Sunday, 9 April 2023

नाटक - विभागीय दीदी भाँटो

 नाटक -

 विभागीय दीदी भाँटो

चौंक के सीन। दू झिन ट्रेफिक पुलिस वाले मनके ड्यूटी लगे हावय। दूनो आपस म गोठ बात करत रहिथे।

पहला :- यार ये साहब घलो ह अइसे जगा म हमर ड्यूटी लगाए हे जिंहा कोनो मरे रोवइया नइ हे, चारो मुड़ा सुक्खा सकराएत हे।

दूसरा :- (अपन अंतस म धीर धरत) आही आही। धीर म खीर मिलथे संगवारी।

पहला :- अरे ....

दूसरा :- देख, देख ओदे आवत हे। 

पहला - आवत तो हे, फेर एहू तो साहब सुधा कस लागत हे बूजा ह।

दूसरा - अरे नहीं। ठेठ देहाती छप्पा ए। 

पहला  - (खुश होवत) सिरतोन काहत हस। 

दूसरा - देख ! ओकर घेंच म गमछा लपेटाए हे न। 

पहला - हहो ...

दूसरा - चमके डर्राये असन गाड़ी चलावत हे न। 

पहला - सही कहे जी ! बिल्कुज सहीं !!

दूसरा -  अउ अब ओकर थोथना ल देख। डिक्टो घाम म झोला खाए झुर्रियाए कस थोथना ओरमे हे, मतलब जान ले इही हमर असली चारा हरे।

(दूनो झिन एक दूसर कोति ल देखथे अउ एके संघरा बोल डारथे )

दूनो - चल फेर कुकरा दबाते हैं....

मोटर साइकिल वाले पुलिस के हाथ के इशरा पाके रूक जाथे। एक झिन पुलिस आके ओकर गाड़ी के चाबी ल सट ले निकाल लेथे।

पुलिस -चल गाड़ी ल किनारे लगा। गाड़ी के लाइसेंस हे ?

कका - सर ...हे न सर

पुलिस - तोर लाइसेंस हे 

कका - हे...! हे..!  हे न सर ।।

कका तुरते सब कागजात देखा देथे। 

काकी  - हाँ, सब कागजात हे साहेब, ए देख हेलमेट तको पहिने हे। अब हमन ल जावन दे साहब। 

(पुलिस वाला काकी कोति ल गुर्रिया के देखथे त काकी मारे डर सुकुरदुम हो जथे।)

अब पुलिसवाला दूसर दाँव फेकथे। 

पुलिस - अरे कागेजात भर के रहे ले का होही। कागज के मतलब मायने तो घलो होना चाही। 

कका - मतलब ? 

पुलिस - अरे ! निच्चट भोकोलोलो हस यार । जउन कागजात ल हम देखना चाहत हन बो तो हइच नइहे।

कका - अउ का कागज साहब ? सबो तो हे।

काकी - हाँ ! देखौ न साहेब। (काकी डेराए असन कका ल पंदोली दिस)

पुलिस - अरे ओ हरियर रंग के कागज कहाँ हे।

कका - हरियर रंग के का कागज साहब ?

पुलिस - उही, जेमा गाँधी बबा के फोटू रहिथे।

दूसर पुलिस  - हटा यार ! लाल सिगनल पार करे हस तेकर फाइन पटा। बस।

काकी - का के लाल सिगनल साहेब। एदे हमरे आगू म कतको झिन लाल सिगनल पार कर डारिस तिंकरमन के कुछु नहीं। हम सरीफ मन के फाइन। 

पुलिस - दूसर ल छोड़ तैं अपन ल देख। 

दूसरा पुलिस - वोमन हमार लागमानी हरे।

काकी - त का .....

पुलिस - चुप्प ....एकदम चुप ! (कका से) चल नाम बता। 

दूसरा पुलिस - फाइन काट साहब, तब पता चलही एमन ल, कतका मुँहजोरी करथे न सब सटक जही।

कका काकी घबरा जथे। एक दूसर के मुँह ल देखे लगथे। काकी उदास हो जथे। ओतके बेरा एसपी साहेब के गाड़ी चउक ले गुजरथे। पुलिस वाला एस पी साहब ल सेलूट मारथे। ओइसने म काकी चिल्लाए लगथे-

काकी - साहब ! साहब !!

एसपी साहब के गाड़ी रूक जथे। 

साहब - क्या हुआ ?

दूनो पुलिस वाला - कुछ नहीं साहब, कुछ नहीं ...

ओतके म काकी कका के हाथ ले कागज लेके दउड़के साहब के पास जाथे अउ कहे लगथे 

काकी - देखौ साहब हमर कागज म का कमी हे। हमर लाइसेंस फर्जी हे के हमर गाड़ी के कागज फर्जी हे, कि हमन फर्जी लगत हावन ?

साहब - ( कागज ल देख के गाड़ी कोति ल देखथे, फेर पुलिसवाले मन ले पूछथे ) सब तो सही है । क्या हुआ ?

काकी - इन्कर कहना हे साहेब हमर तीरन वो कागज नइ हे जेकर इन ला जरूरत हे। ए कागज मन ल बेकार हे कहिथे।

साहब - समारू -बुधारू 

दूनो पुलिस  (सेल्चूट मारथे)  -यस सर।

साहब - मेरे इलाके में जरा भी तीन पाँच किए न तो मैं एक एक का बारह बजा दूँगा समझे।

दूनो पुलिस  - जी सर 

साहब - क्षमा मांगो !....अभी ... मेरे सामने ही। और जाने दो इनको।

दूनो पुलिस - हमन ल माफी देबे बहिनी !!! ये ले गाड़ी के चाबी।

काकी - मोला काबर देथस भैया तोर भाटो ल दे न गा। उही चलाही, मैं थोरे चलाहूँ।

कका काकी दूनो गाड़ी म बइठथे अउ चलते बनथे।

रेंगत खानी काकी चिचियावत कहिथे।

काकी - भाई दूज बर हमर घर आहू भैया, खीर खवाहूँ तुमन ल।

पुलिस वाले मन बोकबाय एक दूसर के मुँह ल देखते रहि जथे।

धर्मेन्द्र निर्मल

9406096346

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