*// मोर आंखी कहां हे ?//*
======०००=====
(छत्तीसगढ़ी नाटक)
------------------
*पात्र परिचय*
१. बबा- अंकड़ू
२. नाती- चुलबुल
३. बहू- कलकलही
४. परोसी- बुधवारा
*अंकड़ू* - हाय भगवान ! मोर आंखी कहां गंवा गे ? मोर जिनगी बिरथा होगे ! कुच्छू जिनीस नइ तकावथे, "सिरतोन म आंखी बिना जग बिरथा होथे ! भगवान के बनाए कत्तेक सुग्घर-सुग्घर जिनीस! फेर अंधरा बर का काम के ?
*चुलबुल*- सिरतोन म तैं अंधरा हो गए हस का बबा ?
*अंकड़ू -* अरे बदमाश,मोला अंधरा-वंधरा झन बोल |
*चुलबुल* तव का बोलौं,आंखी वाला बोलौं ?
**अंकड़ू* *आंखी वाला नहीं रे पगला,आंखी वाला काला कहिथै जानथस ?*
*चुलबुल*- *हां हां जानथौं |*
*अंकड़ू - काला कहिथें ?*
*चुलबुल* *जेकर दू ठन आंखी रहिथे |*
*अंकड़ू*- *ऊं हूं पगला कहीं के,जेकर दू ठन आंखी रहिथे,वोला आंखी वाला बोले के जरूरत ही नहीं हे,बल्कि "जेन टोनही-टोनहा होथे, तांत्रिक सिद्धि वाला होथें,तऊने मनखे ल "आंखी वाला कहिथें" समझे रे टुरा ? तव का मैं तोला आंखी वाला लगथौं?*
*चुलबुल - नहीं,तैं आंखी वाला नइ हस ! तोर तो आंखीच नइ हे ! कनवा हस का ? हा हा हा हा ........*
*अंकड़ू - बदमाश कहीं के,मोला कनवा कहत हस,मारहूं तोर अऊहर-चऊहर ला,किंजर जाबे लपरहा कहीं के*
*चुलबुल - तव का कहौं ? आंखी वाला कहिथौं तव नाराज हो जाथस, कनवा कहिथौं,तभो नाराज हो जाथस! का कहौं बता ?*
*अंकड़ू - चस्मूद्दीन बोल*
*चुलबुल - ओ हो हो ........ए डोकरा चस्मूद्दीन ए रे! हा हा हा हा ............*
*अंकड़ू - अब चस्मूद्दीन कहि के हांसत हस, तैं खूब शैतान हो गए हस रे ! तोला दू-चार लौड़ी लगाहूं,तभे तैं चेतबे (कहिके चुलबुल ल दौड़ाए लगिस) अरे रूक न बदमाश - रूक न रे ...........*
*चुलबुल - एतीओती भागे लगीस अउ अगूंठा दिखा-दिखा के कहै- अब ठेंगा ल पा- अब ठेंगा ल पा,अउ जीभ निकाल-निकाल के जीबरावै घलो लो लो लो लो...........*
*अंकड़ू - तैं मोला हलाकान मत कर,मोर आंखी ल दे न रे,नइते खूब पीटहूं .........*
*बहुरिया,देख तो तोर टुरा ह मोला पेंजत हवय,वोला समझा दे,नइतो खूब पीटहूं*
*कलकलही- हूं, वोहा तुमन ल का पेंजत हे ? तुंही मन तो वोला नाहक पेंजत हवौ, मोर लईका ल मारे झन करौ,नईतो खाना-दाना नइ देहूं ! तुंहर सब मसमोटी निकल जाही समझे*
*अंकड़ू - सन्न हो गे ! हाय राम ! भलाई के जमाना नइ हे ! एकरे टुरा ह मोला पेंजत हवय,मोर आंखी ल कहां लुका दिए हे ? मोर नजर तकात नइ हे अउ उल्टा बहुरिया ह मोही ल धमकी देवत हवय- खाना-दाना नइ देहूं ! काय करौं राम ? ए जीव ल कईसे राखौं भगवान ? तहींच ह न्याय कर दे!!!*
*अंकड़ू ह ओ दिन अन्न-पानी नइ छुईस, अईसे-तईसे सांझ हो गे, खूब झुंझलाए असन पड़ोसिन बहुरिया घर बईठे गईस |*
*बुधवारा*- *आवा हो कका ससुर बईठा, तुंहर चेहरा ह आज कईसे उतरे हे, कुछु खाय-पीए नइ हवौ, के तबीयत खराब हे ?*
*अंकड़ू*- *का दुख ल गोठियांव बहुरिया, ओ बेलबेलहा टुरा चुलबुल ह मोर आंखी ल कहां लुको देहे हे ?* *पूछथौं तव बताय नहीं, अउ आंखी तकाय नहीं ! तेकरे सेती ओ कलकलही बहुरिया ल कहे हौं- तोर टुरा ह मोला खूब पेंजथे,एला समझा दे , तव उल्टा मोही ल धमकी -चमकी देवत रहिस -** *मोर बेटा ल पेंजे झन कर ,नइतो तोर दाना-पानी बंद कर देहूं कहत रहिस !* *एही दु:ख म आज दिन भर मोला भुकूर-भुकूर लागत हावे ! एको दाना अन्न नइ खाए हौं, न ही एको बूंद पानी पीए हौं!!! मर जांव तईसे लागत हे बहुरिया ! जहर खा लेंव,के फांसी कर लेंव! तईसे लागत हावे ! ऊं हूं हूं हूं ......*
*बुधवारा*- *लेवा चुपा,काबर मरिहा? मरै तुंहर दुश्मन ! अरे जै दिन भर भगवान ह ए दुर्लभ मानव जोनी दिए हे, तै दिन सुग्घर छुछिंद हो के जीयव | पेट भर खावौ-नींद भर सुतौ |*
*अंकड़ू*- *का दुख ल गोठियांव बहुरिया,"ओ कलकलही के बोली-ठोली ह बान मारे सहीं लागथे ! छाती ल हुदक्का मारथे! ओकर जहर सहीं बोली सुने के सेती फांसी ह साउंग लागथे! फेर ओकर बोली नइ सहाय ! हाय भगवान! अब सकेल लेते ! चौथे पन म अपन दुख-सुख के संगवारी जीवन साथी नइ रहै,तव एक-एक पल ह पहार सहीं लागथे बहुरिया ऊं हूं हूं हूं ............*
*बुधवारा*- *"लेवा भईगे चुपा,दुख के बात ल जतके सुरता करिहा,ततके बाढ़ते जाथे |*
*अपन बेटा-बहू के बनौकी बनाए बर कत्तेक दुख ल सहे हवौ, कत्तेक त्याग-तपस्या करे हवौ ? अपन मुंह के कौंरा ल बचा के बेटा-बहू बर अतेक जरजाद ल जोरे हवौ अउ आज तुंहर बहुरिया ह एक-एक दाना बर तरसावत हवय ! ओकरो लईकन तो वोला अईसने एक-एक दाना बर तरसाही ! एक बूंद पानी बर तरस जाही ! सुरूज नारायण ह गुह ल सुखोय बर नइ उवै! ओला सबके तिल-तिल राई-राई बात के खभर हे ! आज हमारी-कल तुम्हारी ! करम दंड मिलेंगे बारी-बारी !*
*ए लेवौ छोटकन रोटी चाब लेवौ,पानी पी लेवौ, तन-मन के अगनी शांत हो जाही !*
*अंकड़ू*- *नहीं बहुरिया, कहीं ओ कलकलही ल पता चल जाही- बुधवारा घर रोटी खाईस हे डोकरा ह, तव एको दिन खाना-पानी नइ देही ! चार दिन के जीयैया, दुई दिन म मर जाहूं ! ऊं हूं हूं हूं ..............*
*बुधवारा*- *लेवा भईगे चुपा, तुंहर सग्गे बेटा-बहुरिया ह खाना-पानी नइ देही, तव हम धरम के बेटा-बहुरिया मन तुंहर सरेखा करबो,खाना-पानी देबो, विधि-विधान से तुंहर तिथि-गंगा घलो कर देबो | काबर दुख करथा हो ?*
*बुधवारा के अतेक महान सांत्वना भरे बात ल सुन के बबा एकदम भावुक हो गे ओकर अंतस ले हुदक्का मारीस,तव बोमपार के रोए लागिस ऊं हूं हूं हूं .................*
*( घर-घर के राम कहानी,ए नाटक ह कईसे लागिस? खच्चित लिखे के कृपा करिहौं)*
*दिनांक - १३.०६.२०२३*
*(सर्वाधिकार सुरक्षित)*
आपके अपनेच संगवारी
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा"
*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*
👏☝️✍️❓✍️🙏
No comments:
Post a Comment