सनपना म सवार-गुटका सितार
महेंद्र बघेल
हमर डिजिटल इंडिया म खवई अउ जियई उपर अबड़ बहस देखे-सूने बर मिल जथे। मनखे मन जीये बर खाथें के खाय बर जीथें..।रहिगे बात हमर.. त हम तो सधारन जनता आवन.., जीये बर खाथन कहिबो तभो भला नइहे अउ खाय बर जीथन कहे म घलो भला नइहे।गुनिक, सुजानिक अउ बुधियार मनखे मन के बात ह कुछ अलगे रहिथे,वो मन सबो बात के फरी-फरी कर देथें। कहे के मतलब येमन ह समाज म एक ब्रांड के रूप म देखे जाथें । एला अइसे भी समझ सकथन के अमूल के लस्सी आय कहिके ओकर पाकिट म सफेद छुही ल घोर के बेचें जा सकथे। काबर के कीमत तो ब्रांड के होथे न..। अउ ब्रांड के ॲंधरौटी म लदगाय जनता मन तारीफ म यहू कहि सकथें ..,का गजब के छुही फ्लेवर म अमूल ह लस्सी लांच करे हे भाई.., मजा आगे..।
हमर देश म कई ठन कला ह संस्कारी उद्योगपति अउ सत्ता सरकार के परसादे पिकियावत- फुन्नावत हे। इही पैसा वाले मन गुटका बनाय के कारखाना लगाके एक ठन नवा कला ल बढ़ाय के ग्लोबल उदीम म लगे हें। इनकर नजर म येहा जन सेवा आय, पैसा कमई नोहे.., अरे भई पैसा कमई ह इनकर बर तो हाथ के मैल ए.., कतरो बेर लाइफ्बाॅय म धो डारही अउ अपन लाइफ ल बना डारही।सरकार के नजर म गुटका ह जनता के तबियत बर हानिकारक हे फेर खुद के तबियत बर लाभदायक हे..,काबर के इहिंचेच ले गड्डी-गड्डी पैसा (राजस्व) घलव वसूल होथे।
पहली गुटका म जरदा मिले रहय तेकर सेती सरकार ल प्रतिबंध लगाना पड़े.., आजकल जरदा अउ सादा गुटका ह अलग-अलग पाउच म मिलथे तेकर सेती दूनो ल मिलाके खाना परथे। प्रतिबंध तो यहू म हे.., कभू-कभू जनता ल भरमाय बर इडी सीडी मन छापा मारे बर जाथें.., अउ नोट छापके आ जथें। जरदा-गुटका म बउराय जनता मन इमानदार छापामारी ले गदगदात ले खुश हो जथें। कई घाॅंव एबीसीडी वाले मन छापा मारे के पहिली हमन छापा मरइय्या हन कहिके पतली गली ले इनकर कर खबर पठो देथें। तुरते डेढ़ हुशियार मालिक मन उही पाउच म सोप-सुपारी ल भरके खुदे अपन कारखाना के कपाट ल खोल देथे - आव आव साहेब हो छापा मार लेव। सरकार अउ उद्योगपति के ये भयानक ईमानदारी ले जनता मन एकतरफा खुश हो जथें अउ दूनों के जय-जयकार शुरू हो जथे। दूसर दिन इमानदार पेपर म खबर छप जथे -" छापामारी म गुटका के जगा सोप-सुपारी मिलिस।" उद्योगपति मन के पुरखौती चतराई ले खुश होके सरकार ह ओला राज्यसभा घलव भेज देथे। उद्योगपति बर एक जन सेवक के रूप म येकर ले बड़े अउ का इनाम हो सकथे..। एती लुहुर-टुपुर करइय्या नगदउ पत्रकार मन के पदवी घलव बाढ़ जथे।
बेवस्था, उद्योगपति अउ पत्रकार मन के शुद्ध देशी गठजोड़ ले गुटका प्रेमी जनता मन भयानक ईमानदारी के शिकार हो जथें। इही सोप-सुपारी के भरोसा म सत्ता सरकार ल मनमाफिक चुनई चंदा घलव मिलथे। तहां बेवस्था ह अपन दल के हाजमा ल सुधारे के काम म लग जाथें। सत्ता सरकार ह जानथे के नइ जाने उही जाने.., फेर उद्योगपति मन देश ल विश्व गुरु बनाय के पहली खुद ल गुटका गुरू बनाना जादा जरूरी समझथें। गुटका के कारखाना उॅंकरे,गुटका ल दुकान तक अमराने वाला ट्रक उॅंकरे, दुकान उॅंकरे अउ गुटका खाके बीमार परे जनता के इलाज बर अस्पताल उॅंकरे। इहाॅं ले उहाॅं जिहाॅं ले देखहू तिहाॅं समाज सेवा के नाम म लम्भा -लम्भा इनकर पैसा रपोटो योजना चलत हे।
गुटका प्रेमी जनता मन गुटका ल खा-खाके पुरकू कला ल जन-जन कर पहुंचाय के उदीम म लगे हवॅंय।तुमन सोचत होहू येहा कोई कला आय तेमे.., हाव जी येहा शुद्ध भारतीय कला आय।ये आम जनता के सेवा करे बर गुटका कारखाना के कोख ले जनम धरे हे, तब तो तुमला माननाच परही येहा लोक कला आय कहिके।ये कला के गौरव खातिर गुटका प्रेमी जनता मन मरे-खपे बर घलव तैयार रहिथें। फेर पता नहीं सरकार ह ये पूरक कला ल कब राष्ट्रीय कला के रूप म मानता दीही। गुटका प्रेमी जनता मन डहर ले सरकारी अस्पताल, ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत, जिला पंचायत ,बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, सड़क ,पाई ,पान ठेला ,किराना दुकान अउ सुलभ शौचालय के आजू-बाजू, ओन्हा-कोन्हा ल ये कला के कैनवास के रूप म बउॅंरे जाथे। पहिली जमाना म जनता मन माखुर ल खाके पूरकॅंय ओकर मखुराहा कलर ह मरधूस होके तुरते उड़ जाय। तेकर सेती ये कला ह पैदा होय के पहिलीच मर जात रहिस।ये पूरकू कला के इज्जत ल थोकिन पान खवइय्या मन जिंदा रखे रहिस फेर आधा-अधूरा..।जब ले ये गुटका पाउच ह यामू नाम के सनपना म सवार होके आय हे तब ले पूरकू कला ल नवा जिनगी मिल पाय हे। आज ये कला ह अपन कला के बरेंडी म चघके एकसस्सू नाम कमावत हे।
येकर बर तीन ठन घटना के गोठ करना जरूरी घलव हे।एक दिन नवा कपड़ा अउ जाकिट पहिरके बिहाव म जाय बर निकलेंव। दू झन झुलपाहा टूरा मन मोर आगू-आगू बाईक म जावत रहिन।बाईक के पाछू म बैठे कुकरा छाप कटिंग वाले बांगड़ू ह अपन जेवनी साईड म गुटका के रसा ल पिचकारी मारे कस पूरकिस। ओकर रसात्मक फव्वारा अउ पूरकन (कला रस) ह मोर मुंहुं कान अउ कपड़ा म चकचक ले छपागे।मोर दिमाग भन्नागे.., मॅंय कुछ कर पातेंव ओकर पहिली अब के दरी बांगड़ू ड्राइवर ह पिचकारी के दूसर खुराक ल मोर सम्मान म अउ पूरक दिस। चकचक ले सादा कपड़ा म पहिली वाले आर्ट ल दूसरा डोज ह माडर्न आर्ट म बदल के रख दिस।वो तो अहो भाग रहिस के मोर मूड़ी म हेलमेट तैनात रहिस..,नइते रस के फव्वारा ह मोर मुखारबिंद ल डिओ के अनुभो देके माने रहितिस।
कोरोना के समय म घुनहा- सुपारी, कड़हा- चिचोल, सरहा-माखूर, कचरा -काड़ी, कत्था -मत्था अउ ऑंय-बाॅंय चीज ले बने केसर मुक्त केंसर युक्त गुटका के भाव ह बड़ ताव देखाय रहिस।तब ले प्रेमी जनता मन येकर मया बिन नइ रहि सकिन। अजय देवगन के मया ह विमल म सवार होके स्कूल के अटेलहा पढ़इय्या लइका मन तक अपन पहुंच बना डरे हे। जब-जब छुट्टी होथे येमन गुटका खाके पूरकू-पुरकू खेलथें। लइका होय चाहे सियान जरदा गुटका खवइय्या मन जेन कर बइठगे उही कर पुर्र -पुर्र पूरकके ओ जगा ल रंगावत अपन कला के प्रदर्शन करथें।येकर रंग (कला रस) ह मया के रंग ले जादा गाढ़ा रहिथे..बंग लाल..।पूरकनी ठउर ल देखबे त सहीच म उनकर कला ह माडर्न आर्ट ले कहूॅं ओ पार के आर्ट लगथे .. पूरा-पूरा डिजिटल आर्ट..।
एक दिन घर बनवाय के चक्कर म नक्शा पास करवाय बर नगर पंचायत के बाबू-साहेब मन कर गेंव। सबले पहिली बड़े बाबू ल नमस्ते ठोकेंव । बड़े बाबू कहिस -" अअस्ते..अता अइसे आय..। मुंहुं म तो गुटका के कला रस ह टिप-टिप ले भराय रहिस त कहाॅं ले नमस्ते कहि सकतिस। मॅंय अउ तिखारेंव त ओओ करत ओइयावत खिड़की कर गीस अउ पूरकन विद्या के गोल्ड मेडलिस्ट कस खिड़की के बहिरी पार पक्की सड़क म पूरकके गरमागरम माडर्न आर्ट बना दिस।
सबे मन जानथन सरकारी बिल्डिंग के ओंटा-कोंटा म ये कला ह जिंदा रहिथे। जब नवा सरकारी बिल्डिंग बनथे तब गुटका प्रेमी कर्मचारी मन खुशी-खुशी पाऊच के पूरा लरी ल बिसा डारथें अउ साफ जगा म पूरकके अपन कला के प्रति समर्पण भाव ल दिखाथें। मने ये पूरकू कलाकार मन सरकार ल खरचा करवाय बिना अपन पैसा लगाके फोकट म माडर्न आर्ट देखाथें। अउ ये सरकार ह इनकर माडर्न आर्ट ल थोरको नइ जाने.., सरकारी आदमी आय कहिके येमन ल पांच पैसा के नइ माने। येमन बड़े ले बड़े बिल्डिंग के कोठ म गुटका के खरचा म चकाचक आर्ट बनाय के दम रखथें। फेर सरकार ल गुटका बनइय्या के उपर भरोसा हे गुटका खवइय्या मन ह जाय चूल्हा म..।
हमर परोसी चरचरहीन भऊजी ह रोजिना बिहनियाच ले नल म पानी भरे के बेरा म चररे-चरर करत रहितिस। मयारू भऊजी ह सितार, राजश्री अउ विमल के परमानेंट गिराहिक रहिस।दिन भर इही गुटका मन ल मुॅंहुॅं म गोंजे रहितिस।जब गोठियाय ते सामने वाले के मुॅंहुॅं कान म छरा छित डरय अउ अपन लाली पूरकन ले गली -खोर ल आर्ट गैलरी घलव बना डरे रहय। आजकल ओकर चरचरई ह मिटकई म बदल गेहे.., कलेचुप मूड़ी गड़ियाके पानी भरथे। मॅंय पता लगायेंव हमर चरचरहीन भऊजी ह कैसे अबोली होगे हे जी..। तब पता लगिस के ओकर तो मुॅंहुॅं ह एको कनी नइ उले बइहा..। बपरी भऊजी ह जरदा गुटका ले अतिक मया करत रहिस के राजश्री ह ओकर मुॅंहुॅं के सितार बजा दिस.., बोलती बंद कर दिस। केसर युक्त विमल के चक्कर म मल युक्त केंसर के सपड़ म आगे.., आज ओकर मुॅंहुॅं सिलागे। ले-देके जूस के भरोसा म गाड़ी चलत हे।
एती स्वास्थ्य विभाग ह बोमफार चिल्लावत हे - जरदा गुटका खाय ले दाॅंत सरथे, बीपी फाइब्रोसिस, ओएलपी, अस्थमा, पायरिया अउ कैंसर सही खतरनाक बीमारी होथे। ओती खुलेआम गुटका के कारोबार चलत हे.., जरदा गुटका बेचावतहे.., जनता मन खावत हे। फेर येकर ले का फरक परथे अपन ऑंखी म पट्टी बांधके ठाढ़े रेफरी मन ल..। केकरा (केंसर) कस तो इनकर चाल- चरित होगे हे जनो-मनो केंसर ह पांच साल बर छुट्टी लेके हनीमून मनाय खातिर ऊटी चल दे होही। कुलमिलाके चित ह इॅंकर,पट ह इॅंकर अंटा इॅंकर ...के। इहाॅं ले उहाॅं सबे जगा मंहगाई, बेरोजगारी, हारी- बीमारी बर ऑंखी मूॅंदे..,बड़े ले बड़े नंबरदार मन ल छपास अउ दिखास के रोग लगे हे..। लफरही अउ चमत्कार के जमाना म हमर का रोल हे.., बस डंडा-झंडा ल धरे लुहुॅंग-लुहुॅंग करत ॲंखमुन्दा उॅंकर पीछू-पीछू भागत हन,जइसे नचावत हे तइसे नाचत हन।इनकर आगू म आम जनता के अउ कतका इज्जत ल कहिबे..।
महेंद्र बघेल डोंगरगांव
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