पल्लवन--
राखही राम त लेगही कोन,लेगही राम त राखही कोन
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कोनो जीव के जनम होतेच वोकर मौत के यात्रा शुरु हो जथे । कहे जाथे के धीरे-धीरे उमर बाढ़त जावत हे फेर हकीकत तो इही होथे के धीरे-धीरे उमर खिरथे।जनम के तिथि तो मालूम होथे एकर उलट मौत कब होही अउ कइसे होही तेला कोनो नइ जानय। मौत ह अतिथि बरोबर आय।कब आही,कती ले आही,कइसे आही तेन पता नइ राहय फेर आहीच ये तो सत्य होथे। ये अटल मौत ह कभू-कभू कुछ समे बर टले सहीं लागथे ।कतको झन मौत के मुँह म जाके बाहिर निकले कस लागथें।भक्त प्रहलाद ह बरत आगी होलिका ले बाँचगे। मीराबाई ह मारे बर देये जहर ल पी के बाँचगे।आजो ये देख-सुनके बड़ अजरज होथे के कोनो हवाई जहाज ले गिरके बाँचगे, भूकंप म घर के मलबा म कई दिन ले दबे दुधमुहा लइका बाँचगे अउ बड़े-बड़े जवान-सियान मन मरगें।
एकर उलट एहू देखे सुने म आथे कोनो रेंगत-रेंगत अपट के गिरिच ततके म मरगे,एक दिन थोकुन बुखार आइच,दवाई-पानी म लाखों रुपिया खरचा करिच तभो ले नइ बाँचिस। दू मिनट पहिली हाँसत-गोठियावत,नाचत-कूदत मनखे हे अचानक मर जथे। एही सब ल देख के आस्थावान मनखे मन कहिथें के--'राखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त राखही कोन।' जेन भी होथे सब भगवान के इच्छा ले होथे। वोकर मर्जी के बिना पत्ता तक नइ डोलय।
अइसन विश्वास ह मनखे ल निर्भय बनाथे। सबले बड़े डर--मौत के डर ले बँचाथे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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