Sunday, 25 June 2023

मोर आंखी कहां हे ?//* ======०००===== (छत्तीसगढ़ी नाटक)

 *// मोर आंखी कहां हे ?//*

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    (छत्तीसगढ़ी नाटक)

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*पात्र परिचय*


१.  बबा- अंकड़ू

२. नाती- चुलबुल

३. बहू-  कलकलही

४. परोसी- बुधवारा 



*अंकड़ू* - हाय भगवान ! मोर आंखी कहां गंवा गे ? मोर जिनगी बिरथा होगे ! कुच्छू जिनीस नइ तकावथे, "सिरतोन म आंखी बिना जग बिरथा होथे ! भगवान के बनाए कत्तेक सुग्घर-सुग्घर जिनीस! फेर अंधरा बर का काम के ?

*चुलबुल*- सिरतोन म तैं अंधरा हो गए हस का बबा ? 

*अंकड़ू -* अरे बदमाश,मोला अंधरा-वंधरा झन बोल |

*चुलबुल* तव का बोलौं,आंखी वाला बोलौं ?


**अंकड़ू* *आंखी वाला   नहीं रे पगला,आंखी वाला काला कहिथै जानथस ?*


*चुलबुल*- *हां हां जानथौं |*

*अंकड़ू - काला कहिथें ?*

*चुलबुल* *जेकर दू ठन आंखी रहिथे |*

*अंकड़ू*- *ऊं हूं  पगला कहीं के,जेकर दू ठन आंखी रहिथे,वोला आंखी वाला बोले के जरूरत ही नहीं हे,बल्कि "जेन टोनही-टोनहा होथे, तांत्रिक सिद्धि वाला होथें,तऊने मनखे ल "आंखी वाला कहिथें" समझे रे टुरा ? तव का मैं तोला आंखी वाला लगथौं?*

*चुलबुल - नहीं,तैं आंखी  वाला नइ हस ! तोर तो आंखीच नइ हे  ! कनवा हस का ?  हा हा हा हा ........*

*अंकड़ू - बदमाश कहीं के,मोला कनवा कहत हस,मारहूं तोर अऊहर-चऊहर ला,किंजर जाबे लपरहा कहीं के*

*चुलबुल - तव का कहौं ? आंखी वाला कहिथौं तव नाराज हो जाथस, कनवा कहिथौं,तभो नाराज हो जाथस! का कहौं बता ?*

*अंकड़ू - चस्मूद्दीन बोल*


*चुलबुल - ओ हो हो ........ए डोकरा चस्मूद्दीन ए रे! हा हा हा हा ............*

*अंकड़ू - अब चस्मूद्दीन कहि के हांसत हस, तैं खूब शैतान हो गए हस  रे  ! तोला दू-चार लौड़ी लगाहूं,तभे तैं चेतबे (कहिके चुलबुल ल दौड़ाए लगिस) अरे रूक न बदमाश - रूक न रे ...........*

*चुलबुल - एतीओती भागे लगीस अउ अगूंठा दिखा-दिखा के कहै- अब ठेंगा ल पा- अब ठेंगा ल पा,अउ जीभ निकाल-निकाल के जीबरावै घलो लो लो लो लो...........*

*अंकड़ू - तैं मोला हलाकान मत कर,मोर आंखी ल दे न रे,नइते खूब पीटहूं .........*

      

    *बहुरिया,देख तो तोर टुरा ह मोला पेंजत हवय,वोला समझा दे,नइतो खूब पीटहूं*

*कलकलही- हूं, वोहा तुमन ल का पेंजत हे ? तुंही मन तो वोला नाहक पेंजत हवौ, मोर लईका ल मारे झन करौ,नईतो खाना-दाना नइ देहूं ! तुंहर सब मसमोटी निकल जाही समझे*

*अंकड़ू - सन्न हो गे !  हाय राम ! भलाई के जमाना नइ हे ! एकरे टुरा ह मोला पेंजत हवय,मोर आंखी ल कहां लुका दिए हे ? मोर नजर तकात नइ हे अउ उल्टा बहुरिया ह मोही ल धमकी देवत हवय- खाना-दाना नइ देहूं ! काय करौं राम ? ए जीव ल कईसे राखौं भगवान ? तहींच ह न्याय कर दे!!!*

    

  *अंकड़ू ह ओ दिन अन्न-पानी नइ छुईस, अईसे-तईसे सांझ हो गे, खूब झुंझलाए असन पड़ोसिन बहुरिया घर बईठे गईस |*

*बुधवारा*- *आवा हो कका ससुर बईठा, तुंहर चेहरा ह आज कईसे उतरे हे, कुछु खाय-पीए नइ हवौ, के तबीयत खराब हे ?*

*अंकड़ू*- *का दुख ल गोठियांव बहुरिया, ओ बेलबेलहा टुरा चुलबुल ह मोर आंखी ल कहां लुको देहे हे ?* *पूछथौं तव बताय नहीं, अउ आंखी तकाय नहीं ! तेकरे सेती ओ कलकलही बहुरिया ल कहे हौं- तोर टुरा ह मोला खूब पेंजथे,एला समझा दे , तव उल्टा मोही ल धमकी -चमकी देवत रहिस -** *मोर बेटा ल पेंजे झन कर ,नइतो तोर दाना-पानी बंद कर देहूं कहत रहिस !* *एही दु:ख म आज दिन भर मोला भुकूर-भुकूर लागत हावे ! एको दाना अन्न नइ खाए हौं, न ही एको बूंद पानी पीए हौं!!! मर जांव तईसे लागत हे बहुरिया ! जहर खा लेंव,के फांसी कर लेंव! तईसे लागत हावे ! ऊं हूं हूं हूं ......*


*बुधवारा*- *लेवा चुपा,काबर मरिहा? मरै तुंहर दुश्मन ! अरे जै दिन भर भगवान ह ए दुर्लभ मानव जोनी दिए हे, तै दिन सुग्घर छुछिंद हो के जीयव | पेट भर खावौ-नींद भर सुतौ |*

  

*अंकड़ू*- *का दुख ल गोठियांव बहुरिया,"ओ कलकलही के बोली-ठोली ह बान मारे सहीं लागथे ! छाती ल हुदक्का मारथे! ओकर जहर सहीं बोली सुने के सेती फांसी ह साउंग लागथे! फेर ओकर बोली नइ सहाय ! हाय भगवान! अब सकेल लेते ! चौथे पन म अपन दुख-सुख के संगवारी जीवन साथी नइ रहै,तव एक-एक पल ह पहार सहीं लागथे बहुरिया  ऊं हूं हूं हूं ............*


*बुधवारा*- *"लेवा भईगे चुपा,दुख के बात ल जतके सुरता करिहा,ततके बाढ़ते जाथे |*

     *अपन बेटा-बहू के बनौकी बनाए बर कत्तेक दुख ल सहे हवौ, कत्तेक त्याग-तपस्या करे हवौ ? अपन मुंह के कौंरा ल बचा के बेटा-बहू बर अतेक जरजाद ल जोरे हवौ अउ आज तुंहर बहुरिया ह एक-एक दाना बर तरसावत हवय ! ओकरो लईकन तो वोला अईसने एक-एक दाना बर तरसाही ! एक बूंद पानी बर तरस जाही ! सुरूज नारायण ह गुह ल सुखोय बर नइ उवै! ओला सबके तिल-तिल राई-राई बात के खभर हे ! आज हमारी-कल तुम्हारी ! करम दंड मिलेंगे बारी-बारी !*

     *ए लेवौ छोटकन रोटी चाब लेवौ,पानी पी लेवौ, तन-मन के अगनी शांत हो जाही !*

*अंकड़ू*- *नहीं बहुरिया, कहीं ओ कलकलही ल पता चल जाही- बुधवारा घर रोटी खाईस हे डोकरा ह, तव एको दिन खाना-पानी नइ देही ! चार दिन के जीयैया, दुई दिन म मर जाहूं ! ऊं हूं हूं हूं ..............*

*बुधवारा*- *लेवा भईगे चुपा,  तुंहर सग्गे बेटा-बहुरिया ह खाना-पानी नइ देही, तव हम धरम के बेटा-बहुरिया मन तुंहर सरेखा करबो,खाना-पानी देबो, विधि-विधान से तुंहर तिथि-गंगा घलो कर देबो | काबर दुख करथा हो ?*


  *बुधवारा के अतेक महान सांत्वना भरे बात ल  सुन के बबा एकदम भावुक हो गे ओकर अंतस ले हुदक्का मारीस,तव बोमपार के रोए लागिस ऊं हूं हूं हूं .................*


*( घर-घर के राम कहानी,ए नाटक ह कईसे लागिस? खच्चित लिखे के कृपा करिहौं)*



*दिनांक - १३.०६.२०२३*


*(सर्वाधिकार सुरक्षित)*


आपके अपनेच संगवारी


*गया प्रसाद साहू*

"रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*


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