Sunday, 16 April 2023

पहाती के पाॅंव महेंद्र बघेल

 पहाती के पाॅंव 

                महेंद्र बघेल


दिनभर के भाग-दौड़ अउ हाय-हफर ले अंतस म सकलाय टेंशन ह नवा-नवा समस्या ल लांच करत रहिथे। समस्या ह काकर कर अउ कते मेर नइ हे , सोचत- सोचत बैठे रहिबे ते समस्या ह जिनगी के सबले बड़े समस्या बन जथे। त का ये समस्या ल अपन मूड़ी म थोड़े चढ़ा डरन।मार्निंग वॉकिंग वाले दीदी-भैया मन ला देखबे तब अइसे लगथे कि इनकर घर म कोई समस्या नहीं होही।

             मन म सवाल उठथे जब घर म कोई समस्या नइ हे तब ये मन सुते के बेर काबर घूमे के तपस्या करत होही। हो सकथे ईंकरो कोई भीतरौंधी समस्या होही जेकर समाधान बर मार्निंग वॉकिंग करत होही। बिना समस्या के बिहनिया ले अपन नींद ला खराब करे के भला कोन ह हिम्मत करही।

             जागरूक किसम के मनखे मन समस्या आय के पहिली समस्या ल खतम करे बर मार्निंग वॉकिंग करथें।कुछ नवछटहा मन मौसमी रहिथें जेन अकरस पानी गिरे कस नवम्बर दिसम्बर म वाकिंग करथे। बाकी लोरिक टाइप के मनखे मन पहाती के पाॅंव ल ओंटा-कोंटा म मड़ियाके मोबाइल म बिधुन हो जथें। अउ नीजि मामला म फुसुर-फुसुर करत खून अउटावत रहिथें।

         मॅंझोलन बिरादरी (मिडिल क्लास) वाले मन अपन शकल ल निखारे बर देश दुनिया के नकल करे म अपन अकल ल खपात रहिथें, स्लिम अउ फिट दिखे के बैरासू नशा ह पर्वतारोही कस तरवा के टिपुल म चढ़े रहिथें। पूछबे त एके जुवाब हम शुद्ध आबो-हवा पाय बर आक्सीजोन के शरण म जाथन, अपन आप ल तरोताजा पाथन,सुबे के हवा लाख रूपया के दवा...।जनो-मनो अपन घर म आक्सीजन के जगा नाइट्रोजन हाइड्रोजन ल नाक म पाइप फॅंसाके खींचत होही।

         आज ले कतको पहिली अक्टूबर महीना ले लेके दिसम्बर तक स्कूल म खेल प्रतियोगिता के आयोजन होवय। इही बुता ले पढ़ाई-लिखाई के संग शारीरिक शिक्षा के मूल्यांकन घलव हो जाय।तब पहातीच ले लइका मन दौड़े-भागे बर सड़क अउ मैदान म दिखाई देवॅंय।पता नहीं आजकल शिक्षा विभाग ह खेलकूद डहर थोरको भी ध्यान काबर नइ देवय। उनकर ध्यान ह स्मार्ट क्लास, हार्ड-साफ्ट काफी म तुरत-फुरत जानकारी मंगॅंई तक सीमित होगे हे।

   लइका मन पहाती ले एक दूसर के घर जा-जाके सुते ल जगावॅंय, जागे ल उठावॅंय अउ उठे ल दौडा़वॅंय। कुकरा बासे के बेरा म गाॅंव गली ह लइका मन के शोर म गमक जाय। मैराथन दौड़ बरोबर भदभिद- भदभिद भगई अउ चिल्ल-पों चिल्लई ले मार्निंग वाकिंग म निकले समस्याग्रस्त वाकिंगबाज (घुमइय्या) मन मुॅंहुॅं फार के देखते रहि जाॅंय। आजकल शिक्षा विभाग के खेल कलेन्डर ह बस कोठ (दीवाल) म शोभायमान हे बाकी खेल नीति के योजना ह विभाग डहर ले अघोषित तारा कुची म धंधाय धुर्रा खावत परे हे।ये उदासीन रवैया ले स्कूली लइका मन के पहाती दौड़-भाग म कोनो जादा अंतर तो नइ आय हे। फेर जड़काला म पहाती ले लइका मन के भदभिदई ह आजो चलत हे अउ चलते रही।

      सारी दुनिया कस महूॅं ह मार्च महीना म ठऊॅंका पहाती कुन चद्दर तानके मउहा जाड़ के आनंद लेत रहिथॅंव तभे लइका मन के  चिल्ल-पों के अवाज पाके झकनकाके उठ जाॅंव।मने ये लइका मन अनजाने म जपर्रा-उघर्रा मनखे मन ल जगाय के काम घलव करथें। 

           इही बहानाकभू-कभू महूॅं ह हाथ-गोड़ झटकारे बर मार्निंग वॉकिंग म चल देथॅंव, आजो कुकरा बासे के बेरा म जावत रहेंव। मने मन म सोचत रहेंव - हे पहाती के पाॅंव तोला कहाॅं लेके जाॅंव...।तभे मोर आगू म चार झन माइलोगिन (महिला) मन जावत दिखिन। ओ मन अतका आगू म रहिन कि पाछू म उनकर गोठ-बात ल मॅंय पूरा-पूरा सुन सकत रहेंव।

       गोठ-बात ल सुनके मॅंय अनुभो करेंव कि इनकर शरीर के समस्या ह हरू अउ घर-परिवार के समस्या ह जादा गरू हे।ओमे के एक झन मोठ-डाट माइलोगन ह हाथ लमा-लमा के चलित गोष्ठी के बोहनी करत अपन बहू के चरित्र चित्रण ल पूरा जोश खरोश ले प्रस्तुत करिस- " हमर घर के महारानी ह आठ बजे सुतके उठथे , न काम के न काज के, दुश्मन अनाज के...,  फेशन के दिवानी, सपना के करथे चानी-चानी।"

     पता नहीं कब ले चलागन चले आय हे कि सास-बहू के झगड़ा, रगड़म-रगड़ा। जेन भी वैचारिक शिविर म सास बहू के चित्रहार प्रस्तुत होय के संभावना रहिथे मतलब ओ आयोजन के सफल होय के फूल गारंटी हे। परिवार अउ समाज म एक आम धारणा बन गेहे कि सास मने घर के डिप्टी मनिज्जर ,हुकुम चलइय्या, बात-बात म बात के हंटर सोटइय्या, कोचक-कोचक के लड़इय्या..., सही का हरे ये अनुभवी च मन बता सकथे।

            फेर मनखे समाज के एक ठो अनुभो यहू हे कि सास ह परिवार के वो कद्दावर मनखे आय जेकर छत्रछाया म खुद बहू ह सास बने के विद्या ल बिन प्रशिक्षण के पा जथे। "सास भी कभी बहू थी" उक्ति ह ये बात ल सिद्ध घलव करथे। भला येमे के बहू ह चार सौ के सिलिंडर ल माॅंहगी बतावत सिलेंडर-सिलेंडर रैली निकाल के हल्ला मचाय फेर ग्यारा-बारा सौ के रेट ह ओला नइ जियानत हे, नइ बियापत हे।लगथे ये भूतपूर्व बहू ह बाबा जी के आशीर्वाद ले मौनासन म बइठ गेहे नइते सास प्रशिक्षण सेंटर म मूड़ी खुसेरके ऑंखी ततेरे के अभ्यास म लीन हे।

           जब बिहाके आथें तब शुरू-शुरू म बहू मन ससुराल म बिचारी बरोबर रहिथें, धीरे-धीरे विचारवान होवत सास के माॅंद म घुसपैठ जमाना शुरू कर देथें। सास ह मनिज्जर के गद्दी ल छोड़ना नइ चाहे अउ बहू ह तत्काल गद्दी ल हथिया लेना चाहथे।ये पद-पावर के लोभी पटकथा म सास-बहू के बीच मुॅंहुॅं चलाय ( गारी-बखाना) के देशी कला के बोहनी इहें ले होथे। समधी-समधिन अउ सगा-शील के आगू म बात साजे बर सास ह बहू ल बहुरानी कहि देथे फेर ओकर नजर म बहू के औकत बनिहार ले जादा नइ रहय।

     सास ल पूछके अउ बिन पूछे काम करे के अंतर ल सिरिफ बहू ह समझ सकथे।बिना पूछे राॅंधे-गढ़े म सास के नजर म साग ह भुॅंभवा जथे, नइते पातर-पनियर अउ नुनछूर-चुरचूर हो जथे। पूछ के राॅंधे म उहीच साग के सब्बो दोष ह छू-मंतर हो जथे।फेर दोनो दशा म जेवन-पानी के बेरा म नाक-मुॅंहुॅं ल मुरेरना सास के जन्म सिद्ध अधिकार माने जाथे।

       तभे तो सास ह मार्निंग वाकिंग के ताजा हवा म अपन बहू के प्रसंग सहित व्याख्या करे में मगन हे, उही सास ह बात ल लमावत कहिस --"काला बताॅंव ...अब्बड़ घटकार, चाय बनाबे तेला चुहक-चुहक के सुपुड़-सुपुड़ करत पीथे अउ बनाय बर गतर नइ चले..। टोस-बिस्कुट ल बोर-बोर के खाथे,लइका मन ले ओ पार हे बहिनी का गोठियाॅंव...।मोर किसमत ह खराब हे .., स्वर्ग ले सुंदर हमर घर म कइसन टेसनिन बहू सपड़ गेहे।दाऊ-गउॅंटिया के बेटी आय कहिके मांग डरिन, फकत अलाल... टिकान म फटफटी देहे त टूरा ह अहू अउ वहू दूनो फटबटी म मोहा गेहे..।बहू के गल्ती देखके घलव ओला नइ बरजे बहन..., एदे कर उठ कहि त उठही, बैठ कहि त बैठही..., रात दिन के घुमई-फिरई अउ टेस मरई म चेंदरा पर गेहे ..।

भइगे बहू ह जइसन नचावत हे तइसन बेटा ह नाचत हे...।"

     चलित गोष्ठी के बाकी तीनों सदस्य मन हुॅंकारू भर देवत रहिन, तभे ओमे के एक झन ह देखब म हिटहर सास के सिधवी बहू कस लगत रहिस। वहू हा मुॅंहुॅं बना-बनाके अपन सास के सात-पुरखा म पानी (जल) रितोना शुरू करिस..., चाहतिस ते एक लोटा म काम निपटा सकत रहिस...। --"लिखरी-लिखरी बात म फोकटइया टांच मारत रहिथे, घर के सम्हेरा म बैठे रही अउ सुआ कस बासत रही। सुत उठके भले मुॅंहुॅं नइ धोही फेर चहा बर ओड़ा ल डार दे रही। चहा म अदरक कम हो जही त ताना मारही...,तोर दाई-दाई मन तोला कुछु नी सिखोय हे का, चाय ल ढोल-ढोल ले बनाय हस।कभू तो महतारी बरोबर गोठिया लेतिस, बात-बात म टेचरही..। नवा नेवरनिन आय रहेंव त एक घाॅंव साग राॅंधे बर रमकलिया ल पउल के पानी म धो परेंव अउ बघारे बर कढ़ई म ओइरेंव ..।का बताॅंव सब गड़बड़ होगे, लिरबुट के मारे सबो साग ह लाटा कस लटियागे .., चम्मच म खोवॅंव त लच्च ले उप्पर अउ लच्च ले खाल्हे..। साग ल भूॅंजत-भूॅंजत पसीना-पसीना होगेंव फेर साग नी भुॅंजाइस। बियारी के बेरा म सास ह मोर रमकलिया रेसिपी के धज्जी उड़ावत लइन से मोर मइके परिवार के हैप्पी बर्थ-डे मनादिस।अइसनेच एक घाॅंव पुचपुचही ननॅंद ह घलव व्यंजन बनाय रहिस फेर ओला मुहुबाड़िन सास ह राम-रहिम नी बोलिस। अपन बेटी ल बेटी अउ हमला बहू.. त का एसने म बने दिन ल पहू..।"

       गोष्ठी के बाकी दू झन श्रोता मन ल बहू बने बहुत दिन होगे रहिस अउ सास बने बर बहुत दिन बाकी रहिस।तेकर सेती येमन वक्ता मन के राग झोंकत भावी सास बने के सिरिफ सपना संजोवत रहिन।

        ओ दिन के मार्निंग वाकिंग म सास-बहू के बीच के द्वविपक्षीय वार्ता ल सुने के  सौभाग्य प्राप्त होइस, मॅंय धन्य होगेंव।

         चलित विचार गोष्ठी म सास-बहू के पुटका-पुरायण ल सुनके मोला गृहस्थी म वाचिक साहित्य के अनमोल ज्ञान प्राप्त होइस। इही ज्ञान ल अउ पाय के लोभ म आगू दिन फेर उनकर पीछे पड़ गेंव। मॅंय उनकर सबो गोठ ल सुनत हॅंव ये बात के उनला एहसास होते भार ओमन अपन शिखर वार्ता के आयोजन ल तुरते उद्यापन तक पहुॅंचा दिन। का करॅंव ..पुच-पुच कूदत हाथ गोड़ ल छटियात,लंबा-लंबा फेकत मॅंय आगू बढ़ गेंव। 

   आगू म चार झन गोठकार मन देश अउ सरकार के बारे म बिधुन होके चिंतन मनन करत वाकिंग संग टाकिंग करत रहय। मॅंय कान टेड़ के उनकर पाछू म पड़ गेंव मने परिवार परायन ले निकलके राजनीतिक रसायन म अरझ गेंव। एक झन ह सरकार के नीत-नियम के बखान करे .., अउ बाकी तीनों मन मनमाने बखाने...।

           नरी म पींयर गमछा लटकाय एक झन लफरहा नेता टाइप के मनखे ह कहिस- " आज गाॅंव-गाॅंव अउ शहर-नगर म हालत बहुत खराब हे जे डहर देखबे दारू कोचिया मन अपन खीसा ल दुकान बनाके फेरीवाले कस बेचत हें,  पढ़े-लिखे युवा मन के पास काम नइहे। बेरोजगार मन के हालत ल का कहिबे येमन गाड़ी म एती-ओती भुर्र-भुर्र घूम-घूम के दिन पहावत हें,बाप कमावत हे बेटा मजा उड़ावत हे। भत्ता के नाम म सत्ता के सपना देखई ल छोड़ काम धंधा अउ रोजगार के दरकार हे,एती रोज-रोज के घोषणा के खाल्हे म उॅंघावत सरकार हे।दारू भट्टी बंद होना चाही, हमला या कोई भाई ल एकर जरवत पड़ही तब कहीं ले भी वेवस्था कर लेबो।" 

        ओकर बात ल फाॅंकत तीन रंगिया गमछा पहिरे मनखे ह अपन मुॅंहुॅं ल उघारिस - "का बात करथस दू करोड़ नौकरी देय के बात ल छोड़ी दे, सरकारी निकाय के हालत खस्ता हे, महंगाई म सिरिफ भाषण ह सस्ता हे।काला धन वाले मन लाल होगें,मोर देश के कइसन हाल होगे।" 

          अतका सुनना रहिस कि तीसर टोपी पहिरे लफरहा मनखे ह झाड़ूदार कस दूनो झन के गोठ के फलफलहा कचरा ल चुक्ता झाड़ दिस.., चिल्ला-चिल्ला के बाहरी के मुठिया ल गाड़ दिस। --" भाई हो देश में पढ़े लिखे मनखे के राज होना चाही, जगा-जगा स्कूल चाही सरकारी, नीयत म होवय ईमानदारी ..., हर मुहल्ला म मुहल्ला क्लिनिक खुलना चाही ये स्वास्थ्य बर सबले जादा जरूरी हे।"

            चौथइय्या ह सहीच के मनखे टाइप के मनखे लगिस,सुनके फकत हुॅंकारू देवइया नइ लगिस। तभे तो तीनों झन के डिंगई ल उही मेर रगड़ के रख दिस अउ कहिस - " जेन तीरस्ता के तुमन गोठ करत हव ये तीनों म एक झन नाग नाथ,दूसर ह साॅंप नाथ अउ तीसर आय टेटका..। आज खुद ल बचाना देश ल बचाय ले जादा कठिन हे, हमर आगू म सबले बड़े इही प्रश्न चिन्ह हे।"

      मार्निंग वाकिंग म ये जम्मों झन के टाकिंग ल सुनके लगिस येमन तो घर-दुवार, परिवार-समाज अउ देश-दुनिया बर ताजा जानकारी के खजाना आय। मने आम के आम अउ गुठली के दाम‌...।इहाॅं सुबे-सुबे घूमत-फिरत देश दुनिया के बारे म ज्ञान के खजाना ह फोकट म मिलतहे।अउ ओती ये पे चेनल वाले हथलमरा मन रात-दिन परोसी देश के आटा बंगाला के भाव ल सुना-सुना के हमर समस्या ल नजर अंदाज करे म बीजी हे।इही सोचत-सोचत आखिर म मॅंय मार्निंग वाकिंग के फायदा ल अंतस म गॅंठियायेंव अउ पुच्च-पुच्च कूदत, पहाती के पाॅंव ल झटकारत सुरू-खुरू अपन घर लहुटगेंव।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

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