Saturday, 1 April 2023

कठवा पथरा अस जिनगी- विधवा - अभागिन

 कठवा पथरा अस जिनगी-

 विधवा - अभागिन 


    जिनगी के अइसन रूप समाज के दरपन म देखे ला मिलथे  कठवा पथरा अस जिनगी  विधवा मन के l

      अभागिन नाम धरा देथे l बेटी बहु  बन के गिस l सुहाग भरागे  बेटी गिस माँग उझरगे  विधवा होगे अभागिन  कहागे  दोस लगगे l

       जिनगी जिए बर जोड़ी खोजिस जोड़ी के भाग  भाग  म नई रहिस  समाज घृणा के नजर ला देखे l गलत नजरिया बना लीस l कोंख  ले निकले बेटी ए  फेर वाह रे अइसन जिनगी ला जिन्दा लास बरोबर बना देथे l

           कोनो शुभ  काम नई कर सकय शुभ काम म आघू  नई आ  सकय l देह के चोला बदल देथे  अछूत असन लोगन व्यवहार करथे l

           का पापकरे रहिस तेमा हँसी  खुशी छिना जथे? विधवा होये के बाद ओकऱ गोठ  बात ला नई भावय  कोनो l नान नान लइका ला ओकऱ से धुरिहा  रखथे l भरे  जवानी के विधवा पन के जिनगी ल समाज अइसे ढोंग  ढचरा करके कुरूप बना देहे l सब नारी ले अलग चिन्हऊ l

           बिधाता घलो  देख़ के रोवत होही  मोर अतका सुन्दर रचना ला का रीति नीति बनाके बिगाड़ के राखे  हव l अइसन लबादा ओढ़ा के शरम  नई आवत हे का?

           बेटी ए बेटी ए l बर बिहाव जोड़ी बनाए बर प्रथा  बनाये अव जोड़ी मरगे  ओकऱ के ज्यादा दुःख

तुहर बनाये जंजीर  ढकोसला म जीना l कठवा  पथरा  घलो  तारे तरसे  तारासे ले सुगघर मूर्ति बन जथे  फेर मैनखे के बुद्धि ला का होगे हे

कब चेत  आही कब जागही?


         मानवता के नाम म कलंकित परम्परा मानव अधिकार ले वँचित  जीवन विधवा  ल अब विधवा झन  कहव  l  विधाता ह अब नोनी नई दय! बेटी नई दय! नारी नई दय!

अइसन अनीति अनियाव करहू  त l विधवा बेटी ला फेर सजा के देख़

जिनगी के भाग संवर जहीसुखी  खुसी ले माला माल हो जहू l


       मुरारी लाल साव

       भाटापारा  कुम्हारी

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