भाव पल्लवन--
कलजुग के लइका करै कछैरी, बुढ़वा जोतै नागर
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आज के समे मा अइसे भावना बनगे हे के नौकरी-चाकरी हा सबले उत्तम काम आय।तेकरे सेती सब झन पढ़-लिखके सरकारीच नौकरी पाये बर हाथ धोके पिछू परे रहिथें। इँकर सोच तो अइसे बनगे हे के सरकारी नौकरी मा बँधे-बँधाये तनखा हे---उपर ले खुरचन पानी हे।पइसा हे तहाँ ले जिनगी के सब सुख सुविधा हे--मान,सम्मान ,शान हे। समाज मा अइसनेच दिखथे घलो। एही कारण ले खेती किसानी कोती तो नवयुवक मन के चिटको ध्यानेच नइये।खेत हा परिया झन पर जय सोच के ,जाँगर थके मजबूर बुढ़वा-सियान मन नागर जोतत दिखथें। सियनहिन दाई मन खेत मा बूड़े दिखथें। एही मन धरती दाई के सेवा करके अन्न उपजाके घर-परिवार संग दुनिया के भूँख ला मिटावत हें।
नौकरी ला पाये बर युवक मन का का नइ करत राहैं ? सरकारी नौकरी नइ मिलय त प्राइवेट कोती भागथें।उहू नइ मिलय ता अवसाद मा बूड़े गली-गली गिंजरत रहि जथें फेर खेत-खार ला हिरक के नइ निंहारैं।कुछु रोजगार,धंधा-पानी करे बर मूँड़ नइ उठावैं।अइसे भी माटी मा माटी मिलके, घाम,पानी,शीत ला सहिके कठिन शारीरिक मिहनत वाला कृषि कार्य इँकर बस के नइ राहै काबर के इन तो पढ़त हावन --पढ़त हावन कहिकें मिहनत के काम करेच नइ राहैं ता इँकर अलाली मा जकड़े शरीर हा कमजोर होजय रहिथे।ये मन बइठाँगुर बुता,छँइहा मा बइठे दिमागी काम बस करना चाहथें।
भला विचार करे जाय के का सब झन ला नौकरी मिल जही? बिल्कुल नइ मिलय केवल बेरोजगारी हा बाढ़त जाही। तहाँ ले नाना प्रकार के पारिवारिक अउ सामाजिक समस्या पैदा होवत जाही।आज एही देखे ला मिलत हे।अधिकांश मनखे तनाव मा दिखथें। आत्महत्या अउ घरेलू हिंसा के बाढ़ आगे हे। लूटपाट,चोरी-डकैती अउ दंगा-फसाद रोज-रोज सुने-देखे ला मिलथे।
एक-ठन अउ विकराल समस्या पैदा होवत जावत हे के युवक-युवती मन के परिवार बस नइ पावत हे। बिन नौकरी वाले सो कोनो बिहाव नइ करना चाहत यें।
जिनगी ला सुखी बनाये बर युवक मन ला अपन सोच ला बदले बर लागही।पढ़ई-लिखई के संगे-संग खेती किसानी अउ अन्य मिहनत के काम ला तको सिखना चाही। नौकरी मिलगे ता अच्छा नइ मिलिच तभो अच्छा काबर के खेती के उत्तम कारज के ,सेवा के कारज के कभू कमी नइ राहै।खेती किसानी अउ बैपार हा गुलामी वाले नौकरी ले हिनहर नोहय।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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