Sunday, 25 June 2023

भाव पल्लवन-- कोदो लुवत ले भाँटो, नइ ते ठेंगवा चाँटो।

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भाव पल्लवन--


कोदो लुवत ले भाँटो, नइ ते ठेंगवा चाँटो।

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कोदो के फसल हा जादा घाम मा  एकदम चुरचुरा जथे अउ झटकुन नइ लुवावय ता एको कनी हाथ नइ आवय।अइसन समय मा कोनो हा अपन परोसी ला ये कहिके के तोरो कोदो ला सकेले ला लागहूँ  ,मीठ-मीठ गोठियाके, अपन स्वार्थ ला साधे बर भाँटो -भाँटो कइके सुल्हार के  अपन फसल ला लुआ लिच अउ जब वोकर पारी आइस ता ठेंगा देखा दिच। कुछु न कुछु बहाना बना दिच ता अइसन मनखे हा तो एकदम गारी खाये के लइक कपटी स्वार्थी होथे।अइसन मन ले बँच के रहना जरूरी होथे।

   कहे गे हे के ये दुनिया मा एको मनखे अइसे नइये जेमा कुछु न कुछु रूप मा थोड़-बहुत स्वार्थ के भावना नइ होही। गोस्वामी जी तो इहाँ तक कहे के--

"सुर नर मुनि सब कै यहि रीती।स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती।।"

    अपन हित के चाह भला कोन ला नइ होही?ये भावना सबके आदत अउ व्यवहार मा दिखथे।साधरण मनखे ले लेके बड़े-बड़े साधु-सन्यासी,ज्ञानी-ध्यानी मन मा तको स्वार्थ होथे। जेला नि:स्वार्थ कहे जाथे तेनो हा तो एक प्रकार ले दूसर के कल्याण होवय वाला स्वार्थ आय।

   स्वार्थ-स्वार्थ मा अंतर होथे। कुछ स्वार्थ मा अपन संग दूसरो के हित होवय के विचार होथे ,इही ला सर्वजन हिताय के भाव कहे जाथे, ता कुछ मा खुद के हित होवय फेर दूसर के थोरको अहित मत होवय के भाव छिपे रहिथे । कुछ स्वार्थ तो अइसे वंदनीय होथे के वोमा खुद के अहित भले हो जय फेर दूसर के हित होके राहय अइसन भाव होथे।अइसन मनखे निष्कपट त्यागी होथें। माता-पिता, गुरु,पति-पत्नी,सच्चा प्रेमी , सच्चा मित्र,सच्चा संत-महात्मा अउ नि:स्वार्थ समाज सेवी मन मा हितकारी स्वार्थ के दर्शन होथे।

ये दुनिया मा कुछ अइसे घटिया किसम के निच्चट स्वार्थी मनखे होथें जे मन मतलब सध के तहाँ ले चिन्हँय तक नहीं। अइसन मन अपन लाभ बर --भले दूसर के कतको नुकसान हो जय---काम के निकलत ले मीठ-मीठ गोठियाहीं--दुनिया भर के लालच देहीं-- आनी बानी  के गोठ करके उज्जवल भविष्य के सपना तको देखाहीं।अइसे जताहीं के वोकर ले बढ़के कोनो हितु-पिरीतु नइये फेर जइसे काम सलटही तहाँ ले हिरक के नइ निहारयँ--मुँह फुटकार के प्रेम के दू शब्द नइ गोठियावयँ। अइसन स्वार्थी मन कहूँ भेंट- मुलाकात होगे ता कन्नी काटे ला धर लेथें। जानबूझ के नइ देखत ये तइसे बगल ले निकल जथें।इँकरे बर कहे गे हे के--"मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं।"

जीवन मा धोखा ले बाँचे बर घटिया किसम के स्वार्थी मनखे मन ले बँचना जरूरी होथे।

बादल

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