Sunday, 25 June 2023

का करि डारेंव काकर बुध मा - डॉ.बी. नंदा*

 *का करि डारेंव काकर बुध मा -  डॉ.बी. नंदा*


मनखे के हदरही ल का कहीबे। कतकोहन मिल जाए फेर ओकर पेट हा नई भरे। परकिर ती ह कतको जिनिस ला देत हे, फेर ओला कमतिच परथे। हवा, पानी, जंगल- झाड़ी, आगी, फल- फूल, कंदमूल, लकड़ी, जम्मो जीवन के सबो अमृत ल कुड़हो देथे। फेर का करबे, कारखाना बनाना हे,  धुआं फेंक- फेंक नंगत के गाड़ी चलाना हे, जंगल ला काटना हे, तरिया ला पाटना हे, कुआं ला पाटना, नदी नरुआ ला पाट- पाट के घर बनाना हे, चाकर- चाकर छे लेन के सड़क बनाना हे, खेत- खार मा भक्कम खातू डारना हे, गरवा- गाय के कोई जतन नहीं, जेखर करा हवे तेहा, कांदी - कचरा कहां के खवाही ऊहू हर दुनिया भर के नवा- नवा, रंग - रंग के दाना-दुचरा ल खवाथे। एकरे मारे दूध ह घ लो आजकल सुद्ध नई मिलए। अऊ उपराहा मे लोगन नकली दूध बनाथे यूरिया खातू डार- डार के।वाह! रे मनखे अपने मन बर अपनेच दुसमन बनगेहे। हाय रे पइसा, देखेंव निही तोर  जईसा।

मनखे हर जीहां जाथे तिहां कचरा करथे। एवरेस्ट के चोटी ह घलो नई बांचे हे। कतरो लिखाय राहय, एकरा कचरा फेंकना मना हे, फेर मनखे के जात, नियम ल माने से जादा   टोरे मां मजा आथे। हमर देस में तो ईही तरह देखे ल मिलथे। एकरे सेती सरकार ल साफ- सफई बर अभियान चलाना परथे, कभू हाथ धुलाई अभियान, कभू स्वच्छता अभियान। चलगे अभियान दू दिन, तहां अभी जाके देख लव गांव ल कहांव कि सहर ला- मार कचरा गंजाय रही अऊ बस्सात, बजबजावत रहिथे। अब भई नियम ल नई मानही त कईसे होही? हमर पारा मां घलो देखथंव रोज ऐ डहा कचरा वाले मन आथे सूखा कचरा, गीला कचरा दूनों परकार के बाल्टी हे तभो ले कई झन मन कचरा ल परोस मा कुड़हो देथे।

अइसने गांव मन के हाल हे। पहीली सबके अपन- अपन घुरुवा राहय गांव के बहीरी मा। आजकाल सबो भूईंया बटागे अऊ सबो घूरुवा पटागे। जेकरा देखबे तेकरा कचरा के कुढ़ोना।

परियावरन ला बिगाड़े के काम सबले जादा मनखे हर करथे ता ओला सुधारे के काम ऊही ल करना चाही। हम्मन सब देखे हन कि कोरोना के समय जब लाकडाऊंन होय रिहीस तब पारियावरन कतेक स्वच्छ होगे रहिस। सब ला चाही कि एकर खातिर कुछु न कुछु उदिम करे।

जब सड़क बनाए बर पेड़ काटे जाथे त तुरते लगाना भी चाही। बहुत अकन नदी मन कारखाना मन के मारे मईला हो गे हे, हमर पबरीत गंगा दाई के का हाल होगे हे? मार दुनिया भर के योजना बनथे फेर आज ले ओकर सफई नई होय हे। मोर मानना हे कि पहीली मनखे के दिमाग के सफई होना जरूरी हे।

नदिया ल घुरुवा झन समझे जाय, जेमा कभी मुरदा ल, त कभू कचरा ल बोहा देथें, कहां जाहि सड़न ह। अइसना तरह जंगल के बात, सरकारी नरसरी लगथे फेर पेड़ मन कते डहा उड़ा जाथे? हम्मन रोज - रोज गोठियाथ न परियावरन के बारे में, फेर आज जरुरत हे गोठियाना छोड़ के बुता ल सही तरीका ले करे जाय। सरकारी पईसा, सरकारी जिनिस, सरकारी काम सबला ये देस के मन अपन मान के नई बउरही तब तक कुछु काम के कोई बने परिनाम नई दिखये। 

एकर मतलब सरकारेच ह करही सोंच के बईठे नई रहना हे। परियावरन बर हम सब ला मिलके उद्दीम करना परही। लईका मन ला बचपन ले परकीरति बर प्रेम भावना अऊ साफ - सफई बर सचेत करे ल परही तभे तो अवइया समय मा परकिरती दाई के कोरा मा सुख के नींद सुतही। नहीं त पछतात रही अऊ कहात रही का करी डारेव काकर बुध मा।

                              

*डॉ. बी. नंदा. जागृत* 

   *राजनांदगांव*

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