नौ दिन मा चलय अढ़ई कोस बहाना बनाय ठोसे ठोस(पल्लवन)
मनखे के जिनगी मा समय के अड़बड़ महत्तम होथय। सबो मनखे ला रोज चौबीस घंटा मिलथे फेर जौन अपन 24 घंटा ला सुग्घर बउरे बर सीख जाथय वोला हर जगा मान मिलथे अउ हर बूता मा सफलता मिलथे। मनखे के सुभाव ओकर चाल ढाल मा दिख जाथे, फेर कतको मनखे हा लकर्रा, हड़बड़हा होथे। कोनो बूता देबे ता हबके डबके बरोबर तुरते ताही निपटा डारथे। फेर कोनों मनखे हा आलसी अउ असकटहा बानी के होथे। ओला कोनों बूता बता दे ता वोहा नइ करँव नइ कहय फेर ओ बूता ला बेरा बखत मा पूरा घलाव नइ करय। तीन घंटा के एक ठन बूता ला करत करत दिन भर पोहा देथय। राशन दुकान मा बइठे समान देवइया, बैंक के केसियर, बिल जमा करइया मन अतका धीरलगहा बूता करथे कि पांच मिनट के बेरा ला पचास मिनट लगा देथय।
ये ता मनखे के गोठ होइस फेर अइसने आज देश भर के कतको ठउर मा देखब मा मिलथे। सरकारी दफ्तर मा कोनों अर्जी देबे ता एक घंटा मा बनइया कागज ला एक हफ्ता लगा देथय। नेता मंत्री के घोषणा, ठेकादारी मा होवत सरकारी बनइया कोनों निर्माण मा सबो ला अनभो हावय कि कोनों बूता हा बेरा बखत मा पूरा नइ होवय। दर्जी हा दू दिन मा सिल के देवइया अंगरखा ला आठ दिन लगा देते।कुलर पंखा, टीवी, घड़ी, मोटर पंप,मशीन बनइया मन घलाव आज बनही काली बनही कहिके दिन धराथे।
सरकारी योजना के लाभ मा इही हाल रहिथे, कागज हा एक साहब ले दूसर साहब कर जावत ले योजना के उद्देश्य सिरा जाथे। जइसे गरमी (रग्गी) दिन मा पियाउ खोले के सरकारी योजना के शुरू होवत ले बरसात के आय के बेरा हो जाथय।जौन अपन बूता ला बेरा बखत मा पूरा नइ कर ओला मान गउन नइ मिलय भलुक गारी बखाना मिलथे।
बूता ला बेरा बखत मा पूरा नइ कर सकय ता एखर सफई देय बर बहाना घलाव अतका ठोस बताथय कि सुनइया ला लबारी मा भरोसा करे के छोड़ कुछू नइ कर सके। आज धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सरकारी, घरोधी, पूजा पाठ कोनों बूता होवय धीरलगहा केछवा चाल मा चलथे। एखरे सेती कहे जाथे नौ दिन चलत अढ़ई कोस।
हीरालाल गुरुजी समय
छुरा, जिला- गरियाबंद
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