Sunday, 25 June 2023

न मैं हूं राजी, न मेरा दिल है राजी

 *// न मैं हूं राजी, न मेरा दिल है राजी //*

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    (छत्तीसगढ़ी नाटक)

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*पात्र परिचय*

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*१. एहसान* (एक मुस्लिम छोकरा) 

*२. सुशीला (हिन्दू छोकरी)*

*३. संतराम- (सुशीला के पिताजी)*

*४. गणेश - सुशीला का भाई*




      

     जेठ के तिफतिफाय मंझनिया एक बरगद के छांव म एहसान बैठे रहिस |

     भरे दोपहर म एक युवती  सुशीला ह आगी सहीं तीपे भोंभरा ले व्याकुल  कूद-कूद के वोही बरगद डहर आवत रहिस |

*एहसान*- ऐ लड़की आओ छांया में , बहुत तेज धूप है |

*सुशीला*- हव गा |

            असहनीय घाम अउ भोंभरा ले बांचे खातिर सुशीला ह ओ बरगद डहर जाय लगिस |

      घाम,भोंभरा ले व्याकुल सुशीला ह बरगद डहर निहारत-निहारत दौड़े लगिस, अचानक ओकर पांव ह  बबूल कांटा म पड़ गे चुब्भ ले गड़ीस ! हाय दाई-ददा ! मर गयेंव दाई-ददा !!! सुशीला व्याकुल हो गे !!!

*एहसान*- क्या हो गया  ? 

*सुशीला*- गोड़ म कांटा गड़ गे, हाय दाई-ददा ! मर गयेंव दाई-ददा !!!

*एहसान*  ओ हो !आओ  तुम्हारे पांव का कांटा निकाल दूं |

*सुशीला*- नहीं गा मैं निकाल लेहूं |

*एहसान*- अरे बाप   रे ! चार-पांच कांटे गड़े हैं,खून निकल रहा है  !!!


*सुशीला*- हाय दाई-ददा ! चार-पांच  कांटा गड़े हे ! कईसे निकालौं ? 

*एहसान* लाओ मैं तुम्हारे पांव के कांटे निकाल दूं, बहुत खून बह रहा है |

*सुशीला*- नहीं गा, नहीं गा |

     तभो ले जिद्ध करके तीन  बबूल कांटा ल एहसान निकालीस |

*सुशीला*- धन्यवाद भैया, मैं तो घबड़ा गए रहेंव- ऐ कांटा ल कईसे निकालहूं ? कईसे घर जाहूं ? धन्यवाद भईया |

*एहसान*- कुछ देर छायां में बैठ  जाओ |

तुम्हारा नाम क्या है ?

*सुशीला*- सुशीला |

    *एहसान*-तुम्हारे पिताजी किस विभाग में कार्यरत हैं ?

*सुशीला*- राजस्व विभाग में  बड़े बाबू  हैं, बिलासपुर  आफिस जाते हैं |

*एहसान*- अच्छा कितने बजे आते हैं ? *सुशीला*- रात लगभग ९.०० बजे आते हैं |

*एहसान -* तुम्हारा भाई क्या करता है ?

*सुशीला*- इंजीनियरिंग कॉलेज बिलासपुर में इंजीनियरिंग कोर्स कर रहा है |

*एहसान*- अच्छा , कल फिर मिलेंगे | इसी जगह पर, इसी समय |

मिलोगे न ?

*सुशीला*_ काबर गा ?

*एहसान*- यूं ही आप से मिलकर अच्छा लगा | आप बहुत अच्छी हैं |

*सुशीला*- चुप गा,हम ल अच्छा नइ लागै, कोनो छोकरा संग मिलना- -गोठियाना | छी दाई !

*एहसान*- कल इसी समय-इसी जगह पर जरूर मिलना,अच्छी-अच्छी बातें करेंगे ओके     |

*सुशीला*- नहीं गा,मैं नइ आऔं समझे |

    दूसरे दिन सुशीला ह ओ बरगद तिर नइ गईस | तब तीसरे दिन शाम के समय ओ एहसान ह सुशीला के घर पहुंच गे |

*एहसान*- सुशीला ए सुशीला, सुशीला ए सुशीला..........

     एक अनजान छोकरा ल सुशीला-सुशीला पुकारत  सुन के सुशीला  के पिताजी संतराम ह बाहिर निकलीस |

*संतराम* कोन हे भाई ?  कहां से आए हस ?

*एहसान*- मैं एहसान हूं, यहीं बिलासपुर का रहने वाला हूं |

*संतराम*- अच्छा,का काम हे भाई ?

*एहसान*- सुशीला से काम है |

*संतराम* का काम हे बताबे भाई ? 

*एहसान*- सुशीला को बताऊंगा |

*संतराम* कोई अजनबी मनखे से अपन बेटी ल हमन गोठबात करे नइ देवन |

    

    अपन पिताजी अउ एक अनजान छोकरा के वार्तालाप ल सुन के गणेश आ गे |

*गणेश*- कौन है पिताजी ? क्या बोल रहा है ? 

*संतराम* देख न बेटा,कोई अजनबी छोकरा आए हे अउ सुशीला से मिलना है बोलत हे !!

*गणेश*-  सुनिए, आपको हम नहीं जानते, किसी अनजान युवक से मेरी बहन बात नहीं करती, समझे |

*एहसान* सुशीला मुझे पहचानती है, मैं उससे मिलना चाहता हूं |


*सुशीला*- ऊंकर बहसबाजी सुन के बाहर आईस अउ बताईस- पिताजी,कल दोपहर   कालेज से वापस आवत रहेंव, बहुत तेज धूप रहिसे,तव साईकिल खड़ी करके सड़क तिर एक बरगद छांव म जावत रहेंव, बरगद छांव म जल्दी पहुंचे के धुन म बरगद तरी बबूल कांटा ल देख नइ पायेंव, चार-पांच ठन कांटा गड़ गईस ! लहू निकलत रहिस ! ओ बरगद छांव म एही लड़का रहिसे अउ मोर गोड़ के कांटा ल निकालीस | बदले म मैं एला धन्यवाद देहेंव अउ घर आ गयेंव | बस अतकेच बात आय |

एला हमर घर आए से का मतलब हे ?

*एहसान*- मैं तुम से प्यार करने लगा हूं  |

*संतराम*- ऐ लड़के तुम अपने जबान पर लगाम दो | मानवता का परिचय देते हुए सुशीला के पांव का कांटा निकाल दिए, इसके लिए धन्यवाद एवं आभार |

     अब आगे प्यार-व्यार की बातें मत करो, चुपचाप चले जाओ |

*एहसान*- लेकिन मुझे सुशीला से प्यार हो गया है, इसीलिए मैं आया हूं |

*गणेश*- ऐ मिस्टर, तुम चुपचाप वापस लौट जाओ,अन्यथा अपने साथियों को फोन करूंगा,तब पता नहीं तुम्हारा क्या हश्र होगा ! 

*एहसान* मैं सचमुच सुशीला से प्यार करने लगा हूं |

*संतराम*- तुम्हारे जबान को लगाम दो वरना मैं असंतराम बन जाऊंगा,तब तुम्हारे प्यार का ढोंगी नाटक जीवन भर के समाप्त हो जायेगा !

(संतराम का गुस्सा बहुत बढ़ गया) |

*गणेश*- ढोंगी,पाखंडी, तुम लोग इसी प्रकार किसी भोली भाली लड़कियों को फंसाते हो,और उन्हें धोखा देते हो,उनके साथ कुकर्म करते हो ! अब तुम चुपचाप पीछे पैर लौट जाओ और कभी भी मेरी बहन की ओर मत देखना,वरना तुम्हारी आंखें काटकर निकाल दूंगा |


*संतराम* बेहद तमातमा कर बोला - मेरी बेटी का कभी भी पीछा करते हुए सुनूंगा,तब तुम्हारा ओ हश्र करूंगा,जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकोगे | चुपचाप पीछे पैर वापस चले जाओ,समझे कि नहीं ? 

*एहसान*- सुशीला एक बार आकर अपना विचार बता दें, उसके मन में क्या है ?

*सुशीला*- *ऐ मिस्टर,हम ऐसे खानदान की बेटी हैं, जो अपने जाति,समाज , धर्म के अलावा यदि कोई देवता भी आ जाए,तो हम उसे नजर मिलाकर नहीं देखतीं |*

    *विदर्भ देश के राजा भीमक की पुत्री- दमयंती की कथा सुनी होगी,जो अपने वांछित पति देव " नल" के अतिरिक्त देवराज इन्द्र,अग्नि देव,वरूण देव,और यम देवता को भी पति के रूप में स्वीकार नहीं किया*

     *इसी प्रकार मैं भी अपने पिताजी,माताजी, परिवार के पसंद किए हुए हमारी जाति ,समाज -धर्म के पुरूष के अलावा किसी देवता को भी पति के रूप में स्वीकार नहीं करूंगी* *समझे कि नहीं*


    *तुम्हें अपना जीवन साथी बनाने के लिए*:-


*न तो मैं हूं राजी*

*न मेरा दिल है राजी*


*न हमारी जाति है राजी*

*न हमारा समाज है राजी*


*न मेरा कर्म है राजी*

*न मेरा धर्म है राजी*


    *चुपचाप पीछे पैर लौट जाओ*



दिनांक - 16 जून/2023


*सर्वाधिकार सुरक्षित*


*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*



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