Monday, 24 April 2023

श्रद्धांजलि विशेष -* शिवशंकर शुक्ल

 *श्रद्धांजलि विशेष -*

शिवशंकर शुक्ल 

*(छत्तीसगढ़ी साहित्यिक पुरोधा म छत्तीसगढ़ी के दूसरा उपन्यासकार आदरणीय श्री शिवशंकर शुक्ल जी, जउन हर 'दियना के अंजोर ' अउ 'मोंगरा' छत्तीसगढ़ी उपन्यास लिखिन हें। उंकर लिखे बाल कहानी संग्रह 'दमांद बाबू दुलरू' म संग्रहित एक ठन प्रमुख कहानी 'पइसा के रुख' हर अविकल प्रस्तुत हे । )*



              *पइसा के रूख*

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- *श्री शिवशंकर शुक्ल*


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           एक गांव में दूझिन भाई रहत रिहिन ।बड़े के नाम दुकालू अउ छोटे के नाम सुकालू रहिस। दुनों झिन के खटला मन मं आपुसे मं रोजेचझगरा होवै । रोज के किलकिल ले  दुनों भाई मन  अलगिया गिन ।


         सुकालू बहुत एक कोढ़िया रहिस।  कभु कोनों काम धंधा नई करत  रहिस । दिन रात सूतय अउ इती उती किंदरय । ओखर इहिच बूता रहय । अपन ददा के कमई ,जोन  ओला बटवारा मं मिले  रिहिस  उही ल उड़ावय ।


              थोर दिन मं ओह अपन ददा के कमई ल  फूंक  डारिस । फेर ओह भीख मांगेल धरिस।  गांव के मन ओला बाम्हन  घर जनम  धरे ले कुछु कांही दे देवंय । अइसने इनकर दिन बीते ।


          एक दिन सुकालू के टूरा हर अपन बड़ा के टूरा मेर एक ठिन कठवा के हाथी देखिस । ओहर दऊरत दऊरत अपन दाई आई मेंरन आइस अऊ रोवन लागिस । सुकालू के खटला  हा पूछिस , का होगे , काबर रोथस ?


           टुरा ह किहिस, दाई बड़ा ह  मेला ले भइया बर कठवा के हाथी लानिस हे, वइसने मंहू ला बिसा देना । सुकालू के खटला जोंन  ला तीन दिन ले अनाज के एक सीथा खाय ल नई मिले रहिस, खिसिया गे । कहिस कस रे करम छड़हा, तोर ददा के गुन मां पसिया नइ मिलय, तोला हाथी चाही । सुकालू के टुरा अऊ रोवन  लागिस । टुरा ल रोवत देख के वोह खिसियागे अऊ दुचार चटकन  टुरा ल झाड़ दिस।


              सुकालू  ह कुरिया मं एक मांचा ऊपर बइठे रिहिस। अपन जोड़ी के गोठ ह ओला बान उसन लागिस। ओह अपन मन मं गांठ बांधिस कि मेंह कुछ काही करबे करहूं । 


            दूसर दिन सुकालू कमई करे बर आन गांव जाय बर अपन घर ले निकरिस । गांव के मुहाटी मं एक लोहार के घर रहय । सुकालू ल गांव के बाहिर जावत देख के ओह किहिस, कस गा बाम्हन देवता, कहां जाथस?


       सुकालू ह किहिस, लुहार कका में ह दूसर गांव जावत हववं, कुछु काहीं बुता करहूं। अब कले चुप्पे नइ बइठवं ।

 

        लुहार हर किहिस-- गांव ले बाहिर काबर जा थस , मोर हिंया बूता कर ।  सुकालू किहिस -- लुहार कका तैं जउन बूता तियारबे में उहीकरहूँ ।


        ओ दिन बेरा के  बूड़त ले सुकालू ह लुहार हियां घन पीटिस-  संझा जाय के बेरा लूहार ह सुकालू ल दिन भर के मजूरी तीन पइसा दीस। सुकालू ह तीन पइसा  ल लेके चलिस अपन कुरिया कोती। सुकालू ल आज एइसे लगे जइसे ओला तीन पइसा नई, कहूं के राज मिलगे ।


           कुरिया के मुंहाटी ले सुकालू ह अपन  खटला ल हांक पारिस। सुकालू के खटला ह दिन भर ले अपन जोड़ी ल नई देखे रहय । सुकालू के हांक पारत वहू  दुवारी के अंगना मं आगे । सुकालू हर किहिस, ले ये दु  पइसा, मेंह आज  बूता करके लाने हवंव । अब में ह बइठ के नइ रहवं। जतेक बेर सुकालू हर पइसा ल देत रहिस,सुकालू के  खटला ह देखिस कि  सुकालू के हाथ ह लहू लूहान  होगे  हावय। कहिस,ये तोर हाथ  मं का होगे हे? सुकालू ह  किंहिस,आज दिन भर मेंह लुहार कका हिंया घन पीटे हंवव ओखरे ये।


 सुकालू के खटला पानी तिपोइस अऊ सुकालू ल नहाय के पथरा ऊपर बइठा के  ओखर हाथ ल सेके ल तीपे पानी भित्तरी  लाने बर गिस , ओतके बेर  सुकालू ह उसका बेर सुकालू ह एक पइसा जेन ला ओहर चोंगी -माखुर बर  लुकाय ले रहिस, तेन ल नहाय के पथरा के नीचू मं लुका दिस।


        हाथ ल सिंका के सुकालू ह बियारी करिस। खातेखात वोला  नींद मातिस वो ह सूतगे ।


      बिहानियां सुकालू के खटला ह उठिस । त काय देखथे कि नहाय के पथरा के तीर म पइसा के रूख  लगे हवय। पहिली तो वोला लगिस के मोला भोरहा होवत हावय । वो ह  पथरा मेरन  जा के देखथे त  सहीं मं उहां पइसा के रुख रहय। लकर धकर ओह पइसा ल चरिहा मं भर भर के सुते के कोठी में लेग लेग के कुरोय लगिस।  पइसा के झन- झन  सुन के  सुकालू के नींद ह टूटगे। वोह देखिस कि मोर जोड़ी ह चरिहा म पइसा भर भर के लान लान  के इहां कुरोयवत हे । वो ह पूछिस, कउन  मेर  ले तोला एतका धन दोगानी मिलगे? 


         वो ह कहिस-- उठ त देख पथरा मेरन कतेक बड़े पइसा के रुख लगे हे । सुकालू घलो देखिस त ओला अपन रात के पइसा के सुरता आइस, जेला वोह पथरा खाल्हे लुकादे रिहिस । आज वोला जनइस के अपन पसीना बोहाय पइसा मं कतेक बल होथे। वो ह  गांठ बांधिस के बिन बूता के मेंह बइठ के एक सीथा मुंख मं नई डारंव ।


             सुकालू घलो पइसा वाला बनगे। पइसा के रूख के सोर राजा लगिस। वोह खूभकन बनिहार लानिस अउ  सुकालू  के कुरिया म नींग गे। सुकालू, राजा ह हांक पारिस।  सुकालू ह अपन दुवारी म राजा ल देख के जान गे के येहर काबर आय हाबय । फेर राजा के आगु वोह काय । बनिहार मन कुदाली रापा ले के भिड़गे ,रुख उदारे बर फेर करतिस जेतक वो मन भुंया ल खनय ओतके रुख ह भुंइया मं हमात जाय।थोर दिन मं रुख हर धरती माता के कोख मं हमागे ।  राजा हर मन मार के रेंग दिस।


    सुकालू ल पइसा के रूख हर  चेत करा दिस के मिहनत के कमई हा कतेक बाढ़थे ।


*श्री शिवशंकर शुक्ल*

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 खाँटी  छत्तीसगढ़ी शब्द -

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खटला - औरत, सुवारी

हिंया -इहाँ , यहाँ

कुरोय लगीस -भरे लागिस,जमा करे लागिस

खाल्हे -तरी ,नीचे

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प्रस्तुतकर्ता -

*रामनाथ साहू*

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