*// न मैं हूं राजी, न मेरा दिल है राजी //*
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(छत्तीसगढ़ी नाटक)
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*पात्र परिचय*
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*१. एहसान* (एक मुस्लिम छोकरा)
*२. सुशीला (हिन्दू छोकरी)*
*३. संतराम- (सुशीला के पिताजी)*
*४. गणेश - सुशीला का भाई*
जेठ के तिफतिफाय मंझनिया एक बरगद के छांव म एहसान बैठे रहिस |
भरे दोपहर म एक युवती सुशीला ह आगी सहीं तीपे भोंभरा ले व्याकुल कूद-कूद के वोही बरगद डहर आवत रहिस |
*एहसान*- ऐ लड़की आओ छांया में , बहुत तेज धूप है |
*सुशीला*- हव गा |
असहनीय घाम अउ भोंभरा ले बांचे खातिर सुशीला ह ओ बरगद डहर जाय लगिस |
घाम,भोंभरा ले व्याकुल सुशीला ह बरगद डहर निहारत-निहारत दौड़े लगिस, अचानक ओकर पांव ह बबूल कांटा म पड़ गे चुब्भ ले गड़ीस ! हाय दाई-ददा ! मर गयेंव दाई-ददा !!! सुशीला व्याकुल हो गे !!!
*एहसान*- क्या हो गया ?
*सुशीला*- गोड़ म कांटा गड़ गे, हाय दाई-ददा ! मर गयेंव दाई-ददा !!!
*एहसान* ओ हो !आओ तुम्हारे पांव का कांटा निकाल दूं |
*सुशीला*- नहीं गा मैं निकाल लेहूं |
*एहसान*- अरे बाप रे ! चार-पांच कांटे गड़े हैं,खून निकल रहा है !!!
*सुशीला*- हाय दाई-ददा ! चार-पांच कांटा गड़े हे ! कईसे निकालौं ?
*एहसान* लाओ मैं तुम्हारे पांव के कांटे निकाल दूं, बहुत खून बह रहा है |
*सुशीला*- नहीं गा, नहीं गा |
तभो ले जिद्ध करके तीन बबूल कांटा ल एहसान निकालीस |
*सुशीला*- धन्यवाद भैया, मैं तो घबड़ा गए रहेंव- ऐ कांटा ल कईसे निकालहूं ? कईसे घर जाहूं ? धन्यवाद भईया |
*एहसान*- कुछ देर छायां में बैठ जाओ |
तुम्हारा नाम क्या है ?
*सुशीला*- सुशीला |
*एहसान*-तुम्हारे पिताजी किस विभाग में कार्यरत हैं ?
*सुशीला*- राजस्व विभाग में बड़े बाबू हैं, बिलासपुर आफिस जाते हैं |
*एहसान*- अच्छा कितने बजे आते हैं ? *सुशीला*- रात लगभग ९.०० बजे आते हैं |
*एहसान -* तुम्हारा भाई क्या करता है ?
*सुशीला*- इंजीनियरिंग कॉलेज बिलासपुर में इंजीनियरिंग कोर्स कर रहा है |
*एहसान*- अच्छा , कल फिर मिलेंगे | इसी जगह पर, इसी समय |
मिलोगे न ?
*सुशीला*_ काबर गा ?
*एहसान*- यूं ही आप से मिलकर अच्छा लगा | आप बहुत अच्छी हैं |
*सुशीला*- चुप गा,हम ल अच्छा नइ लागै, कोनो छोकरा संग मिलना- -गोठियाना | छी दाई !
*एहसान*- कल इसी समय-इसी जगह पर जरूर मिलना,अच्छी-अच्छी बातें करेंगे ओके |
*सुशीला*- नहीं गा,मैं नइ आऔं समझे |
दूसरे दिन सुशीला ह ओ बरगद तिर नइ गईस | तब तीसरे दिन शाम के समय ओ एहसान ह सुशीला के घर पहुंच गे |
*एहसान*- सुशीला ए सुशीला, सुशीला ए सुशीला..........
एक अनजान छोकरा ल सुशीला-सुशीला पुकारत सुन के सुशीला के पिताजी संतराम ह बाहिर निकलीस |
*संतराम* कोन हे भाई ? कहां से आए हस ?
*एहसान*- मैं एहसान हूं, यहीं बिलासपुर का रहने वाला हूं |
*संतराम*- अच्छा,का काम हे भाई ?
*एहसान*- सुशीला से काम है |
*संतराम* का काम हे बताबे भाई ?
*एहसान*- सुशीला को बताऊंगा |
*संतराम* कोई अजनबी मनखे से अपन बेटी ल हमन गोठबात करे नइ देवन |
अपन पिताजी अउ एक अनजान छोकरा के वार्तालाप ल सुन के गणेश आ गे |
*गणेश*- कौन है पिताजी ? क्या बोल रहा है ?
*संतराम* देख न बेटा,कोई अजनबी छोकरा आए हे अउ सुशीला से मिलना है बोलत हे !!
*गणेश*- सुनिए, आपको हम नहीं जानते, किसी अनजान युवक से मेरी बहन बात नहीं करती, समझे |
*एहसान* सुशीला मुझे पहचानती है, मैं उससे मिलना चाहता हूं |
*सुशीला*- ऊंकर बहसबाजी सुन के बाहर आईस अउ बताईस- पिताजी,कल दोपहर कालेज से वापस आवत रहेंव, बहुत तेज धूप रहिसे,तव साईकिल खड़ी करके सड़क तिर एक बरगद छांव म जावत रहेंव, बरगद छांव म जल्दी पहुंचे के धुन म बरगद तरी बबूल कांटा ल देख नइ पायेंव, चार-पांच ठन कांटा गड़ गईस ! लहू निकलत रहिस ! ओ बरगद छांव म एही लड़का रहिसे अउ मोर गोड़ के कांटा ल निकालीस | बदले म मैं एला धन्यवाद देहेंव अउ घर आ गयेंव | बस अतकेच बात आय |
एला हमर घर आए से का मतलब हे ?
*एहसान*- मैं तुम से प्यार करने लगा हूं |
*संतराम*- ऐ लड़के तुम अपने जबान पर लगाम दो | मानवता का परिचय देते हुए सुशीला के पांव का कांटा निकाल दिए, इसके लिए धन्यवाद एवं आभार |
अब आगे प्यार-व्यार की बातें मत करो, चुपचाप चले जाओ |
*एहसान*- लेकिन मुझे सुशीला से प्यार हो गया है, इसीलिए मैं आया हूं |
*गणेश*- ऐ मिस्टर, तुम चुपचाप वापस लौट जाओ,अन्यथा अपने साथियों को फोन करूंगा,तब पता नहीं तुम्हारा क्या हश्र होगा !
*एहसान* मैं सचमुच सुशीला से प्यार करने लगा हूं |
*संतराम*- तुम्हारे जबान को लगाम दो वरना मैं असंतराम बन जाऊंगा,तब तुम्हारे प्यार का ढोंगी नाटक जीवन भर के समाप्त हो जायेगा !
(संतराम का गुस्सा बहुत बढ़ गया) |
*गणेश*- ढोंगी,पाखंडी, तुम लोग इसी प्रकार किसी भोली भाली लड़कियों को फंसाते हो,और उन्हें धोखा देते हो,उनके साथ कुकर्म करते हो ! अब तुम चुपचाप पीछे पैर लौट जाओ और कभी भी मेरी बहन की ओर मत देखना,वरना तुम्हारी आंखें काटकर निकाल दूंगा |
*संतराम* बेहद तमातमा कर बोला - मेरी बेटी का कभी भी पीछा करते हुए सुनूंगा,तब तुम्हारा ओ हश्र करूंगा,जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकोगे | चुपचाप पीछे पैर वापस चले जाओ,समझे कि नहीं ?
*एहसान*- सुशीला एक बार आकर अपना विचार बता दें, उसके मन में क्या है ?
*सुशीला*- *ऐ मिस्टर,हम ऐसे खानदान की बेटी हैं, जो अपने जाति,समाज , धर्म के अलावा यदि कोई देवता भी आ जाए,तो हम उसे नजर मिलाकर नहीं देखतीं |*
*विदर्भ देश के राजा भीमक की पुत्री- दमयंती की कथा सुनी होगी,जो अपने वांछित पति देव " नल" के अतिरिक्त देवराज इन्द्र,अग्नि देव,वरूण देव,और यम देवता को भी पति के रूप में स्वीकार नहीं किया*
*इसी प्रकार मैं भी अपने पिताजी,माताजी, परिवार के पसंद किए हुए हमारी जाति ,समाज -धर्म के पुरूष के अलावा किसी देवता को भी पति के रूप में स्वीकार नहीं करूंगी* *समझे कि नहीं*
*तुम्हें अपना जीवन साथी बनाने के लिए*:-
*न तो मैं हूं राजी*
*न मेरा दिल है राजी*
*न हमारी जाति है राजी*
*न हमारा समाज है राजी*
*न मेरा कर्म है राजी*
*न मेरा धर्म है राजी*
*चुपचाप पीछे पैर लौट जाओ*
दिनांक - 16 जून/2023
*सर्वाधिकार सुरक्षित*
*गया प्रसाद साहू*
"रतनपुरिहा"
*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*
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