ ओ "पारस पथरा" ल निकाल के हमर गरीबी दूर करबो*


   * *सब झन गैंती,रांपा,झउहा धर के भर्री टिकरा खेत गईन, खूब जोश,उत्साह अउ विश्वास के साथ अपन भर्ती टिकरा खेत ल खन डारिन*


  *एसों खूब फसल होईस, घर के कोठी,पटांव,परछी सब डहर धान के भंडार भर गे*

    *खेत के मेड़-पार म तिल,अरहर खूब लहलहाय लगीस*

   

    * *खेत के मेड़-पार म गांव भर ले जादा,तिल राहेर उपजे रहे*

    *एक दिन अपन भर्री-टिकरा ल तीनों भाई खनत रहिन,बरखा ह ओमन ल काम जोंगत रहिस, जेठू ह घाम के बेरा म एक पेड़ तरी छईंहावत रहिस,ततके बेर तीनों बेटा मन पूछिन - कतेक दिन म "ओ पारस-पथरा" मिलही दाई ?*


*बरखा*- *ए टिकरा ल पूरा खनिहा,तभे "ओ पारस पथरा" मिलही बेटा*


*पेड़ के छांव म बईठे-बईठे जेठू ह अपन तीनों बेटा के प्रश्न अउ बरखा के जवाब ल सुन के कहिस - "वाह बरखा वाह! तैं सिरतोन म लक्ष्मी, सरस्वती अउ दुर्गा के स्वरूप अस, धन्य हे तोर धीरता,वीरता,संयम,ज्ञान अउ समझदारी ल "*


    *तोरे सहीं समझदारी सब नारी ल हो जाही,तव सबके लईकन ल "ओ पारस पथरा" खच्चित मिल जाही "*



*(दिनांक - 12.06.2023)*



आपके अपनेच संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

"रतनपुरिहा "

मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


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