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Chandrahas Sahu धमतरी:
कहानी-अक्ति-भाँवर
चन्द्रहास साहू
मो 8120578897
"ठाकुर देवता मा पूजा करत जावव हो......।''
कोतवाल हांका पारिस अउ मोर नींद उमछगे। शहर मा आठ बजत ले सुतइया। गाँव मा तो भिनसरहा चहल-पहल हो जाये रहिथे।
"हे दाई-ददा हे भोलेनाथ ! हे धरती दाई ! ओ.. !''
आँखी रमजत जमहासी लेयेंव अउ गोड़ ला बेड ले उतारे के आगू धरती दाई ला पांव परेंव। मोबाइल ला देखेंव। आठ बजे बर दस मिनट कमती रिहिस।
"उठ बेटा पीहू ! आठ बजगे वो चलो मोर रानी बेटी आँखी उघार अब।''
दस बच्छर के मोर मयारुक बेटी ला उठाये लागेंव। वोकर ओढ़े चद्दर ला तिरत फेर आरो करेंव फेर लइका तो ...।
"थोड़ी देर और ...पापा ! नही न ..... हूं .... हूं उई ... ।''
कुनमुनावत किहिस अउ फेर सुतगे। मुँहू धो के फ्रेश होके आयेंव अउ फेर उठायेंव नोनी के संग गोसाइन ला।
"उठ वो बेला ...!''
"हँव ''
"हुकारु दिस अउ फेर फुसुर-फुसुर सुते लागिस।
तोला कहे रेहेंव न साढ़े छे बजे उठाबे कहिके। बहरई-बटोरई,चाय-पानी जम्मो ला कर डारे होही सियान मन। बहु हा सुते रही अउ.... गाँव आथो तब बिहनियां चाय-पानी घला नइ बना सकव। उठाते नही मोला।''
गोसाइन खिसियाये लागिस मोला। सिरतोन धरम संकट हाबे उठाबे तब झटकुन काबर उठाथस कहिथे अउ बिलम होथे तब बिलमा डारथे। ...दूसर ला जगाये बर खुद ला जागे ला परथे।
"चल उठ बेटी ! पुतरा-पुतरी के बिहाव करहु का नोनी ...चलो तियारी करो। तोर संगी-सहेली लाडो पाखी तुमु प्रेरणा प्रियंका भूरी जम्मो कोई आये रिहिन।''
लइका टुंग ले उठगे अब। अपन दादा-दादी अउ संगी-सहेली संग पुतरा-पुतरी बिहाव के जोरा-जारी करे लागिस। मेंहा परसा पान के दोना बनायेंव अउ माई कोठी ले धान निकालके दोना ला भरेंव। शीतला तरिया कोती ठाकुर देव ठउर मा पूजा करे बर चल देंव।
पहिली बइगा बबा हा जम्मो विधि-विधान ला करे फेर अब वोकर बीते ले बड़का बेटा दुलरुवा हा गाँव के जम्मो नेंग जोग ला करथे। खेती-किसानी के नवा बच्छर के शुभारंभ आज के दिन ले होथे। अब्बड़ दिन पाछू आये हँव मेंहा तरिया। भलुक ननपन मा पानी डफोर-डफोर के नहाये हावन इहाँ। अब्बड़ छू-छुवउल, रेस-टीप खेले हावन। तरिया के बीच के खम्बा ला कतको बेरा छुये बर गेंये हावन। ... वहु हा एक ठन नरिहर बर। सिरतोन कतका बिचित्तर राहय बचपना हा। मन गमकत हाबे सुरता करके। तीरथ, तोरण, भीखम, श्रीराम लिखन अउ राजो कलिंदरी रामकुमारी रूखमणी संतोषी जम्मो संगवारी के सुध आये लागिस। टूरा-टूरी संघरा नाहन-खोरन। न कोनो बैर नही न कोनो मन मा मैल नही। बिन कपड़ा के घला नहा लेवन लुका-चोरी। तीरथ अब्बड़ बेड़जत्ता स्कूल ला नागा करके तरिया मा ओड़ा ला देये राहय। पीपर के फुनगी डारा ले तरिया मा कूदे घला। एक दिन भीखम उप्पर कूद दिस भसरंग ले। दुनो कोई के गोड़-हाथ मुरकेटा गे। डॉक्टर करा जाये ला परगे। ....अउ लिखन ? अब्बड़ तौरत रिहिस कतको बरजेंव नइ मानिस अउ रोवत तरिया ले निकलिस तब।
"अबे राजीव ! निकाल न रे...!''
रोनहुत होके किहिस।
"..... का होगे ?.... का होगे ?''
जम्मो कोई सकला गे वोकर रोवई-गवई ला सुन के।
"अबे मोर कुला मा जोंक धर ले हाबे रे ! साले हो ....निकालो न।''
लिखन पार-पचरी मा कूदे लागिस रोवत-रोवत। जम्मो टूरा-टूरी मन सकेला के खोसखिस-खोसखिस हाँसे लागिन।.....हा...हा... सिरतोन महुँ हाँसे लागेंव।
"चला राजीव ! एकर आ।''
देवगुड़ी मा पूजा करत लिखन आरो करिस।
ननपन के सुरता ले उबरेंव अउ वोला देखते साठ फेर कठल-कठल के हाँसेव।
"अबे अब जोंक धरथे कि नही हा ...हा...।''
"चल हट बे !''
अब वहु हा ठठाके हाँस डारिस।
"अब का जोंक चिपकही साले ला, रात अउ दिन भौजी हा चिपके रहिथे तब।''
बेड़जत्ता तीरथ बेलबेलावत किहिस।
ठाकुर देव के मैदान ला चतवार डारे रिहिन। जम्मो किसान मन अपन कोठी के धान ला लान के बइगा दुलरुवा ला दिस। ठाकुर देव मा धूप दशांग अगरबत्ती लाली सादा अउ करिया धजा चढ़ाके पूजा करिस बइगा हा। दोना के जम्मो धान ला मिंझराइस अउ नवा टुकनी मा भरके मैदान मे पूजा पाठ करके छिंचे लागिस। लिखन अउ तोरण अब प्रतीकात्मक रूप ले बईला बन गे रिहिन। मड़ियाके बइठ गे दुनो कोई। नरी मा नांगर जुड़ा परगे अउ गाँव के पटइल कका हा अररा... तता ...ता के आरो संग खेत जोते लागिस। गाँव के सियान मन तरिया के पानी ला लान के सिंचत हाबे, पानी दरपत हाबे। कोनो कुदारी धरके टोंकान खनत हाबे तब कोनो बन-बदौर निकालत हाबे। बइगा हा अब ठाकुर देव के धान ला दोना मा भरके देवत हाबे। देवता ला सुमिरन करत हे।
"ठाकुर देवता जम्मो बर सहाय रहिबे। धरती दाई किसान धान के बिजहा ला तोर कोरा मा डारही तब खेलाबे-कुदाबे पालन-पोषण करबे। मुठा भर बीजा के काबा भर फसल देबे। कोनो किसान घर गरीबी झन राहय। भूख अउ बीमारी ले कोनो झन तड़पे। जम्मो बिघन-बाधा ला टार देबे मालिक !''
बइगा दुलरुवा सुमिरन करिस।
"तरिया के पानी अब अब्बड़ बस्सावत हाबे, मतलागे हाबे। सम्मार के जम्मो कोई श्रम दान करके बेसरम कचरा अउ झाल-झँखड़ ला निकालबो। हमर धरोहर बर कुछु करबो तब बनही।''
गाँव वाला मन ला समझायेंव।
"हव,घर पीछू एक मनखे आबो तब सुघ्घर रही।''
गाँव भर सुंता होगे अब।
दोना के धान ला धरके अब लहुटे लागिन जम्मो कोई। महुँ आगेंव अपन घर अउ आरो करेंव।
"अक्ति के बीजा ला ले आनेंव दाई ! एक लोटा पानी लान वो ... !''
"पानी लान वो बेला ....!''
दाई अउ गोसाइन दुनो कोई ला आरो करेंव। ..... अउ निकलिन तब पीहू अउ दाई हा मोहाटी मा आके लोटा के पानी रिकोइस अउ दोना के अन्नपूर्णा के पैलगी करिस। अभिन दोना ला तुलसी चौरा मा मड़ायेंव अउ थोकिन पाछू पीहू संग जाके परसाडोली खेत मा पूजा-पाठ करके धान बोये के नेंग करेन।
"भो.... पू ..... भो .... पू...... !''
आरो आइस गणेश चौक ले। साईकिल मा बंधाये भोपू के आरो आवय। गुल्फी वाला रामाधार आवय। बिचारा बिन आधार के हाबे। ननपन ले दाई न ददा। गुल्फी डबलरोटी बेच के गुजारा करत हाबे ननपन ले खड़खड़ी साइकिल मा अतराब के गाँव मा। लइका मन झूमे हाबे साइकिल वाला ला घेर के। कोनो उछाह हाबे कोनो रोवत हाबे अउ कोनो हा गुल्फी चुचरत लाली रचे जीभ निकालके बिजरावत हाबे लिबिर-लाबर।
"महुँ खाहूँ पापा गुल्फी !''
पीहू घला जिद करिस। दस ठन भाषण देयें हँव तब बिसाये हँव गुल्फी। पीहू के संग आने लइका घला खाइस। लइका मोर संग खेत गेये रिहिन तेखर मेहनताना देये ला परथे...।
गुल्फी मुँहू मा गिस अउ मोर बेटू पीहू चार्ज होगे। अब चपर-चपर गोठियाये लागिस।
"पापा ! ये अक्ति तिहार ला काबर मनाथे ?''
"आज के दिन ला अक्षय तृतीया घला कहिथे बेटा ! आज के दिन के भगवान विष्णु के अवतारी परशुराम जी के जनमदिन आवय। धन के देवता कुबेर ला अधिपति बनाये गे रिहिन। श्री कृष्ण अउ सुदामा के महामिलन होये रिहिन। भागीरथी हा माता गंगा के आव्हान करके धरती मा बलाये रिहिन। सतयुग अउ त्रेतायुग के शुरुआत आज के दिन ले होये रिहिन। ..महाभारत के भीषण लड़ाई हा आज के दिन सिराये रिहिन। भगवान बद्रीनाथ के पट घला आज के दिन खुलथे।''
मेंहा बतायेंव।
"अक्ति के तो अब्बड़ महत्तम हाबे पापा। ! फेर अक्षय माने का होथे पापा !''
लइका ला फेर बतायेंव।
"अक्षय माने कभु नइ सिराये। वोकरे सेती आज के दिन अब्बड़ बिहाव होथे। जेमा टूटन बिखराव अउ तलाक नइ होवय। जनम-जनम के बंधना मा बंध जाथे आज के दिन के बिहाव करइया मन। तोर मम्मी अउ मोर घला आजे के दिन बिहाव होये रिहिन।''
"अरे वाह पापा जी ! आज तुंहर दुनो के मैरिज एनीवर्सरी आय। हप्पी मैरिज एनीवर्सरी पापा जी।''
बेटी मुचकावत किहिस अउ मोर गाल ला चुम लिस।
"चल बेटी ! कुम्हार घर जाबो इही कोती ले।''
कुम्हार घर चल देन अउ लाल घेरु रंग के करसा बिसा डारेंव। अब घर अमरगेंन।
"बेला का करत हावस ओ !''
करसा ला तुलसी चौरा करा मड़ायेंव अउ गोसाइन ला आरो करत रंधनी कुरिया मा गेयेंव। गोसाइन बेसन के डुबकी बनावत रिहिस। मुँहू मा पानी आगे। सिरतोन गरमी मा अम्मट अब्बड़ सुहाथे। सरपट चुहक के खा ले डुबकी ला...। घर के बहुलक्ष्मी गृहलक्ष्मी बनके जम्मो घर-परिवार ला सम्हाल डारिस। लइकुसहा पन मा बिहाव होइस , कुछु नइ जाने ....अउ अब वोकर बिना जग अँधियार हाबे मोर। सिरतोन माईलोगिन अउ धान के पौधा एके बरोबर तो आवय। धान के पौधा ला थरहोटी ले खनके खेत मा लगाथन अउ खेत मा ही डारा-शाखा के बढ़वार करत महर-महर ममहावत जम्मो खेत-खार मा अपन ममहासी बगरा देथे। वइसने माईलोगिन हा अपन माइके मा पलथे, बाढ़थे संग्यान होथे तब ससुराल पठो देथे। जम्मो जिम्मेदारी ला निभावत दुबराज जवाफूल जीरा मंजरी बरोबर ममहाये लागथे संस्कार व्यवहार कर्तव्य सहभागिता अउ सद्भाव ले।
जम्मो ला गुनत बेला के चेहरा ला देखेंव। गोरी-सांवरी बरन अउ गाल के तेलई दगदग ले दिखत हाबे। लाली कुहकू दमकत हाबे। बेसन लगे पड़री गाल पसीना के बूंद मा चमकत माथ इतरावत चुन्दी कोष्टहु लाली लुगरा मा अब्बड़ सुघ्घर दिखत हाबे।
तै चंदा कस रानी, मय सुरुज के अंजोर ..।
बांध लें मया मा गोरी, अचरा के छोर ...।।
गोसाइन बेला ला रिझाये के उदिम करेंव फेर वो तो मगन हाबे डुबकी बनाये मा। कन्नखी देखिस अउ मुँहू मुरकेटिस। दिल टुटगे मोर तभो ले एक ठन ददरिया अउ ढ़ीलेंव।
पानी ला पीये, पीयत भर ले....।
संग देबो मोर रानी, जीयत भर ले ...।।
भरभर-भरभर गैस चूल्हा के आरो अउ डुबुक-डुबुक डुबकी साग के आरो संगीत देवत हाबे। गाना गावत गोसाइन ला पोटारत मैरिज एनीवर्सरी विश करेंव।
"हैप्पी मैरिज एनीवर्सरी वो ! आई लव यू !''
"हु ....!''
सिरतोन ये माईलोगिन मन ला समझ पाना ब्रम्हादेव के बस के बात घलो नोहे तब मेंहा तो छोटे-मोटे साधारण पतिदेव आवव। बेला अब अपन बेसन वाला हाथ ला बेसिन मा धोइस अउ गोड़ मा निहर के पैलगी करिस।
"तहुँ मोला जिनगी भर संग देबे ..... अउ जइसन तोर घर मा दुल्हिन के सवांगा करके गृहप्रवेश करे हँव वइसना सवांगा मा सुहागिन तोर घर के डेरउठी ले मोर अर्थी निकले ...।''
गोसाइन के आँखी कइच्चा होगे। दुनो हाथ ला थामत चुप करायेंव। आँसू ला पोछेंव।
"बेला ! मोर पीहू के मम्मी तोर आँखी मा कभु आँसू झन आवय वो ! ....अउ आवय घलो तो सबरदिन उछाह के आँसू आवय।
किचन ले निकलके अब अंगना मा आगे गोसाइन हा। तीनो करसा ला बने धोइस-मांजिस अउ बोरिंग के मीठ पानी ला चौरा मा मड़ा दिस। करसा मा पीयर चाँउर अउ गुलाल के टीका लगा के गंगा मैया ला आरो करिस बेला हा।
"हे गंगा मैया ! कोनो भी डहरचला मन ला प्यासे झन भेजबे हमर गाँव ले। ... अपन आरुग पन अउ मीठपन ला सबरदिन बनाके राखे रहिबे ये जम्मो करसा मा।''
आज अक्ति के दिन ले करसा के जुड़ पानी पियें के मुँहतुर(शुरुआत) घला करथे अउ करसा दान घला करथे।
गोसाइन बेला सुमिरन करके किहिस। ... अउ मेंहा पाछू बच्छर बरोबर करसा दान करे बर चल देंव। स्कूल चौक, पंचायत अउ लोहार ठीहा मा करसा ला स्थापित करके लहुट गेंव मेंहा।
महेरी बासी गोंदली बंगाला चटनी अउ बेसन के डुबकी के संग आज मंझनिया के जेवन करेन जम्मो कोई दाई-ददा, बेला अउ मेंहा। लइका पीहू तो अभी मगन हाबे लइका मन संग पुतरा-पुतरी सजाये मा।
फोरन के मिर्ची ला कर्रस ले चाबीस अउ हाय सु...हाय सु ... कहिके बासी खाये लागिस गोसाइन हा। आँखी मा आँसू अउ चेहरा मा उवत सुरुज के लाली उतर गे हाबे अब। नाक मा पसीना के बूंदी रवाही फूली बनके चमकत हाबे।
"चल बेटी ! भात-बासी खाये बर।''
बेटी तो टस ले मस नइ होइस। मगन होके जम्मो तियारी करत हाबे संगी-सँगवारी संग। अंजली प्रेरणा तुमु प्रियंका मन हा शीतला माता मा हरदी चढ़ाके नेवता देके आ गे रिहिन। लइका मन संग अब बड़का मन घला पंदोली देवत हाबे। मड़वा छवा गे हाबे। नेंग-जोग के जोरा-जारी होगे हाबे। अब देवतला माटी कोड़वानी, मुड़ा परघाये के तियारी चलत हाबे।
आधा कलेवा तो कोतवालिन घर बन गे रिहिन फेर जेवन बाकी रिहिन।
एक रुपिया धरके आगी बिसा के लानिस बइगा घर ले अउ चूल में आगी भभकाये लागिस केंवरा हा।
अब तो लइका मन के गड़वा बाजा दल घला आगे रिहिन अउ अब बजावत हाबे। दूल्हा राजा के पक्ष मा पटइल-पटेलीन अउ दुल्हिन कोती ले लोहार लोहारिन मन सियान बनगे। गाँव भर के मन सकेलाके नेंग नत्ता ला करत हाबे।
एके तेल चढ़ी गे ....!
दुये तेल चढ़ी गे ....!
अब बिहाव चालू होगे। बाजा बाजत हाबे। नान्हे नान्हे लइका मन लुगरा पहिरके बड़का बुता करत हाबे। पीहू घला हरियर लुगरा पहिरके मोर दाई बनगे हाबे। एको नेग-जोग कमती नइ होवत हाबे। लइका झन जान, जम्मो ला जानथे,समझथे येमन। जम्मो कोई पुतरा-पुतरी ला बोहो के जम्मो कोई धुर्रा उड़ावत ले मैन नाचा नाचीस। अब बरतिया के तियारी करत हाबे।
मेंछा हावय कर्रा-कर्रा, गाल तुंहर खोदरा रे..।
जादा झन अटियावव संगी, हो गे हव डोकरा रे।।
पटइल तो सिरतोन लजा गे लोहारिन के भड़ौनी गीत मा।
बने बने तोला जानेंव समधी, मड़वा में डारेंव बांस रे ...।
झालापाला लुगरा लाने, जरय तुंहर नाक रे..।
अब पटइल हा मेंछा अटियावत किहिस।
"चलो झटकुन बरात परघाओं पानी बादर के नही ते जम्मो रोहन-बोहन हो जाही।''
बादर के गरजना ला सुनके केहेंव मेंहा। मौसम बिगड़त हाबे अब। लाल भाजी दुधभत्ता खवाके अब टिकावन बइठगे।
हलर हलर मोर मड़वा हाले वो...।
खलर खलर दाइज परे वो....।
कोन देवय मोर अचहर पचहर
कोन देवय धेनू गाय हो ...
दाई मोर टिकथे अचहर पचहर।
ददा मोर टिकथे धेनु गाय हो....
भईया मोर टिकथे लिली हंसा घोड़ा
भउजी आठ मासा सोन हो
हलर हलर मोर मड़वा हाले वो...।
खलर खलर दाइज परे वो....।
जम्मो कोई अपन ले जइसे बनिस वइसे टीके लागिस टिकावन। बाजा बाजत हाबे अउ पइसा अउ टिकावन बरसत हाबे पुतरा-पुतरी के बिहाव मा। सरपंच कका बइठे हाबे खजांची बनके।
अब मउर सोपत हाबे पहिली पुतरा पक्ष ताहन पुतरी पक्ष के मन। मड़वा मा लाडो हा पुतरा ला पाके अउ पाखी हा पुतरी ला पाके बइठे हाबे।
छिंद के मउर पहिरके पीहू हा सात भांवर किंजरिस अउ दूल्हा दुल्हिन के मउर सोपत हाबे संग मा आने संगी सहेली मन घला हाबे।
दसो अँगुरिया मोर माथे ओ मड़ाइले..।
दसो अँगुरिया मोर माथे ओ मड़ाइले...।
आओ आओ धरमिन दाई मउर सौंप लेव वो।
गाना गाये लागिस दाई मन। जम्मो कोई ओरी-पारी मउर सोंप डारिस अउ अब्बड़ रो गा के बेटी बिदा करिस।
जम्मो कोई अब जेवन करिस।
अउ रातकुन बैइठिस हिसाब-किताब बनाये बर। जम्मो कोई अपन-अपन ले पंदोली देये रिहिन। दू गोड़ वाला अगवा तो हे फेर चार गोड़ अउ एक गोड़ वाला मन घला कमती नइ रिहिन। .... रामाधार तो फोकट मा जम्मो कोई ला गुल्फी बांट डारे रिहिन उछाह मा। जम्मो कोई आय-व्यय के ब्यौरा देयें लागिन। खर्चा कांट के पन्द्रह हजार छे सौ दस रुपिया बांच गे। अभिन तक जम्मो कोई सुंता मा रिहिन अउ अब झगरा करे ला धर लिन।
दू फांकी होगे गाँव वाला मन। कोनो हा बांचे पइसा के डी जे डांस कराबो कहिके अड़े हाबे तब कोनो मन बोकरा पार्टी बर तनियाये हाबे।सिरतोन दिन भर तो गाँव हा सरग लागत रिहिस फेर अब कुकुर कटायेन कस झगरा देख के गाँव बर दया लागिस। का उपाय हाबे अब्बड़ गुनत हाबो मेंहा झगरा शांत करवाये बर।
पीहू बेटी आइस अउ कान मा कुछु किहिस मोर। झगरा के निपटारा के मंतर रिहिस। बेला मुचकावत रिहिस। ... मंतर तो बेला के ये न ।
"भइयां हो ..... ! दीदी हो...!''
"मोर एक ठन गोठ ला मान लेव। टिकावन के बांचे पइसा ले डी जे डांस नइ करन न बोकरा भात खावन। वोकर बढ़िया सदुपयोग करबो।''
जम्मो कोई मोर कोती ला देखे लागिस। मेंहा आगू केहेंव।
"ये पइसा ला रामाधार ला दे देथन। कतका बढ़चढ़ के जम्मो बुता बर पंदोली देथे। अतका घाम पियास मा साइकिल ले अब्बड़ किंजरथे। डी जे डांस ला पाछू कर लेबो अउ बोकरा भात ला पाछू खा लेबो ते नइ बनही .... ? काकरो जीवन सिरजा देबों। अतका पइसा मा जुन्ना-मुन्ना नानकुन फटफटी बिसा लिही रामाधार हा तो जीयत भर ले तुंहर नाव लिही।''
जम्मो कोई अब मान गे। रामाधार बर तो सौहत भगवान भोलेनाथ के आसीस मिलगे। अब जम्मो कोई फेर सुंता होगे । बेला के चेहरा दमकत रिहिस अउ पीहू गमकत हाबे। आखिर ये प्लानिंग तो दुनो के हरे....अउ सब ले जादा उछाह मा मेंहा हावव। सुघ्घर घर-परिवार पाके।
कहानी में प्रयुक्त गीतकारो का आभार/धन्यवाद
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com
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समीक्षा
[4/29, 9:30 PM] पोखनलाल जायसवाल:
छत्तीसगढ धान के कटोरा ए। खेती किसानी म रमे मनखे उत्सवधर्मी होथे। खेती काम ल घलव बड़ उत्साह अउ उमंग ले करथे। तीज-तिहार मन नवा-नवा काज करे बर मन म नवा संचार भरथें। इही तिहार मन म एक ठन तिहार अक्ति तिहार हे। छत्तीसगढ़ म खेती के शुरुआत अक्ति तिहार ले शुरू हो जथे। ए तिहार ले जुड़े कतको किसम के जन मान्यता अउ परम्परा हे, जेन ल माने जाथे।
अक्ति तिहार म पुतरा-पुतरी के बिहाव रचाय के बहाना लोक जीवन लइका मन ल सामाजिक अउ पारिवारिक जिनगी ले जोड़थे। उॅंकर जिनगी ल गढ़े के कोशिश करथे। ए गुन के विकास के संग परम्परा अउ संस्कृति ले जोड़े रखे के उदिम घलव करथे। रीत रिवाज ल, परंपरा ल मन ले माने बर तियार करथे। पइसा अउ धन जोरे के उदिम म लगे च रहे ले, मनखे जिनगी के आनंद मजा का होथे? नइ जान पावय। जिनगी के असली मजा तो लोगन के बीच फुर्सत निकाल के बइठे अउ नता-गोत्ता ल निभाय ले मिलथे। सुख-दुख ल बाॅंटत खुशी बटोरे म जेन आनंद हे, वो अउ कहूॅं नइ मिले।
गाॅंव के कोनो भी सार्वजनिक आयोजन अउ तीज-परब, बर-बिहाव जइसन कार्यक्रम म शामिल होके मनखे के खुशी के ठिकाना नइ रहय। इही कड़ी म अब पहिली ले जादा गाॅंव-गाॅंव म अक्ति के दिन पुतरा-पुतरी के बिहाव रचे जावत हे। लोगन जुरियाय लगे हें। जउन बने बात आय। अपन संस्कृति अउ परम्परा ले ही मनखे, मनखे ले जुड़ के रहि पावत हें। नइ ते रोजी-रोटी के संसो म एक-दूसर के सुख-दुख पूछे के घलव फूर्सत नइ रहे।
एक कोती लोक संस्कृति ले जुड़े अक्ति तिहार के महत्तम अउ मानता के विमर्श करत कहानी 'अक्ति भाॅंवर' म पुतरा-पुतरी के बिहाव संग बिहाव के जम्मो नेंग अउ रीति रिवाज के सुग्घर वर्णन हे। दूसर कोती गाॅंव होय चाहे शहर होय, आयोजन संपन्न होय के पाछू समिति के हिसाब-किताब म उबरे पइसा बर कइसे लोगन आपस म भिंड़थे एकर बढ़िया मनोविज्ञान कहानी म हवय। रचनाकार हमेशा समाज के उत्थान अउ प्रगति बर सोचथे। अपन इही सामाजिक सरोकार ल कहानीकार चंद्रहास साहू जी कहानी के पात्र पीहू के माध्यम ले रखथे। समाज ल एक नवा दिशा देथे। भाषाई दृष्टि ले पुष्ट कहानी अपन उद्देश्य ल पूरा करथे। साॅंस्कृतिक पृष्ठभूमि के सुग्घर कहानी बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई
पोखन लाल जायसवाल
पलारी (पठारीडीह)
जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग
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