Sunday, 25 June 2023

आखरी मनखे के खोज

 आखरी मनखे के खोज

               योजना हा बड़े जिनीस आफिस म उँघावत धुर्रा म सनावत रहय । एक कोति ओला जनता तक अमराय के फिकर म सरकार दुबरावत रहय । दूसर कोति .. नावा मैच खेले के समय लकठियागे रहय । योजना ला एन केन प्रकारेण जनता के फायदा बर जनता तक अमराय के योजना बनिस । ओला लकर धकर बाहिर निकालके .. नहवा धोवा के ... नावा पैजामा कुरता पहिराके बाहिर निकालिन ।  

               योजना हा सोंचत रहय के कति जनता ला फायदा अमराय बर मोला बाहिर निकालत हे .. मेहा कायेच फायदा अमरा सकत हँव तेमा ... समझ नइ आवत रहय । सरकारी मुड़ी बतइस .. तोला देश के आखिरी मनखे ला फायदा अमराय बर पठोवत हाबन .. जतका जल्दी होय उहाँ तक पहुँचना हे । योजना हा बात समझ गिस । योजना के पैजामा म नाड़ा नइ रिहिस । पैजामा  बोचके लगिस । योजना हा बिगन नाड़ा के पैजामा ला सम्हारत ... आखरी मनखे ला खोजत सड़क म उतर गिस । 

               मंजिल तक पहुँचे के रसता देखाय बताय के जुम्मेवारी पाये मनखे मन ... ओला अपन संग लेगे । रसता बतावत .. ओकर खींसा ला टमड़े लगिन । ओकर हाथ .. पैजामा सम्हारे म लगे रहय । खींसा चिरागे तहन आगू बढ़े के रसता मिलिस । रसता रेंगत दूसर पड़ाव तक पहुँचिस । उहाँ तो पहिली ले जादा हरहर कटकट ... कुरता के बाजू के एको खींसा साबुत नइ बाँचिस फेर ... आगू के रसता तुरते दिख गिस । थोड़ा अऊ बढ़िस ... कुरता चिरइया मन मिल गिन ... कुरता कुटी कुटी नोचागे । पैजामा उतरगे ... सरी खाली होगे तहन आगू के कपाट खुलगे । 

               योजना हा सोंचत रहय ... अब कोन ला काय फायदा दे सकहूँ .. तेकर ले लहुँट जाँव का ... । भेजइया के बदनामी हो जहि ... तेकर ले धीरे धीरे आगू खसकथँव ... सलूखा भितरि के खींसा के हिस्सा तो पाबेच करही आखरी मनखे मन ... सौ म पंद्रह अभू बाँचे हाबे । थोकिन रेंगिस तहन ... कुछ भले मानुष मन बतइन के जेला खोजत हस ... उही आन हमन ... चल हमर संग .. अऊ हमर  फायदा ला निकाल ... । ओहा आखरी मनखे के कोई पहिचान नइ जानत रिहिस ... उही मनला आखरी मनखे समझिस अऊ सलूखा भितरि ले निकालिस । यहू मन जान डरिन के योजना के कति मेर ... हमर लइक फायदा हाबे ... सलूखा चिरागे ... दंगदंग ले उघरा होगे ... अब इँकर हाथ ओकर पज्जी के नाड़ा तक पहुँचगे । इज्जत बँचाय बर ... उहाँ ले निकल भागिस ... भागत भागत पज्जी खसले बर धरिस ... । योजना कस के दँऊड़े लगिस । योजना के पिछु पिछु कतको लगगे । योजना बहुत जोर शोर से चलत हे ... खबर आय लगिस । कुछ मन योजना के तिर पहुँच गिन । ओकर पज्जी खसलगे .. योजना नंगरा होगे ... । अब ओकर आगू पिछु रेंगइया कोन्हो नइ रहिगे । अब ओहा जेती जावय तिही कोति .. चार ठोसरा खावय । ओकर हाथ गोड़ टुटगे । एती वोती घिरले लगिस । कनिहा कूबर कोकरगे । तभो ले ओकर मन हा ... आखरी मनखे तक पहुँचे के इच्छा ला नइ त्यागिस । भागत भागत नानुक गाँव म पहुँचिस । बहुत मुश्किल से एक घर जाय के हिम्मत करिस ... भितरि तक नइ पहुँच सकिस । नानुक झोफड़ी के आगू म दम टोर दिस । गरीब मनखे हा ओकर क्रियाकर्म के जुगाड़ करत ... गाँव से लेके शहर तक के बड़े मुड़ मन ला .. अपन तनि ले खवा डरिस । दूसर दिन अखबार म बड़े बड़े अक्षर म छपे रिहिस के ... योजना हा देश के आखरी मनखे तक पहुँच गिस ।                

हरिशंकर गजानंद देवांगन ... छुरा .

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