बोल रे मिट्ठू बोल
बियंग.
खुले अगास मा अजाद उड़ने वाला पंछी पिंजरा मा फँदके डाँगन चारा डाँगन पानी पी के बोले तो का बोले? तभो ले बपुरा मिट्ठू अपन सुभाव ला तो नइ बदल डारे। फेर संगत के असर ले मनखे के बोल सँग मा बोले बर धर लेथे। कोइली के मान सम्मान इतिहास करत आवत हे फेर कऊँवा ला कोनों नइ भाय। बिचारा हर पँदरा दिन बर ही दाई ददा बने रथे। चिरई चिरगुन के मीठ बोली सुहाथे। फेर मनखे के सुभाव बन गेहे कि करू करेला के रसा मा सान के शब्द बाण के बरसा करे के। अब कऊँवा ला घलो समझ मा आ गेहे कि हमर काँव काँव हर मनखे मन के काँव काँव के आरो ले दबगे हे। एकर सेती दूसर लोक मा ठीहा खोजत हे। ओइसे भी नेट इंटरनैट फोर जी फाईव जी टावर मन के रेडिएशन ले कतको जीव जंतु के वंश नास होवत हे। तब का एकर प्रभाव मनखे उपर नइ परत होही? बुधमान कवि मन गाना गावत रथे जीव जंतु नँदावत हे कतको पंछी परानी के अंकाल परत हे कहिके। तब मँय कथों कारन ला खोज रे भकला। चुलहा हँड़िया के रँधना करसा मरकी के पानी ले उमर बाढ़े। दूबी के रसा चाँट के साधु संत दू सौ साल ले जीये। तँय कामे जीयत हस। फ्रीज बोतल के पानी होटल बासा के खाना केमिकल रसायन वाले फास्टफूड के चखना मा चिरई चिरगुन के पहिली तोर प्रजाति के का होही? ये कलजुग हरे इँहा काल हर कलकलावत हे। सुख सुविधा भोगे के चक्कर मा जिनगी दुविधा मा फँसत हे। अउ फकत नफा नुकसान के बोल बोलत हस। कोनों दिन पिंजरा के कपाट खुल जही तब ये सुआ तो फुर्र हो जही। फेर तँय तो न भाग सकस ना उड़ सकस। मँय तो कथों मिट्ठू तँय अपन ला पिंजरा मा धँधाय के दुख मत मना। आज मनखे तोर ले जादा चमाचम रूँधना वाले पिंजरा मा फँदे हे। राजनीति के पिंजरा मा फँसे मनखे अपन अपन मठाधीश बर जिन्दाबाद के नारा पढ़त बोलत हे। इही राजनीति के फाँदा मा फँदबे तब भाई हर बइरी होथे ये सिखाये जाही। राष्ट्रवादी सोच के पिंजरा मा फँसबे तब देश ला फोल फोल के फोकला करे के गुन सिखाये जाही। मिट्ठू ला छोड़ देहूं त काली अपन जात समाज मा जाके मिल जाही फेर तँय तो अतका पाठ पढ़ डारे हावस कि गला काट के रबे नइते कटवाबे। तोर नरी मा ओरमे गमछा फेटा के रँग ला देखके समझ जाहीं कि कोन सिकारी के फाँदा हरे। धरम के पाठ सीखे मिट्ठू ला शास्त्र धरम के ज्ञान ला छोड़के कट्टरता अउ बैमनस्यता के पाठ पढ़य जावत हे। उपर के दू आँखर नइ जाने। अउ जान के का करही? धँधाय पंछी के का चेतना अउ का जागरूकता। जब मन हर ही गुलामी के पिंजरा मा फँदे हे तब तन के अजादी कोन काम के?
मोर मितान जेकर विचार सँग मोर कभू मेल नइ खाय। तेन हर आके कथे - - - - - कस जी तोर मिट्ठू ला अउ कुछु नइ सिखाये हस का? वो वोतकेच बोलथे जतका रोज बोलथे। मँय केहेवँ-- नहीं एला मौसम अउ सीजन के हिसाब ले सिखाथौं। अब तोर मोर अउ मिट्ठू में का फरक हे? जेकर पिंजरा मा तँय फँदे हवस ओकरे बोल ला तहूँ बोलत हावस। मँय बेरा कुबेरा राष्ट्रवादी मानवतावादी के सीख पढ़ाके पारा मा झगरा नइ करवाना चाहवँ। काली बिहनिया चक्काजाम करे बर रेल रोको आन्दोलन पुतला दहन करे बर काकरो झंडा धरके चिचिया चिचियाके पढ़बे तब पुछहूं कि तँय काकर बोल बोलत हस कहिके। तोला तो अतको चेत नइये कि चिचियाएके बदला फूले चना मिलही कि ढूरू ह। तँय तो वो पिंजरा के कैदी सुआ आवस जेला अपन तकदीर कहि सकस ना करम लेख। काबर कि अपन हाथ के रेखा ला मेंटाय बर हथेरी तक ला दूसर के हाथ मा लमा देय हावस। फेर तोर भाखा ला लोकतंत्र के परिभाषा जानत होही वोला पुछबे। चिन्तन करके चेतना जगाबे तब पाबे कि असली गुलामी इही हरे। मोर पिंजरा के मिट्ठू ला वंदे मातरम् तिरंगा झंडा अउ संविधान के मतलब ला समझाहूँ सिखाहूँ कहिके अबड़ सोंचत रथों फेर दाँत कटकटावत कट्टर परोसी के कट्टर विचारधारा ले दंगा मोरे घर ले शुरू झन हो जाय ये सोचके नइ सिखावँ।
इँहा धरम दर्शन अध्यात्म के पिंजरा मा फँदबे तब तोला हरियर सादा भगवा के चिर्र पों सिखाये जाही। समता अउ समानता के पाठ सिखाहूँ तौ कट्टरवादी मन कटारी धरके दँउड़ाही। बेवस्था के बिगड़े हाल ला बखाने बर सिखाथौं तौ शब्द बाण के घाव के असर ले अपराधी बना देय जाही। गरीबी बेकारी मँहगाई लूट हिंसा अत्याचार झूठ लबारी भ्रष्टाचार के विरोध मा अवाज उठाय बर सिखाथौं तब विशाल मंदिर मसजिद मा लगे आस्था के घंटा के अवाज ले मुद्दा के अवाज दब जथे। संतवाणी के प्रभाव ले बेल पेंड़ बुचवा होगे। पाना चघाय के जगा बेल पेंड़ लगाय के प्रवचन अउ सीख ले धरती अउ परियावरन हरियातिस फेर अइसन तो कोनो साधक उपासक संत कहिबे नइ करे हे। तब ये काम करके का करम ठठाहीं। हिमाचल के जड़ी बूटी अउ किमती पेड़ नदारत होवत हे फेर फोकट लाखों लाख कंठी रूद्राक्ष बांटे बर पेंड़ कहाँ ले आगे जंगल जंगल फिरइया मिट्ठू घलो नइ बता पावत हे। कुछ बड़े प्रजाति के मिट्ठू मन दिल्ली चलो दिल्ली चलो के पाठ पढ़त हे। छोटे सुआ मन ला अँधरउटी अउ अंधभक्ति के लाल मिरचा खवा देय हे। जेमन ला अकबका के टाँय टाँय टर्र टर् करे बर छोड़ देय हे। अउ मीठ रसा वाले फल फूल मा अपन मन काबिज हो गेहें। तभो लाल मिरचा अउ ढूरू चना मा नमकहरामी नइये। जइसे सिखाये जावत हे ओइसने बोलत हे। कुछ अवसरवादी सुआ मन कतका रंग अउ दल बदलहीं कहे नइ जा सके। बोले के अजादी का मिलिस कतको के मुँहूं के मरियादा उढ़रिया भगा गेहे। जेन ला जइसन नइ बोलना हे वो तक ला बफलत रथे। तब मौसम अउ सीजन ले अवतरे मिट्ठू मनके अवसरवादी बोल शुरू हो जथे।
खुद के जरूरत मनखे अउ मानवता के जरूरत देश दुनिया ला आज के जरूरत अउ जवाबदारी ला स्वारथी मनके बँड़ोरा उड़ाके लेगत हे। एक ठन पंछी पिंजरा मा धँधाके ओतके बोलथे जतका सिखाय जाथे। फेर सोच सकथस अजाद मनखे पंछी ले का कम धँधाये हे। पूरा मनखे समाज देश दुनिया क्रोध ईर्ष्या द्वेष छल बल कपट के पिंजरा मा फँसे हे। जे धाँध के राखे के दमखम रखथे उही हर अपन भाखा बोले बर बेबस कर देहे कि बोल रे मिट्ठू बोल।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव 🙏🏻.
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