नाटक -
विभागीय दीदी भाँटो
चौंक के सीन। दू झिन ट्रेफिक पुलिस वाले मनके ड्यूटी लगे हावय। दूनो आपस म गोठ बात करत रहिथे।
पहला :- यार ये साहब घलो ह अइसे जगा म हमर ड्यूटी लगाए हे जिंहा कोनो मरे रोवइया नइ हे, चारो मुड़ा सुक्खा सकराएत हे।
दूसरा :- (अपन अंतस म धीर धरत) आही आही। धीर म खीर मिलथे संगवारी।
पहला :- अरे ....
दूसरा :- देख, देख ओदे आवत हे।
पहला - आवत तो हे, फेर एहू तो साहब सुधा कस लागत हे बूजा ह।
दूसरा - अरे नहीं। ठेठ देहाती छप्पा ए।
पहला - (खुश होवत) सिरतोन काहत हस।
दूसरा - देख ! ओकर घेंच म गमछा लपेटाए हे न।
पहला - हहो ...
दूसरा - चमके डर्राये असन गाड़ी चलावत हे न।
पहला - सही कहे जी ! बिल्कुज सहीं !!
दूसरा - अउ अब ओकर थोथना ल देख। डिक्टो घाम म झोला खाए झुर्रियाए कस थोथना ओरमे हे, मतलब जान ले इही हमर असली चारा हरे।
(दूनो झिन एक दूसर कोति ल देखथे अउ एके संघरा बोल डारथे )
दूनो - चल फेर कुकरा दबाते हैं....
मोटर साइकिल वाले पुलिस के हाथ के इशरा पाके रूक जाथे। एक झिन पुलिस आके ओकर गाड़ी के चाबी ल सट ले निकाल लेथे।
पुलिस -चल गाड़ी ल किनारे लगा। गाड़ी के लाइसेंस हे ?
कका - सर ...हे न सर
पुलिस - तोर लाइसेंस हे
कका - हे...! हे..! हे न सर ।।
कका तुरते सब कागजात देखा देथे।
काकी - हाँ, सब कागजात हे साहेब, ए देख हेलमेट तको पहिने हे। अब हमन ल जावन दे साहब।
(पुलिस वाला काकी कोति ल गुर्रिया के देखथे त काकी मारे डर सुकुरदुम हो जथे।)
अब पुलिसवाला दूसर दाँव फेकथे।
पुलिस - अरे कागेजात भर के रहे ले का होही। कागज के मतलब मायने तो घलो होना चाही।
कका - मतलब ?
पुलिस - अरे ! निच्चट भोकोलोलो हस यार । जउन कागजात ल हम देखना चाहत हन बो तो हइच नइहे।
कका - अउ का कागज साहब ? सबो तो हे।
काकी - हाँ ! देखौ न साहेब। (काकी डेराए असन कका ल पंदोली दिस)
पुलिस - अरे ओ हरियर रंग के कागज कहाँ हे।
कका - हरियर रंग के का कागज साहब ?
पुलिस - उही, जेमा गाँधी बबा के फोटू रहिथे।
दूसर पुलिस - हटा यार ! लाल सिगनल पार करे हस तेकर फाइन पटा। बस।
काकी - का के लाल सिगनल साहेब। एदे हमरे आगू म कतको झिन लाल सिगनल पार कर डारिस तिंकरमन के कुछु नहीं। हम सरीफ मन के फाइन।
पुलिस - दूसर ल छोड़ तैं अपन ल देख।
दूसरा पुलिस - वोमन हमार लागमानी हरे।
काकी - त का .....
पुलिस - चुप्प ....एकदम चुप ! (कका से) चल नाम बता।
दूसरा पुलिस - फाइन काट साहब, तब पता चलही एमन ल, कतका मुँहजोरी करथे न सब सटक जही।
कका काकी घबरा जथे। एक दूसर के मुँह ल देखे लगथे। काकी उदास हो जथे। ओतके बेरा एसपी साहेब के गाड़ी चउक ले गुजरथे। पुलिस वाला एस पी साहब ल सेलूट मारथे। ओइसने म काकी चिल्लाए लगथे-
काकी - साहब ! साहब !!
एसपी साहब के गाड़ी रूक जथे।
साहब - क्या हुआ ?
दूनो पुलिस वाला - कुछ नहीं साहब, कुछ नहीं ...
ओतके म काकी कका के हाथ ले कागज लेके दउड़के साहब के पास जाथे अउ कहे लगथे
काकी - देखौ साहब हमर कागज म का कमी हे। हमर लाइसेंस फर्जी हे के हमर गाड़ी के कागज फर्जी हे, कि हमन फर्जी लगत हावन ?
साहब - ( कागज ल देख के गाड़ी कोति ल देखथे, फेर पुलिसवाले मन ले पूछथे ) सब तो सही है । क्या हुआ ?
काकी - इन्कर कहना हे साहेब हमर तीरन वो कागज नइ हे जेकर इन ला जरूरत हे। ए कागज मन ल बेकार हे कहिथे।
साहब - समारू -बुधारू
दूनो पुलिस (सेल्चूट मारथे) -यस सर।
साहब - मेरे इलाके में जरा भी तीन पाँच किए न तो मैं एक एक का बारह बजा दूँगा समझे।
दूनो पुलिस - जी सर
साहब - क्षमा मांगो !....अभी ... मेरे सामने ही। और जाने दो इनको।
दूनो पुलिस - हमन ल माफी देबे बहिनी !!! ये ले गाड़ी के चाबी।
काकी - मोला काबर देथस भैया तोर भाटो ल दे न गा। उही चलाही, मैं थोरे चलाहूँ।
कका काकी दूनो गाड़ी म बइठथे अउ चलते बनथे।
रेंगत खानी काकी चिचियावत कहिथे।
काकी - भाई दूज बर हमर घर आहू भैया, खीर खवाहूँ तुमन ल।
पुलिस वाले मन बोकबाय एक दूसर के मुँह ल देखते रहि जथे।
धर्मेन्द्र निर्मल
9406096346
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