कठवा पथरा अस जिनगी-
विधवा - अभागिन
जिनगी के अइसन रूप समाज के दरपन म देखे ला मिलथे कठवा पथरा अस जिनगी विधवा मन के l
अभागिन नाम धरा देथे l बेटी बहु बन के गिस l सुहाग भरागे बेटी गिस माँग उझरगे विधवा होगे अभागिन कहागे दोस लगगे l
जिनगी जिए बर जोड़ी खोजिस जोड़ी के भाग भाग म नई रहिस समाज घृणा के नजर ला देखे l गलत नजरिया बना लीस l कोंख ले निकले बेटी ए फेर वाह रे अइसन जिनगी ला जिन्दा लास बरोबर बना देथे l
कोनो शुभ काम नई कर सकय शुभ काम म आघू नई आ सकय l देह के चोला बदल देथे अछूत असन लोगन व्यवहार करथे l
का पापकरे रहिस तेमा हँसी खुशी छिना जथे? विधवा होये के बाद ओकऱ गोठ बात ला नई भावय कोनो l नान नान लइका ला ओकऱ से धुरिहा रखथे l भरे जवानी के विधवा पन के जिनगी ल समाज अइसे ढोंग ढचरा करके कुरूप बना देहे l सब नारी ले अलग चिन्हऊ l
बिधाता घलो देख़ के रोवत होही मोर अतका सुन्दर रचना ला का रीति नीति बनाके बिगाड़ के राखे हव l अइसन लबादा ओढ़ा के शरम नई आवत हे का?
बेटी ए बेटी ए l बर बिहाव जोड़ी बनाए बर प्रथा बनाये अव जोड़ी मरगे ओकऱ के ज्यादा दुःख
तुहर बनाये जंजीर ढकोसला म जीना l कठवा पथरा घलो तारे तरसे तारासे ले सुगघर मूर्ति बन जथे फेर मैनखे के बुद्धि ला का होगे हे
कब चेत आही कब जागही?
मानवता के नाम म कलंकित परम्परा मानव अधिकार ले वँचित जीवन विधवा ल अब विधवा झन कहव l विधाता ह अब नोनी नई दय! बेटी नई दय! नारी नई दय!
अइसन अनीति अनियाव करहू त l विधवा बेटी ला फेर सजा के देख़
जिनगी के भाग संवर जहीसुखी खुसी ले माला माल हो जहू l
मुरारी लाल साव
भाटापारा कुम्हारी
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