पल्लवन--
भँइसा के सींग भँइसा ल गरू
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कोनो ल दुख म ---परशानी म परे देख के मुँहे भर म ढाँढ़स बँधाना अउ सिरतो म तन मन धन ले यथा शक्ति वोकर सहायता कर देना म धरती-अगास के फरक होथे। असली तो सहायता करना हर आय।एकर मतलब एहू नइये के ढाँढस बँधाना फालतू होथे। नहीं अइसे बात नइये फेर वो ह कोरा जुबानी,देखौटी नइ होना चाही भलुक हिरदे ले निकले दया-मया के शीतल जल कस वाणी होना चाही। हितु-पिरीतु मन के अइसन दू शब्द ले दुख के धधकत आगी ह बुझाथे-थिराथे।
फेर का करबे आज के समे ह बड़ विचित्र होगे हे। अब तो शोक सभा ह तको फार्मेलिटी निभाये कस लागथे। आँसू ह तको असली ये के नकली ये तेला समझ पाना मुश्किल होगे हे।
घड़ियाली आँसू बहइया छिंही-छिंही मिल जथे। ककरो नोनी बाढ़गे अउ वोकर बर बिहाव नइ लग पावत ये त रंग-रंग के नमक-मिर्चा लगा के गोठियाने वाला पारा-परोस,गाँव-गली, सगा-सोदर म कतको मिल जहीं फेर वोकर घर सगा उतरइया कोनो नइ मिलही।कहूँ गरीबी कारण हे त दू रुपिया के घलो सहायता करइया कोनो नइ मिलही। तेकरे सेती अपन समस्या के हल खुदे खोजना चाही--दुनिया तो बस हँसइया होथे। भँइसा के सींग ह भँइसेच ल गरू होथे।बोहना उहीच ल परथे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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