पल्लवन-बीजा अउ जर मा कांटा नइ होय
हमन अपन तीर तखार मा किसम किसम के फूलपेड़, रुखराई देखथन।कोनों नान्हे रहिथे ता कोनों बड़का, कोनों नार वाला रहिय ता कोनों कांटा वाला, कोनों गजगुजहा ता कोनों लजलजहा।कोनों करुकसा ता कोनों दवई बुटई वाला। कतको रुखराई समाज बर हितवा होथय..ता धथुरा, केंवास हा बइरी घलाव होथय। फेर सबो किसम के पेड़ पउधा मा दूठन जिनिस मन एक किसम के होथय। उंखर बीजा अउ जर मा कांटा नइ होवय भलुक ओ हा जहर महुरा हो सकथय।
अइसने हमर समाज मा किसम किसम के संस्था संगठन नाव के नार बिंयार असन रुखराई देखेबर मिलथे। सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सेवाभाव, आश्रम, अइसने कतको किसम के नान्हे बड़े रुखराई जौन मनखे के हितवा बरोबर रहिथे देखेबर मिलथे फेर पाछू ओमा कांटा आ जाते। एक मनखे के बिचार रूप बीजा हा समाज रुप माटी पानी पाथे तब पिकयाय लगथे ओमा हूबहू बिचार वाले मनखे मन जर बरोबर लटकथे अउ पानी पाके पाना डारा फेंके लगथे। पहिली जौन बीजा संग जर खाल्हे मा बाढ़थे ओमा कांटा नइ रहय। बीजा अउ जर हा अपन पेड़ ला बढ़ा डारथे जेहा पाना डारा असन मनखे उलहोथय। पेड़ हा जब समाज के देखब सुनब नजर मा आय लगथे अउ ओखर मान गउन पूछ परख होय लागथे तब ओखर डारा पाना मा कांटा के जनाकारी होथय।
कोनों संस्था संगठन के बनइया, बिचारक के उद्देश्य मा कभू ऐब नइ होवय फेर आज हम जतका धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, प्रशासनिक , सेवाभाव संस्था संगठन देखथन सबो मा दूसर तीसर पीढ़ी आय ले ललचहापन, अरदली, कट्टरपना, भ्रष्टाचार, अहंकार, शोषण, लूटमार, दिखावापन (मटमटहीपन) जइसन कांटा आ जाते। उपर ले फूल पान ममहावत, हरियर, रंग बिरंगी दिखत फेर तीर मा जाबे, छिबे, ओखर सपड़ मा परबे ता कांटा हा गड़थे अउ बिछियाथे।पेड़ कतको कुछू कर ले कांटा ला अपन ले अलग नइ कर सकय। बिचारक रुप बीजा ला सबो भाथय फेर कांटा सबके आंखी मा गड़थे अउ नकसान करथे।
हीरालाल गुरुजी "समय"
छुरा, जिला गरियाबंद
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