कहानी: करजा
पोखन लाल जायसवाल
१.
मनखे के जिनगी चलत हे त चलत हे। जब तक साॅंसा के डोर लमे हे, जिनगी हे। ये डोर कब पूर जही? कोनो नइ जानय? कब काखर तन ह डोल जही, एकरो कोनो च ठिकाना नइ हे? बने-बने देखे अउ दिखे, तब तक स..बो बने-बने आय। एक छिन म का ले का नइ हो जथे। रद्दा बाट चलत हपटे ले घलव...जी छूट जथे। एक ठन बहाना भर तो चाही हंसा ल उड़ाय बर। रखइया उही अउ बचइया तो उही च ऊपर वाले आय। बाकी सब झन इहाॅं उही ऊपर वाले के हाथ के खेलौना ए। बजारू खेलौना कभू-कभू खेलते-खेलत नइ चले, बिगड़ जथे, वइसने च सुरेश संग होइस। साग-भाजी बिसाय बजार गे रहिस, लहुटत खानी ओकर जेवनी हाथ लरघे लगिस। हाथ के झोला छूटगे। सुरेश बजार ठउर म चक्कर खाके गिरगे। लोगन जुरियाय लगिन। बेहोश सुरेश के मुॅंह म पानी के छींटा मारे ले होश आइस। फेर ओकर मुॅंह ले निकलत आवाज कोनो ल समझ नि आवत हे। हकलाय ल धर लिस सुरेश ह। कोनो-कोनो कहे लगिन कि एला तो लकवा मार दे हे, तइसे लागत हे। एकर एकंगू कोती ह नइ चलत हे। मुॅंह घलव थोकिन टेड़गिया गे हे कहिनउ दिखत हे, हाथ ह झूलना सहीं झूले धर ले हे। चिन्हार मन तुरते अस्पताल लेगिन अउ ओकर घर म आरो करिन। डॉक्टर ह सुरेश के जाॅंच करिस अउ तुरते हायर सेंटर ले जाय के सुझाव दिस। अब तक ओकर गोसाइन अंजनी अस्पताल आगे रहिस। इहाॅं मरे-जिये बर दूनो-परानी रहिथे। दू झन लइका हें। दूनो लइका मन शहर म रहिथें। ओमन ल फोन म सुरेश के तबीयत डोले अउ ओला रायपुर लेगे के आरो दे दे गिस। अउ झप ले रायपुर बलाय गिस। एती ले सुरेश ल एम्बुलेंस म रायपुर ले जाय के जम्मो तियारी होगे रहिस, एम्बुलेंस गाड़ी म ओकर सुवारी अंजनी संग परोसी रामखेलावन घलव गिस। अंजनी बपुरी नारी-परानी भला अकेल्ला काय कर पातिस।
सुरेश मन अपन दाई-ददा के चार लइका। सुरेश अउ रेवा दू भाई अउ दू बहिनी रहिन। दूनो भाई , भाई-बहिनी म सब ले बड़े अउ सब ले छोटे ए। रेवा गुरुजी हावय। हाईस्कूल म पोस्टिंग हे। विज्ञान के लेक्चरर आय। दूनो बहिनी मन के बर बिहा होगे हे। अपन-अपन घर परिवार म बढ़िया खुश हें। सुरेश के मन पढ़ई-लिखई म नइ रहिस। दसवीं क्लास ल दू बछर म नइ निकाले सकिस। ददा के गुजरे के दू बछर पाछू महतारी घलव दुनिया ल छोड़ परलोक चल दीस। तब घर म जमीन के नाॅंव म तीन एकड़ रहिस। घर ह चार कुरिया के कच्चा मकान रहिस। फेर ददा के बीमारी म करजा ऊपर करजा चढ़गे रहिस। फेर ददा ल नइ बचा पाइन। दूधो गिस अउ दुहना घलव गिस। दाई के बहू हाथ के पानी पिए के सउॅंक म करजा सुरसा सहीं अउ बाढ़गे रहिस।
अस्पताल के पहुॅंचत ले बड़े बेटा धरसीवां ले रायपुर हबर गे रहिस। छोटे बेटा ह धमतरी ले आवत हे। वहू ह नौकरी के चलत धमतरी म अपन परिवार सहित रहिथे। धरसीवां वाले ह प्राइवेट पावर प्लांट म नौकरी म हाबे। उही ह परोसी रामखेलावन संग भर्ती कराय के पहिली के जम्मो भाग-दौड़ करिस। जरूरी जाॅंच के होवत ले छोटे बेटा घलव पहुंचगे रहिस। ओकरे संगेसंग रेवा घलव हबरिस। रेवा ल बड़े भतीजा ह फोन म जानबा दे डारे रहिस हे। रिपोर्ट आइस ऊपर ले डॉक्टर बताइस कि सुरेश ल अभी हफ्ता भर अस्पताल म राखे ल परही। दवा ले ठीक होय के उमीद हे। डॉक्टर बतावत कहिस- "यदि तीन दिन में इनके स्वास्थ्य में इम्प्रूव नहीं दिखेगा तो ऑपरेशन करना पड़ेगा। फिलहाल ऑपरेशन करने जैसी कोई बात नहीं है। समय में पहुॅंचने और त्वरित इलाज मिलने से अब कोई डरने वाली बात नहीं है।"
२.
दू दिन के गे ले सुरेश ल आई सी यू ले जनरल वार्ड म सिफ्ट कर दे गिस। ओकर तबीयत म बने सुधार होवत हे लगिस। मॅंझनिया के बेरा छोटे बेटा के मोबाइल म फोन आइस। दूसर कोती ले आवाज आइस- "और कितने दिन चिपके रहोगे, एक तुम ही नहीं हो, तुम्हारा बड़ा भाई भी तो है, करने दो उनको उनकी देखभाल। उसका भी बाप है।। उसे भी बेटे का फर्ज़ निभाने दो। वहाॅं डटे रहोगे तो हमारी ही जेब खाली होगी।" दूसर कोती ले छोटे बेटा के घरवाली बोलत रहिस हे। जेकर मन म ससुर के तबीयत ले जादा पइसा बचाय के संसो रहिस। ओला इहू नइ मालूम रिहिस कि अभी अस्पताल म दूनो भाई हवय। ए बीच छोटे बेटा अपन गोसाइन ल चुप कराय के बहुते कोशिश करिस। फेर ओती ले अवई आवाज थोरको नइ थिरकिस। जना-मना कोनो रिकार्ड बजत हवय, जेन ल बंद करबे तभे बंद होथे कहिनउ। अभी तक छोटे बेटा के मोबाइल के स्पीकर ऑन रहिस हे, तेला ओहा बंद करिस। अभी तक छोटे बहू जेन भी कहिस ओला सुरेश घलव सुन डरिस। हैलो हैलो हैलो... काहत आवाज नइ आवत हे ...के बहाना करत छोटे बेटा दाई-ददा तिर ले दुरिहा गिस। महतारी घलव छोटे बहू के ए गोठ सुन डारतिस, फेर पानी के बाटल ल भरे बर चल दे रहिस हे। बपुरा सुरेश ह छोटे बहू के गोठ ल सुन के अपन गोसाइन अंजनी मेर नि कहि सकिस। कहितिस कइसे, लोकवा ह ओकर मुॅंह ल धर ले हे। ओकर भाखा ह नइ ओरखावय। फेर अंजनी ल देख मन के जम्मो पीरा सावन भादो के नरवा-नदिया के पूरा कस बोहाय लगिस। अंजनी समझिस कि बेटा मन के दौड़-धूप ल देखत रोवत हे।
छोटे बेटा वार्ड के बाहिर परछी म आइस अउ अपन गोसाइन ल चमकाय लगिस। "थोरको दम नइ धरस। मैं चुप करात हॅंव त चुप हो जते त का होतिस? सबो गोठ ल ददा ह सुन डरिस। का कहि ददा ह मोला?"
"बने च होइस, अइसन म अपन बड़े बेटा ल घलो खरचा करे बर कही। तिहीं च ह काबर खरचा करबे, ददा तो दूनो के ए का? थोकिन राग लमावत छोटे बहू अपन गोसइया के मति भरमावत कहिस।
"तोला तो बस अपनेच पइसा के संसो रहिथे। अइसने च तो बड़की घलव कहि सकथे का? ओमन बड़े भले ए, उॅंकर नौकरी ह प्राइवेट हरे। वेतन कमती हे। थोरिक सोच कइसे घर चलावत होही?" छोटे बेटा अपन घरवाली ल समझाय के कोशिश करे लगिस।
"ओकर ले हम ल का करना हे? ओकर घर चलाय के ठेका.. हमर नोहय। बॅंटवारा तो बराबर पाही का? त खरचा घलव बराबर करय न।" ए दारी छोटे बहू के सुर ले अपन गोसइया बर रिस झलकत रहिस हे।
सुन त ...अभी तक मोर बड़े भाई ह मोला एक आना खरचा करन नइ दे हे, सबो दवा-पानी उही च ह बिसाय हे। अब मोर पारी हे कि महू ....घरवाला के गोठ ल पूरे नइ रहिस अउ छोटे बहू बीच म कहे लगिस- "बड़े ए.. खरचा नइ करही त कइसे बनही। सरी दुनिया उही ल बद्दी दिही। उन ल बद्दी ले बचाय के धरम तुॅंहर ए, उॅंकर छोटे भाई जेन आव।" ए दारी छोटे बहू अपन घरवाले ल धरम के पाठ पढ़ाय लगिस।
थोरिक बेर ले दूनो कोई चुप रहिन। छोटे बेटा समझ नि पावत हे कि वो का करय? इही बीच ओती ले फेर आवाज आइस- "अपन लइका मन ल देख, उॅंकर मुॅंह म पैरा झन गोंज। तुरते लहुट आव अउ अपन ड्यूटी म जाव।" मया के रस ले पागे ब्लेकमेल करे लगिस।
३.
बेरा आछत छोटे बेटा अपन दाई अउ भैया मेर कहिस कि आफिस कोती जरूरी काम आगे हे, मोला काली ड्यूटी म खच्चित हाजिर होय ल परही। सुरेश छोटे बेटा के बहाना ल समझ गिस, फेर करय का? अंतस् फाट गिस। बेड म परे-परे अपन छाती म पखरा रख यहू पीरा ल सहे लगिस। एक आना नइ लगाय हे अउ हाथ बाॅंधे लहुट गे। वो जान डरिस कि ए नौकरिहा बेटा ह मोर इलाज बर पइसा खरचा नि करना चाहत हे। जे कर नौकरी बर घर के एक एकड़ पुरखौती खेती ल बेच घूस दे रेहेंव। सोचे रेहेंव लइका ह मोर धन आय। आज मोर वो खेती रहितिस त मोर काम आतिस। ओला पुरखा मन के गोठ सुरता आवत रहिस, पूत सपूत त का धन संचय, पूत कपूत त का धन संचय।
सुरेश बाॅंचे खेती ल दूनो बेटा म बॅंटवारा कर दिस। बाॅंह भरोसा रहिगे। अथक होय म दूनो बेटा के आसरा तो हे च। अंजनी बड़ चेताइस कि जम्मो जिनिस ल झन बाॅंट अपनों बर कुछ रख ले। बेरा-कुबेरा काम आही, फेर अंजनी के गोठ ल हवा म उड़ा दे रहिस छे बछर पहिली। बड़ गरब रहिस सुरेश ल अपन दूनो बेटा ऊपर। छोटे बेटा के बहाना बाजी ले बड़े बेटा ले भरोसा का करतिस। सुरेश ल अंजनी के एक-एक गोठ के सुरता आवत हे। नवा जमाना के नवा लइका ए, हिरक के नइ देखय दाई-ददा। अपन म मस्त हो जही। भुला जही कि एकर दम म ठाड़ होय हन। कहे लगही- जेन तें करे हस तेन तो सबो दाई-ददा करथें। दाई ददा के धरम आय। तैं सिरिफ अपन धरम निभाय हस कहिके दुत्कारहीं। अइसने तो केहे रहिस अंजनी ह। अंजनी ल देखत सुरेश ओकर जम्मो गोठ ल सुरता करत हे। अउ ऑंखी ले तर-तर ऑंसू ढरके लगिस। अंजनी अभियो इही समझिस कि छोटे बेटा के लहुटे के दुख म ओकर ऑंखी ले गंगा-जमुना बहे लगे हे।
४.
बड़े बेटा जेन अभी तक दवा पानी के बिल पटावत आय हे, ओकर हिम्मत घलव टूटे लगिस। जब बिहना पता चलिस कि ददा ल अधरतिहा सुते दसना म अटैक आ गिस अउ ओकर तबीयत अउ डोल गे। अपन फरज निभाय म आगू रहिस। फेर जुच्छा हाथ करही त करही का? जतका पैसा रिहिस ओ तो उरके लगिस। प्राइवेट कंपनी म कमती वेतन के भरोसा चार परानी के परिवार के गाड़ी ल खींचत थोके-थोके सकेले जमा पइसा तीन लाख तो रिहिस फेर आठ दिन म जाॅंच, दवा दारू म पचास हजार बस बाॅंच गे रिहिस। अउ एती ओकर ददा सुरेश के तबीयत अउ बिगड़ गिस। संसो तो होबे करही। इही संसो म बूड़े बड़े बेटा अपन चाचा रेवा ल फोन करिस अउ कहिस- "चाचा ! ददा के तबीयत ह अउ बिगड़ गे हे। मोर करा अब पइसा बचे घलव नइ हे। जरूरत परे म आप पइसा जुगाड़हू। मैं इहाॅं कति ल गोहराहूॅं। आगू-पाछू मैं आप ल चुकता कर देहूॅं।"
दूसर कोती ले रेवा के आवाज आइस- "बेटा! तैं पइसा के संसो झन कर। मैं हॅंव अभी, सुरेश ह तोर बाप आय, त मोर भैया घलव आय। भैया ह दू बूॅंद लहू छोड़िस, त दाई ह मोला जन्म दिस हे। बाॅंटे भाई परोसी होगेन त का होगे? पहिली भाई तो ऑंव न सुरेश भैया के?" रेवा कका के अतका गोठ ल सुन के बड़े बेटा के मन के बेचैनी भागिस हे।
"आप थोरेचकन म बिकट घबरा जथव। बाबू जी ल कुछु नइ होवय, देखहू बाबू जी जल्दी बने हो जही।... मैं ह अपन भैया ले पइसा के गोठ करे हॅंव। थोर बहुत उहों ले जुगाड़ हो जही। जादा संसो झन करव। ... अटके म मोर गहना मन ल बेच लेबो। इही दिन म काम आथे गहना गुॅंठा मन।" बड़े बहू ह पीछू कोती खाॅंध म हाथ रखत कहिस। बड़े बेटा के टूटे मन के हिम्मत अउ बाढ़िस।
रेवा ह ड्यूटी के बाद दिन बुड़तिहा अस्पताल हभर गिस। भतीजा ले हाल चाल पूछिस। जाॅंच रिपोर्ट आगे रहिस। ओला दिखावत बड़े बेटा के चेहरा म संतोष के भाव साफ दिखत रहिस। रिपोर्ट म घबराय के कोनो बात नइ रहिस। रेवा अपन पर्स ले एटीएम कार्ड निकाल के बड़े भतीजा ल दिस। पिन घलव बताइस। अउ कहिस जतका जरूरत परही निकाल लेबे। अउ कोनो मेर हाथ लमाय के बारी नइ आही।
रेवा ल निम्न पद ले उच्च पद म आय के जम्पिंग वाला एरियस दस लाख रूपिया ले आगर मिले रहिस। रेवा ल सुरता हावे ददा के ऑंखी मूंदे पाछू भैया के परसादे बारवीं पढ़ पाय रहिस। अउ शिक्षाकर्मी ३ के पद पाय रहिस। ओ बेरा पंद्रह हजार के घूस नइ देवाय रहितिस त नौकरी नइ लगे रहितिस। आज रेवा बड़ खुश हे कि ओकर एरियस के पइसा ह बने अड़चन के बेरा म मिले हे।
अंजनी ह कका-भतीजा के बीच होय गोठ ल सुन सुरेश ल बड़ मगन हो बतावत हे कि रेवा ह बिपत के घड़ी म हमर बर सउॅंहत भगवान सहीं कइसे खड़े हावय। सरी गोठ ल सुन सुरेश के ऑंखी डबडबागे। फेर ए दारी सुरेश के ऑंखी के ऑंसू खुशी के रहिस। सुरेश ल लागे लगिस कि मोर बेटा के हियाव करइया मोर भाई हे। संसो बादर छट गे।
रेवा ल सुरता हे के ओकर मना करे के बावजूद पंद्रह हजार दे के फइसला सुरेश के रहिस। जेन मन पइसा नइ देइन, उॅंकर पोस्टिंग नइ होइस। पद खाली रहिगे फेर भर्ती नइ होइस। वो समे घर म कइसन तंगी के दिन रहिस। रेवा ल सब सुरता आवत हे, ददा के सरग सिधारे के पाछू ओकर इलाज पानी म खरचा ले चढ़े करजा उतरे नइ रहिस अउ अपन दूनो बाॅंह भरोसा सुरेश भैया कइसे पंद्रह हजार के नवा करजा अपन मुड़ म लाद ले रहिस हे। आज रेवा अपन भैया के उही करजा ल उतारे के कोशिश म हे। जेन करजा के नेंव ले आज वोहर अपन पाॅंव म खड़े हे।
पोखन लाल जायसवाल
पलारी (पठारीडीह)
जिला- बलौदाबाजार भाटापारा छग
No comments:
Post a Comment